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मॉनसून: बीमारियां, परहेज और उनका इलाज

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मॉनसून झमाझम बारिश और गर्मागर्म चाय-पकौड़ों का मौसम है। अपनी सेहत को लेकर हम जरा लापरवाह हो जाएं तो यह मौसम परेशानी का सबब भी बन जाता है। बरसात के दिनों में होने वालीं आम बीमारियों और उनकी रोकथाम पर डालते हैं एक नजर:

नजर न लग जाए...

बरसात के दिनों में आंखों की बीमारियां होना आम है। आंखों की बीमारियों में सबसे कॉमन कंजंक्टिवाइटिस है:

कंजंक्टिवाइटिस

आंख के ग्लोब पर (बीच के कॉर्निया एरिया को छोड़कर) एक महीन झिल्ली चढ़ी होती है, जिसे कंजंक्टाइवा कहते हैं। कंजंक्टाइवा में किसी भी तरह के इंफेक्शन या एलर्जी होने पर सूजन आ जाती है, जिसे कंजंक्टिवाइटिस कहा जाता है। इसे आई फ्लू या पिंक आई नाम से भी जाना जाता है। यह बीमारी आम वायरल की तरह है। जब भी मौसम बदलता है, इसका असर देखा जाता है। कंजंक्टिवाइटिस 3 तरह का होता है: वायरल, एलर्जिक और बैक्टीरियल।

कैसे पहचानें?

कंजंक्टिवाइटिस का पता आमतौर पर लक्षणों से ही लग जाता है। फिर भी यह किस टाइप का है, इसकी जांच के लिए स्लिट लैंप माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल किया जाता है और बैक्टीरियल इंफेक्शन के कई मामलों में कल्चर टेस्ट भी किया जाता है।

क्या है बचाव?

बचाव के लिए साफ-सफाई रखना सबसे जरूरी है। इस सीजन में किसी से भी (खासकर जिसे कंजंक्टिवाइटिस हो) हाथ मिलाने से भी बचें क्योंकि हाथों के जरिए इंफेक्शन फैल सकता है। दूसरों की चीजों का भी इस्तेमाल न करें। आंखों को दिन में 5-6 बार ताजे पानी से धोएं। बरसात के मौसम में स्विमिंग पूल में जाने से बचें। गर्मी के मौसम में अच्छी क्वॉलिटी का धूप का चश्मा पहनना चाहिए। चश्मा आंख को तेज धूप, धूल और गंदगी से बचाता है, जो एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस के कारण होते हैं।

इलाज

सुबह के वक्त आंख चिपकी मिलती है और कीचड़ आने लगता है, तो यह बैक्टिरियल कंजंक्टिवाइटिस का लक्षण हो सकता है। इसमें ब्रॉड स्पेक्ट्रम ऐंटिबायॉटिक आई-ड्रॉप्स जैसे सिप्रोफ्लॉक्सोसिन (Ciprofloxacin), ऑफ्लोक्सेसिन (Ofloxacin), स्पारफ्लोक्सेसिन (Sparfloxacin) यूज कर सकते हैं। एक-एक बूंद दिन में तीन से चार बार डाल सकते हैं। दो से तीन दिन में अगर ठीक नहीं होते तो किसी आंखों के डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

अगर आंख लाल हो जाती है और उससे पानी गिरने लगता है, तो यह वायरल और एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस हो सकता है। वायरल कंजंक्टिवाइटिस अपने आप 5-7 दिन में ठीक हो जाता है लेकिन इसमें बैक्टीरियल इंफेक्शन न हो, इसलिए ब्रॉड स्पेक्ट्रम (Spectrum) ​ ऐंटिबायॉटिक आई-ड्रॉप का इस्तेमाल करते रहना चाहिए। आराम न मिले तो डॉक्टर से सलाह लें।

आंख में चुभन महसूस होती है, तेज रोशनी में चौंध लगती है, आंख में तेज खुजली होती है, तो यह एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस हो सकती है। क्लोरफेनेरामिन (Chlorphenaramine) और सोडियम क्रोमोग्लाइकेट (Sodium Cromoglycate) जैसी ऐंटिएलर्जिक आई-ड्रॉप्स दिन में तीन बार एक-एक बूंद डाल सकते हैं। 2-3 दिन में आराम न मिले तो डॉक्टर की सलाह लें।

ध्यान रखें

आंखों को दिन में 5-6 बार साफ पानी से धोएं। आंखों को मसलें नहीं, क्योंकि इससे रेटिना में जख्म हो सकता है। ज्यादा समस्या होने पर खुद इलाज करने के बजाय डॉक्टर की सलाह लें।

कंजंक्टिवाइटिस में स्टेरॉयड वाली दवा जैसे डेक्सामिथासोन (Dexamethasone), बीटामिथासोन (Betamethasone) आदि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। अगर जरूरी है, तो सिर्फ डॉक्टर की सलाह से ही आई-ड्रॉप्स डालें और उतने ही दिन, जितने दिन आपके डॉक्टर कहें। स्टेरॉयड वाली दवा के ज्यादा इस्तेमाल से काफी नुकसान हो सकता है।

ये सभी दवाएं जेनरिक हैं। दवाएं बाजार में अलग-अलग ब्रैंड नामों से उपलब्ध हैं।

स्किन की समस्या

बारिश के दिनों में स्किन से जुड़ी कई समस्याएं बढ़ जाती हैं। इनमें खास हैं:

फंगल इन्फेक्शन

बारिश में रिंगवॉर्म यानी दाद-खाज की समस्या बढ़ जाती है। पसीना ज्यादा आने, नमी रहने या कपड़ों में साबुन रह जाने से ऐसा हो सकता है। इसमें रिंग की तरह रैशेज़ जैसे नजर आते हैं। ये अंदर से साफ होते जाते हैं और बाहर की तरफ फैलते जाते हैं। इनमें खुजली होती है और एक से दूसरे शख्स में फैलते हैं।

इलाज

ऐंटिफंगल क्रीम क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) लगाएं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से ग्राइसोफुलविन (Griseofulvin) या टर्बिनाफिन (Terbinafine) टैबलट ले सकते हैं। ये जेनेरिक नेम हैं। फंगल इन्फेक्शन बालों या नाखूनों में है तो खाने के लिए भी दवा दी जाती है। फ्लूकोनाजोल (Fluconazole) ऐसी ही एक दवा है।

फोड़े-फुंसी/दाने

इन दिनों फोड़े-फुंसी, बाल तोड़ के अलावा पस वाले दाने भी हो सकते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि ऐसा आम खाने से होता है, लेकिन यह सही नहीं है। असल में यह नमी में पनपने वाले बैक्टीरिया से होता है।

इलाज

दानों पर ऐंटिबायॉटिक क्रीम लगाएं, जिनके जेनेरिक नाम फ्यूसिडिक एसिड (Fusidic Acid) और म्यूपिरोसिन (Mupirocin) हैं। परेशानी बढ़ने पर क्लाइंडेमाइसिन (Clindamycin) लोशन लगा सकते हैं। यह लोशन मार्केट में कई ब्रैंड नेम से मिलता है। ऐंटिऐक्ने साबुन एक्नेएड (Acne-Aid), एक्नेक्स (Acnex), मेडसोप (Medsop) आदि भी यूज कर सकते हैं। ये ब्रैंड नेम हैं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर ऐंटिबायॉटिक टैबलट देते हैं।

घमौरियां/रैशेज़

स्किन में ज्यादा मॉइस्चर रहने से कीटाणु आसानी से पनपते हैं। इससे रैशेज और घमौरियां हो जाती हैं। ये ज्यादातर उन जगहों पर होती हैं, जहां स्किन फोल्ड होती है, जैसे जांघ या बगल में। पेट और कमर पर भी हो जाती हैं।

इलाज

ठंडे वातावरण, यानी एसी और कूलर में रहें। दिन में एकाध बार बर्फ से प्रॉबल्म एरिया की सिकाई कर सकते हैं और घमौरियों और रैशेज पर कैलेमाइन (Calamine) लोशन लगाएं। खुजली ज्यादा है तो डॉक्टर की सलाह पर खुजली की दवा ले सकते हैं।

ऐथलीट्स फुट

जो लोग लगातार जूते पहने रहते हैं, उनके पैरों की उंगलियों के बीच की स्किन गल जाती है। समस्या बढ़ जाए तो इन्फेक्शन नाखून तक फैल जाता है और वह मोटा और भद्दा हो जाता है।

इलाज

हवादार जूते-चप्पल पहनें। जूते पहनना जरूरी हो तो पहले पैरों पर पाउडर डाल लें। बीच-बीच में जूते उतार कर पैरों को हवा लगाएं। जहां इन्फेक्शन हो, वहां क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) क्रीम या पाउडर लगाएं। इलाज खुद करना सही नहीं है। फौरन डॉक्टर को दिखाएं। वह जरूरत पड़ने पर ऐंटिबायॉटिक या ऐंटिफंगल मेडिसिन देगा।

बाल न बनें बवाल

मौसम बदलने पर बाल थोड़ा ज्यादा झड़ते हैं। बारिश के मौसम में अगर बालों को साफ और सूखा रखें तो झड़ने की शिकायत नहीं होगी:

फंगल इंफेक्शन

बारिश में बालों में पानी रहने से फंगल इन्फेक्शन हो सकता है। बच्चों के बालों में फंगल इन्फेक्शन ज्यादा होता है। डैंड्रफ भी एक किस्म का फंगल इन्फेक्शन ही है। हालांकि थोड़ी-बहुत डैंड्रफ होना सामान्य है लेकिन ज्यादा होने पर यह बालों की जड़ों को कमजोर कर देती है।

कैसे करें बचाव

बाल कटवाते वक्त हाइजीन का खास ख्याल रखें। देखें कि कंघी साफ हो। हो सके तो अपनी कंघी साथ लेकर जाएं।

इलाज

डैंड्रफ से छुटकारे के लिए इटोकोनाजोल (Etoconazole), जिंक पायरिथिओनाइन (Zinc Pyrithionine यानी ZPTO) या सिक्लोपिरॉक्स ऑलोमाइन (Ciclopirox Olamine) शैंपू का इस्तेमाल करें। बालों के बीच में फंगल इन्फेक्शन हो तो क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) लगा सकते हैं। यह जेनरिक नेम है। तेल न लगाएं वरना इन्फेक्शन फैल सकता है। फौरन डॉक्टर को दिखाएं।

ध्यान दें

बाल प्रोटीन से बनते हैं, इसलिए हाई प्रोटीन डाइट जैसे कि दूध, दही, पनीर, दालें, अंडा (सफेद हिस्सा), फिश, चिकन आदि खूब खाएं।

विटामिन-सी (मौसमी, संतरा, आंवला आदि), ऐंटिऑक्सिडेंट (सेब, नट्स, ड्राइ-फ्रूट्स) के अलावा सी फूड और हरी सब्जियां खूब खाएं।

बाल ज्यादा देर गीले न रहें। ऐसा होने पर बाल गिर सकते हैं।

बालों को साफ रखें और हफ्ते में दो बार जरूर धोएं। जरूरत पड़ने पर ज्यादा बार भी धो सकते हैं।

बाल नहीं धोने हैं तो नहाते हुए शॉवर कैप से बालों को अच्छी तरह ढक लें।

बाल धोने के बाद अच्छी तरह सुखाएं। पंखे या ड्रायर को थोड़ा दूर रखकर बाल सुखा लें।

मॉनसून के दिनों में बालों में तेल कम लगाएं क्योंकि मौसम में पहले ही नमी काफी होती है।

पेट की गड़बड़ी

बरसात में दूषित खाने और पानी के इस्तेमाल से पेट में इन्फेक्शन यानी गैस्ट्रोइंटराइटिस हो जाता है। ऐसा होने पर मरीज को बार-बार उलटी, दस्त, पेट दर्द, शरीर में दर्द या बुखार हो सकता है।

डायरिया

डायरिया गैस्ट्रोइंटराइटिस का ही रूप है। इसमें अक्सर उलटी और दस्त दोनों होते हैं, लेकिन ऐसा भी मुमकिन है कि उलटियां न हों, पर दस्त खूब हो रहे हों। यह स्थिति खतरनाक है। डायरिया आमतौर पर 3 तरह का होता है :

वायरल

वायरस के जरिए ज्यादातर छोटे बच्चों में होता है। यह सबसे कम खतरनाक होता है। इसमें पेट में मरोड़ के साथ लूज मोशंस और उलटी आती है। काफी कमजोरी भी महसूस होती है।

इलाज

वायरल डायरिया में मरीज को ओआरएस का घोल या नमक और चीनी की शिकंजी लगातार देते रहें। उलटी रोकने के लिए डॉमपेरिडॉन (Domperidone) और लूज मोशंस रोकने के लिए रेसेसाडोट्रिल (Racecadotrill) ले सकते हैं। पेट में मरोड़ हैं तो मैफटल स्पास (Maflal spas) ले सकते हैं। 4 घंटे से पहले दोबारा टैबलट न लें। एक दिन में उलटी या दस्त न रुकें तो डॉक्टर के पास ले जाएं।

बैक्टीरियल

इस तरह के डायरिया में तेज बुखार के अलावा पॉटी में पस या खून आता है।

इलाज

इसमें ऐंटिबायॉटिक दवाएं दी जाती हैं। अगर किसी ने बहुत ज्यादा ऐंटिबायॉटिक खाई हैं, तो उसे साथ में प्रोबायॉटिक्स भी देते हैं। दही प्रोबायॉटिक्स का बेहतरीन नेचरल सोर्स है।

प्रोटोजोअल

इसमें भी बैक्टीरियल डायरिया जैसे ही लक्षण दिखाई देते हैं।

इलाज

प्रोटोजोअल इन्फेक्शन में ऐंटि-अमेबिक दवा दी जाती है।

ध्यान रखें

यह गलत धारणा है कि डायरिया के मरीज को खाना-पानी नहीं देना चाहिए। मरीज को लगातार पतली और हल्की चीजें देते रहें, जैसे कि नारियल पानी, नींबू पानी (हल्का नमक और चीनी मिला), छाछ, लस्सी, दाल का पानी, ओआरएस का घोल, पतली खिचड़ी, दलिया आदि। सिर्फ तली-भुनी चीजों से मरीज को परहेज करना चाहिए।

मॉनसून में रखें ख्याल

1. हवादार कपड़े पहनें


मॉनसून में ढीले, हल्के और हवादार कपड़े पहनें। टाइट और ऐसे कपड़े न पहनें, जिनका रंग निकलता हो। ध्यान रखें कि कपड़े धोते हुए उनमें साबुन न रहने पाए, वरना स्किन इन्फेक्शन हो सकता है। अगर बारिश में कपड़े भीग गए हैं तो फौरन बदल लें ताकि सर्दी-जुकाम न हो।

2. शरीर को साफ रखें

इन दिनों शरीर की साफ-सफाई का ज्यादा ध्यान रखें। जितना मुमकिन हो, शरीर को सूखा और फ्रेश रखें। बारिश में बार-बार भीगने से बचें। ऐंटिबैक्टीरियल साबुन जैसे मेडसोप (Medsoap), सेट्रिलैक (Cetrilak) आदि से दिन में दो बार नहाएं। बरसात में नहाने के बाद साफ पानी में डिसइन्फेक्टेंट (डिटॉल, सेवलॉन आदि) मिलाकर अच्छी तरह नहाएं। दूसरे का टॉवल या साबुन शेयर न करें। बाहर से आकर हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल जरूर करें। खाना खाने से पहले हाथ जरूर धोएं।

3. बाहर न खाएं

इस मौसम में खाने में बैक्टीरिया जल्दी पनपता है। बाहर जाकर पानी पूरी, भेल पूरी, चाट, सैंडविच आदि खाने से बचें। कटे फल और सब्जियां खाने से भी इन्फेक्शन का खतरा रहता है। इनसे बचें। बाहर का जूस या पानी ना पिएं। बोतलबंद पानी या उबले हुए पानी को ही पीने की आदत डालें। इस दौरान तेल-भुने के बजाय हल्का खाना खाने की आदत डालें, जो आसानी से पच सके क्योंकि बरसात में गैस, अपच जैसी पेट की समस्याएं ज्यादा होती हैं। अपने पाचन तंत्र को बेहतर बनाने के लिए लहसुन, काली मिर्च, अदरक, हल्दी और धनिया का सेवन करें। बासी खाना खाने से भी बचें।

4. सब्जियों को अच्छी तरह धोएं

फल और सब्जियों को अच्छी तरह धोएं, खासकर पत्तेदार सब्जियों को क्योंकि इस मौसम में उनमें कई तरह के लारवा और कीड़े आदि होते हैं। हल्के गर्म पानी से धोएं। फिर उन्हें आधे घंटे तक नमक मिले पानी में भिगोकर रखें। सब्जियों को पकाने से पहले 5 मिनट उबाल लें तो और भी अच्छा है। इससे कीटाणु तो खत्म होंगे ही, फल-सब्जियों पर लगे आर्टिफिशल कलर और केमिकल भी हट जाएंगे। इसके अलावा सब्जियों को अच्छी तरह पकाएं। कच्चा या अधपका खाने का मतलब है कि आप बीमारियों को दावत दे रहे हैं।

5. पानी उबाल कर पिएं

मानसून में सिर्फ फिल्टर्ड और उबला हुआ पानी ही पिएं। ध्यान रहे कि पानी को उबाले हुए 24 घंटे से ज्यादा न हुए हों। अपने फ्रिज की बोतलों को बदलने और हर तीसरे-चौथे दिन साफ करने की आदत डालें। इस मौसम में कई बार प्यास नहीं लगती फिर भी दिन में 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं, वरना शरीर में पानी की कमी हो सकती है।

6. घर को साफ-सुथरा रखें

बारिश के दिनों में मक्खी-मच्छर आदि पनपने लगते हैं। ऐसे में घर को पेस्ट फ्री बनाना जरूरी है। कॉकरोच, मक्खी-मच्छर आदि को दूर रखने के लिए पेस्ट कंट्रोल वाला स्प्रे कराएं। खिड़कियों पर जाली लगवाएं ताकि बाहर से कीट अंदर न आ सकें। बालकनी या छत आदि पर पानी जमा न होने दें, वरना मच्छर पैदा हो सकते हैं और मलेरिया या डेंगू फैला सकते हैं। घर में कपूर जलाएं। इससे मक्खियां दूर भागती हैं।

7. एक्सर्साइज जरूर करें

बारिश की वजह से इन दिनों कई बार मॉर्निंग वॉक पर नहीं जा पाते इसलिए घर पर ही एक्सरसाइज जरूर करें। एक्सरसाइज करने से इम्युनिटी बढ़ती है इसलिए बीमारी आसानी से अटैक नहीं कर पाती। साथ ही, पसीना निकलने से शरीर की सफाई हो जाती है।

8. बच्चों का रखें ख्याल

बच्चों को बारिश में ज्यादा न भीगने दें। उन्हें इस मौसम में इनडोर गेम्स खेलने के लिए प्रेरित करें। घर से बाहर भेजें तो पूरे कपड़े (पूरी बाजू की शर्ट और फुल पैंट) पहना कर भेजें। इससे मच्छर के काटने से बच जाएंगे। बच्चों को स्विमिंग पूल न ले जाएं क्योंकि उसके पानी के जरिए एक से दूसरे को इन्फेक्शन होने का खतरा होता है।

9. ​पहनें खुले फुटवेयर

बरसात के दिनों में अपने जूतों का खास ख्याल रखें। इन दिनों बंद जूते न पहनें क्योंकि ऐसा करने से पैरों में ज्यादा मॉइस्चर जमा हो सकता है, जो यह इन्फेक्शन की वजह बन सकता है। इन दिनों लेदर के शूज पहनने से भी बचें। खुले फुटवियर पहनें लेकिन बारिश या कीचड़ में गंदा होने पर पैरों को फौरन धो लें, वरना गंदगी से भी इन्फेक्शन हो सकता है। ध्यान रखें कि फुटवेयर फिसलने वाले न हों।

10. ​छाते से करें दोस्ती

हर घर में छाता होता है और अक्सर लोग तेज धूप में छाता लेकर चलते भी हैं लेकिन मॉनसून में अक्सर छाता घर भूल जाते हैं। जब भी घर से निकलें, छाता या रेनकोट साथ लेकर निकलें, फिर चाहे आसमान में बादल हों या न हों। दरअसल, इन दिनों अचानक बारिश हो जाती है इसलिए पहले से छाता अपने साथ रखना जरूरी है। बच्चों के स्कूल बैग में भी रेन कोट या छाता रखना न भूलें।

मॉनसून में पेट केयर

अगर आपके घर में कोई पालतू जानवर (पेट) है तो मॉनसून में उसकी देखभाल की खास जरूरत है:

1. साफ-सफाई

जब भी बाहर से घुमाकर लाएं, गुनगुने पानी में एंटी-सेप्टिक डालकर अपने डॉगी के पंजों को अच्छी तरह धोएं। फिर पंजों के बीच के स्पेस को टॉवल से अच्छी तरह पोंछें ताकि फंगल इन्फेक्शन न हो। मॉनसून में भीगने पर बालों से भी बदबू आने लगती है इसलिए उसे मेडिकेटिड पाउडर लगाएं। रोजाना कंघी भी करें ताकि फालतू बाल निकल जाएं।

2. कीड़ों की काट

अपने डॉगी को पेट में होनेवाले कीड़ों की दवा जरूर दिलाएं क्योंकि इन दिनों पेट में कीड़े होने की आशंका ज्यादा होती है। महीने में डी-वॉर्मिंग की एक गोली दें। बालों में जुएं न हों, इसके लिए एंटी-टिक्स पाउडर लगाएं।

3. पैक्ड फूड पर जोर

बेहतर है कि रेग्युलर मीट के बजाय इस सीजन में रेडी-टु-ईट खाना खिलाएं। हो सकता है कि आप जो मीट मार्केट से खरीद कर लाएं, वह दूषित हो। ऐसे में आपके डॉगी को डायरिया होने के चांस होते हैं। पानी भी साफ पिलाएं। उसके खाने और पानी का बाउल रोजाना कम-से-कम 2 बार साफ करें।

4. जादू की झप्पी

आंधी-तूफान और बिजली की गड़गड़ाहट से कई बार जानकर डर जाते हैं। अगर आपका डॉगी भी डरा दिखे, कांपने लगे, छुपने या काटने की कोशिश करे तो वह डरा हो सकता है। उसे प्यार से पुचकारें और गले लगाएं। देर तक उसकी कमर पर हाथ फेरें और उसे सहलाएं। इससे डर कम होगा और वह अच्छा महसूस करेगा।

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