बारिश की बूंदें, सुहाना मौसम और गरमा-गरम पकौड़ों के अलावा कुछ और भी है, जो बारिश के मौसम में मिलता है। हम बात कर रहे हैं बारिश में होने वालीं कॉमन बीमारियों की। एक नजर मॉनसून में होने वाली बीमारियों और उनके रोकथाम पर : आंखों की गुस्ताखियां कंजंक्टिवाइटिस : - कंजंक्टिवाइटिस, आई फ्लू या पिंक आई के नाम से जानी जाने वाली यह बीमारी आम वायरल की तरह है। जब भी मौसम बदलता है, इसका असर देखा जाता है। - अगर कंजंक्टिवइटिस हो जाए तो साफ-सफाई बरतें, आंखों को ताजे पानी या बोरिक एसिड मिले पानी से धोएं। पहचान : कंजंक्टिवाइटिस का पता आमतौर पर लक्षणों से ही लग जाता है। फिर भी यह किस टाइप का है, इसकी जांच के लिए स्लिट लैंप माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल किया जाता है और बैक्टीरियल इंफेक्शन के कई मामलों में कल्चर टेस्ट भी किया जाता है। कंजंक्टिवाइटिस तीन तरह का होता है - वायरल, एलर्जिक और बैक्टीरियल। इलाज और बचाव : - वायरल कंजंक्टिवाइटिस कॉमन कोल्ड की तरह होता है और आमतौर पर एक हफ्ते में अपने आप ठीक हो जाता है। इसमें बोरिक एसिड से आंखों को धोने की सलाह दी जाती है। - एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस में नॉन स्टेरॉयडल ऐंटिइन्फ्लेमेट्री मेडिकेशन की जरूरत होती है। - बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस में एंटी बैक्टीरियल आई ड्रॉप इस्तेमाल करने के लिए कहा जाता है। - बचाव के लिए हाइजीन मेनटेन करना सबसे जरूरी है। इस सीजन में हाथ मिलाने से भी बचें क्योंकि हाथों के जरिए संक्रमण फैल सकता है। - आंखों को मसलें नहीं, क्योंकि इससे रेटिना में जख्म हो सकता है। ज्यादा समस्या होने पर खुद इलाज करने के बजाय डॉक्टर की सलाह लें। स्किन पर संकट फंगल इन्फेक्शन : बारिश में रिंगवॉर्म यानी दाद-खाज की समस्या बढ़ जाती है। पसीना ज्यादा आने, मॉइस्चर रहने या कपड़ों में साबुन रह जाने से ऐसा हो सकता है। इसमें रिंग की तरह रैशेज़ जैसे नजर आते हैं। ये अंदर से साफ होते जाते हैं और बाहर की तरफ फैलते जाते हैं। इनमें खुजली होती है और एक से दूसरे शख्स में फैलते हैं। अगर क्या करें : - ऐंटि-फंगल क्रीम क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) लगाएं। - जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से ग्राइसोफुलविन (Griseofulvin) या टर्बिनाफिन (Terbinafine) टैब्लेट ले सकते हैं। ये दोनों जेनेरिक नेम हैं। - फंगल इन्फेक्शन बालों या नाखूनों में है तो खाने के लिए भी दवा दी जाती है। फ्लूकोनाजोल (Fluconazole) ऐसी ही एक दवा है। फोड़े-फुंसी/दाने : इन दिनों फोड़े-फुंसी, बाल तोड़ के अलावा पस वाले दाने भी हो सकते हैं। पहले दाना लाल होता है, फिर उसमें पस आने लगता है। कई बार बुखार भी आ जाता है। आमतौर पर माना जाता है कि ऐसा आम खाने से होता है, लेकिन यह सही नहीं है। असल में यह मॉइस्चर में पनपने वाले बैक्टीरिया से होता है। क्या करें : - दानों पर ऐंटिबायॉटिक क्रीम लगाएं, जिनके जेनेरिक नाम फ्यूसिडिक एसिड (Fusidic Acid) और म्यूपिरोसिन (Mupirocin) हैं। - परेशानी बढ़ने पर क्लाइंडेमाइसिन (Clindamycin) लोशन लगा सकते हैं। यह मार्केट में कई ब्रैंड नेम से मिलता है। - ऐंटिऐक्नी साबुन एक्नेएड (Acne-Aid), एक्नेक्स (Acnex), मेडसोप (Medsop) आदि भी यूज कर सकते हैं। ये ब्रैंड नेम हैं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर ऐंटिबायॉटिक टैबलेट देते हैं। घमौरियां/रैशेज़ : स्किन में ज्यादा मॉइस्चर रहने से कीटाणु (माइक्रोब्स) आसानी से पनपते हैं। इससे रैशेज और घमौरियां हो जाती हैं। ये ज्यादातर उन जगहों पर होती हैं, जहां स्किन फोल्ड होती है, जैसे जांघ या बगल आदि में। पेट और कमर पर भी हो जाती हैं। क्या करें : ठंडे वातावरण, यानी एसी और कूलर में रहें। दिन में एकाध बार बर्फ से सिंकाई कर सकते हैं और घमौरियों और रैशेज पर कैलेमाइन (Calamine) लोशन लगाएं। खुजली ज्यादा है तो डॉक्टर की सलाह पर खुजली की दवा ले सकते हैं। एथलीट्स फुट जो लोग लगातार जूते पहने रहते हैं, उनके पैरों की उंगलियों के बीच की स्किन गल जाती है। समस्या बढ़ जाए तो इन्फेक्शन नाखून तक फैल जाता है और वह मोटा और भद्दा हो जाता है। क्या करें : - जूते उतार कर रखें और पैरों को हवा लगाएं। - ऐसे जूते-चप्पल पहनें जो हवादार हों। - जूते पहनना जरूरी हो तो पहले पैरों पर पाउडर डाल लें। - क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) क्रीम या पाउडर लगाएं। डॉक्टर को फौरन दिखाएं। - इसका इलाज घर बैठकर खुद करना सही नहीं है। डॉक्टर जरूरत पड़ने पर ऐंटिबायॉटिक या ऐंटिफंगल मेडिसिन देंगे। मॉनसून में रखें ख्याल : - खुले, हल्के और हवादार कपड़े पहनें। - टाइट और ऐसे कपड़े न पहनें, जिनका रंग निकलता हो। - कपड़े धोते हुए उनमें साबुन न रहने पाए। - ऐंटिबैक्टीरियल साबुन जैसे कि मेडसोप, सेट्रिलैक (Cetrilak) आदि से दिन में दो बार नहाएं। - शरीर को जितना मुमकिन हो, सूखा और फ्रेश रखें। - बारिश में बार-बार भीगने से बचें। - पैरों और हाथों की उंगलियों में मॉइस्चर न रहें। - घाव पर लगाने वाला लोशन भी कम लगाएं। उससे गीलापन बढ़ता है। उससे बेहतर पाउडर लगाना है। - पेट साफ रखें। कब्ज न होने दें, वरना शरीर गर्म रहेगा। - नॉन ऑइली और कूलिंग क्लींजर, फेसवॉश, लोशन और डियो यूज करें। - डायबीटीज के मरीज शुगर को कंट्रोल में रखें। - फुटवेयर साफ रखें। बरसात के बुखार डेंगू बीमारी की वजह : मादा एडीज इजिप्टी मच्छर। कहां पैदा होते हैं : साफ पानी में। जीवनकाल : 2 से 3 हफ्ते। कब दिखती है बीमारी: काटे जाने के 3-5 दिनों में, कभी-कभी 10 दिन में भी। डेंगू 3 तरह का होता है : 1.क्लासिकल (साधारण) डेंगू बुखार 2.डेंगू हैमरेजिक बुखार (DHF) 3.डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS)। इन तीनों में से दूसरी और तीसरी तरह का डेंगू सबसे ज्यादा खतरनाक है। साधारण डेंगू बुखार अमूमन अपने आप ठीक हो जाता है लेकिन DHF या DSS का फौरन इलाज शुरू नहीं किया जाए तो जान जा सकती है। लक्षण साधारण डेंगू बुखार - ठंड लगने के बाद अचानक तेज बुखार चढ़ना। - सिर, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द। - आंखों के पिछले हिस्से में दर्द। - बहुत ज्यादा कमजोरी लगना, भूख न लगना और जी मितलाना और मुंह का स्वाद खराब होना। - गले में हल्का-सा दर्द होना। - शरीर खासकर चेहरे, गर्दन और छाती पर लाल-गुलाबी रंग के रैशेज होना। डेंगू हैमरेजिक बुखार (DHF) - नाक और मसूढ़ों से खून आना। - शौच या उलटी में खून आना। - स्किन पर गहरे नीले-काले रंग के छोटे या बड़े चकत्ते पड़ जाना। डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS) इसमें DHF लक्षणों के साथ-साथ 'शॉक' के लक्षण भी दिखाई देते हैं। जैसे : - मरीज बहुत बेचैन हो जाता है और तेज बुखार के बावजूद उसकी स्किन ठंडी महसूस होती है। - मरीज धीरे-धीरे होश खोने लगता है। - मरीज की नाड़ी कभी तेज और कभी धीरे चलने लगती है। उसका ब्लड प्रेशर एकदम गिर जाता है। कौन-से टेस्ट - तेज बुखार, जॉइंट्स में तेज दर्द हो या शरीर पर रैशेज हों तो फौरन फिजिशन के पास जाएं। - डेंगू की जांच के लिए ऐंटिजन ब्लड टेस्ट (एनएस 1) या ऐंटिबॉडी टेस्ट (डेंगू सिरॉलजी) कराया जाता है। प्लेटलेट्स का रोल - आमतौर पर तंदुरुस्त आदमी के शरीर में डेढ़ से दो लाख प्लेटलेट्स होते हैं। - प्लेटलेट्स अगर एक लाख से कम हैं तो मरीज को फौरन हॉस्पिटल में भर्ती कराना चाहिए। - अगर प्लेटलेट्स गिरकर 20 हजार तक या उससे नीचे पहुंच जाएं तो प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। बच्चों में खतरा ज्यादा - बच्चों का इम्यून सिस्टम ज्यादा कमजोर होता है और वे खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए उनके प्रति सचेत होने की ज्यादा जरूरत है। - पैरंट्स ध्यान रखें कि बच्चे घर से बाहर पूरे कपड़े पहनकर जाएं। जहां खेलते हों, वहां आस-पास गंदा पानी न जमा हो। - बहुत छोटे बच्चे खुलकर बीमारी के बारे में बता भी नहीं पाते इसलिए अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं। - बच्चों को डेंगू हो तो उन्हें अस्पताल में रखकर ही इलाज कराना चाहिए क्योंकि बच्चों में प्लेटलेट्स जल्दी गिरते हैं और उनमें पानी की कमी भी जल्दी होती है। पहचानें डेंगू मच्छर को इन मच्छरों के शरीर पर चीते जैसी धारियां होती हैं। ये मच्छर दिन में, खासकर सुबह काटते हैं। डेंगू बरसात के मौसम और उसके फौरन बाद के महीनों यानी जुलाई से अक्टूबर में सबसे ज्यादा फैलता है क्योंकि इस मौसम में मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां होती हैं। एडीज इजिप्टी मच्छर बहुत ऊंचाई तक नहीं उड़ पाता। इलाज - अगर मरीज को साधारण डेंगू बुखार है तो उसका इलाज व देखभाल घर पर की जा सकती है। - डॉक्टर की सलाह लेकर पैरासिटामोल (क्रोसिन आदि) ले सकते हैं। - एस्प्रिन (डिस्प्रिन आदि) बिल्कुल न लें। इनसे प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं। - अगर बुखार 102 डिग्री फॉरेनहाइट से ज्यादा है तो मरीज के शरीर पर पानी की पट्टियां रखें। - सामान्य रूप से खाना देना जारी रखें। बुखार की हालत में शरीर को और ज्यादा खाने की जरूरत होती है। - किसी भी तरह के डेंगू में मरीज के शरीर में पानी की कमी नहीं आने देनी चाहिए। उसे खूब पानी और बाकी तरल पदार्थ (नींबू पानी, छाछ, नारियल पानी आदि) पिलाएं। - मरीज को पूरा आराम करने दें। आराम भी डेंगू की दवा ही है। अपने आप न आजमाएं - इन दिनों बुखार होने पर सिर्फ पैरासिटामोल (क्रोसिन, कैलपोल आदि) लें। एस्प्रिन (डिस्प्रिन, इकोस्प्रिन) या एनालजेसिक (ब्रूफेन, कॉम्बिफ्लेम आदि) बिल्कुल न लें। क्योंकि अगर डेंगू है तो एस्प्रिन या ब्रूफिन आदि लेने से प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं और शरीर से ब्लीडिंग शुरू हो सकती है। - Dexamethasone (जेनेरिक नाम) का इंजेक्शन और टैब्लेट तो बिल्कुल न लें। अक्सर झोलाछाप मरीजों को इसका इंजेक्शन और टैब्लेट दे देते हैं, जिससे मौत भी हो सकती है। मलेरिया किससे होता है : एनाफिलिज मादा मच्छर से। लक्षण : तेज बुखार, सिर में दर्द, एक दिन छोड़कर ठंड के साथ बुखार आना। बचाव : मच्छरदानी का इस्तेमाल, आसपास पानी इकट्ठा न हो। इलाज : लक्षण नजर आने पर फौरन डॉक्टर को दिखाएं। मच्छरों से करें बचाव -घर या ऑफिस के आस-पास पानी जमा न होने दें, गड्ढों को मिट्टी से भर दें और रुकी हुई नालियों को साफ करें। - अगर पानी जमा होने से रोकना मुमकिन नहीं है तो उसमें पेट्रोल या केरोसीन ऑइल डालें। - रूम कूलरों, फूलदानों का सारा पानी हफ्ते में एक बार और पक्षियों को दाना-पानी देने के बर्तन को रोज पूरी तरह से खाली करें, उन्हें सुखाएं और फिर भरें। घर में टूटे-फूटे डिब्बे, टायर, बर्तन, बोतलें आदि न रखें। अगर रखें तो उलटा करके रखें। - डेंगू के मच्छर साफ पानी में पनपते हैं इसलिए पानी की टंकी को अच्छी तरह बंद करके रखें। - अगर मुमकिन हो तो खिड़कियों-दरवाजों पर महीन जाली लगवाकर मच्छरों को घर में आने से रोकें। - मच्छरों को भगाने और मारने के लिए मच्छरनाशक क्रीम, स्प्रे, मैट्स, कॉइल्स आदि इस्तेमाल करें। गुग्गुल के धुएं से मच्छर भगाना अच्छा देसी उपाय है। कॉइल या इलेक्ट्रिक रेप्लेंट इस्तेमाल करते वक्त पंखे, एसी आदि बंद कर आधे-एक घंटे के लिए कमरा बंद कर दें और सभी लोग बाहर चले जाएं। इसके बाद कमरे की एक खिड़की खोल दें, जिससे मच्छर बाहर निकल जाएं। इस खिड़की को खुला रखें। - घर के अंदर सभी जगहों में हफ्ते में एक बार मच्छरनाशक दवा का छिड़काव जरूर करें। यह दवाई फोटो-फ्रेम्स, पर्दों, कैलेंडरों आदि के पीछे और घर के स्टोर-रूम और सभी कोनों में जरूर छिड़कें। दवाई छिड़कते वक्त अपने मुंह और नाक पर कोई कपड़ा जरूर बांधें। साथ ही, खाने-पीने की सभी चीजों को ढककर रखें। - ऐसे कपड़े पहनें, जिनसे शरीर का ज्यादा-से-ज्यादा हिस्सा ढका रहे। खासकर बच्चों के लिए यह सावधानी बहुत जरूरी है। बच्चों को मलेरिया सीजन में निकर व टी-शर्ट न पहनाएं। - बच्चों को मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं। - रात को सोते समय मच्छरदानी लगाएं। कॉमन फ्लू - फ्लू के तीन मुख्य वायरस होते हैं, जिनमें ए, बी और सी टाइप शामिल हैं। ए वायरस जानवरों और इंसान दोनों में होता है और बी, सी सिर्फ इंसानों में होता है। - सबसे खतरनाक टाइप ए वायरस होता है। अगर मरीज को कोई और बीमारी भी है तो टाइप बी भी गंभीर हो सकता है, लेकिन सी कम खतरनाक होता है। - ए और सी टाइप की चपेट में आने वाले ज्यादातर मरीजों को छींक आने, शरीर में दर्द, खांसी, नाक बहने और तेज बुखार जैसे लक्षण होते हैं, लेकिन टाइप सी से प्रभावित लोगों में लक्षण स्पष्ट नहीं दिखते। - हर बार मौसमी बदलाव के समय टाइप सी ज्यादा ऐक्टिव होता है, इसलिए पांच से सात दिन में लोग बिना मेडिकेशन के ठीक हो जाते हैं। लक्षण और इलाज - नाक से पानी बहना, गले में खराश, खांसी (सूखी या बलगम के साथ - सफेद, हरा या पीला बलगम)। पीले का मतलब बैक्टीरियल इन्फेक्शन होता है। - लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक इन्फेक्शन में लक्षण गंभीर होते हैं, मसलन तेज बुखार और शरीर में तेज दर्द होगा और बलगम ज्यादा हो सकता है। इसमें मरीज को ऐंटिबैक्टीरियल ट्रीटमेंट लेना होता है। - अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक इन्फेक्शन में नाक बहती है। यह आमतौर पर वायरल होता है। इसमें सिरदर्द आदि से राहत के लिए पैरासिटामॉल और जरूर हो तो ऐंटिएलर्जिक दवा देते हैं। - अगर सिर्फ गले में खराश है तो बैक्टीरियल मानकर चलते हैं। उसमें भी ऐंटिबायॉटिक देते हैं। ज्यादातर ऐंटीबायॉटिक का पांच दिन का कोर्स होता है। जुल्फें न बनें जंजीर मौसम बदलने पर बाल थोड़ा ज्यादा झड़ते हैं। बारिश के मौसम में अगर बालों को साफ और सूखा रखें तो झड़ने की शिकायत नहीं होगी। फंगल इंफेक्शन - बारिश में बालों में पानी रहने से फंगल इन्फेक्शन हो सकता है। बच्चों के बालों में फंगल इन्फेक्शन ज्यादा होता है। डैंड्रफ भी एक किस्म का फंगल इन्फेक्शन ही है। हालांकि थोड़ी-बहुत डैंड्रफ होना सामान्य है, खासकर मौसम बदलने पर, लेकिन ज्यादा होने पर यह बालों की जड़ों को कमजोर कर देती है। बचाव और इलाज - बाल कटवाते वक्त हाइजीन का खास ख्याल रखें। - देखें कि कंघी साफ हो। - बालों के बीच में फंगल इन्फेक्शन हो तो क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) लगा सकते हैं। - तेल का इस्तेमाल न करें। फौरन डॉक्टर को दिखाएं। - डैंड्रफ से छुटकारे के लिए इटोकोनाजोल (Etoconazole), जिंक पायरिथिओनाइन (Zinc Pyrithionine यानी ZPTO) या सिक्लोपिरॉक्स ऑलोमाइन (Ciclopirox Olamine) शैंपू का इस्तेमाल करें। ध्यान दें - बाल प्रोटीन से बनते हैं, इसलिए हाई प्रोटीन डाइट जैसे कि दूध, दही, पनीर, दालें, अंडा (सफेद हिस्सा), फिश, चिकन आदि खूब खाएं। - विटामिन-सी (मौसमी, संतरा, आंवला आदि), ऐंटिऑक्सिडेंट (सेब, नट्स, ड्राइ-फ्रूट्स) के अलावा सी फूड और हरी सब्जियां खूब खाएं। - बाल ज्यादा देर गीले न रहें। ऐसा होने पर बाल कर गिर सकते हैं। - बालों को साफ रखें और हफ्ते में दो बार जरूर धोएं। जरूरत पड़ने पर ज्यादा बार भी धो सकते हैं। - बाल नहीं धोने हैं तो नहाते हुए शॉवर कैप से बालों को अच्छी तरह ढक लें। - बाल धोने के बाद अच्छी तरह सुखाएं। पंखे या ड्रायर को थोड़ा दूर रखकर बाल सुखा लें। - मॉनसून के दिनों में बालों में तेल कम लगाएं। पापी पेट का जवाब बरसात में दूषित खाने और पानी के इस्तेमाल से पेट में इन्फेक्शन यानी गैस्ट्रोइंटराइटिस हो जाता है। ऐसा होने पर मरीज को बार-बार उलटी, दस्त, पेट दर्द, शरीर में दर्द या बुखार हो सकता है। डायरिया : डायरिया गैस्ट्रोइंटराइटिस का ही रूप है। इसमें अक्सर उलटी और दस्त दोनों होते हैं, लेकिन ऐसा भी मुमकिन है कि उलटियां न हों, पर दस्त खूब हो रहे हों। यह स्थिति खतरनाक है। डायरिया आमतौर पर तीन तरह का होता है : 1. वायरल : वायरस के जरिए ज्यादातर छोटे बच्चों में होता है। यह सबसे कम खतरनाक होता है। लक्षण - इसमें पेट में मरोड़ के साथ लूज मोशंस और उलटी आती है। काफी कमजोरी भी महसूस होती है। बचाव और इलाज - वायरल डायरिया है तो मरीज को ओआरएस का घोल या नमक और चीनी की शिकंजी लगातार देते रहें। - उलटी रोकने के लिए डॉमपेरिडॉन (Domperidone) और लूज मोशंस रोकने के लिए रेसेसाडोट्रिल (Racecadotrill) ले सकते हैं। - पेट में मरोड़ हैं तो मैफटल स्पास (Maflal spas) ले सकते हैं। - एक दिन में उलटी या दस्त न रुके तो डॉक्टर के पास ले जाएं। 2. बैक्टीरियल लक्षण - तेज बुखार, पेशाब, टॉयलेट में पस या खून आना इलाज और बचाव - बैक्टीरियल इन्फेक्शन में ऐंटिबायॉटिक दवाएं दी जाती हैं। - अगर किसी ने बहुत ज्यादा ऐंटिबायॉटिक खाई हैं, तो उसे साथ में प्रोबायॉटिक्स भी देते हैं। दही प्रोबायॉटिक्स का बेहतरीन सोर्स है। 3. प्रोटोजोअल। लक्षण - इसमें भी बैक्टीरियल डायरिया जैसे ही लक्षण दिखाई देते हैं। बचाव और इलाज - प्रोटोजोअल इन्फेक्शन में एंटी-अमेबिक दवा दी जाती है। - यह गलत धारणा है कि डायरिया के मरीज को खाना-पानी नहीं देना चाहिए। मरीज को लगातार पतली और हल्की चीजें देते रहें, जैसे कि नारियल पानी, नींबू पानी (हल्का नमक और चीनी मिला), छाछ, लस्सी, दाल का पानी, ओआरएस का घोल, पतली खिचड़ी, दलिया आदि। - सिर्फ तली-भुनी चीजों से मरीज को परहेज करना चाहिए।
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