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भारत माता की जय Vs जय हिंद

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क्या भारत माता की जय बोलना देशभक्ति का असली पैमाना है? अगर कोई भारत माता की जय न बोले और जय हिंद या हिंदुस्तान जिंदाबाद कहे तो क्या यह गलत है? इसी मुद्दे पर सोश्ल मीडिया में काफी कुछ लिखा गया है। पेश हैं कुछ विचार:

कहां से आई भारत माता
कहा जाता है कि भारत देश का नाम भारत नामक जैन मुनि के नाम के नाम पर पड़ा। यह भी मान्यता है कि शकुन्तला के बेटे भरत जो बचपन में शेरो के संग खेलकर बड़े हुए, उनके नाम पर देश का नाम भारत पड़ा। यह भी हो सकता है कि राम के भाई भरत के नाम पर भारत नाम पड़ा हो या कृष्ण से 500 साल पहले नाट्यशास्त्र के मशहूर योगी भरत के नाम पर पड़ा हो। जब ये सारे नाम पुल्लिंग हैं तो ये बीच में भारत माता कहां से आ गई?

एक थे अजीमुल्ला खां जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर देश के लिए काम किया। आगे चलकर इन्हीं अजीमुल्ला खां ने मादरे वतन भारत की जय का नारा दिया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी मादरे वतन भारत की जय के नारे को मान लिया। बाद में स्वामी दयानन्द ने उन पांच व्यक्तियों को आपसी विमर्श कर संगठित किया, जो आगे चलकर 1857 की क्रान्ति के कर्णधार बने। ये थे: नाना साहेब, अजीमुल्ला खां, बाला साहब, तात्या टोपे, बाबू कुंवर सिंह।

तय किया गया कि फिरंगी सरकार के खिलाफ पूरे भारत देश में सशस्त्र क्रान्ति के लिए आधारभूमि तैयार की जाए। जनसाधारण और आर्यावर्तीय (भारतीय) सैनिकों में इस क्रान्ति की आवाज को पहुंचाने के लिए 'रोटी तथा कमल' की योजना यहीं तैयार की गई। मादरे वतन भारत का नारा भी इस योजना में शामिल किया गया। इस विमर्श में प्रमुख भूमिका स्वामी दयानन्द सरस्वती और अजीमुल्ला खां की ही थी। बाद में यह नारा बंट गया। कांग्रेस में भारत माता की जय, मुस्लिम लीग की सभाओं में मादरे वतन की जय या जय हिन्द। हिन्दू महासभा ने जय हिन्द का नारा पसंद किया जबकि मुस्लिम लीग में मादरे वतन की जय का नारा ही रह गया। इस तरह देखें तो मादरे वतन भारत की जय (भारत माता की जय) नारा हिन्दुओं ने नहीं, मुस्लिमों ने दिया जिसे स्वतंत्रता संघर्ष के समय बिना भेदभाव के हर किसी ने बोला। अब आकर इस नारे को भी विवादित बना दिया गया है।

-आलोक सिन्हा की फेसबुक वॉल से

भारत माता की जय ही क्यों? '
भारत माता की जय' कहने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन यह नारा एक ख़ास विचारधारा के साथ जुड़कर आज अपनी मासूमियत खो चुका है। ऐसा दूसरे नारों के साथ भी हुआ है। जैसे 'जय श्रीराम' भारत में अभिवादन का एक प्रचलित तरीक़ा है वैसा ही जैसा 'सलामु-अलैकुम' है। मगर राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान इसका जैसा इस्तेमाल हुआ और फिर उसका प्रचार हुआ, उससे 'जय श्रीराम' एक युद्धोन्मादी और सांप्रदायिक नारा बन गया।

बाबरी मस्जिद ढहने के बाद कई हिंदुत्ववादी कहते थे, 'जय श्रीराम, हो गया काम'। इसीलिए आज कोई 'जय श्रीराम' कहता है, तो वह एक हिंसक और नफ़रतभरी विचारधारा के समर्थन में दिया गया सल्यूट लगता है जबकि कृष्ण से जुड़े अभिवादन 'जय श्री कृष्ण' या 'राधे-राधे' अभी भी अपना निष्कलंक चरित्र बनाए हुए हैं। इसी तरह 'अल्लाहो अकबर' का नारा ग़ैर-मुस्लिमों में भय का संचार करता है क्योंकि यह भी दंगों के दौरान युद्धोन्मादी नारे के तौर पर इस्तेमाल होता है।

'भारत माता की जय' के साथ भी वैसा ही कुछ है। जन्मभूमि को मातृभूमि या पितृभूमि कहनेवाले कई देश हैं। लेकिन भारत के मामले में अंतर यह है कि हमने यहां उसे एक स्त्री का मूर्त रूप दे दिया है। यहां तक होता तो भी चलता, मगर गड़बड़ी यह हुई कि हमने तो उसे देवी बना दिया है जो कि हिंदू धर्म में आम बात है। भारत को भी एक देवी का रूप दे दिया जिसके हाथ में तिरंगा झंडा है।

यही नहीं, कई जगहों पर तो इस भारत माता के हाथ में केसरिया झंडा है। यही मुसलमानों को खलता है क्योंकि वे अल्लाह के अलावा किसी देवी-देवता की इबादत नहीं कर सकते। कोई इस बात पर अड़ जाए कि 'जय हिंद' के नारे मेरी देशभक्ति साबित करने के लिए काफ़ी नहीं हैं और 'भारत माता की जय' कहने पर ही मुझे मेरी देशभक्ति का सर्टिफ़िकेट मिलेगा तो मैं ढीठ होकर कहना चाहूंगा, मुझे देशभक्ति का ऐसा सर्टिफ़िकेट नहीं चाहिए। कोई सुप्रीम कोर्ट चला जाए तो वहां भी यही निर्णय आएगा कि देशभक्तों की लिस्ट में अपना नाम लिखाने के लिए 'भारत माता की जय' कहना अनिवार्य नहीं है।

-नीरेंद्र नागर की फेसबुक वॉल से

भारत और भारत माता का फर्क
भारत और भारत माता में क्या अंतर है? देश को लेकर थोपी हुई एक अवधारणा दरअसल हमें कुछ और बना रही है। हम अपने भारत को ठोस ढंग से समझने की जगह, उसकी समस्याओं और उसके संकटों से जूझने की जगह, भारत माता की एक काल्पनिक मूर्ति बनाकर अपनी विफलताएं छिपाने का काम कर रहे हैं।

भारत की हमारी कल्पना में एक भारत माता भी होनी चाहिए। देश कागज़ का नक्शा नहीं होता। उसके साथ हमारा एक भावुक रिश्ता होता है। पर यह समझना ज़रूरी है कि भारत माता का बार-बार नाम लेकर हम न भारत माता का सम्मान बढ़ाते हैं न भारत की शक्ति। यह ठीक वैसा ही है, जैसे हम वक़्त की पाबंदी या सच्चाई या अहिंसा को लेकर रोज़ महात्मा गांधी के सुझाए रास्ते की अनदेखी करते हैं, और रोज़ उन्हें बापू बताते हैं। इससे महात्मा गांधी की इज्जत बढ़ती नहीं, कुछ कम ही होती है।

भारत या भारत माता की इज्जत का मामला भी यही है। जब हम एक सहिष्णु लोकतंत्र होते हैं, तो देश बड़ा लगता है। जब हम एक कट्टर समाज दिखते हैं, तो देश छोटा हो जाता है। जब हम दंगों में ख़ून बहाते हैं, तो भारत माता शर्मिंदा होती है, जब हम बाढ़ और सुनामी में लोगों की जान बचाते हैं, तो भारत माता की इज़्ज़त बढ़ती है।

यह भारत यथार्थ है - भारत माता कल्पना है। यह एक आदर्श भारत की कल्पना है - वैसे देश की, जिसमें कोई रोग-शोक, दुख-मातम, झगड़े-विवाद न हों। ऐसी भारत माता के लिए हर किसी के मुंह से जय निकलेगी लेकिन यह ज़रूरी है कि इस भारत को हम भारत मां के आदर्शों के अनुरूप ढालें। भारत माता का नाम लेने वाला बड़ा तबका जैसे हर किसी की परीक्षा लेने पर तुला है। वह भारत माता को एक ऐसे नारे, एक ऐसी छड़ी में बदलता है, जिससे उन लोगों की पिटाई हो सके, जो भारतीय राष्ट्र राज्य के अलग-अलग तत्वों के ख़िलाफ़ असंतोष जताते हैं।

-प्रियदर्शन की फेसबुक वॉल से

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