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ऐसे पहचानें, बच्चा बदमाश नहीं बीमार है!

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नई दिल्ली
बच्चा इधर-उधर दौड़ता रहता है, किसी की नहीं सुनता, पढ़ाई में मन नहीं लगता, इस तरह की शिकायतें अक्सर पैरंट्स करते रहते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि इस तरह का बर्ताव बच्चे की 'बदमाशी' भर हो। हो सकता है कि आपका बच्चा किसी मानसिक समस्या से जूझ रहा हो। बच्चों से जुड़ी कुछ समस्याओं और उनके समाधान के बारे में बता रहे हैं डॉक्टर समीर पारिख:

लवलीन (14) पिछले दो-तीन हफ्ते से चिड़चिड़ी हो गई थी। ममी कुछ कहती तो वह उलटा जवाब दे देती। इसी तरह, पापा या भाई से भी अच्छी तरह बात नहीं करती थी। यहां तक कि दोस्तों से भी बातचीत कम कर दी है। ज्यादातर अपने कमरे में रहने लगी। यहां तक कि कई बार बेचैन-सी भी लगी। पैरंट्स को लगा कि कुछ गड़बड़ है। उन्होंने मेडिकल हेल्प देने से पहले खुद बेटी के मन को टटोलने की सोची।

लवलीन की ममी ने कहीं पढ़ रखा था कि इस तरह की स्थिति में बच्चे के कैसे बात की जाए? उन्होंने लवलीन से यह नहीं कहा कि तुम परेशान क्यों हो या फिर मुंह क्यों फुला रखा है? बल्कि उन्होंने पहले उससे उसके स्कूल के बारे में पूछा, फिर दोस्तों के बारे में। फिर कुछ इधर-उधर की बातें कीं। इस बीच उन्होंने लवलीन को किसी भी बात पर रोका या टोका नहीं। बातें भी सीधे आंख में आंख डालकर कीं। एक-दो दिन की कोशिशों के बाद लवलीन ने बताया कि वह नई क्लास में गई थी। बस में पहले ही दिन उसकी सीनियर के साथ बहस हो गई। इसके बाद सीनियर ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर उसे परेशान करना शुरू कर दिया। वह चाहकर भी यह बात किसी को नहीं बता पाई। ममी ने उसे प्यार से समझाया कि उसे परेशान होने की जरूरत नहीं है। वह अगले दिन टीचर से मिलीं और उन्हें सारी बात बताई। टीचर ने सीनियर लड़की को बुलाकर डांटा। इसके बाद उसने या उसके दोस्तों ने लवलीन को कभी परेशान नहीं किया। लवलीन भी नॉर्मल हो गई।

दरअसल, लवलीन ऐंग्जाइटी का शिकार हो गई थी। ममी की समझ से उसकी दिक्कत जल्द दूर हो गई। हालांकि कई बार यह समस्या बढ़ जाती है तो फिर डॉक्टर की मदद लेने की भी जरूरत हो सकती है।

जब टेंशन या प्रेशर में दिखे बच्चा

ये लक्षण डर और ऐंग्जाइटी के हो सकते हैं। इसे मोटे तौर पर चिंता, बेचैनी या उतावलापन कह सकते हैं। यह एक बायॉलॉजिकल मेनिज़म है जिसके जरिए हमारा शरीर तनाव वाली स्थिति का सामना करने के लिए तैयार होता है। इसमें बच्चा किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति को अपने लिए खतरनाक मान लेता है। ऐसी स्थिति में उसका दिमाग नर्वस सिस्टम को इस बारे में संदेश भेजता है। इस संदेश से शरीर में 'फाइट या फ्लाइट रेस्पॉन्स' पैदा होता है यानी या तो वह उस स्थिति से लड़ेगा या भागेगा। यह डर वास्तविक भी हो सकता है और काल्पनिक भी। इससे शरीर, मन और व्यवहार के स्तर पर ऊपर बताए गए लक्षण दिखाई देते हैं। इसका असर उसकी पढ़ाई या रोजमर्रा के दूसरे कामों पर पड़ने लगता है। आजकल प्रेशर के माहौल में 6 साल की उम्र के बच्चों में भी ऐंग्जाइटी के लक्षण देखे जा रहे हैं। हालांकि ऊपर दिए लक्षण किसी और बीमारी के भी हो सकते हैं।

कैसे पहचानें ऐंग्जाइटी

- बच्चे का बेचैन या घबराहट रहना
- गुमसुम रहना
- खेलने न जाना
- दिल की धड़कन बढ़ जाना
- सांस लेने में दिक्कत होना
- मुंह सूखना
- हकलाने लगना
- कांपना
- उलटी होना या आने को होना
- बार-बार शू-शू, पॉटी करना
- थकान, सिरदर्द, पेटदर्द आदि रहना
- टिककर पढ़ाई न कर पाना
- इम्तिहान में नंबर कम लाना
- स्कूल जाने से कतराना
- बिना किसी बात के चिड़चिड़ा रहना
- छोटे-मोटे फैसले भी न ले पाना
- फ्रेंड्स से बचना
- अकेले रहना
- बहुत ज्यादा या बहुत कम सोना
- बहुत ज्यादा या बहुत कम खाना

पैरंट्स क्या करें

- बच्चे से बातचीत करके यह जानने कि कोशिश करें कि उसके मन में क्या चल रहा है।
- बातचीत के लिए बच्चे के साथ ऐसे बैठें कि दोनों की आंखों का लेवल एक हो। इससे वह आपके बड़े होने के डर से बाहर निकलेगा।
- बच्चा अगर आपके साथ शेयर नहीं करना चाहता तो उस पर दबाव न डालें। उसे धीरे-धीरे खोलने की कोशिश करें।
- बच्चे के साथ खेलें। उसे दोस्त बनाएं। उसके साथ जोक्स-कहानियां शेयर करें। इस तरह से आप उसका भरोसा जीत पाएंगे।
- उससे पूछें कि वह क्या महसूस कर रहा है? क्या तुम्हें किसी का कोई डर है? क्या किसी ने तुम्हें कोई धमकी दी है? क्या तुम्हें किसी चीज की टेंशन है? किसी शख्स या बात से तुम नाखुश हो? क्या तुम्हें गुस्सा आ रहा है? क्या तुम उदास हो? क्या तुम टेंशन में हो?
- फिर वह जो कहना चाहता है, वह सुनें बिना उसके बारे में कोई राय बनाए। बच्चा अगर कोई सवाल बार-बार पूछे या कुछ न बोले तो पेशंस बनाए रखें। वह धीरे-धीरे खुलेगा।
- अगर किसी मसले पर आप बच्चे से इत्तफाक नहीं रखते तो भी उसे उलझे नहीं, न ही उसे डांटें। उसे यह न कहें कि तुम गलत हो और तुम्हें यह करना चाहिए था।
- जब वह बोल रहा हो, उसे बोलने दें, बीच में टोकें नहीं।
- जब वह अपनी कमी या गलती बताए तो कह सकते हैं कि यह कमी तो मुझमें भी है या बचपन में मुझसे भी यह गलती हुई थी। इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ जाएगा।
- उसकी फिक्र की वजह जानें। पूछें कि समस्या क्या घर में है, स्कूल में है या कहीं रास्ते में है? उसे बताएं कि हर समस्या का हल है। अगर उसका डर सच्चा है तो उसे हल करने की कोशिश करें और अगर काल्पनिक है तो उससे लगातार बातचीत कर, समझाकर यह डर उसके मन से निकाल दें।

जब वहमी या सनकी लगे बच्चा

अमन (12) को सफाई बहुत पसंद है। वह अपनी हर चीज को बहुत साफ रखता है। किसी चीज को छूने के बाद वह हर बार अपने हाथ धोता है। अमन के मन में रहता है कि उसके हाथ साफ नहीं हैं। वह कई बार साबुन लगाता है। उसे लगता है कि हाथ सही से साफ नहीं हो पा रहे। यही नहीं, हाथ धोने के बाद हैंडल या किसी और चीज को छूने से भी बचता है कि कहीं हाथ गंदे न हो जाएं। ममी- पापा ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ। फिर उन लोगों ने सायकॉलजिस्ट की मदद ली।

किसी काम या आदत की धुन इस कदर सवार हो जाना कि वह सनक बन जाए तो उसे ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसॉर्डर (ओसीडी) कहते हैं। इसमें मरीज को किसी बात की जरूरत-से-ज्यादा चिंता सताने लगती है। एक ही जैसे अनचाहे ख्याल उसे बार-बार आते हैं और एक ही काम को बार-बार दोहराना चाहता है। ऐसे लोगों को सनक वाले ख्याल आते हैं और अपने बिहेवियर पर कोई कंट्रोल नहीं होता। जैसे कि यह कन्फर्म करने के लिए कि गैस बंद है या नहीं, ऐसे लोग 15-20 बार स्टोव की नॉब चेक करते हैं।

OCD के दो हिस्से होते हैं:

ऑब्सेशन: जब किसी खास तरह का विचार बच्चे के दिमाग में बार-बार और लगातार आता है तो उसे ऑब्सेशन कहते हैं। ऐसे कुछ ख्याल हो सकते हैं:
- अपने या अपनी चीजों को कीटाणुओं या गंदगी के संपर्क में आने की चिंता
- किसी और को नुकसान पहुंचाने का डर
- हर चीज को हर वक्त करीने और सलीके से लगाने की कोशिश
- किसी चीज को भाग्यशाली या दुर्भाग्यशाली मानने का अंधविश्वास
- धर्म या नैतिक विचारों पर पागलपन की हद तक ध्यान देना
- खुद और दूसरों पर बहुत ज्यादा शक करना

कंपल्शन: यह ऐसा बर्ताव है, जिसे आप बार-बार दोहराने की जरूरत महसूस करते हैं। आमतौर पर कंपल्शन ऑब्सेशन से छुटकारा पाने की कोशिश के तहत किया जाता है। मसलन, अगर आप गंदगी से डरते हैं तो शायद आप बार-बार सफार्इ करेंगे। बार-बार हाथ धोएंगे यह सोचकर कि बैक्टीरिया खत्म हो जाएंगे लेकिन फिर भी तसल्ली नहीं होती। उसी चीज को बार-बार करते हैं कि शायद अबकी बार करने से उस विचार से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन ऐसा होता नहीं है। वह सिलसिला चलता रहा है।

इस बीमारी का असर बच्चे की जिंदगी की तमाम पहलुओं पर पड़ता है। उसकी रोजमर्रा की जिंदगी पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही उसकी दोस्ती पर और उसके आत्मविश्वास पर भी बेहद बुरा असर होता है। ऐसी स्थिति में माता पिता की भूमिका बेहद अहम हो जाती है। उन्हें अपने बच्चे में आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे को अपने दूसरे बच्चों से अलग बर्ताव न करें। चूंकि बच्चा अपना ज्यादातर वक्त अपने दोस्तों और स्कूल में बिताता है, इसलिए स्कूल टीचर को उसकी इस बीमारी के बारे में बता देना मुनासिब रहता है।

कैसे पहचानें OCD

- बार-बार हाथ धोना या नहाना या अपना सामान साफ करना
- दरवाजों, नल आदि को बार-बार चेक करना कि वे बंद हैं या नहीं
- चीजों को बेवजह बार-बार जांचना, जैसे कि ताले, गैस स्विच आदि
- फालतू की पुरानी चीजों जैसे कि मैगजीन, अखबार, बोतलें आदि संभाल कर रखना
- बार-बार गिनना, कुछ खास शब्दों को बार-बार दोहराना
- बार-बार लिखना, मिटाना, बार-बार पढ़ना आदि
- फर्नीचर जैसी चीजों को बार-बार सिलसिलेवार लगाना
- जरूरत से ज्यादा प्रार्थना करना या ऐसे संस्कारों में बिजी रहना, जिनसे धर्म से डर की भावना झलकती हो

पैरंट्स क्या करें

- बच्चे के साथ अच्छा तालमेल बनाएं। अगर सीधे समस्या पर बात करेंगे तो वह आपको मन की बात नहीं बताएगा। ऐसे में पहले उसके करीब जाएं। उसके मन की बात समझें। बिना उसके मन की बात समझे, उसकी समस्या का समाधान नहीं कर सकते।
- बच्चे को ऐसा माहौल दें कि वह आपसे अपनी बात शेयर करने और मदद मांगने से हिचकिचाए नहीं। इसके लिए पैरंट्स को अपनी ओर से पूरी कोशिश करने की जरूरत होती है। हो सकता है कि आप शुरुआत में असफल हों, लेकिन जल्दी ही आपको सफलता मिल जाएगी।
- फिर उससे बात करें। बच्चे शुरू में इस बात को नहीं मानते कि उनके साथ कोई दिक्कत है। आपको बच्चे के साथ हमदर्दी तो दिखानी ही होगी, साथ ही यह भी जताना होगा कि आप उसकी समस्या समझते हैं।
- बच्चे को डांटे नहीं। अगर किन्हीं बातों पर आप उससे इत्तफाक नहीं रखते तो उससे यह न कहें कि वह गलत है और आप सही।
- यह तय कर लें कि परिवार वालों को भी बच्चे की आदतों का हिस्सा नहीं बनना है। अगर बच्चा किसी काम को बार-बार करे तो आप धीरे-से उसे किसी दूसरे काम की ओर मोड़ दें। ऐसे में उसका ध्यान उस ओर से हट जाएगा और धीरे-धीरे परेशानी भी कम होती चली जाएगी।
- बच्चे को दूसरे नॉर्मल बच्चों की तरह ही ट्रीट करें। उसे यह जताने की कतई जरूरत नहीं है कि उसे कोई दिक्कत है।
- सबसे बड़ी बात यह कि उसे दूसरे बच्चों के साथ घुलने-मिलने और खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे उसका मन समस्या से हटा रहेगा। दूसरे बच्चों के साथ खेलने और ऐक्टिविटीज में हिस्सा लेने से बच्चे के मन में आत्मविश्वास बढ़ता है। और ऐसे मामलों में आत्मविश्वास का बढ़ना बेहद काम की चीज है।
- पैरंट्स को यह समझना होगा कि बच्चा अपनी संकल्प शक्ति से इस समस्या से छुटकारा नहीं पा सकता। इसकी वजह दिमाग के केमिकल्स में बदलाव है जिसके लिए कई बार दवाओं की जरूरत पड़ती है।
- उन्हें यह भी जानना चाहिए कि यह समस्या किसी की पर्सनैलिटी का हिस्सा नहीं होती। अक्सर हम उन्हें वहमी करार देकर ऐसी समस्या को नजरअंदाज कर देते हैं। यह दिमाग से जुड़ी समस्या है, जिसका इलाज किया जाना चाहिए।
- जब भी बच्चे में ऐसी समस्या देखें, फौरन इलाज कराएं। इलाज जितना जल्दी होगा, फायदा उतना ज्यादा होगा। ध्यान रखें कि इलाज लंबा हो सकता है।

जब शैतानी से नाक में दम कर दे बच्चा

माही (8) अक्सर होमवर्क करते वक्त इधर-उधर की बातें करने लगती है। एक जगह टिककर बैठ भी नहीं पाती। हमेशा इधर-उधर दौड़ती रहती है। किसी की नहीं सुनती। घरवालों ने सोचा कि पढ़ने में मन नहीं लगता इसलिए उन्होंने पास की आंटी के पास पढ़ने भेजना शुरू कर दिया। वहां से वही शिकायत मिली कि वह दूसरे बच्चों को परेशान करती रहती है। न खुद पढ़ती है, न दूसरों को पढ़ने देती है। पैरंट्स ने पहले तो खूब डांटा। पर समस्या बनी रही तो माही के चाचा की सलाह पर वे उसे सायकॉलजिस्ट के पास ले गए। उनकी सलाह के कुछ ही वक्त में माही की पर्सनैलिटी में काफी ठहराव आया। दरअसल, माही को अटेंशन डेफिशिट/हाइपरएक्टिविटी डिसॉर्डर (ADHD) की समस्या थी। इससे बच्चे की पढ़ाई के अलावा सोशल लाइफ पर भी बुरा असर होता है।

कैसे पहचानें

- बच्चे का आसानी से ध्यान भटक जाना
- बारी का इंतजार न करना, लाइन तोड़ना आदि
- काम शुरू करना लेकिन पूरा नहीं करना
- लगातार किसी एक जगह पर बैठ नहीं पाना
- बिना सोचे-समझे काम करना
- एक को छोड़कर दूसरे काम में लग जाना
- चीजें भूल जाना, अपने सामान का ध्यान नहीं रखना
- लगातार बातें करना और इधर-उधर दौड़ते रहना
- भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाना

क्या करें

- बच्चे से बातचीत करें। आराम से उसकी बात सुनें।
- उसके काम को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटने में मदद करें, मसलन 1 घंटा लगातार पढ़ने के बजाय 20-20 मिनट के तीन हिस्से में पढ़ने को कहें और बीच में 10-10 मिनट का ब्रेक दें। इससे वह बोरियत का शिकार होने से बच जाएगा।
- अगर पैरंट्स गुस्सा कंट्रोल नहीं कर पा रहे तो उन्हें पहले बच्चे से थोड़ी देर के लिए दूर हो जाना चाहिए। फिर खुद को शांत करके बच्चे से बात करनी चाहिए।
- बच्चे की खासियतों पर फोकस करें। बार-बार उसकी समस्या पर बात न करें।
- उसे किसी हॉबी के लिए सपोर्ट करें ताकि उसका मन पॉजिटिव काम में लगा रहे।
- यह खराब बिहेवियर की समस्या नहीं है। न ही यह सिर्फ लड़कों में होती है। सही इलाज से यह समस्या दूर हो सकती है।

परवरिश के टॉप टिप्स

1. हेलिकॉप्टर पैरंट्स न बनें

कई पैरंट्स अपने बच्चे को जरूरत से ज्यादा हिफाजत देने लगते हैं और उसकी जिंदगी में दखल भी जरूरत से ज्यादा देने लगते हैं। लेकिन ऐसा होने पर बच्चे का आत्मविश्वास खत्म करने लगता है। कई बार इससे बच्चा चिड़चिड़ा या विद्रोही हो जाता है।

2. फैसलों में शामिल करें

बच्चे को अपने फैसले लेने के लिए प्रोत्साहित करें। घर के फैसलों में भी उसे शामिल करें। इससे बच्चों में जिम्मेदारी और खुद को स्वीकारे जाने का अहसास पैदा होता है। वे साथ लिए फैसलों को लागू करने और पूरा करने में आगे रहते हैं।

3. खुद उदाहरण बनें

बच्चे अक्सर अपने आसपास जो देखते या सुनते हैं, उन बातों को दिमाग में बिठा लेते हैं। आपको एक मॉडल बिहेवियर करके दिखाना होता है ताकि आप उसके लिए एक उदाहरण बन जाएं। मसलन जिद्दी या लड़ाकू बनने के बजाय दृढ निश्चयी बनना बेहतर है और वह यह आपसे सीखेगा।

4. अपने सपने न थोपें

बच्चे को अपने सपनों को पूरा करने दें। अपने सपने और चाहतें उस पर न थोपें। आपकी और आपके बच्चे की पसंद, काबिलियत और चाहत में बहुत फर्क हो सकता है। ऐसे में उसे उसकी पसंद का काम करने दें। हर छोटी-बड़ी चीज हाथ पकड़ कर न कराएं।

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मच्छरों की धुन और मत सुन

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आज रॉनल्ड रॉस का जन्मदिन है। मलेरिया के क्षेत्र में उनके अद्भुत शोधकार्यों के लिए 1902 में उन्हें चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था। आज बात करते हैं सिर्फ मच्छरों की, उनके जरिए फैलने वाली बीमारियों की, इनसे बचाव की और इनको अपने से दूर रखने की।

एक छोटा-सा मच्छर हमें कभी भी, कहीं भी काटकर गंभीर रूप से बीमार कर सकता है। तभी तो मच्छर ने काटा नहीं कि दिमाग में बुरी बीमारियों के शिकार होने के ख्याल आने लगते हैं। एक्सपर्ट्स की मदद से इन सबसे जुड़ी जानकारी दे रही हैं अनु जैन रोहतगी।

जानें अपने दुश्मन को
अलग-अलग इलाकों में मच्छरों की अलग-अलग प्रजातियां हैं। ये मच्छर कई तरह के वायरस और पैरासाइट के जरिए कई तरह की बीमारियां तेजी से फैलाते हैं। मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी इन्सेफेलाइटिस, फाइलेरिया और जीका इनमें से कुछ हैं। मच्छर बहुत तेजी से बढ़ते और काटते हैं। मच्छर खतरनाक इसलिए भी है क्योंकि इनकी आबादी बड़ी तेजी से बढ़ती है और एक बार में ये एक-दो को नहीं, बल्कि दर्जनों लोगों को काट कर इंफेक्शन फैला सकते हैं। मादा मच्छर की उम्र नर के मुकाबले ज्यादा होती है। सिर्फ मादा मच्छर ही इंसानों या दूसरे जीवों का खून चूसती हैं। नर मच्छर सिर्फ पेड़-पौधों का रस चूसते हैं। मादा मच्छर दो से तीन बार अलग-अलग जगहों पर अंडे देती हैं। दिन में मच्छर ज्यादातर अंधेरी जगहों, दीवारों के कोने, परदों के पीछे, सोफे, बेड, टेबल आदि के नीचे छुपे रहते हैं। इसलिए रोजाना इन जगहों की अच्छी तरह से सफाई करें। सप्ताह में एक बार इन जगहों पर मच्छर मारने की दवा का छिड़काव करें।


मोटे तौर पर मच्छरों की तीन प्रजातियां हैं:


एडीज एजिप्टी

यह डेंगू, चिकनगुनिया, जीका फैलाती है। मादा ऐडीज एक बार में 50 से 100 अंडे देती है और एक दिन में 70-80 लोगों को काट सकती है। यह दिन में ऐक्टिव रहती है और खून की खुराक एक से पूरी न मिलने पर अलग-अलग लोगों को काटती है।

1- यह मादा मच्छर ज्यादातर घरों के साफ पानी में ही पनपती हैं। एक बार में 500 मीटर से ज्यादा का सफर नहीं कर सकतीं और ज्यादातर जमीन पर ही रहती हैं। इसलिए ये मच्छर ज्यादातर पांव में ही काटती हैं।

2- इनकी ब्रीडिंग मिट्टी के बर्तनों की बजाय प्लास्टिक, रबड़ के सामानों में होती है।

3- ये मादा मच्छर ठंडे वातावरण (एसी-कूलर) में पनपने लगी हैं।

चिकनगुनिया
यह भी डेंगू की तरह फैलने वाली बीमारी है। इसे भी मादा ऐडीज मच्छर ही फैलाते हैं। इसमें बुखार के साथ-साथ जोड़ों में ज्यादा दर्द होता है।

अनॉफ़िलीज़
यह मलेरिया फैलाती है। एक बार में 100 से 150 अंडे देती है। यह रात में ऐक्टिव होती है और 5-10 सोए हुए लोगों को काटने से ही इनकी खुराक पूरी हो जाती है। अनॉफ़िलीज़ मच्छर गंदे और साफ दोनों पानी में पनप सकती है। मादा अनॉफ़िलीज़ एक से दो महीने तक जिंदा रहती है। वह एक से डेढ़ किलोमीटर तक उड़ सकती है। अगर हवा का रुख इनके उड़ने की दिशा में है तो ये कुछ किलीमीटर ज्यादा उड़ लेती है।

क्यूलेक्स
यह फाइलेरिया फैलाती है। मादा 150-200 अंडे देती है और यह भी शाम के समय में लोगों को काटती है। यदि कोई संक्रमित मादा मच्छर अंडे देती है तो उससे पैदा होने वाले सारे मच्छर पहले से ही इन्फेक्शन लिए होंगे और किसी भी हेल्दी आदमी को काटेंगे तो उसे बीमार बना देंगे।


मच्छरों के काटने से कैसे बचें?
ऐसा तरीका ढूंढना होगा जिससे बाहर के मच्छर घर में नहीं आ सकें। इसके लिए जरूरी है घर के दरवाजे और खिड़कियों पर जालियां लगाएं। अगर बहुत जरूरी नहीं हो तो खोलें नहीं। एक सप्ताह के अंतराल पर घर और आसपास की सफाई जरूर करें। ये शाम और रात में रोशनी की ओर आकर्षित होते हैं। इसलिए शाम को जरूरत पड़ने पर ही कमरों में लाइट जला कर रखें।

1- इसके अलावा घर में मस्कीटो रिपेलेंट जला कर रखें। ज्यादातर लोग इसे रात को जलाते हैं। इसे दिन में भी जलाना चाहिए क्योंकि मच्छर दिन में भी काटते हैं।

2- रात को सोते समय मच्छरदानी लगाकर सोएं। यदि यह इन्सेक्टिसाइड से ट्रीट की हुई हो तो और अच्छा होगा। इसे आप ई-कॉमर्स साइटों पर तलाशकर खरीद सकते हैं।

ये खाएं, मच्छरों को दूर भगाएं

1- लहसुन, प्याज का सेवन करें।
2- टमाटर खाएं।
3- सेब से बना विनेगर इस्तेमाल करें।

कुदरती तरीके से भगाएं मच्छर
अगर हम केमिकल रिपलेंट इस्तेमाल नहीं कर सकते या उन्हें खरीद नहीं सकते तो कुछ नेचरल रिपेलेंट यूज कर सकते हैं। केमिकल रिपेलेंट की तरह ये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि महानगरों और बड़े-बड़े शहरों में वैसे ही हवा बहुत प्रदूषित है। ऐसे में नीम, कपूर या किसी दूसरी चीज का धुआं इसे और बढ़ाएगा इसलिए कोशिश करें कि धुआं करने वाले रिपेलेंट चाहे केमिकल हों या नेचरल, उसका इस्तेमाल कम से कम करें। दरअसल, घर में धुआं अस्थमा के मरीजों के लिए ठीक नहीं होता।

1- मच्छर भगाने के लिए नीम की पत्तियों, कपूर, तेजपत्ता, लौंग को घर में जलाएं। इससे मच्छर भाग जाते हैं।
2- तारपीन का तेल भी मच्छर भगाने में मदद करता है।

3- ऑलआउट की खाली रीफिल में नीम का तेल और कपूर डालें और रिफिल को मशीन में लगाकर स्विच ऑन कर दें। मच्छर नहीं आएंगे। एक लीटर नीम के तेल में 100 ग्राम असली कपूर मिलाएं और घोल बना लें। इससे 25 बार रीफिल भर सकते हैं।

4- मशीन नहीं है तो कपूर और नीम के तेल का दीपक जलाएं।

5- एक नीबू को बीच से आधा काट लें और उसमें खूब सारे लौंग घुसा दें। इसे कमरे में रखें।

6- लेवेंडर ऑयल की 15-20 बूंदें, 3-4 चम्मच वनीला एसेंस और चौथाई कप नीबू रस को मिलाकर एक बॉटल में रखें। पहले अच्छी तरह मिलाएं और बॉडी पर लगाएं।

7- इसके अलावा लहसुन और प्याज के रस को शरीर में लगाने से भी मच्छर पास नहीं आते।

8- कई पौधों की खुशबू नैचरल तरीके से मच्छर भगाने का काम करती हैं। मैरीगोल्ड, सिट्रानेल या लेमनग्रास, लैवेंडर, लेमन बाम, तुलसी और नीम। ये पौधे घर और इसके आसपास लगाएं तो मच्छर दूर रहेंगे।


मच्छरों के मन को भाते हैं ये


1- कुछ लोगों को मच्छर कम काटते हैं, कुछ को ज्यादा और किसी-किसी को बिल्कुल नहीं। रिसर्च में पाया गया है कि मच्छर बी ब्लड ग्रुप वाले को सामान्य काटते हैं, ए ग्रुप वालों को ज्यादा और ओ ब्लड ग्रुप वालों को मच्छर सबसे ज्यादा काटते हैं। एबी वालों को सबसे कम काटते हैं। गर्भवती महिलाओं के प्रति मच्छर ज्यादा आकर्षित होते हैं। लाल, काले और नीले रंग के कपड़े पहने लोगों को भी मच्छर ज्यादा काटते हैं। ये गर्मियों में ज्यादा काटते हैं। मादा मच्छरों को प्रजनन के लिए गर्म खून की जरूरत पड़ती है, इसीलिए वे हमें काटती हैं।

2- मच्छर पनपने के लिए नमी वाली जगहों को ढूंढते हैं। ऐसे में उन्हें पसीना अपनी ओर खींचता है। इसलिए कोशिश करें कि अपने पसीने को जल्दी से सुखाएं।

3- पोटैशियम और नमक मच्छर को आकर्षित करते हैं, इसलिए खाने में इसका सेवन कम करें।

4- शराब पीने से शरीर से खास किस्म का केमिकल निकलता है, जो मच्छरों को पसंद होता है।

5- जिनके शरीर का तापमान ज्यादा रहता है, मच्छर दूर से ही उस शरीर को पहचान लेते हैं। ऐसे लोगों को भी सावधान रहना चाहिए।

रिपेलेंट लगाते समय रखें ध्यान

1- स्प्रे या क्रीम लगाएं तो ध्यान रखें कि ये आंखों, मुंह के आसपास ना जाए या किसी चोट पर न लगे।

2- जहां-जहां आपकी स्किन कपड़ों से बाहर है, सिर्फ वहीं इसको लगाएं।

3- सभी प्रकार के रिपेलेंट को बच्चों की पहुंच से दूर रखें।

4- जितना लगाने को कहा जाता है उतना ही इसे लगाएं या स्प्रे करें।

5- ध्यान रखें कि घर में यदि कोई अस्थमा का मरीज है तो मच्छर भगाने के लिए कोई धुआं देने वाली चीज ना जलाएं, चाहे वह मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती हो या नीम की पत्तियां।

6- कई लोगों को रिपेलेंट की गंध या धुएं से एलर्जी होती है, उनका भी ख्याल करें।

किस्म-किस्म के रिपेलेंट और क्या देखें रिपेलेंट में?
बाजार में अलग-अलग तरह के रिपेलेंट अलग-अलग दामों में मौजूद हैं। गुडनाइट, ऑलनाइट, मार्टिन जैसे रिपेलेंट मशीन के साथ 90-100 रुपये के बीच उपलब्ध हैं। पैच, रिस्ट बैंड 10 और 24 के सेट में 50 से 200 रुपये तक में मिल रहे हैं। ओडोमास और इसी तरह की अन्य क्रीम 40 रुपये से लेकर 100 रुपये में मिल रही हैं। अलग-अलग तरह के स्प्रे की कीमत 140 से 200 रुपये तक है। मच्छर मारने के अच्छे इलेक्ट्रिक बैंड, मशीन की कीमत कुछ ज्यादा है। ये 300 से 2500 रुपये तक में मिल रहे हैं। हर्बल स्प्रे, क्रीम या जलाने वाले रिपेलेंट के लिए आपको इनसे दुगनी या तिगुनी कीमत देनी पड़ सकती है। इन्हें खरीदने से पहले ब्रांड और उसमें मौजूद तमाम तत्वों के बारे में पढ़ें। सस्ते चाइनीज सामान से बचें। ये न तो हेल्थ के लिए अच्छे हैं और न ही पर्यावरण के लिए।

रिपेलेंट चाहे जलाने वाला हो, शरीर में लगाने वाला हो या हाथ में बांधने वाला, कोई भी रिपेलेंट खरीदने से पहले आपको उसमें इस्तेमाल होने वाले अलग-अलग केमिकल पदार्थों की मात्रा जरूर देखनी चाहिए। इसी से उसकी क्षमता और असर का पता चलता है।

रिपेलेंट में डाइथीलटोलूअमाइड (DEET), पाइकाराइडिन (Picaridin), लेमन यूकलिप्टस का तेल, कई तरह के केमिकल जैसे आईआर 3535 और 2-अनडीकेनन का प्रयोग होता है। इसके अलावा रिपेलेंट में कई पौधों के तेल भी मिक्स होते हैं जैसे कि सीडर, सिट्रानेल, लेमनग्रास और रोजमैरी।

DEET (डीट)
अब तक का सबसे असरदार रिपेलेंट माना जाता है इसे। यह एक केमिकल बेस रिपेलेंट है। डीट मच्छरों को दो से बारह घंटे तक दूर रखता है। यह इस पर निर्भर करता है कि रिपेलेंट में इसका कितना इस्तेमाल किया गया है। हालांकि इससे बने रिपेलेंट को छोटे बच्चों को न लगाने की सलाह दी जाती है। ये रिपेलेंट रिस्टवॉच, लोशन, स्प्रे में उपलब्ध हैं। इसका इस्तेमाल करने से पहले इस पर लिखी गाइडलाइंस को जरूर पढ़ें।

पाइकाराइडिन
यह एक नया रिपेलेंट है और असरदार भी माना जाता है। यह मच्छरों को अपने शिकार को पहचानने से भ्रमित करता है। इसकी गंध ज्यादा तेज नहीं होती। 20% क्षमता के साथ इससे बने रिपेलेंट मच्छरों को 8 से 14 घंटे तक दूर रखते हैं।

लेमन यूकलिप्टस ऑइल
यह नेचरल रिपेलेंट है और छोटे बच्चों के लिए ठीक रहता है। इसके अलावा नेचरल प्लांट ऑयल (सीडर, सिट्रानेल, लेमनग्रास और रोजमैरी) से बने रिपेलेंट भी बाजारों में उपलब्ध हैं। हालांकि ये रिपेलेंट एनवॉयरमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी से, जो रिपेलेंट की क्षमता और पर्यावरण पर उसके असर को तय करती है, मान्यता प्राप्त नहीं हैं। फिर भी विशेषज्ञ इन्हें असरदार मानते हैं और काफी लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।

रिपेलेंट में कितना हो केमिकल?

सबसे असरदार रिपेलेंट में डीट की मात्रा 20 से 30 फीसदी और पाइकाराइडिन 20 फीसदी या 30 फीसदी लेमन यूकलिप्टस का तेल होना चाहिए। इसलिए किसी भी प्रकार का रिपेलेंट लें तो ये चीजें जरूर चेक करें। इसके अलावा हर्बल रिपेलेंट में भी हर्बल तेल की मात्रा जरूर देखें।

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इन छुट्टियों में कहां जाएं? उत्तराखंड और हिमाचल

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बच्चों की लंबी छुट्टियां हैं तो गर्मियों से परेशान लोगों के लिए यह हिल स्टेशन की ओर रुख करने का समय है। लेकिन अगर आपने अडवांस में प्लानिंग नहीं की थी तो अब होटेल तलाशना और ट्रेनों में कंफर्म सीट पाना मुश्किल है। तो क्यों ने ऐसे जगह की प्लानिंग की जाए, जो खूबसूरत और ठंडी तो हो ही, जहां जाना और होटेल तलाशना भी आसान हो। ऐसी ही जगहों के बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं संजय शेफर्ड:

गर्मियों के मौसम में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के हिल स्टेशनों पर लोगों की भीड़ बढ़ जाती है। ये दो राज्य ऐसे हैं जिनका ख्याल आते ही हमारे जेहन में पहाड़ की ऊंची चोटियां, झीलें, घने जंगल, खूबसूरत घाटियां और प्रसिद्ध मंदिरों की तस्वीरें घूमने लगती हैं। इन राज्यों में कई बड़े टूरिस्ट प्लेस हैं। नैनीताल, अल्मोड़ा, हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, जिम कॉर्बेट नैशनल पार्क, राजाजी नैशनल पार्क, शिमला, मनाली, कांगड़ा वैली जैसी जगहों पर गर्मी में लोगों को जाना बहुत ही अच्छा लगता है। इसलिए इन जगहों पर काफी भीड़ होती है। इस लिहाज से यह काफी महंगा, भीड़भरा साबित होता है। अगर आपने पहले से कोई टूर पैकेज नहीं लिया है तो पीक सीजन में यहां होटेल मिलना मुश्किल हो जाता है।

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में तमाम ऐसी भी जगह हैं जो बेहद खूबसूरत हैं, लेकिन अभी वहां पर्यटकों की भीड़ ज्यादा नहीं पहुंचती। ये आपके मन को खूब भा सकती हैं। लोगों में इन जगहों के बारे में आमतौर पर जानकारी का अभाव है। अगर आप कम पैसे में फैमिली ट्रिप की सोच रहे हैं तो इन जगहों की सैर पर जा सकते हैं। उत्तराखंड और हिमाचल के ऐसे ही कई पर्यटक स्थलों की जानकारी हम यहां दे रहे हैं:


चकराता: प्रकृति प्रेमियों की सैरगाह

यह छोटा और सुंदर पहाड़ी नगर है, जहां आप प्रकृति की खूबसूरती का जमकर लुत्फ उठा सकते हैं। चकराता को शांतिपसंद लोगों के लिए उनके 'सपनों का नगर' कहा जाता है।

क्या है खास: कैम्पिंग, राफ्टिंग, ट्रेकिंग, सनसेट पॉइंट, वॉटरफॉल, रैपलिंग, रॉक क्लाइम्बिंग, हॉर्स राइडिंग आदि के अच्छे विकल्प मौजूद हैं।

क्या देखें: टाइगर फॉल, लाखमंडल, मोइगड झरना, कानासर, रामताल गार्डन, देव वन।

कब जाएं: मार्च से जून और अक्टूबर से दिसंबर यहां जाने के लिए उपयुक्त है। सर्दियों में यहां बहुत ठंड पड़ती है।

कैसे जाएं: नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून और एयरपोर्ट जौलीग्रांट है। चकराता जाने के लिए यहां से बस या टैक्सी ली जा सकती हैं। दिल्ली से यह तकरीबन 320 किलोमीटर की दूर है और पहुंचने में 7 घंटे लगते हैं।

कहां ठहरें: ठहरने के लिए अच्छे होटलों की यहां कोई कमी नहीं है। कुछ टूरिस्ट होम भी आपको मिल जाएंगे।


टिहरी:
जलसमाधि ले चुका एक शहर

चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा यह जगह बेहद सुंदर और आकर्षक है। प्राकृतिक खूबसूरती के अलावा यह जगह धार्मिक स्थलों के लिए भी दुनिया भर में प्रसिद्ध है। गर्मी की छुट्टियां बिताने के लिए यह अच्छी जगह है।

क्या है खास: जेट स्कीइंग, वॉटर जॉर्बिंग, राफ्टिंग, बोटिंग, ट्रेकिंग के लिए यह फेवरिट जगह है।

क्या देखें: टिहरी डैम, सेम मुखेम मंदिर, चंद्रबदनी मंदिर, चंबा, बूढ़ा केदार मंदिर, कैम्पटी फॉल, देवप्रयाग आदि।

कब जाएं: मार्च से जून और अक्टूबर से दिसंबर का समय यहां जाना सही रहता है।

कैसे जाएं: सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट है, नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। नई टिहरी कई अहम जगहों जैसे देहरादून, मसूरी, हरिद्वार, पौड़ी, ऋषिकेश और उत्तरकाशी आदि से सीधा जुड़ा हुआ है।

दूरी: दिल्ली से 350 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 9 घंटे लगते हैं।

कहां ठहरें: ठहरने के लिए अच्छे होटलों की यहां कोई कमी नहीं है।


लैंसडाउन:
हसीन वादियों से घिरा स्वर्ग

यह उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों में से एक है। दूसरे हिल स्टेशनों के मुकाबले यहां पर प्रकृति को उसके अनछुए रूप में देखा जा सकता है। यहां की प्राकृतिक छटा सम्मोहित करने वाली है। मौसम पूरे साल सुहावना बना रहता है। हर तरफ फैली हरियाली आपको एक अलग दुनिया का अहसास कराती है।

क्या है खास: कैंपिंग, बोट राइड, स्नो व्यूपॉइंट, सनसेट पॉइंट, नेचर वॉक, जंगल सफारी के लिए अच्छी जगह है।

क्या देखें: गढ़वाल राइफल्स वॉर मेमोरियल, रेजिमेंट म्यूजियम, गढवाली मैस, कन्वाश्रम, तारकेश्वर महादेव मंदिर, भुल्ला झील, सेंट मैरी चर्च घूमने लायक जगहें हैं।

कब जाएं: मार्च से लेकर नवंबर तक यहां का मौसम सुहावना रहता है।

कैसे जाएं:
सड़क, रेल और हवाई मार्ग से पहुंच सकते हैं। जौलीग्रांट हवाई अड्डा सबसे नजदीक है। कोटद्वार रेलवे स्टेशन लैंसडाउन का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।

दूरी: दिल्ली से 300 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में लगभग 9 घंटा लगते हैं।

कहां ठहरें: लैंसडाउन में सीमित संख्या में होटल हैं, चूंकि यहां कम लोग घूमने पहुंचते हैं इसलिए अमूमन उपलब्धता रहती है। सैलानी कोटद्वार में भी ठहर जाते हैं।




उत्तरकाशी:
देवाधिदेव महादेव का निवास

धार्मिक पर्यटन के लिहाज से उत्तरकाशी काफी अहम है। यहीं से भारत की जीवनदायिनी गंगा और यमुना नदियां निकलती हैं। यह पवित्र स्थल फैमिली ट्रिप के लिए बेहतरीन है, खासकर जब बड़े-बुजुर्ग साथ में हों।

क्या है खास: ट्रेकिंग, फिशिंग, कैंपिंग, नेचर वॉक, माउंट बाइकिंग जैसी गतिविधियों के लिए परफेक्ट।

क्या देखें: विश्वनाथ मंदिर, शक्ति मंदिर, मनेरी, गंगनानी, दोदीताल, दायरा बुग्याल, सात ताल, केदार ताल, नचिकेता ताल, गोमुख आदि।

टूरिस्ट सीजन: मार्च से अप्रैल और जुलाई से अक्टूबर का समय यहां जाने के लिए सबसे अच्छा है।

कैसे जाएं: सबसे नजदीकी हवाई अड्डा और नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है। दिल्ली के कश्मीरी गेट से, देहरादून से, ऋषिकेश से उत्तरकाशी के लिए सीधी बस सेवा है।

दूरी: दिल्ली से 414 किलोमीटर दूर है और यहां पहुंचने में 11 घंटे लगते हैं।

कहां ठहरें: ठहरने के लिए आपको कई रिजॉर्ट और होटल मिल जाएंगे। यहां पर गढ़वाल मंडल विकास निगम का पर्यटक आवास गृह भी है।


श्रीनगर (उत्तराखंड):
सुरम्य, शांत और आध्यात्मिक टूरिजम के लिए खास

उत्तराखंड का श्रीनगर परंपरा और आधुनिकता के मिश्रण की एक खूबसूरत मिसाल है। यह शहर चारों ओर घाटियों से घिरा हुआ है। इसमें अलकनंदा चार चांद लगा देती है। यहां पूरे साल सैलानी घूमने के लिए आते रहते हैं।

क्या है खास: ट्रेकिंग, जंगल सफारी, विलेज टूरिजम आदि।

क्या देखें: कमलेश्वर/सिद्धेश्वर मंदिर, शंकर मठ, केशोराय मठ, जैन मंदिर, श्री गुरुद्वारा हेमकुंट साहिब, मलेथा, गोला बाज़ार, कीर्तिनगर, विष्णु मोहिनी मंदिर आदि जगहों को देख सकते हैं।

टूरिस्ट सीजन: वैसे तो लोग सालभर यहां जाते हैं, लेकिन मार्च से अक्टूबर तक यहां जाने का सबसे अच्छा समय है।

कैसे जाएं: सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून में जौलीग्रांट है। कोटद्वार सबसे नजदीकी रेल स्टेशन है। दिल्ली के कश्मीरी गेट, देहरादून, ऋषिकेश और कोटद्वार से श्रीनगर के लिए सीधी बस सेवा है।

दूरी: दिल्ली से यह 353 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 9 घंटे लगते हैं।

कहां ठहरें: रहने के लिए जगहों की कोई कमी नहीं है। हर बजट के होटल से लेकर धर्मशाला तक उपलब्ध हैं।


पौड़ी:
कंडोलिया की पहाड़िया से घिरा

देवदार के जंगलों से ढंका हुआ और कंडोलिया पहाड़ी के उत्तरी ढलान पर स्थित पौड़ी बेहद खूबसूरत जगह है।

क्या है खास: ट्रेकिंग, फिशिंग, जंगल सफारी के लिए यह जगह काफी उपयुक्त मानी जाती है।

क्या देखें: कंडोलिया, बिनसर महादेव, ताराकुंड, कण्वाश्रम, दूधातोली, ज्वाल्पा देवी मंदिर आदि।

टूरिस्ट सीजन:
पौड़ी घूमने का सबसे सही समय मार्च से नवंबर तक है। इस दौरान मौसम खुशनुमा रहता है।

दूरी: दिल्ली से यह 353 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 9 घंटे लगते हैं।

कैसे जाएं: नजदीक हवाई अड्डा जौलीग्रांट जो पौड़ी से लगभग 150 किलोमीटर की दुरी पर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वार है और सड़क मार्ग से यह ऋषिकेश, कोटद्वार और देहरादून से सीधे जुड़ा है।

कहां ठहरें: ठहरने के लिए पौड़ी में कुछ औसत दर्जे के होटल हैं। यहां गढ़वाल मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस भी बेहतर विकल्प है। इसे ऑनलाइन भी बुक कर सकते हैं।


चोपता: मिनी स्विट्जरलैंड


उत्तराखंड में हिमालय की गोद में बसा चोपता हरी-भरी घासों और सदाबहार जंगलों से ढका हुआ है। इसे 'मिनी स्विट्जरलैंड' भी कहा जाता है। कम भीड़-भाड़ पसंद करने वाले लोगों के लिए चोपता किसी जन्नत से कम नहीं। यह ट्रेकर्स और सामान्य पर्यटक, दोनों को एक अलग और सुखद अनुभव का अहसास करता है।

क्या है खास: कैंपिंग, ट्रेकिंग, स्कीइंग, राफ्टिंग, माउंटेन बाइकिंग, पैराग्लाइडिंग, क्लाइंबिंग जैसी गतिविधियों के लिए यह खास है।

क्या देखें: देवरी ताल, चन्द्रशिला, तुंगनाथ मंदिर, ऊखीमठ, केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य, चंद्रशिला चोटी, देवरिया ताल आदि।

टूरिस्ट सीजन: मई से जुलाई और सितंबर से नवंबर के महीनों के दौरान यहां का मौसम बड़ा ही शानदार, शांत और सुहावना रहता है।

दूरी: दिल्ली से 412 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 11 घंटे लगते हैं।

कैसे जाएं: यहां पहुंचने के लिए आपको देहरादून और ऋषिकेश से होकर जाना होगा। ऋषिकेश से गोपेश्वर होकर या ऋषिकेश से ऊखीमठ होकर भी आप जा सकते हैं।

कहां ठहरें: गोपेश्वर और ऊखीमठ, दोनों जगह गढ़वाल मंडल विकास निगम के विश्रामगृह हैं। इनके अलावा प्राइवेट होटल, लॉज, धर्मशालाएं भी हैं, जो आसानी से मिल जाते हैं।



पालमपुर: शांत सैरगाह


हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में स्थित पालमपुर एक शांत सैरगाह है। ऊंची पहाड़ियों पर चीड़ और देवदार के जंगलों की हरियाली इस स्थान को एक अलग भव्यता प्रदान करती है। इसके आसपास फैले चाय के बड़े-बड़े बागान इसकी खासियत हैं। हरियाली भरे इन बागानों में घूमना और पत्तियां चुनते हुए फोटो खिंचवाना हर सैलानी को पसंद आता है।

क्या है खास: पैराग्लाइडिंग, घुमक्कड़ी, कांगड़ा घाटी रेलवे की ट्रेन का मनमोहक सफर इस यात्रा को यादगार बना देता है।

क्या देखें:
न्यूगल पार्क, विंध्यवासिनी मंदिर, घुघुर, लांघा, गोपालपुर, आर्ट गैलरी घूमने की अच्छी जगहें हैं।

टूरिस्ट सीजन: वैसे तो पालमपुर कभी भी जाया जा सकता है, लेकिन मार्च से जून तक और सितंबर से नवंबर तक का मौसम घूमने के लिए अच्छा है।

दूरी:
दिल्ली से 500 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 10 घंटे लगते हैं।

कैसे जाएं: पालमपुर का नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल और नजदीकी रेलवे स्टेशन मारंडा है। पालमपुर दिल्ली, अंबाला, लुधियाना, चंडीगढ़, अमृतसर, पठानकोट आदि शहरों से सड़क मार्ग से सीधे जुड़ा है।

कहां ठहरें: कांगड़ा में रुकने के लिए बजट होटलों के अलावा कई किफायती होमस्टे के विकल्प भी उपलब्ध हैं। कुछ महंगे रिजॉर्ट भी हैं। बैजनाथ, पालमपुर आदि स्थानों पर भी रुका जा सकता है।



नारकंडा: भीड़ से दूर


शिमला से तकरीबन 70 किमी की दूरी पर स्थित है नारकंडा। यह एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है। नारकंडा में बर्फ से ढंके हिमालय के पर्वत और तलहटी पर हरे-भरे जंगल पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। इस खूबसूरत हिल स्टेशन पर आपको अन्य जगहों के मुकाबले कम भीड़ देखने को मिलेगी।

क्या है खास:
ट्रेकिंग, कैंपिंग, स्कीइंग आदि के लिए यह बहुत प्यारी जगह है।

क्या देखें: हाटु मंदिर, हाटु पीक, महामाया मंदिर, थानेदार, अमेरिकी सेवों का बागान, मंदोदरी का मंदिर आदि।

टूरिस्ट सीजन: गर्मी का मौसम नारकंडा घूमने के लिए सबसे अच्छा मौसम है।

दूरी:
दिल्ली से यह 406 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 9 घंटे लगते हैं।

कैसे जाएं: नई दिल्ली और शिमला के अलावा, नारकंडा के लिए नियमित रूप से बसें रामपुर और किन्नौर जैसे अन्य शहरों से भी उपलब्ध हैं।

कहां ठहरें: रुकने के लिए कुछ बजट होटल और पर्यटन विभाग के गेस्ट हाउस के विकल्प हैं।

सोलन: घने जंगलों से झांकता शहर

हर कोई शिमला जाना चाहता है, लेकिन वहां भीड़ बहुत है। ऐसे में सोलन बेहतर विकल्प हो सकता है। सोलन घने जंगलों से घिरा होने के कारण पर्यटकों को खूब लुभाता है।

क्या कर सकते हैं:
समय है तो मशरूम की खेती, समय नहीं है तो ट्रेकिंग आदि

घूमने की जगहें: मतिउल, कारोल चोटी, कंडाघाट, कसौली, चैल और दगशाई, कारोल पर्वत के ऊपर की गुफा, युंगडरुंग तिब्बती मठ, गोरखा फोर्ट और जाटोली शिव मंदिर।

दूरी: दिल्ली से 300 किलोमीटर, समय- 6 घंटे

कैसे जाएं: चंडीगढ़ करीबी हवाईअड्डा है। यह सोलन से 67 किलोमीटर दूर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन कालका है, जो सोलन से 44 किलोमीटर दूर है।

कहां ठहरें: यहां पर आपको होटल, रिजॉर्ट, गेस्ट हाउस, होम स्टे मिल जाएंगे। सरकारी गेस्ट हाउस भी है।

चिलियानौला

रानीखेत से महज छह किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा-सा शांत कस्बा है यह। यहां का हेड़ाखान मंदिर प्रसिद्ध है। यहां से नंदा देवी पर्वत खूबसूरत दिखाई देता है जो कि पर्यटकों के लिए एक बड़ा आकर्षण है।

कैसे पहुंचें: काठगोदाम स्टेशन तक ट्रेन से और वहां से रानीखेत और फिर चिलियानौला तक सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं।

कहां ठहरें:
केएमवीएन के हिमाद्री गेस्टहाउस चिलियानौला के अलावा कुछ निजी होटल भी उपलब्ध हैं।

कुंजापुरी


इस जगह ने पैराग्लाइडिंग जैसे रोमांचक खेल से पर्यटकों को एक नया विकल्प मुहैया करा दिया है। ट्रेकिंग, रिवर राफ्टिंग और बंजी जंपिंग के भी यहां काफी विकल्प हैं। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त के खूबसूरत नजारे के अलावा स्वर्गारोहिणी, चौखंबा, गंगोत्री और बंडेरपंच की ऊंची-ऊंची चोटियां साफ नजर आती हैं। यहां मां कुंजादेवी का प्रसिद्ध मंदिर है जो देवी के पूरे देश में फैले 52 शक्तिपीठों में से एक है।

कैसे जाएं: हरिद्वार तक ट्रेन से और उसके बाद ऋषिकेश और उससे ऊपर हिन्डोलाखाल या नरेन्द्र नगर और मंदिर तक सड़क मार्ग से

कहां ठहरें:
कुंजापुरी में ठहरने के लिए बेहतर विकल्प नहीं है। नजदीकी नरेन्द्र नगर में कुछ होटल हैं। बेहतर है कि आप ऋषिकेश के ऊपरी हिस्से में ही किसी होटल में ठहरें।

कुछ खास बातों का रखें ध्यान

घूमने लायक जगह का चुनाव:
जिन-जिन जगहों पर आपको जाना है, उनका चयन पहले से कर लेना बेहतर रहेगा। इससे समय और पैसे की बचत होती है और आप अनावश्यक भटकाव से बचते हैं।

लिस्टिंग: उन चीजों की एक लिस्ट बना लें सफर के दौरान जिनकी आवश्यकता हो सकती है। हां, अनावश्यक बोझ बढ़ाने से बचें।

टूरिस्ट स्पॉट की सही जानकारी: जहां आपको घूमने जाना है, वह कहां है और आप वहां तक कैसे पहुंचेंगे, इनसे संबंधित जानकारियां आपके पास पहले से ही रहनी चाहिए। इससे आपका समय बचाती है, दूसरा पैसा। और तो और सही जानकारी होने से यात्रा का रोमांच बढ़ जाता है।

रिजर्वेशन:
आपकी यात्रा सुखद और आरामदेह हो, इसके लिए रिजर्वेशन का होना जरूरी होता है। अगर किसी कारणवश नहीं हो पाता है तो विकल्पों के बारे में पहले से सोचकर चलें।

होटल बुकिंग:
होटल बुकिंग पहले से करा लें तो बेहतर रहता है। हालांकि उत्तराखंड की जिन जगहों का जिक्र यहां किया गया है, वहां आसानी से होटल मिल जाते हैं। अगर नहीं मिलते हैं तो होम स्टे, पीजी जैसे विकल्प भी है।

सेफ्टी की फिक्र

- दुर्गम इलाकों में सुरक्षित यात्रा के लिए ध्यान से गाड़ी चलाना जरूरी है।

- ट्रेकिंग या अन्य किसी कारणों से बाहर निकलें तो अपने साथ एक नक्शा रखें।

- यह पहाड़ी क्षेत्र है। आमतौर पर शाम के बाद बहुत ठंडक हो जाती है। गर्म कपड़े हमेशा साथ रखें।

- बारिश में यात्रा करते समय सावधानी बरतें, भूस्खलन का खतरा रहता है।


उत्तराखंड यात्रा पर खर्च


आप अपनी सुविधा और पसंद के मुताबिक विकल्प चुन सकते हैं। अगर आप तीन दिन की ट्रिप प्लान करते हैं तो 10000 रुपये और पांच दिन का प्लान करते हैं तो 15000 रुपये में घूम सकते हैं। उत्तराखंड टूरिज्म डिवेलपमेंट बोर्ड और निजी ऑपरेटर भी टूर पैकेज देते हैं। आप उन्हें भी देख सकते हैं। चार धाम पैकेज पर प्रति व्यक्ति करीब 15,000 रुपये का खर्च आ सकता है तो दो धाम का खर्च करीब 10000 रुपये।

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यों थाम लें अस्थमा

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अस्थमा (दमा) एक बार किसी को हो जाए तो जिंदगी भर रहता है। हां, वक्त पर इलाज और आगे जाकर ऐहतियात बरतने पर इसे काबू में किया जा सकता है। एक्सपर्ट्स से बात करके अस्थमा की वजह, इलाज और मैनेजमेंट पर जानकारी दे रहे हैं चंदन चौधरी

क्या है अस्थमा
अस्थमा (दमा) सांस से जुड़ी बीमारी है, जिसमें मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है। इस बीमारी में सांस की नली में सूजन या पतलापन आ जाता है। इससे फेफड़ों पर अतिरिक्त दबाव महसूस होता है। ऐसे में सांस लेने पर दम फूलने लगता है, खांसी होने लगती है और सीने में जकड़न के साथ-साथ घर्र-घर्र की आवाज आती है। अस्थमा किसी भी उम्र में हो सकता है ।
लक्षणों के आधार पर अस्थमा दो तरह का होता हैः बाहरी और आंतरिक अस्थमा। बाहरी अस्थमा परागकणों, पशुओं, धूल, गंदगी, कॉकरोच आदि के कारण हो सकता है, जबकि आंतरिक अस्थमा कुछ केमिकल्स के शरीर के अंदर जाने से होता है। इसकी वजह प्रदूषण, सिगरेट का धुआं आदि होता है। आमतौर पर इस बीमारी का मुख्य असर मौसम के बदलाव के साथ दिखता है।

लक्षण
•सांस फूलना
•लगातार खांसी आना
•छाती घड़घड़ाना यानी छाती से आवाज आना
•छाती में कफ जमा होना
•सांस लेने में अचानक दिक्कत होना

कब बढ़ता है अस्थमा
•रात में या सुबह तड़के
•ठंडी हवा या कोहरे से
•ज्यादा कसरत करने के बाद
•बारिश या ठंड के मौसम में

बीमारी की वजहें
जनेटिकः यह जनेटिक वजहों से भी हो सकती है। अगर माता-पिता में से किसी को भी अस्थमा है तो बच्चों को यह बीमारी होने की आशंका होती है। अगर माता-पिता दोनों को अस्थमा है तो बच्चों में इसके होने की आशंका 50 से 70 फीसदी और एक में है तो करीब 30-40 फीसदी तक होती है।

एयर पलूशन: अस्थमा अटैक के अहम कारणों में वायु प्रदूषण भी है। स्मोकिंग, धूल, कारखानों से निकलने वाला धुआं, धूप-अगरबत्ती और कॉस्मेटिक जैसी सुगंधित चीजों से दिक्कत बढ़ जाती है।

खाने-पीने की चीजें: कोई खास चीज खाने-पीने से अगर शारीरिक समस्या होती है तो उसे नहीं खाना चाहिए। आमतौर पर अंडा, मछली, सोयाबीन, गेहूं से एलर्जी है तो अस्थमा का अटैक पड़ने की आशंका बढ़ जाती है।

स्मोकिंग: सिगरेट पीने से भी अस्थमा अटैक संभव है। एक सिगरेट भी मरीज को नुकसान पहुंचा सकती है।

दवाएं: ब्लड प्रेशर में दी जाने वालीं बीटा ब्लॉकर्स, कुछ पेनकिलर्स और कुछ एंटी-बायोटिक दवाओं से अस्थमा अटैक हो सकता है।

तनाव: चिंता, डर, खतरे जैसे भावनात्मक उतार-चढ़ावों से तनाव बढ़ता है। इससे सांस की नली में रुकावट पैदा होती है और अस्थामा का दौरा पड़ता है।


फर्क है अस्थमा और एलर्जी में
अस्थमा और एलर्जी में कई बार लोग कन्फ्यूज कर जाते हैं। हालांकि दोनों में कई चीजें कॉमन हैं, लेकिन फिर भी दोनों अलग-अलग हैं। लगातार कई दिनों तक जुकाम, खांसी या सांस लेने में दिक्कत हो तो इन्फेक्शन इसकी वजह हो सकता है, जबकि अस्थमा में सांस लेने में परेशानी के अलावा रात में सोते वक्त खांसी आना, छाती में जकड़न महसूस होना, एक्सरसाइज करते हुए या सीढ़ियां चढ़ते वक्त सांस फूलना या खांसी आना, ज्यादा ठंड या गर्मी होने पर सांस लेने में दिक्कत होना जैसे लक्षण होते हैं।

हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि अस्थमा भी एक तरह की एलर्जी ही है। जैसे ही शरीर एलर्जी वाली चीजों के संपर्क में आता है, अस्थमा का अटैक होता है। इसे एलर्जिक अस्थमा कहते हैं। हां, अस्थमा और एलर्जी में एक और कनेक्शन है। अगर किसी को एलर्जिक अस्थमा नहीं है, सिर्फ एलर्जी है तो अस्थमा होने का खतरा 40 फीसदी तक बढ़ जाता है।


जरूरी टेस्ट
अस्थमा या दमा रोग विशेषज्ञ (Allergist) या छाती रोग विशेषज्ञ (Pulmonologist) को ही दिखाएं। मरीज के कुछ टेस्ट किए जाते हैं, जिनमें स्पायरोमेट्री (Spirometry), पीक फ्लो (Peak Flow), लंग्स फंक्शन टेस्ट और एलर्जी टेस्ट शामिल हैं।

1. स्पायरोमेट्री: इसमें जांच की जाती है कि मरीज कितनी तेजी से सांस ले सकता है और छोड़ सकता है।
कीमत: 500 से 2000
2. पीक फ्लो: फेफड़े कितना काम कर रहे हैं, यह देखने के अलावा यह भी चेक करते हैं कि मरीज सांस कितनी तेजी से बाहर निकाल पा रहा है।
कीमत: 500 तक
3. लंग्स या पल्मनरी फंक्शन टेस्ट: इस टेस्ट के जरिए फेफड़े और पूरे श्वसन तंत्र की जांच की जाती है।
कीमत: करीब 700

अगर अस्थमा की वजह एलर्जी है तो उसके लिए 2 टेस्ट होते हैं: स्किन पैच टेस्ट और ब्लड टेस्ट
1. स्किन पैच टेस्ट: जिस भी चीज से एलर्जी का शक होता है, उसका कंसंट्रेशन स्किन पर पैच के जरिए लगाया जाता है। इसके रिजल्ट सटीक होते हैं।
कीमत: 10,000 तक
2. ब्लड टेस्ट: ब्लड टेस्ट से भी एलर्जी की जांच होती है। हालांकि एक्सपर्ट इसे बहुत सटीक नहीं मानते।
कीमत: 800 तक


हो जाए तो बरतें ये एहतियात

•दवाएं नियमित रूप से लें।
•सूखी सफाई यानी झाड़ू से घर की साफ-सफाई से बचें। अगर ऐसा करते हैं तो ठीक से मुंह-नाक ढक कर करें। वैसे, वैक्यूम क्लीनर का इस्तेमाल करना बेहतर है। गीला पोंछा और पानी से फर्श धोना भी अच्छा विकल्प हो सकता है।
•बेडशीट, सोफा, गद्दे आदि की भी नियमित सफाई करें, खासकर तकिया की क्योंकि इसमें काफी सारे एलर्जीवाले तत्व मौजूद होते हैं। हफ्ते में एक बार चादर और तकिए के कवर बदल लें और दो महीने में पर्दे धो लें।
•कारपेट इस्तेमाल न करें या फिर उसे कम-से-कम 6 महीने में ड्राइक्लीन करवाते रहें।
•कॉकरोच, चूहे, फफूंद आदि को घर में जमा न होने दें।
•मौसम के बदलाव के समय एहतियात बरतें। बहुत ठंडे से बहुत गर्म में अचानक नहीं जाएं और न ही बहुत ठंडा या गर्म खाना खाएं।
•रुटीन ठीक रखें। वक्त पर सोएं, भरपूर नींद लें और तनाव न लें।

खानपान का रखें ख्याल

•जिस चीज को खाने से सांस की तकलीफ बढ़ जाती हो, वह न खाएं। डॉक्टर सिर्फ ठंडी चीजें खाने से मना करते हैं। आमतौर पर मरीज सोचता है कि मुझे फूड एलर्जी है, लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है। डॉक्टर जिस चीज से मना करें, वही न खाएं, बाकी सब खाएं। हां, जंक फूड से अस्थमा अटैक की आशंका ज्यादा होती है।
•एक बार में ज्यादा खाना नहीं खाना चाहिए। इससे छाती पर दबाव पड़ता है।
•विटामिन ए (पालक, पपीता, आम, अंडे, दूध, चीज़, बेरी आदि), सी (टमाटर, संतरा, नीबू, ब्रोकली, लाल-पीला शिमला मिर्च) और विटामिन ई (पालक, शकरकंद, बादाम, सूरजमुखी के बीज आदि ) और एंटी-ऑक्सिडेंट वाले फल और सब्जियां जैसे कि बादाम, अखरोट, राजमा, मूंगफली, शकरकंद आदि खाने से लाभ होता है।
•अदरक, लहसुन, हल्दी और काली मिर्च जैसे मसालों से फायदा होता है।
•रेशेदार चीजें जैसे कि ज्वार, बाजरा, ब्राउन राइस, दालें, राजमा, ब्रोकली, रसभरी, आडू आदि ज्यादा खाएं।
•फल और हरी सब्जियां खूब खाएं।
•रात का भोजन हल्का और सोने से दो घंटे पहले होना चाहिए।


क्या न खाएं

प्रोट्रीन से भरपूर चीजें बहुत ज्यादा न खाएं।
•रिफाइन कार्बोहाइड्रेट (चावल, मैदा, चीनी आदि) और फैट वाली चीजें कम-से-कम खाएं।
•अचार और मसालेदार खाने से भी परहेज करें।
•ठंडी और खट्टी चीजों से परहेज करें।

ये जरूर खाएं


ओमेगा-3 फैटी एसिड
ओमेगा-3 फैटी एसिड साल्मन, टूना मछलियों में और मेवों व अलसी में पाया जाता है। ओमेगा -3 फैटी एसिड फेफड़ों के लिए लाभदायक है। यह सांस की तकलीफ एवं घरघराहट के लक्षणों से निजात दिलाता है।

फोलिक एसिड
पालक, ब्रोकली, चुकंदर, शतावरी, मसूर की दाल में फोलेट होता है। हमारा शरीर फोलेट को फोलिक एसिड में तब्दील करता है। फोलेट फेफड़ों से कैंसर पैदा करने वाले तत्वों को हटाता है।

विटमिन सी
संतरे, नींबू, टमाटर, कीवी, स्ट्रॉबरी, अंगूर और अनानास में भरपूर विटमिन सी होता है, सांस लेते वक्त शरीर को ऑक्सीजन देने और फेफड़ों से विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए मदद करते हैं।

लहसुन
लहसुन में मौजूद एलिसिन तत्व फेफड़ों से फ्री रेडिकल्स को दूर करने में मदद करते हैं। लहसुन संक्रमण से लड़ता है, फेफड़ों की सूजन कम करता है।

बेरी
बेरीज में ऐंटीऑक्सिडेंट होते हैं। ये कैंसर से बचाने के लिए फेफड़ों से कार्सिनोजन को हटाते हैं।

कैरोटीनॉयड ऐंटीऑक्सीडेंट अस्थमा के दौरों से राहत दिलाता है। फेफड़ों की कैरोटीनॉयड की जरूरत को पूरा करने के लिए गाजर, शकरकंद, टमाटर, पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना बेहतर रहता है।

इस निशाचर से होती है परेशानी
कॉकरोच के कारण अस्थमा और एलर्जी की समस्या बढ़ सकती है। एक स्टडी में पाया गया है कि एलर्जी के 60 फीसदी से अधिक मामलों का कारण कॉकरोच है। दरअसल कॉकरोच के मुंह से एक विशेष प्रकार का लार निकलता है, जो अस्थमा के लिए खतरनाक माना जाता है।
कॉकरोच नमी वाली जगहों, सीवेज और उन जगहों पर रहते हैं, जहां गंदगी होती है। वे एलर्जी पैदा करने वाले तत्व अपने साथ लाते हैं। इससे उन पर बुरा असर पड़ता है जो अस्थमा से पीड़ित होते हैं क्योंकि यह ट्रिगर का काम करता है।

कॉकरोच से बचने के लिए क्या करें

•घर को साफ रखें।
•रात को सोने से पहले रसोई और सिंक साफ करें।
•डस्टबिन साफ रखें और ढंक कर रखें।
•खाना खुला कभी नहीं छोड़ें।
•फ्रिज को नियमित रूप से साफ करें।
•नमी वाली जगहों को साफ रखें।
•ऐसे सभी छेदों को बंद कर दें जहां से कॉकरोच घर में घुस सकता है।
•बाजार में कई तरह की दवाइयां मिलती हैं जिससे कॉकरोच मारा जा सकता है।
•कम से कम छह महीने पर घर में पेस्ट कंट्रोल करवाना ना भूलें।
•खास बात यह कि कॉकरोच भगाने के लिए जब भी केमिकल का इस्तेमाल करें तो बच्चों और खाने-पीने की चीजों को दूर रखें।


बरतें सावधानी, कराएं इलाज
अस्थमा से स्थायी रूप से छुटकारा पाना मुमकिन नहीं है। हां, इसे कंट्रोल किया जा सकता है और आप सामान्य जिंदगी जी सकते हैं। इसका इलाज दो तरीके से किया जाता है:
1. अस्थमा से फौरी राहत देकर 2. बीमारी का मैनेजमेंट यानी उसे काबू में रख कर

इलाज में दो तरह की दवाएं दी जाती हैं:
एंटी-इन्फ्लेमेटरी: यह सूजन और जलन को कम करने वाली दवा है। यह विशेष रूप से नाक के जरिए ली जाने वाली दवा है। इस दवा से सांस की नली में सूजन और कफ बनना कम होता है।
ब्रोंकोडाइलेटर्स: ये दवाएं सांस की नली को फौरन चौड़ा करती हैं। इसे फौरी राहत के लिए दिया जाता है। लंबी अवधि के लिए इनफ्लेमेटरी या हाइपर एक्टिविटी को कम करने की दवा देते हैं।
इनहेलर: अस्थमा में इनहेलर थेरपी इस्तेमाल करनी चाहिए। लोगों के मन में धारणा है कि इनहेलर थेरपी का इस्तेमाल आखिर में करना चाहिए या फिर डॉक्टर बीमारी बढ़ने पर ही इस थेरपी को देते हैं, लेकिन यह सोच गलत है। जो दवाएं या पाउडर इनहेलर के जरिए दिया जाता है, वह ज्यादा असर करता है।


योग और घरेलू नुस्खे

अस्थमा में गर्म पानी का सेवन लाभदायक होता है और इससे आराम मिलता है। विशेषज्ञों का कहना है कि योग और प्राकृतिक चिकित्सा में दमा का कोई स्थायी समाधान नहीं है। हां, इसे नियंत्रित किया जा सकता है। योग की मदद से आप तनाव-रहित िजंदगी जी सकते हैं। यह इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने का भी काम करता है।
नोट: योगाभ्यास िकसी प्रशिक्षित योग गुरु की देखरेख में ही करें।

•त्रिकोणासन, कोणासन, ताड़ासन, भुजंगासन, धनुरासन, उष्ट्रासन, वक्रासन, अर्द्ध मत्स्येंद्रासन, पर्वतासन, गोमुखासन और शवासन लाभकारी होते हैं।
•षटकर्मः लाभदायक है। जल नेति, सूत्र नेति, वमन, धौति, दण्ड धौति, वस्त्र धौति। इन क्रियाओं के जरिए कफ बाहर निकलता है। एक्सपर्ट से सीखे बिना ये न करें।
•कपालभाति, भ्रास्त्रिका, उज्जायी प्राणायाम, ओमकार का उच्चारण भी लाभदायक है। इनसे तनाव कम होता है।
•मुख्य बात यह है कि आसन और प्राणायाम करते हुए सीने का विस्तार और संकुचन सांस के तालमेल के साथ करना चाहिए यानी विस्तार सांस भरते हुए और संकुचन सांस छोड़ते हुए करना चाहिए। ऐसा करने पर कफ ऊपर की तरफ आता है और सीने पर दबाव कम होता है।

बरतें ये एहतियात जब पड़ जाए अटैक
•मरीज की जेब या बैग टटोलें और अगर इनहेलर है तो उसे फौरन इसे इस्तेमाल करने को कहें। इससे राहत मिलने के आसार रहते हैं।
•मरीज के कपड़े ढीले कर दें ताकि वह रिलैक्स हो सके। मरीज के आसपास भीड़ न लगाएं और शांत रहें।
•मरीज को सीधा बिठाएं, अस्थमा अटैक के दौरान मरीज को लिटाना कतई नहीं चाहिए।
•अटैक के समय कुछ खिलाने-पिलाने की कोशिश न करें। इस स्थिति में खाना या पानी सांस की नली में फंस सकता है और हालत ज्यादा बिगड़ सकती है।
•अगर मरीज बोल सकने की स्थिति में नहीं है तो जितनी जल्दी हो सके, उसे पास के अस्पताल ले जाने की कोशिश करें।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

DATA चोरी को TATA

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फेसबुक को लेकर हाल में जो खबरें आई हैं, वे यूजर्स को काफी डराने वाली हैं। माना जा रहा है कि फेसबुक से 5 करोड़ यूजर्स का डेटा खतरे में है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आप अपनी प्राइवेसी को कैसे बरकरार रख सकते हैं। विस्तार से जानकारी दे रहे हैं मुकेश कुमार सिंह

हाल ही में एक स्टिंग ऑपरेशन के दौरान खुलासा किया हुआ कि करोड़ों फेसबुक यूजर्स के डेटा का का इस्तेमाल अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया। भारत में आयोजित चुनावों से भी इसको जोड़ा जा रहा है। कहा जा रहा है कि कंपनियां अपने प्रॉडक्ट को बेचने के लिए बड़े पैमाने पर डेटा खरीद रही है। यह एक तरह से यूजर्स की प्राइवेसी का हनन है। फेसबुक ही नहीं, तमाम सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म और मोबाइल ऐप्स यूज करने वाले यूजर्स भी अपने डेटा को लेकर फिक्रमंद हैं। डेटा लीक के बाद लाखों लोगों ने अपना फेसबुक अकाउंट डिलीट कर दिया, लेकिन बाकी यूजर्स के मन में बड़ा सवाल है कि क्या हमारा डेटा सुरक्षित है? इसका जवाब है कि इंटरनेट पर हम तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक सजग हैं। मोबाइल ऐप्स बड़ी आसानी से आपसे कुछ परमिशन ले लेते हैं और आपका डेटा इकट्ठा करते रहते हैं। ये ऐप आपकी हर गतिविधि पर नजर रखते हैं और आपको मालूम भी नहीं चलता। आप कहां जा रहे हैं, किसे कॉल कर रहे हैं, किसके साथ बैठे हैं और किस रेस्तरां में खाना खा रहे हैं, जैसी सारी जानकारी इनकी निगाह में होती है।

एंड्रॉयड ऐप एक्सपर्ट श्वेतांक आर्य कहते हैं कि एंड्रॉयड फ्रेमवर्क में आमतौर पर दो तरह की परमिशन होती हैं: नॉर्मल परमिशन और सेंसिटिव परमिशन। नॉर्मल परमिशन के लिए ऐप आपसे इजाजत नहीं मांगते बल्कि ऐप इंस्टॉल करते ही यह परमिशन उन्हें मिल जाती है। वाईफाई, ब्लूटूथ, वॉलपेपर और अलार्म जैसी चीजें इसमें आती हैं, जबकि कैमरा, लोकेशन, माइक्रोफोन और स्टोरेज समेत कई तरह के हार्डवेयर स्टोरेज की इजाजत आपसे मांगी जाती है, जोकि खतरनाक साबित हो सकती है। आमतौर पर आप ऐप इंस्टॉल करते वक्त परमिशन दे भी देते हैं क्योंकि कई ऐप्स बिना इन परमिशन के डाउनलोड ही नहीं होते। बेशक परमिशन देने का मतलब होता है कि आपने उन्हें अपने घर की चाबी दे दी। अब जैसा मन करेगा, कंपनियां वैसे ही डेटा का इस्तेमाल कर सकती हैं। इसमें सबसे खतरनाक बात यह है कि आपको डेटा चोरी के बारे में पता भी नहीं चलेगा। आप जब परमिशन दे देते हैं तो एंड्रायड फ्रेमवर्क भी उन्हें आपका डेटा लेने से नहीं रोकता।

कब आप देते हैं इजाजत
ऐप इंस्टॉल करने के दौरान कंपनियां आपसे कैमरा, माइक्रोफोन, मेसेज पढ़ने, कॉल डिटेल्स देखने और लोकेशन समेत कई जानकारियां लेने के लिए इजाजत मांगती हैं। आप जल्दी से ऐप इंस्टॉल करने के चक्कर में यह नहीं देखते कि आपसे क्या मांगा जा रहा है। इसका नुकसान यह होता है कि ये कंपनियां ऐप के जरिए हर वक्त आप पर नजर बनाए रखती हैं और समय-समय पर उस डेटा का इस्तेमाल अपने निजी फायदे के लिए करती हैं। ऐसा ही फेसबुक डेटा लीक मामले में भी हुआ।

सोच-समझ कर दें परमिशन
डेटा चोरी से बचने के लिए आपको शुरू से सजग रहना होगा। अगर आप प्लेस्टोर से कोई ऐप डाउनलोड करते हैं तो आपको वहीं सावधान रहना है। आप हर ऐप को किसी खास काम के लिए डाउनलोड करते हैं इसलिए हर चीज की परमिशन उसे न दें। अगर कोई रेस्तरां का ऐप है तो उसे कैमरा या मेसेज ऐक्सेस का कोई काम नहीं है। वहीं अगर कोई पेमेंट ऐप है तो वह लोकेशन एक्सेस क्यों जानना चाहता है, इस बारे में भी सोचें। आपने पहले से कई ऐप डाउनलोड किए होंगे। आप उनकी भी परमिशन का रिव्यू कर सकते हैं। आप देख सकते हैं कि कौन-कौन से ऐप आपसे क्या जानकारी ले रहे हैं। इसके लिए सबसे पहले आप फोन की Settings में जाएं। वहां Apps या Apps & notifications में जाएं। यहां पर आपके मोबाइल पर डाउनलोड हुए तमाम ऐप्स की लिस्ट सामने होगी।

अब आप उस ऐप को टैप करें जिसकी परमिशन को आप रिव्यू करना चाहते हैं। यहां आपको कई सारे ऑप्शंस दिखेंगे जिनमें से एक Permissions होगा। इसे टैप करने पर कुछ ऑप्शन के साथ आपको बॉडी सेंसर, कैलेंडर, कैमरा, कॉन्टैक्ट्स, लोकेशन, माइक्रोफोन, फोन, एसएमएस और स्टोरेज की परमिशन का ऑप्शन मिलेगा। यहां आप अपनी सुविधानुसार ऐप परमिशन को मॉडिफाई कर सकते हैं। बेशक जो जिस ऐप के लिए जरूरी परमिशन लगे, सिर्फ उन्हीं की परमिशन आप दें। गौरतलब है कि ऐप परमिशन रिव्यू की सुविधा एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम 6.0 मार्शमेलो या इससे ऊपर के संस्करण में ही उपलब्ध है।

वैसे आजकल के नए हैंडसेट्स में आपको बारी-बारी सभी ऐप में जाकर परमिशन को ऑन-ऑफ करने की जरूरत नहीं होती, बल्कि सेटिंग्स में जाकर सबसे पहले आपको ऐप्स का चुनाव करना होता है। फोन में नीचे या ऊपर राइट साइड में More का ऑप्शन या तीन डॉट (...) मिलेंगे। आपको उस पर क्लिक करना है। इसमें ही आपको ऐप परमिशन का ऑप्शन मिलेगा, उस पर टैप करें। यहां आपको बॉडी सेंसर, कैलेंडर, कैमरा, कॉन्टैक्ट्स, लोकेशन, माइक्रोफोन, फोन, एसएमएस और स्टोरेज जैसे ऑप्शंस दिखेंगे। आप बारी-बारी से इन पर टैप कर देख सकते हैं कि कौन-सा ऐप किस तरह का डेटा ऐक्सेस कर रहा है। हर सेग्मेंट में ऐप की पूरी लिस्ट आ जाएगी। आप यहां खुद ही ऐप डेटा को मॉडिफाई कर सकते हैं।

फेसबुक के लिए
'Login with facebook' से बचें
कई बार आप ब्राउजर या ऐप में किसी चीज को खोलते हैं और वह आपको आईडी बनाने या फिर 'लॉग-इन विद फेसबुक' या 'लॉग-इन विद जीमेल' के लिए कहता है। आप भी जल्दी से लॉग-इन करने के लिए इन्हें ऐक्सेस दे देते हैं, लेकिन आपको शायद मालूम नहीं कि ऐसा करके वह वेबसाइट या ऐप आपसे जानकारियां हासिल कर लेता है और फिर हमेशा के लिए आपके फेसबुक में ताकझांक करने का इंतजाम कर लेता है। अगर आपने पहले से किसी को ऐक्सेस दे रखा है तो आप बाद में भी रिव्यू कर सकते हैं। इसके लिए आप फेसबुक ऐप की Settings में जाएं। यहां आप बिल्कुल नीचे स्क्रॉल करेंगे तो Apps का ऑप्शन मिलेगा। उस पर टैप करें। यहां Logged in with Facebook पर टैप करने के बाद उन ऐप्स की पूरी लिस्ट आ जाएगी जिन्हें आपने 'लॉगिन विद फेसबुक' का ऐक्सेस दिया है। यहां से आप ऐप को सिलेक्ट कर डिलीट कर सकते हैं।

अपनी प्राइवेसी जांचें
फेसबुक पर कुछ ऐसी तस्वीरें होती हैं, जिसे अपने दोस्तों में प्राइवेट रखना चाहते हैं या किसी सब्जेक्ट को दूसरों के साथ साझा नहीं करना चाहते। अच्छी बात यह है कि आप ऐसा कर सकते हैं। फेसबुक की सेटिंग्स में जाने के बाद प्राइवेसी के अंदर मिलेगा। यहां तय कर सकते हैं कि कौन आपके पोस्ट्स के साथ ही आपके प्रोफाइल की निजी जानकारियों, जैसे-फोन नंबर, ईमेल, पता आदि देखे। कई लोग फेसबुक पर अपनी निजी जानकारी को पब्लिक कर देते हैं, जबकि यह सही नहीं है। फेसबुक पर जन्मदिन, कॉन्टैक्ट नंबर और एड्रेस आदि को छुपाकर रखें तो बेहतर है। इसका तरीका है: फेसबुक ऐप खोलें। राइट साइड में ऊपर तीन लाइनों पर टैप करें। नीचे स्क्रॉल करने पर आपको Account Settings मिलेंगी। इसे टैप करें। इसमें Privacy पर जाएं। यहां मिलेगा Check a few important settings, इसे टैप करें। फिर Next पर टैप करें। choose Audience को Public, Friends आदि में से चुन सकते हैं। फिर Next पर टैप करें। यहां आपका मोबाइल नंबर, ईमेल, बर्थडेट आदि होगा। इन्हें Only me कर दें। अगला स्टेप आप कर ही चुके हैं। फिर Next पर जाएं। इसे बंद कर दें।

डुअल सिक्यॉरिटी
अगर अपने फेसबुक अकाउंट को बहुत ज्यादा सिक्योर रखना चाहते हैं, तो डुअल सिक्यॉरिटी का सहारा ले सकते हैं। जब फेसबुक खोलने के लिए आइडी और पासवर्ड डालेंगे, तो आपको एक अडिशनल कोड दिया जाएगा। यह कोड आपको मोबाइल पर मिलेगा। इससे आपका अकाउंट ज्यादा सुरक्षित होगा। इसके लिए ऐप खोलें। तीन लाइनों पर टैप करें। नीचे स्क्रॉल करें। Account Settings में Security and login में जाएं। यहां नीचे की तरफ स्क्रॉल करने पर Setting Up Extra Security के अंदर आपको Use two-factor authentication का ऑप्शन मिलेगा। इसे On कर दें।

लॉगइन अलर्ट
अगर आप चाहते हैं कि कोई दूसरा शख्स आपका फेसबुक अकाउंट लॉगइन करे तो आपको सूचना मिल जाए तो आप लॉगइन अलर्ट्स फीचर को इनेबल कर सकते हैं। यह फीचर Account Settings में Security and login के अंदर Get alerts about unrecognized logins नाम से मिलेगा। इसे On कर दें। आप नोटिफिकेशन फोन पर ले सकते हैं या फिर ईमेल पर।

ऐप्स की करें जांच
आप फेसबुक से जुड़ी हर चीजों का ध्यान नहीं रख सकते। देखा गया है कि अक्सर लोग फेसबुक पर दूसरों को गेम के लिए इनवाइट करते हैं। ये ऐप्स आपके फेसबुक अकाउंट में आकर बैठ जाते हैं और आप इनका इस्तेमाल न भी करें तो भी आपके निजी डेटा को ऐक्सेस करते रहते हैं। ऐसे में आप अपने फेसबुक अकाउंट में इंटिग्रेटेड ऐप्स को जरूर जांचें। जिन पर शक हो, उन्हें फौरन हटा दें।

चोर ऐप्स और डिवाइस का पता करें
अगर आप एंड्रॉयड फोन इस्तेमाल कर रहे हैं तो जाहिर है गूगल अकाउंट भी होगा। गूगल अकाउंट से ही फोन की कई सर्विसेज़ कनेक्ट होती हैं। कई ऐप्स गूगल अकाउंट के जरिए ही काम करते हैं। आप ऐप इस्तेमाल करने के दौरान उसे ऐक्सेस दे देते हैं, लेकिन बाद में उसे हटाना भूल जाते हैं। ये ऐप्स चुपचाप आप पर निगाह रखते हैं। हालांकि आप चाहें तो इसे रिव्यू कर सकते हैं और इन ऐप्स और डिवाइस को हटा सकते हैं।

चोर डिवाइस का पता
इसके लिए सबसे पहले लैपटॉप या कंप्यूटर पर आपको अपना जीमेल अकाउंट खोलना है। जीमेल में टॉप राइट साइड में आपको अपनी तस्वीर दिखाई देगी। आपने अगर तस्वीर नहीं लगाई है तो आपके नाम का लोगो आएगा। उस पर क्लिक करें। इसके साथ ही आपको ब्लू बैकग्राउंड के साथ My Account लिखा दिखाई देगा। उस पर क्लिक करें। आप सीधे myaccount.google.com टाइप करके भी जा सकते हैं। यहां Sign-in and security के अंदर आपको Device activity & security events का ऑप्शन दिखाई देगा। उस पर क्लिक करने पर एक नया विंडो खुलकर आ जाएगा और आप यहां से Recently used devices देख सकते हैं। यहीं पर थोड़ा नीचे REVIEW DEVICES का ऑप्शन होगा और आप उस पर क्लिक कर देख सकते हैं कि किस-किस फोन, टैब्लेट और कंप्यूटर में आपका गूगल आईडी इंटिग्रेटेड है। जिन डिवाइस की जानकारी आपको नहीं हैं, उन्हें यहां से हटा दें। इसके लिए आपको उस डिवाइस पर क्लिक करना है और सामने ही REMOVE का ऑप्शन होगा। उस पर क्लिक कर उस डिवाइस को आप रिमूव कर दें।

चोर ऐप्स की करें पहचान
डेटा चोरी ज्यादातर ऐप्स के जरिए ही होती है। आप चोर ऐप्स की भी पहचान कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले आपको लैपटॉप या कंप्यूटर पर अपना जीमेल अकाउंट खोलना है। यहां से टॉप राइट में अपने फोटो या नाम पर क्लिक करना है और फिर My Account पर क्लिक करना है। यहां आपको Apps with account access का ऑप्शन मिलेगा। आप उस पर क्लिक कर दें। यहीं नीचे की ओर आपको Manage Apps का ऑप्शन मिलेगा। उस पर क्लिक करते ही ऐप्स की पूरी लिस्ट आ जाएगी, जो आपका जीमेल डेटा ऐक्सेस कर रहे हैं। आप जिस ऐप को हटाना चाहते हैं, उस पर क्लिक करें। आपको सामने Remove का ऑप्शन दिखेगा। इस ऑप्शन पर क्लिक कर उस ऐप को आप हटा सकते हैं।

कुछ जरूरी सावधानियां
हर मोबाइल और इंटरनेट यूजर को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए
न रखें आसान पासवर्ड: ज्यादातर लोग जन्मदिन या मोबाइल नंबर को अपना पासवर्ड बना लेते हैं। वहीं कई लोग नाम के आगे 123456 जैसे शब्द जोड़कर पासवर्ड रख लेते हैं। यह बेहद खतरनाक है। पासवर्ड बनाते वक्त हमेशा ध्यान रहे कि बिल्कुल अगल तरह का पासवर्ड हो। स्पेशल कैरक्टर्स का जरूर इस्तेमाल करें और हर अकाउंट के लिए अलग पासवर्ड रखें।

बदलते रहें पासवर्ड: कोशिश करें कि महीने, दो महीने में पासवर्ड बदलते रहें। हर बार नया पासवर्ड बनाएं और स्पेशल कैरक्टर्स जरूर रखें। उन्हें ट्रैक करना मुश्किल होता है। वहीं पासवर्ड बनाते वक्त सिक्यॉरिटी सवाल और जवाब को ज्यादा मजबूत रखने की कोशिश करें ताकि कोई बंदा अनुमान न लगा सके।

डुअल सिक्यॉरिटी: डुअल सिक्यॉरिटी का इस्तेमाल आपको अतिरिक्त सुरक्षा का भरोसा देता है। जब आप ईमेल खोलने के लिए आईडी और पासवर्ड डालेंगे तो आपको एक अडिशनल कोड दिया जाएगा। यह कोड आपके मोबाइल पर मिलेगा। इससे आपका अकाउंट ज्यादा सुरक्षित होगा।

अनजान ईमेल न खोलें: आपके मेल बॉक्स या मेसेज में कोई भी अनजान मेल या लिंक आए तो उसे बिल्कुल न खोलें। वह वायरस हो सकता है, जो आपका ईमेल अकाउंट और डेटा हैक कर सकता है। वहीं कई वेबसाइट आपको लॉटरी या गिफ्ट का लालच दे रहा हो तो उस पर भी बिल्कुल क्लिक न करें।

प्राइवेट ब्राउजिंग: अगर किसी वजह से अनजान पीसी या मोबाइल पर आप अपना ईमेल या सोशल अकाउंट खोल रहे हैं तो प्राइवेट ब्राउजिंग का सहारा लें। साइबर कैफे, दोस्त के कंप्यूटर या मोबाइल आदि में तो यह और भी जरूरी है। सार्वजनिक स्थानों में सुरक्षा नियमों का सही से पालन नहीं किया जाता और हैकिंग का खतरा होता है। क्रोम ब्राउजर में Incognito Private Browising प्राइवेट मोड में है।

ओपन वाईफाई के इस्तेमाल से बचें: आजकल ज्यादातर जगह फ्री यानी ओपन वाईफाई सर्विस उपलब्ध होती है। कोशिश करें कि ओपन वाईफाई का इस्तेमाल न करें। इससे मोबाइल या लैपटॉप के हैकिंग का खतरा रहता है।

न रखें अपना ब्लूटूथ ओपन: डेटा ट्रांसफर का आसान जरिया ब्लूटूथ है और हैकर्स के लिए डेटा हैक का भी यह आसान जरिया है। अपने फोन का ब्लूटूथ तभी ऑन करें, जब जरूरत हो और इसके बाद फौरन बाद ऑफ कर दें।

साइड लोडिंग न करें: अक्सर आप किसी फोन या कंप्यूटर से ऐप्लिकेशन ट्रांसफर कर लेते हैं। इसे साइड लोडिंग कहते हैं। इससे भी वायरस आने का खतरा होता है। वायरस के जरिए हैकर्स फोन से डेटा चोरी करते हैं। ऐप स्टोर से ही ऐप डाउनलोड करें।

फैक्टरी डेटा रीसेट करें: अगर आप अपना फोन सर्विस के लिए दे रहे हैं, उसे बेच रहे हैं या अपने किसी रिश्तेदार, दोस्त या नौकर को दे रहे हैं तो सबसे पहले उसे फैक्ट्री रीसेट करें। ज्यादा अच्छा होगा कि हार्डबूट करें। इसके लिए Settings में जाएं वहां Backup & reset में जाएं। यहां आपको Factory data reset का ऑप्शन मिलेगा। उसे टैप करें। आपका फोन अब किसी को देने के लिए तैयार है। दूसरी ओर, हार्डबूट के लिए आपको फोन को रिकवरी मोड में ले जाना होगा। इसके लिए सबसे पहले फोन को ऑफ करना है और वॉल्यूम डाउन और पावर बटन को एक साथ दबाना होता है। कुछ देर दबाने के बाद यह रिकवरी मोड में चला जाएगा। यहां टच काम नहीं करेगा और आपको पावर और वॉल्यूम बटन का सहारा लेकर डेटा वाइप करना होगा।

किन ऐप्स को क्या दें परमिशन
आजकल डेटा प्राइवेसी बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है और फेसबुक डेटा स्कैम ने इसे और बढ़ा दिया है। ऐसे में ऐप्स को उतना ही ऐक्सेस दें, जितना जरूरी है। यहां 15 ऐसे ऐप्स की लिस्ट दी गई है, जिनका इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है। साथ ही, उनके लिए जरूरी और गैर-जरूरी परमिशन की जानकारी भी दी गई है।

1. WhatsApp
Permissions on
1. Camera
2. Contacts
3. Microphone
4. Storage
Permissions Off
1. Location: जब जरूरत हो तभी लोकेशन ऐक्सेस दें।
2. SMS
3. Phone

2. FaceBook
Permissions on
1. Camera
2. Storage
Permissions Off
1. Calendar
2. Contacts: लोग ज्यादातर यहां से कॉलिंग नहीं करते इसलिए जरूरी नहीं है।
3. Location: लोकेशन सार्वजनिक न करें तो बेहतर है।
4. Microphone
5. SMS
6. Phone

3. Paytm
Permissions on
1. Camera: क्यूआर कोड स्कैनर के लिए देना जरूरी है।
2. Contacts: कॉन्टैक्ट से जल्दी पैसे भेज सकते हैं।
Permissions Off
1. Calendar
2. Location: लोकेशन देना सही नहीं है।
3. SMS
4. Storage
5. Phone

4. Twitter
Permissions on
1. Camera
2. Storage
Permissions Off
1. Calendar
2. Location
3. Microphone
4. SMS
5. Phone

5. SnapChat
Permissions on
1. Camera
2. Contacts
3. Storage
4. Mike
Permissions Off
1. Calendar
2. Location: सार्वजनिक प्लैटफॉर्म पर लोकेशन शेयर न करें।
3. SMS
4. Phone

6. Instagram
Permissions on
1. Camera
2. Location
3. Microphone
4. Storage
Permissions Off
1. Contacts: फोटो शेयरिंग के इस ऐप में आप कॉन्टैक्ट ऐक्सेस न दें तो अच्छा है।
2. SMS
3. Phone

7. Tinder
Permissions on
1. Camera
2. Contacts
3. Location
Permissions Off
1. Body Sensors
2. Calendar
3. Microphone
4. SMS
5. Storage
6. Telephone

8. TrueCaller
Permissions on
1. Contacts
2. SMS
Permissions Off
1. Calendar
2. Camera: कोई काम नहीं है इसमें कैमरे का।
3. Location: लोकेशन ऐक्सेस न दें। इस ऐप में जरूरी नहीं है।
4. Microphone
5. Storage
6. Phone

9. Jio
Permissions on
1. Contacts
2. SMS
3. Location
Permissions Off
1. Camera
2. Microphone
3. Phone
4. Storage

10. Flipkart
Permissions on
1. Storage: फोन में मेमरी ज्यादा नहीं है तो यह ऐप एसडी कार्ड में सेव हो जाएगा।
Permissions Off
1. Camera
2. Contacts: ई-कॉमर्स ऐप में कॉन्टैक्ट ऐक्सेस नहीं देना चाहिए।
3. Microphone
4. SMS
5. Location
6. Phone

11. Amazon
Permissions on
1. Storage: यह ऐप एसडी कार्ड में सेव हो जाएगा।
Permissions Off
1. Camera
2. Contacts
3. SMS
4. Location
5. Phone

12. Gana/Savan
Permissions on
1. Storage: स्टोरेज के अलावा दूसरे ऐक्सेस बंद कर दें।
Permissions Off
1. Camera
2. Contacts
3. Location
4. Microphone
5. SMS
6. Phone

13. Gmail
Permissions on
1. Calendar
2. Storage
3. Contacts

14. Google Map
Permissions on
1. Location: सिर्फ लोकेशन ही ऐक्सेस होना चाहिए।
Permissions Off
1. Camera
2. Contacts
3. Microphone
4. SMS
5. Storage
6. Phone

15. Uber/Ola
1. Location: सिर्फ लोकेशन ऐक्सेस ही दें।
Permissions Off
1. Camera
2. Contacts
3. Microphone
4. SMS
5. Storage
6. Phone

16. BHIM
Permissions on
1. Camera
2. Contacts
3. SMS
Permissions Off
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हर्निया से परेशान?

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हर्निया एक ऐसी बीमारी है, जिसका इलाज ऑपरेशन से ही मुमकिन है। हालांकि कुछ सावधानियां बरतकर इस समस्या को गंभीर होने से रोका जा सकता है। एक्सपर्ट्स से बात करके हर्निया के बारे में विस्तार से जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह

एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. दलप्रीत सिंह भामरा, जनरल और लेप्रोस्कोपिक सर्जन, मैक्स हॉस्पिटल

डॉ. सुभाष अग्रवाल, जनरल सर्जन, श्री बालाजी ऐक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट

सुरक्षित गोस्वामी, जाने-माने योग गुरु

क्या है हर्निया

शरीर का कोई अंग जब अपनी कंटेनिंग कपैसिटी यानी अपने खोल या झिल्ली से बाहर निकाल आता है तो उसे हर्निया कहते हैं। इसमें मरीज को तेज दर्द होता है, चलने-फिरने में दिक्कत होती है और उलटी भी हो सकती है। यह आमतौर पर शरीर के किसी हिस्से की मसल्स की कमजोरी और वहां लगातार प्रेशर पड़ने की वजह से होता है। पेट के ऑपरेशन के बाद हर्निया होना काफी कॉमन है।

कैसे-कैसे हर्निया

यूं तो शरीर के अलग-अलग हिस्सों में हर्निया होता है लेकिन कुछ हर्निया कॉमन हैं:

जन्मजात: कंजीनियल यानी जन्म से होनेवाला हर्निया। यह ज्यादा कॉमन नहीं है। ज्यादातर मामलों में लड़कों में होता है। इनमें टेस्टिकल अंदर से बाहर निकलता है तो रास्ता बंद नहीं होता। इन बच्चों में कोशिश होती है कि चलना शुरू करने से पहले ऑपरेशन कर दिया जाए वरना चलने पर समस्या बढ़ जाती है। आमतौर पर बच्चा अगर 10 किलो वजन का हो जाए तो सर्जरी कर दी जाती है। कई बार यह कैविटी खुद भी भर जाती है। तब ऑपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती।

बाद में होनेवाला:
यह हर्निया उम्र बढ़ने, ऑपरेशन या दूसरी वजहों से बाद में होता है। ज्यादातर मामलों में ऑपरेशन से ही इलाज मुमकिन है।

शरीर के किस-किस हिस्से में

यूं तो हर्निया शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है लेकिन फिर भी कुछ हिस्सों में यह कॉमन है:

इन्गुइनल (Inguinal) हर्निया: पेट के नीचे की तरफ होता है। यह महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में ज्यादा होता है।

अम्बलाइकल (Umbilical): यह पेट का हर्निया होता है, जिसमें मरीज की आंत का कोई हिस्सा अपने झिल्ली से बाहर निकल आता है। यह भी काफी कॉमन है, खासकर पेट के ऑपरेशन के बाद।

एपिगेस्ट्रिक (Epigastric): नाभि और रिब्स के सेंटर में होता है यह हर्निया।

फीमोरल (Femoral): यह जांघ में होता है और महिलाओं में ज्यादा होता है। इसके अलावा भी लंबर (Lumbar), पैरस्थोमल (Parastomal), इनसीसनल (Incisional), पैरास्थमल (Parastomal) और हिएटल (Hiatal) हर्निया आदि होते हैं।

क्या हैं वजहें


1. मोटापा: ज्यादा मोटापा बढ़ने पर मसल्स के बीच में फैट जमा हो जाता है। इससे मसल्स पर प्रेशर पड़ता है और वे दो हिस्सों में बंट जाती हैं।

2. सर्जरी: अगर किसी हिस्से में सर्जरी हुई है और वहां प्रेशर पड़ता है तो हर्निया होने की आशंका होती है। सिजेरियन ऑपरेशन में पेट के बीच में टांके लगाए जाएं तो भी हर्निया के चांस बढ़ जाते हैं।

3. खांसी: लंबे समय तक खांसी रहे तो हर्निया हो सकता है क्योंकि खांसी से पेट पर प्रेशर पड़ता है।

4. कब्ज: लगातार कब्ज की शिकायत रहने पर भी हर्निया हो सकता है।

5. पेशाब करने में दिक्कत: पेशाब करने में दिक्कत या रुकावट होने पर भी हर्निया की आशंका बढ़ जाती है।

6. मसल्स की कमजोरी: अगर प्रेग्नेंसी में प्रोटीन कम लें या पूरा पोषण नहीं हो तो मसल्स कमजोर हो जाती हैं।

7. बढ़ती उम्र: 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में इसकी आशंका ज्यादा होती है। हालांकि किसी भी उम्र में हो सकता है।

8. बीमारी: किडनी या लिवर की फेल होने वाले मरीजों में भी हर्निया होने की आशंका ज्यादा होती है।

9. वेटलिफ्टिंग: वेटलिफ्टिंग या बहुत ज्यादा वजन उठानेवाले को यह समस्या हो सकती है।

10. ज्यादा सीढ़ियां चढ़ना: जो लोग बहुत ज्यादा सीढ़ियां चढ़ते-उतरते हैं, उनमें हर्निया के चांस बढ़ जाते हैं।

हर्निया की स्टेज

हर्निया की कुछ स्टेज होती हैं:

1. रिड्यूसेबल (Reducable): इनमें ऑर्गन बाहर निकलता है, फिर अंदर जाता है। कई बार हाथ लगाकर भी अंदर कर देते हैं। इस लेवल तक सर्जरी के बिना भी काम चल सकता है। प्लान करके सर्जरी करा सकते हैं।

2. इररिड्यूसेबल (Irreducible): इसमें ऑर्गन कैविटी से बाहर निकलने के बाद अंदर नहीं जाता। इसके बाद ऑपरेशन जरूरी होता है। जल्द ही ऑपरेशन कराना होता है।

3. स्ट्रंग्युलेटिड (Strangulated): अगर आंत अंदर फंस कर रुक जाए और गलने लगे तो इमरजेंसी की स्थिति होती है और 6 घंटे के अंदर ऑपरेशन जरूरी होता है। आमतौर पर यह स्थिति छोटे हर्निया के साथ ही होती है, जोकि बाहर निकलकर फंस जाता है। ऐसे में बेहतर है कि हर्निया के साइज में छोटा रहते हुए ही ऑपरेशन करा लें।

कब जाएं डॉक्टर के पास

अगर शरीर में कहीं भी सूजन लगे तो डॉक्टर को दिखाएं। दर्द होने पर तो जाना ही पड़ेगा लेकिन दर्द आमतौर पर बाद की स्टेज में होता है और तब तक स्थिति खराब होने लगती है।

जांच


- आमतौर पर डॉक्टर फिजिकल जांच से ही पता लगा लेते हैं। मांस का एक लोथड़ा बाहर निकलता है और फिर अंदर जाता है। खांसी आने पर यह महसूस होता है।

- अल्ट्रासाउंड: अल्ट्रासाउंड से पेट के अंदर हर्निया की स्थिति देखी जाती है। कीमत: 500-1000 रुपए

- सीटी स्कैन: इसके जरिए बारीकी से हर्निया की सारी जानकारी मिल जाती है। कीमत: 4000-6000 रुपए

नोट: हर मामले में सीटी स्कैन जरूरी नहीं होता। अल्ट्रासाउंड से भी काम चल जाता है।

इलाज

- इसमें दवाएं काम नहीं करतीं। आमतौर पर दर्द होने पर पेनकिलर के तौर पर पैरासिटामोल (Paracetamaol) ले सकते हैं। ज्यादा दर्द है तो ट्रामडल (Tramedol) ले सकते हैं लेकिन बेहतर है कि पेनकिलर का इस्तेमाल कम-से-कम करें और डॉक्टर से पूछे बिना कोई दवा न लें।

- दर्द से राहत के लिए हॉट वॉटर बैग से सिकाई कर सकते हैं। इससे मसल्स रिलैक्स होती हैं और दर्द कम होता है।

- चूंकि यह स्ट्रक्चरल डिफेक्ट है, इसलिए सर्जरी जरूरी हो जाती है। सर्जरी शुरू में ही करा लें तो बेहतर है, वरना इसका साइज बढ़ता ही जाएगा।

सर्जरी

सर्जरी में आमतौर पर मेश (जाली) डालते हैं ताकि कमजोर मसल्स को सपॉर्ट किया जा सके। अगर बिना जाली डाले सिर्फ टांके लगाकर बंद कर देंगे तो वह हिस्सा फिर बाहर निकल आएगा। जाली में बारीक छेद होते हैं, जिनमें से टिशू ग्रो करके उसे जकड़ लेते हैं। जाली की उम्र करीब 10 साल होती है लेकिन फिर टिशू उसे मजबूती देते हैं और वह हमेशा बनी रहती है। इस पकड़ को बनाने में करीब 6 महीने लगते हैं। 18 साल से कम उम्र के मरीजों यानी बच्चों में जाली नहीं डाली जाती क्योंकि उनकी मसल्स बढ़ रही होती हैं।

सर्जरी दो तरीके से होती है: ओपन और टेलिस्कोप यानी दूरबीन वाली। ओपन में दो मसल्स के बीच जाली जाली लगाते हैं। पहले मसल्स की लेयर होती है, फिर जाली और फिर मसल्स की लेयर। इस प्रक्रिया में जाली आंत में टच नहीं करती। जाली की कीमत करीब 10,000 होती है। ऑपरेशन पर करीब 45-50 हजार रुपए खर्च होते हैं। सरकारी अस्पतालों में सिर्फ जाली की कीमत देनी होती है। दूरबीन वाली सर्जरी में दो लेयरों में जाली डाली जाती है। जाली की अब्जॉर्बल यानी घुलने वाली लेयर इंटेस्टाइन की तरफ होती है। इस जाली की कीमत करीब 35 हजार रुपए होती है। पूरे ऑपरेशन पर करीब 1 लाख रुपए खर्च आता है। जाली शुरुआती 3 महीने में थोड़ा दर्द करती है। धीरे-धीरे बॉडी अडजस्ट कर लेती है।

कितनी देर लगती है: सर्जरी में आमतौर पर आधे घंटे से लेकर दो घंटे तक लगते हैं।

कब करते हैं डिस्चार्ज: कई बार यह सर्जरी डे केयर में भी हो जाती है। ऐसे में उसी दिन मरीज को डिस्चार्ज कर देते हैं। ज्यादातर मामलों में मरीज को एक-दो दिन के बाद छुटटी दे दी जाती है।

क्या सर्जरी के रिस्क भी हैं: वैसे तो यह सर्जरी काफी कॉमन है लेकिन फिर भी कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, जैसे कि आंतों में चोट लग सकती है। जाली में इन्फेक्शन हो जाए तो निकालनी पड़ती है। इसी तरह जाली वाले एरिया में ब्लीडिंग शुरू हो जाए तो निकालना पड़ता है। वैसे, आमतौर पर ये दिक्कतें सामने आती नहीं हैं।

कब शुरू कर सकते हैं रुटीन: मरीज एक हफ्ते बाद ऑफिस जॉइन कर सकते हैं या रुटीन के दूसरे काम कर सकते हैं।

नहीं करते सर्जरी अगर...

-मरीज की उम्र 70 साल से ज्यादा है तो आमतौर पर डॉक्टर सर्जरी की सलाह नहीं देते। हालांकि अगर दर्द है तो कई बार सर्जरी करनी भी पड़ती है। वैसे अगर मरीज ऐक्टिव है तो 80 साल की उम्र में भी सर्जरी करा सकते हैं, क्योंकि चलने-फिरने में यह बीमारी परेशानी खड़ी करती है। अगर ज्यादा चलना-फिरना नहीं है तो बुजुर्ग सर्जरी न कराएं तो बेहतर है।

- सिर्फ सूजन है और दर्द नहीं है तो सर्जरी नहीं कराना बेहतर है।

- हर्निया बड़ा है और अंदर नहीं जा रहा तो करा ही लेनी चाहिए, फिर चाहे दर्द हो या नहीं, वरना इमरजेंसी की स्थिति में अचानक सर्जरी करानी पड़ सकती है।

कब लौटकर आता है

- अगर जाली अपनी जगह से हिल जाए, जाली छोटी रह गई हो या फिर ढंग से नहीं लगाई गई हो।

- अगर हर्निया वाले एरिया में लगातार प्रेशर बना रहे। यह प्रेशर आमतौर पर खांसी, कब्ज, पेशाब में दिक्कत आदि से होता है।

- भारी चीजें उठाने से। आमतौर पर हर्निया के मरीज को 5 किलो से ज्यादा वजन नहीं उठाना होता। बुजुर्गों को इससे भी कम वजन उठाना होता है।

- ऑपरेशन के 6 हफ्ते से पहले अगर कोई बाइक चलाने लगे।

क्या कर सकते हैं मरीज

- ऑपरेशन के दो-तीन दिन बाद नॉर्मल वॉक कर सकते हैं।

- दो हफ्ते बाद ड्राइविंग कर सकते हैं।

- हल्का-फुल्का योग कर सकते हैं।

ताकि न हो हर्निया

- वजन को कंट्रोल में रखें। अपने तय वजन के 5 किलो से ज्यादा न बढ़ने दें।

- पौष्टिक खाना खाएं। प्रोटीन डाइट लें ताकि मसल्स मजबूत बनीं रहें।

- स्मोकिंग से परहेज करें। इससे खांसी होती है और खांसी हर्निया की वजह बनता है।

- खूब पानी पिएं ताकि पेशाब से जुड़ी बीमारी न हों।

- ज्यादा वेट लिफ्टिंग न करें। जो भारी एक्सरसाइज करते हैं, वे लंगोट बांधें या सपॉर्ट लगाएं।

- बहुत ज्यादा या जल्दी-जल्दी सीढ़ियां न चढ़ें।

- पेट को मजबूत बनाने वाले आसन करें।

हर्निया है तो कौन से आसन करें

- ऑपरेशन होने के शुरू के 6 महीने तक कोई भी आसन न करें।

- हर्निया है तो कमर को पीछे मोड़नेवाले आसन न करें, भुजंगासन, धनुरासन, नौकासन, उष्ट्रासन, कोणासन आदि।

- जिसमें पेट पर पूरा जोर पड़ रहा है, उन्हें भी नहीं करना जैसे कि अर्धसर्वांगासन, चक्रासन, हलासन, सर्वांगासन।

- अग्निसार और कपालभाति क्रिया नहीं करनी।

- ऐसे आसन करें, जिनसे पेट की मांसपेशियां मजबूत हों, जैसे कि मूलबंध, अश्विन मुद्रा, एक पैर से उत्तानपादासन, कटिचक्रासन, एक पैर से पवनमुक्तासन, नितंबासन, शशांकासन, पश्मिोत्तानासन गोमुखासन आदि।

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फेंकना मना है...

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फेक न्यूज़ बनाने वाले पत्रकारों की मान्यता रद्द करने के केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी के फैसले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेशक फौरन पलट दिया, लेकिन यह तय है कि फेक न्यूज़ बहुत बड़ा मसला बन रही हैं। फेक न्यूज़ के इस जाल में उलझने से आप कैसे बच सकते हैं, बता रहे हैं पंकज जैन

पिछले साल सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड हुए एक मेसेज की वजह से झारखंड में 6 लोगों को भीड़ ने गलती से बच्चा चोर समझ कर पीट-पीट कर मर डाला। यह एक घटना सोशल मीडिया पर फैल रहे 'फेक न्यूज़' के भयानक चेहरे उजागर करने के लिए काफी है। फेक न्यूज़ बनाने वाले किसी फोटो या विडियो को एडिट करके कुछ ऐसा बना देते हैं कि उसका पूरा अर्थ ही बदल जाता है और हममें से ज्यादातर लोग इस झूठ को सच मान लेते हैं। अब सवाल आता है कि ऐसा लोग करते ही क्यों हैं? दरअसल, यह एक बड़ी इंडस्ट्री है। कुछ पैसे के लिए करते हैं, कुछ तारीफ (लाइक्स) पाने के लिए, कुछ नफरत फैलाने के लिए, कुछ वोट पाने के लिए, कुछ मजहब के लिए, तो कुछ दंगे भड़काने तक के लिए। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि सोशल मीडिया आपका अखबार नहीं है कि जो कि पुष्टि करने के बाद ही सूचनाएं प्रकाशित-प्रसारित करता है।

कई मेसेज में आखिर में लिखा होता है- बिका हुआ मीडिया आपको यह नहीं दिखाएगा। सच्चे भारतीय हो तो फॉरवर्ड करो। जान लें कि ऐसे ज्यादातर मेसेज झूठे होते हैं। इन्हें फॉरवर्ड करने से आपको देशभक्ति का सर्टिफिकेट नहीं मिलता, उलटे क्या पता आप झूठ और नफरत फैलाने के भागीदार बन जाएं। काफी मेसेज में लिखा होता है 'forwarded as received' मतलब सामने वाला कह रहा है कि मैं बस भेज रहा हूं, कुछ गलत हो तो मैं जवाबदेह नहीं हूं। कुछ वेबसाइट सनसनी फैलाने वाली हेडलाइन लगाकर ऐसी चीजें पोस्ट करते हैं जो सबको पसंद आ जाती हैं तो सब शेयर कर देते हैं। हालांकि इनका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं होता, लेकिन वेबसाइट वाले को पूरा फायदा मिल जाता है। वह अपने पेज पर आनेवाले विज्ञापन से कमा लेता है।

आप कुछ 'फेक न्यूज़' देखकर समझें कि इनसे बचने के लिए हम क्या कर सकते हैं:

फोटो/विडियो झूठा हो सकता है

1. कोई और जगह का विडियो

मुंबई में पड़े ओलेः दिसंबर में मुंबई में 'ओखी तूफान' की आशंका जताई गई थी। करीबन हर न्यूज़ चैनल ने यह विडियो चलाया था कि मुंबई-पुणे हाइवे पर ओले गिरे हैं। यह वहां का विडियो है।

यह है सचः सबसे पहले विडियो को ही ध्यान से देखें। गौर करने पर विडियो में नजर आएगा कि गाड़ियां राइट हैंड पर चल रही हैं, जोकि हमारे देश में नहीं होता। फिर विडियो रोक कर कार की नंबर प्लेट देखी। वह भी अपने देश के फॉरमैट की नहीं है। तो यह तो पक्का हो गया कि यह विडियो झूठा है। अब देखा जाए कि यह कब का और कहां का विडियो है? तो बस गूगल/फेसबुक/ट्विटर और यूट्यूब पर 'Hailstorm' ढूंढा। थोड़ा ढूंढना पड़ा। फिर ट्विटर पर यह विडियो मिल गया। अप्रैल 2017 में इस्तांबुल, तुर्की के एक पत्रकार ने ट्वीट किया था यह विडियो। जब मैंने उससे इसके बारे में पूछा तो उन्होंने मुझे इसी से जुड़े फोटो भी भेजे।


2. पुरानी फोटो

अहमदाबाद का एयरपोर्ट डूबाः पिछले साल अहमदाबाद में काफी बारिश हुई थी। यह फोटो भी करीबन हर न्यूज़ चैनल ने दिखाई थी कि अहमदाबाद का एयरपोर्ट पानी में डूबा है।

यह है सचः दरअसल, यह दिसंबर 2015 की चेन्नै की फोटो थी। न्यूज़ वालों को जब इसके फेक होने की जानकारी मिली तो उन्होंने अपनी वेबसाइट से डिलीट कर दिया। इसकी सच्चाई पता करने के लिए गूगल रिवर्स इमेज सर्च (Reverse Image Search) का इस्तेमाल किया। आप कोई फोटो अपलोड करें तो वह आपको लंबी लिस्ट लाकर देता है कि ये फोटो किस-किस साइट पर, कब-कब पोस्ट हुई थी? इस फोटो को क्रॉप किया। फिर सिर्फ लेफ्ट वाले हिस्से को ऑनलाइन ढूंढा तो इमेज सर्च से सही जवाब मिल गया। इसके लिए Images.google.com खोलें। अगर मोबाइल पर हों तो 'डेस्कटॉप मोड' में जाएं। उसके सर्च बार के बगल में कैमरे का आइकन मिलेगा। उस पर क्लिक करें। वह आपको 2 ऑप्शन देगा। या तो इमेज का लिंक दें या फोटो अपलोड करें।

इसके रिजल्ट से आपको दो चीजें मिल सकती हैं:

1. आपको मिले मेसेज में यह कहा गया है कि यह फोटो कल की है और मुंबई की है, लेकिन यह सूचना गलत है। यहां आपको वह घटना पुरानी या दूसरे शहर में होने का सबूत मिल जाएगा।

2. अगर एडिटेड है यानी फोटोशॉप किया गया है तो आपको असली फोटो मिल जाएगी।


3. फोटोशॉप की गई फोटो

विदेशी लड़की के साथ महात्मा गांधीः
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को लड़कियों की संगत में बड़ा आनंद आता था, यह कहकर इस फोटो को काफी प्रचारित-प्रसारित किया गया।

यह है सचः दो अलग-अलग फोटो को सॉफ्टवेयर की मदद से मिला दिया गया है। असली फोटो में महात्मा गांधी जवाहर लाल नेहरू के साथ हैं, न कि लड़की के साथ।

महात्मा गांधी

नकली नोट पकड़ेः यह भी वायरल हुआ था कि बांग्लादेश में भारत के नकली नोट छापते हुए पकड़े गए।

यह है सचः ध्यान से देखने से पता चला कि ये नोट थे ही नहीं। इस पर 'भारतीय चिल्ड्रन बैंक' और '50/200 कूपन' छपे थे, न की रुपए। तो यहां बात सिर्फ ध्यान देने की है। यहां किसी सॉफ्टवेयर या तकनीक की जरूरत नहीं है।

4. फिल्म, सीरियल या नाटक का फोटो

भारतीय राजदूत का लंदन में भाषणः यह विडियो काफी वायरल हुआ है। दावा किया गया है कि यह भारतीय राजदूत सुरप्रीत कौर का लंदन में विश्व शांति सम्मेलन में दिल को छू जाने वाले भाषण का हिस्सा है।

यह है सचः इसका भारतीय राजदूत के साथ कोई लेना-देना नहीं है। यह संभवत: किसी फिल्म का हिस्सा है।

ऐसे पकड़ सकते हैं फेक न्यूज

1. शक करें। किसी भी फॉरवर्ड की गई सूचना, फोटो या विडियो को आंख मूंदकर मानने के बजाय उस पर शक करना सीखें।

2. फिर सबसे जरूरी है कॉमन सेंस। अगर इसका इस्तेमाल करेंगे तो कभी गलत साबित नहीं होंगे। सोचिए जरा, यूनेस्को ने 'जन गण मन...' को दुनिया का सबसे अच्छा राष्ट्रगान घोषित किया है। अब इतनी गर्व वाली बात को सिर्फ लोग ही क्यों भेज रहे हैं। कहीं न्यूज़ में, यूनेस्को की वेसाइट पर क्यों नहीं है यह खबर?

3. बड़ी जरूरत है खुला दिमाग। अगर हम सिर्फ एक (राजनीतिक पार्टी, नेता, धर्म, सिलेब्रिटी आदि) को ही पसंद करते हैं या बहुत ज्यादा पसंद करते हैं तो उससे जुड़े झूठ पर भी आंख बंद करके विश्वास करते हैं और उसके खिलाफ सच नहीं सुन सकते। इसे फिल्टर बबल (Filter Bubble) कहते हैं। बस कहीं हम इसी में न फंसे रह जाएं।

4. गौर से देखें। जैसा कि ओले पड़ने वाले उदाहरण में कहा था, कोई विडियो हो तो ध्यान से देखें। कहीं-न-कहीं कोई क्लू मिल ही जाता है।

5. फिर जरूरत पड़ती है फोटो ढूंढने की कि यह सही है या गलत। इसके लिए ऊपर बताए गए तरीके रिवर्स इमेज सर्च का इस्तेमाल करें। यह तरीका विडियो की सच्चाई ढूंढने में भी काम आ सकता है। बस विडियो के शुरू का स्क्रीनशॉट लेकर ढूंढें।

6. कई बार किसी न्यूज़पेपर की क्लिपिंग की फोटो आती है। अगर वह सही है तो ज्यादातर गूगल पर मिल ही जाती है। बस आपको उसकी हेडलाइन जस की तस टाइप कर देनी है, बिल्कुल वही स्पेलिंग। करीबन हर न्यूज़पेपर अपने आर्टिकल्स अपनी वेबसाइट पर डालता है। बस, वह आपको वहां मिल जाएगा। नहीं मिले तो बहुत संभव है कि खबर फेक हो।

7. वेरिफाई करें। अगर कोई ट्वीट है तो उसे चेक करने के लिए सामने वाले का अकाउंट वेरिफाइड या है नहीं, यह जरूर चेक करें। वेरिफाइड अकाउंट के सामने एक नीले गोले में सफेद टिकमार्क होता है जिससे पता चलता है कि वह असली है। जिनके हैंडल पर ऐसा नहीं होता तो देखें कि उनके कितने फॉलोअर्स हैं और वह कैसा ट्वीट करते हैं? जैसे कि किसी हीरो के नाम (थोड़ी स्पेलिंग बदलकर) का हैंडल होगा, पर उसके सिर्फ 1000-2000 ही फॉलोअर्स होंगे और करीबन सारे ट्वीट राजनीति से भरे होंगे। साथ ही, फिल्म/अवॉर्ड फंक्शन आदि के बारे में कुछ खास नहीं होगा। ऐसे में मान लें कि वह फेक हैंडल है।

8. क्रॉसचेक करें। किसी भी फोन नंबर को आगे फॉरवर्ड करने से पहले एक बार खुद मिलाकर जांच लें। ऐसे ज्यादातर नंबर गलत होते हैं।

9. ऐसी न्यूज, फोटो या विडियो कुछ अलग होते हैं। इस तरह के फोटो में ब्रेकिंग न्यूज़ वाली पट्टी, बैकग्राउंड, लोगो या फॉन्ट आदि अलग में हल्का-सा फर्क होता है, जोकि बहुत गौर से देखने पर नजर आ जाता है।

10. अगर इन सबसे भी न मिले तो आप मिले हुए मेसेज से कुछ शब्द चुनें और उनकी मदद से फेसबुक/ट्विटर/यूट्यूब पर ढूंढें। अक्सर उससे जुड़ा कोई फेसबुक पेज, कोई पोस्ट, कोई ट्वीट मिल जाता है। बड़े प्रकाशक संस्थानों की वेबसाइट की सूचनाएं अमूमन प्रामाणिक होती हैं।

हो सकती है सजा

झूठी अफवाह फैलाने पर आईपीसी 153 और 505 के तहत कानूनन सजा हो सकती है। कभी भी राजनीतिक/धार्मिक आदि मेसेज जब तक कन्फर्म ने कर लें, आगे न भेजें।

( लेखक SMHoaxSlayer नाम से वेबसाइट चलाते हैं, जोकि फेक खबरों का सच उजागर करती है।)

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फायर सेफ्टी टिप्स

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दिल्ली के पीतमपुरा इलाके में शुक्रवार को एक घर में शॉर्ट सर्किट से लगी आग ने एक हंसते-खेलते परिवार की जान ले ली। गर्मियों में तापमान बढ़ने की वजह से आग लगने की घटनाएं काफी होती हैं। ऐसे में कुछ बातों का ध्यान रखकर आग लगने की आशंका को काफी हद तक कम किया जा सकता है। जानते हैं, ऐसी ही अहम बातें:

वायरिंग में सावधानी
घर में वायरिंग कराते समय हम पैसे बचाने के चक्कर में अक्सर सस्ती वायर डलवा देते हैं। इसके अलावा, एक बार वायरिंग कराकर हम निश्चिंत हो जाते हैं और उसे अपग्रेड नहीं कराते, जबकि वक्त के साथ घर में इलेक्ट्रिक गैजेट्स बढ़ाते जाते हैं। बड़ा टीवी, बड़ा फ्रिज, ज्यादा टन का एसी, माइक्रोवेव आदि। घर में लगी पुरानी वायर इतना लोड सहन नहीं कर पाती और शॉर्ट सर्किट हो जाता है। घरों में आग लगने का सबसे बड़ा कारण यही होता है।

क्या करें
- घर में हमेशा ब्रैंडेड वायर इस्तेमाल करें। वायर हमेशा ISI मार्क वाली खरीदें और जितने एमएम की वायर की इलेक्ट्रिशन ने सलाह दी है, उतने की ही खरीदें।
- घर के लिए वायर 1, 1.5, 2.5, 4, 6 और 10 एमएम की होती हैं। मीटर और सर्किट के बीच 10 एमएम की वायर, घर में पावर प्लग के लिए 4 एमएम और बाकी के लिए 2.5 एमएम की वायर लगती है। घर में पीवीसी वायर लगानी चाहिए जो 1 लेयर की होती है। यह आसानी से गरम नहीं होती। घरों में कॉपर की तार यूज करनी चाहिए, जिनमें शॉर्ट सर्किट होने की आशंका सबसे कम होती है।
- वायर में टॉप ब्रैंड हैं: फिनॉलेक्स, प्लाजा, आरआर, हैवल्स, पॉलिकेब आदि। अगर आप किराये पर किसी घर में आएं हैं और घर का लोड जानना चाहते हैं तो बिजली बिल से जान सकते हैं। उस पर घर का लोड दर्ज होता है। हर 5 साल में इलेक्ट्रिशन बुलाकर वायर चेक जरूर करानी चाहिए। साथ ही मेन सर्किट बोर्ड पर पूरा लोड डालने से अच्छा है कि दो बोर्ड बनाकर लोड को बांट दें। मीटर-बॉक्स भी लकड़ी के बजाय मेटल का लगवाएं। इससे आग लगने का खतरा कम हो जाता है।

बिजली मीटर में रखें ध्यान
वायरिंग और लोड पर ध्यान न देना शॉर्ट सर्किट की सबसे बड़ी वजह है। गर्मियों में मीटर के गर्म होने से चिंगारी निकलती है। पुराने मीटरों में यह समस्या ज्यादा है। मीटर के पास अक्सर पानी की मोटर लगा दी जाती हैं, बिजली के स्विच लगा दिए जाते हैं या फिर गाड़ियां खड़ी कर दी जाती हैं। इनकी वजह से शॉर्ट सर्किट की आशंका ज्यादा होती है।
क्या करें
- बिजली के मीटर के आसपास कोई इलेक्ट्रिकल या मिकैनिकल सामान न रखें। मीटर में बाहर से कोई तार न जोड़ें। इससे स्पार्किंग होने और आग लगने का खतरा बढ़ता है।
- मीटर बॉक्स के पास का कूड़ा साफ हो और वहां कूड़ा या कोई ज्वलनशील चीज न हो। मीटर या किसी भी दूसरे बिजली उपकरण के पास गाड़ी पार्क न करें।
- मीटर बॉक्स तक पहुंचने का रास्ता आसान हो और रास्ते में कोई रुकावट न हो।
- मीटर के लोड के हिसाब से अपने घर-दफ्तर की इंटरनल वायरिंग में बदलाव करें ताकिकेबल गर्म न हो, तारों में जोड़ न लगाएं
- शॉर्ट सर्किट से लगी आग को बुझाने के लिए पानी का इस्तेमाल न करें।

AC में ऐहतियात
आजकल लेटस्ट टेक्नॉलजी वाले एसी आते हैं जो ऑटो कट होते रहते हैं, इसलिए अगर इन्हें 24 घंटे भी चलाएं तो ये खराब नहीं होते। लेकिन ठीक से देखभाल न की जाए तो एसी हमारे लिए खतरनाक भी साबित हो सकता है। एसी आमतौर पर 15 एंपियर तक करंट झेल सकता है। अच्छी तरह रखरखाव वाला एसी 12 एंपियर का करंट लेता है, जबकि अगर एसी को बिना सालाना सर्विसिंग किए चलाया जाए तो वह 18 एंपियर तक करंट लेता है। इससे न सिर्फ वायर पर लोड बढ़ता है, बल्कि एसी जल भी सकता है। शॉर्ट सर्किट से घर में आग भी लग सकती है। जब न्यूट्रल, फेज और अर्थ, तीनों वायर या कोई दो वायर आपस में टच हो जाती हैं तो शार्ट सर्किट होता है।

क्या करें
एसी के लिए हमेशा एमसीबी (MCB) यानी मिनिएचर सर्किट ब्रेकर स्विच लगवाएं। नॉर्मल या पावर स्विच में एसी का प्लग न लगाएं। एमसीबी के बेस्ट ब्रैंड एंकर, हैवल्स, बैनटेक्स-लिंगर हैं। सीजन शुरू होने से पहले एसी की सर्विस जरूर कराएं। हो सके तो सीजन के बीच में भी एक बार सर्विस कराएं। जब भी सर्विस कराएं, ट्रांसफॉर्मर आदि का प्लग खुलवा कर चेक कराएं कि कहीं कोई तार ढीली तो नहीं। एसी से आग की एक बड़ी वजह तारों के ढीला होने से स्पार्क होना है। एसी या इलेक्ट्रॉनिक सॉकेट के पास पर्दा न रखें क्योंकि स्पार्क होने पर पर्दा आग पकड़ सकता है। एसी को रिमोट से बंद करने के बाद उसकी MCB को भी बंद करना चाहिए। एसी को लगातार 12 घंटे से ज्यादा न चलाएं। खिड़की-दरवाजे खोलकर एसी न चलाएं।

कार को ऐसे बचाएं आग से
- गर्मियों में कार को छांव में खड़ा करें और अगर मजबूरन धूप में खड़ा कर रहे हैं तो कार को ऐसे खड़ा करें कि धूप सीधा कार के अगले हिस्से पर न पड़े। कार के शीशे को हल्का से खोल दें। इससे कार में गर्म हवा नहीं भरती। अगर धूल-मिट्टी की वजह से शीशा हल्का-सा नहीं खोल सकते तो शीशों को किसी कपड़े से ढक देना चाहिए ताकि धूप सीधा कार के अंदर न आ सके।
- कहा जाता है कि जिस कार में सेंट्रल लॉक लगा होता है, आग लगने पर उस कार के दरवाजे नहीं खुलते, लेकिन ऐसा नहीं है। आग लगने पर भी दरवाजे खुल जाते हैं। अगर दरवाजे नहीं खुलें तो अगली सीट के हेड रेस्ट को निकालकर शीशे को तोड़ सकते हैं। कुछ कारों में गियर लॉक लगा होता है। उस गियर लॉक से भी शीशा तोड़ा जा सकता है।
- साथ ही कार में हमेशा छोटी हथौड़ी, हॉकी स्टिक या फिर रॉड रखनी चाहिए ताकि आग लगने पर शीशा तोड़ा जा सके। इसके अलावा, कार में फायर एक्सटिंगविशर जरूर रखें।

कुछ और सावधानियां
- ओवरलोडिंग से बचें। अक्सर हम एक ही इलेक्ट्रॉनिक सॉकेट में टू-पिन या थ्री-पिन वाला मल्टिप्लग लगा देते हैं। इससे लोड बढ़ जाता है और स्पार्किंग होने लगती है।
- हर इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक आइटम को एक दिन में लगातार चलाने की तय सीमा होती है। फिर चाहे वह एसी हो, पंखा हो, टीवी या फिर मिक्सी ही क्यों न हो। हर प्रॉडक्ट की पैकिंग पर यह जानकारी होती है। जरूरत से ज्यादा चलाने पर इलेक्ट्रॉनिक आइटम गर्म हो जाते हैं और आग लगने का कारण बन जाते हैं।
- इनवर्टर में पानी सही रखें। कम पानी होने, इनवर्टर के तार को अच्छी तरह कवर नहीं करने या फिर तार को ढीला छोड़ देने से स्पार्किंग हो सकती है।
- जब भी घर से बाहर जाएं तो सभी स्विच और इनवर्टर जरूर बंद करें।
- हर रात गैस सिलिंडर की नॉब को बंद करके ही सोना चाहिए। साथ ही गैस पाइप को हर 6 महीने में बदलते रहना चाहिए।
- रसोई में चूल्हे पर दूध का पतीला या तेल की कड़ाही चढ़ाकर न छोड़ें। ऐसा कर हम अक्सर दूसरे कामों में बिजी हो जाते हैं और तेल बेहद गर्म होकर आग पकड़ लेता है या फिर दूध उबल कर चूल्हे पर गिर जाता है। इससे चूल्हे की आग बुझ जाती है और गैस लीक होती रहती है, जो आग पकड़ लेती है।
- खराब रबड़ या खराब सीटी वाला प्रेशर कुकर यूज करना भी खतरनाक है। ऐसा होने पर कुकर ब्लास्ट कर सकता है।
- किचन में खाना बनाते समय ढीले-ढाले और सिंथेटिक कपड़े न पहनें। ये आग जल्दी पकड़ते हैं।
- फ्रिज के दरवाजे पर लगी रबड़ को अच्छी तरह साफ करें, वरना दरवाजा सही से बंद नहीं होगा। इससे कम्प्रेशर गर्म होकर आग लगने की वजह बन सकता है।
- गर्म आयरन को किसी कपड़े, पर्दे या इलेक्ट्रॉनिक प्लग के पास न रखें। ये चीजें आग पकड़ सकती हैं।
- बाथरूम के अंदर स्विच न लगवाएं, वरना नहाते समय या कपड़े धोते समय पानी उस पर गिर सकता है, जिससे स्पार्क हो सकता है। अंदर लगाना ही है तो ऊंचाई ज्यादा रखवाएं, जहां तक पानी की छीटें न जा सकें या फिर स्विच बोर्ड पर प्लास्टिक शीट चिपका दें।
- बच्चे के हाथ में माचिस न दें। यह आग लगने की वजह बन सकता है।
- दीया, अगरबत्ती, मोमबत्ती जलती छोड़कर सब लोग घर से बाहर न जाएं।

इमरजेंसी के लिए पहले से रहें तैयार

करके रखें तैयारी
आग शुरू में हमेशा हल्की होती है। उसे उसी समय रोक देना बेहतर है, लेकिन अक्सर उस वक्त हम घबरा जाते हैं और कोई कदम नहीं उठा पाते। यह भी कह सकते हैं कि हम इसलिए कदम उठा नहीं पाते क्योंकि हमने पहले से तैयारी नहीं की होती। मसलन घर में फायर एक्स्टिंगग्विशर रखा है, लेकिन हमें उसे चलाना नहीं आता। ऐसे में जरूरी है कि हम आग से निपटने के लिए पहले से तैयार रहें। एक्सपर्ट मानते हैं कि आग कैसे बुझानी है, एक-दूसरे को कैसे बचाना है, इन सबके लिए सभी को हर दो-तीन महीने में प्रैक्टिस जरूर करनी चाहिए। मेन गेट के अलावा, आग लगने पर और कहां से सुरक्षित निकल सकते हैं, यह भी पहले से सोच कर रखें और इसकी प्रैक्टिस भी करते रहें।

ये उपकरण हैं कारगर
आग कैसे और कहां लगी है, इसके आधार पर फायर एक्स्टिंगग्विशर को 5 कैटिगरी में बांटा गया है। हर फायर एक्स्टिंगग्विशर पर कैटिगरी लिखी होती है। आग लगने की वजह के मुताबिक उन्हें यूज करें:
Class A: सॉलिड यानी कागज, लकड़ी, कपड़ा, प्लास्टिक आदि से लगने वाली आग
Class B: लिक्विड यानी पेट्रोल, पेंट, स्प्रिट या तेल से लगने वाली आग
Class C: एलपीजी यानी रसोई गैस, वेल्डिंग गैस और बिजली के उपकरण से लगने वाली आग
Class D: मेटल यानी मैग्नीशियम, सोडियम या पोटैशियम से लगने वाली आग
Class K: कुकिंग ऑयल से लगने वाली आग

आग के क्लासिफिकेशन के अनुसार ही फायर एक्स्टिंगग्विशर का भी क्लासिफिकेशन किया गया है:
वॉटर एंड फोम: क्लास A की आग के लिए
कार्बन डाईऑक्साइड: क्लास B और C की आग के लिए
ड्राई केमिकल: क्लास A, B और C की आग के लिए
वेट केमिकल: क्लास K की आग के लिए
क्लीन एजेंट: क्लास B और C की आग के लिए
ड्राई पाउडर: क्लास B की आग के लिए
वॉटर मिस्ट: क्लास A और C की आग के लिए

आमतौर पर घर में ड्राई केमिकल वाला फायर एक्स्टिंगग्विशर ही रखा जाता है। इस तरह के एक्स्टिंगग्विशर के सिलिंडर पर ABC लिखा होता है। मार्केट में इसके रेट वजन के हिसाब से हैं:
1 किलो: 740 रुपये
2 किलो: 900 रुपये
4 किलो: 1400 रुपये
6 किलो: 1740 रुपये
टॉप फायर एक्स्टिंगग्विशर ब्रैंड हैं: सीजफायर (Ceasefire), फायरफॉक्स (Firefox), अतासी (Atasi), अग्नि (Agni) आदि। इन कंपनियों के कार के भी फायर एक्स्टिंगग्विशर आते हैं। सिलिंडरों के अलावा मॉड्यूलर एक्स्टिंगग्विशर भी बहुत काम की चीज है। अभी तक यह ऑफिस या इंडस्ट्रियल एरिया में ही लगाया जाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल रेजिडेंशल एरिया में भी होने लगा है। इसे घर में कहीं भी लगा सकते हैं, लेकिन किचन में लगाना सबसे बेहतर है। यह सीलिंग में फिट होता है। इसके अंदर एक छोटा-सा बल्ब लगा होता है, जो 65 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान पहुंचते ही फट जाता है और उसमें से पाउडर निकलने लगता है, जो आग बुझा देता है। छोटा 1800 रुपये में और बड़ा 2400 रुपये में आता है। आपने घर में जो भी फायर एक्स्टिंगग्विशर रखा है, उसे साल में एक बार चेक जरूर करें। उसकी नोब ग्रीन एरिया में होनी चाहिए।
फायर एक्स्टिंगग्विशर चलाना सीखें: nbt.in/eyOxEZ

नए, स्मार्ट फायर उपकरण
स्मोक/फायर कर्टन: इसे एक तय एरिया में लगाया जाता है और लोकल फायर अलार्म पैनल या फिर स्मोक डिटेक्टर से कनेक्ट कर देते हैं। आग लगते ही या धुआं फैलते ही ये कर्टन ऐक्टिव हो जाते हैं। ये आग और धुएं को फैलने से रोकते हैं। जिस जगह ये लगे होते हैं, वहां से आग या धुएं को फैलने के लिए कुछ देर के लिए रोक देते हैं। इससे इमारत में फंसे लोगों को बचाने में आसानी होती है और पर्याप्त समय भी मिल जाता है। अमूमन इस तरह के कर्टन आग या धुएं को ज्यादा-से-ज्यादा दो घंटे तक रोके रखने में सक्षम होते हैं और इतना समय रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने के लिए काफी होता है। इसे एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, बस टर्मिनल, फैक्ट्री, कमर्शल बिल्डिंग, ऑफिस या फिर रेजिडेंशल सोसायटी में लगाया जा सकता है।

स्मोक डिटेक्टर: इसमें एक तरह का सेंसर लगा होता है, जिसे आग से फैलने वाले धुएं की मौजूदगी का पता लगाने के लिए लगाया जाता है। यह इस तरह डिजाइन किया जाता है कि जहां इसे लगाया गया है, उसके आसपास धुआं फैलते ही यह ऐक्टिव हो जाता है और फायर अलार्म सिस्टम को सिग्नल भेजता है। इसके बाद फायर अलार्म सिस्टम के जरिए पूरी बिल्डिंग में लगे हॉर्न या हूटर बजने लगते हैं। यह धुआं होने पर बिल्कुल सटीक तरीके से काम करता है। यह सिर्फ लोगों को अलर्ट करने के काम आता है, न कि आग बुझाने के। सुरक्षा के नजरिये से इसे फैक्ट्री, कमर्शल बिल्डिंग, ऑफिस या फिर घर में लगाना बेहद जरूरी है। स्मोक डिटेक्टर को फायर अलार्म सिस्टम से वायर के जरिए कनेक्ट किया जाता है, लेकिन अब मार्केट में वायरलेस डिटेक्टर भी आ रहे हैं। स्मोक डिटेक्टर दो तरह के होते हैं। एक कंवेंशनल जो 1200 रुपये का आता है और दूसरा अड्रेसेबल जो 3500 रुपये का आता है।

फायर अलार्म सिस्टम: यह भी आग या धुएं की मौजूदगी का पता लगाने में मदद करता है। यह बिल्डिंग के फायर कंट्रोल रूम में लगा होता है। यह सिस्टम ऑटोमेटिक तरीके से काम करता है। आग लगते ही या धुआं फैलते ही यह अपने आप चालू हो जाता है। इससे पता चल जाता है कि बिल्डिंग में आग कहां लगी है। साथ ही यह एक स्पीकर से जुड़ा होता है जो हॉर्न बजाकर पूरी बिल्डिंग में मौजूद लोगों को सूचित करता है। आधुनिक फायर अलार्म सिस्टम में तो रेकॉर्डड मेसेज होता है, जो आग लगने या धुआं फैलने पर लोगों को जगह खाली करने की सूचना देता है। इससे बिल्डिंग को खाली कराने और आग को बुझाने की तैयारी करने में मदद मिलती है।

फायर स्प्रिंकलर सिस्टम: सिर्फ ये स्प्रिंकलर ही होते हैं जो आग लगने पर सबसे पहले आग को बुझाने का काम करते हैं। कमरे का तापमान 67 डिग्री से ज्यादा होते ही इनमें लगे रबड़ पिघल जाते हैं और पानी की बौछार करने लगते हैं। आमतौर पर स्प्रिंकलर के पाइप जिस वॉटर टैंक से जुड़े होते हैं उनमें 10 से 25 गैलन पानी होना जरूरी है। इनमें पाइप मेटल के होते हैं जो आग नहीं पकड़ते। यह आग से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम कर देते हैं और लोगों की जिंदगी भी बचाते हैं। अब तो इनका इस्तेमाल कमर्शल व रेजिडेंशल सोसायटी के साथ-साथ घरों में भी होने लगा है।

गैस फ्लडिंग सिस्टम: इनका इस्तेमाल सिर्फ सर्वर रूम में ही किया जा सकता है। ये फायर एक्स्टिंगग्विशर की तरह सिलेंडर होते हैं जो सर्वर रूम में जरूरत के हिसाब से रखे जाते हैं। ये आग लगते ही ऐक्टिव हो जाते हैं और पाउडर रिलीज़ करते हैं। जहां मॉड्युलर ऑटोमैटिक एक्स्टिंगग्विशर सिर्फ थोड़ी-सी जगह में काम करते हैं वहीं ये सिलिंडर पूरे कमरे को पाउडर से भर देते हैं। आम एक्स्टिंगग्विशर के मुकाबले इसमें भरा जाने वाला पाउडर महंगा होता है। एक सिलिंडर को भरने में करीब एक लाख रुपये तक का खर्चा आता है। इनमें दो सेंसर लगे होते हैं। दूसरे सेंसर के ऐक्टिव होने के बाद ही सिलेंडर से पाउडर निकलता है।

फायर बॉल: अगर आग ज्यादा फैल जाए और वहां तक जाना मुश्किल हो तो वहां फायर बॉल को फेंका जाता है, जिससे आग कुछ कम हो जाती है। इसके बाद फायर फाइटर वहां तक जाकर आग बुझाने का काम कर सकता है।

फायर रेजिस्टेंट पेंट: यह एक तरह की कोटिंग होती है, जिसे फर्नीचर, दरवाजों और खिड़कियों पर किया जाता है। हालांकि यह पेंट किसी भी चीज को फायरप्रूफ तो नहीं बनाता, लेकिन उसमें आग लगने के टाइम को जरूर कम देता है। इससे आग को फैलने में समय लगता है और लोगों को आसानी से बचाया जा सकता है। फायर रेजिस्टेंट पेंट की कीमत करीब 480 रुपये किलो है।

फायर रेजिस्टेंट डोर: इस तरह के दरवाजों में जल्दी आग नहीं लगती। यह कुछ देर के लिए आग को कंट्रोल करके रखते हैं, जिससे बिल्डिंग में फंस लोगों को बाहर निकलने का समय मिल जाता है। फायर रेजिस्टेंट डोर की कीमत 15 से 20 हजार रुपये से शुरू होती है।

फायर इंश्योरेंस भी जरूरी
घर का फायर इंश्योरेंस जरूर कराना चाहिए। जिस किसी ने भी लीगल तरीके से प्रॉपर्टी या घर खरीदा है, वह फायर इंश्योरेंस ले सकता है। यह घर में आग लगने और उससे नुकसान होने पर उसे कवर करने का गारंटी देता है। प्रॉपर्टी की मौजूदा मार्केट वैल्यू के मुताबिक इंश्योरेंस का अमाउंट तय होता है। रेंट पर ली गई रेजिडेंशल प्रॉपर्टी का भी फायर इंश्योरेंस करवा सकते हैं। टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, फर्नीचर, सभी तरह के गैजेट्स यानी घर में इस्तेमाल होने वाला एक-एक सामान इस इंश्योरेंस में कवर होता है। किसी भी तरह की आगजनी, एयरक्राफ्ट क्रैश, प्राकृतिक आपदा (बाढ़, आंधी, भूकंप, लैंडस्लाइड आदि) जैसी स्थिति में घर को होने वाला नुकसान फायर इंश्योरेंस में कवर होता है।
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आग लग जाए तो...
- घबराएं नहीं और जिस चीज में आग लगी है, उसके आसपास रखी सभी चीजों को हटाने की कोशिश करें, ताकि आग को फैलने का मौका न मिले।
- अगर शॉर्ट सर्किट से आग लगती है तो मेन सर्किट को बंद कर दें और फायर एक्सटिंगविशर का प्रयोग करें। अगर यह नहीं है तो आग पर मिट्टी या रेत डालें। पानी न डालें। इलेक्ट्रिकल फायर में पानी का इस्तेमाल इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे करंट लग सकता है।
- आग ज्यादा है तो घर के सभी सदस्यों को इकट्ठे कर सुरक्षित जगह पर जाने की कोशिश करें। अगर बिल्डिंग में रहते हैं तो लिफ्ट की जगह सीढ़ियों के जरिए नीचे उतरें।
- आग लग जाने पर धुआं फैलता है इसलिए मुंह को ढककर निकलें।
- खाना बनाते समय अगर कढ़ाही में आग लग जाए तो उसे किसी बड़े बर्तन से ढक देना चाहिए। इससे आग बुझ जाएगी।
- अगर सिलिंडर में आग लग जाती है तो सबसे पहले उसकी नॉब को बंद करने की कोशिश करें। फिर गीला कपड़ा या बोरी डालकर उसे ठंडा करने की कोशिश करें। साथ ही सिलिंडर को खींचकर खुली जगह पर ले जाएं।
- कपड़ों में आग लग जाए तो भागने या खड़े रहने की जगह लेट जाएं, इससे आग फैलेगी नहीं। साथ ही कंबल से या फिर फायर एक्स्टिंगग्विशर से उसे बुझाने की कोशिश करें।

...गर कोई जल जाए तो उठाएं ये कदम
- कपड़ों या शरीर में आग लग जाए तो खड़े न रहें और न ही भागें। मुंह को ढककर जमीन पर लेट जाएं और रेंगकर चलें। इससे आग बुझ जाएगी। किसी और शख्स में आग लगी हो तो कंबल या मोटा कपड़ा डालकर आग बुझाएं। आग बुझाने के बाद उस शख्स पर पानी डालें।
- खिड़कियां खोल दें ताकि धुएं से दम न घुटे। धुएं में दम घुटने से अगर कोई बेहोश हो गया है तो सबसे पहले उसे खुली हवा में ले जाएं ताकि ऑक्सिजन मिल सके। आमतौर पर घर में ऑक्सिजन नहीं होती इसलिए मरीज को तुरंत हॉस्पिटल ले जाएं। मुंह से हवा देने की कोशिश न करें क्योंकि इससे मरीज को कोई फायदा नहीं होगा।
- जख्म पर टूथपेस्ट या किसी तरह का तेल लगाने की गलती न करें। इससे जख्म की स्थिति गंभीर हो सकती है और डॉक्टर को जख्म साफ करने में भी दिक्कत होगी।
- जख्म मामूली है तो उस पर सिल्वर सल्फाडाइजीन (Silver Sulfadiazine) क्रीम लगाएं। यह मार्केट में एलोरेक्स (Alorex), बर्निल (Burnil), बर्नएड (Burn Aid), हील (Heal) आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। अगर जख्म ज्यादा हो तो हॉस्पिटल ले जाने तक उस पर नॉर्मल पानी डालते रहें ताकि जख्म गहरा न हो जाए।

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रेल टिकट बुकिंग गाइड

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ट्रेन सफर का बेहतर और किफायती जरिया है। हाल में ट्रेन रिजर्वेशन नियमों में कई तरह के बदलाव हुए हैं। रेलवे टिकट बुकिंग और कैंसिलेशन से जुड़ीं तमाम तरह की जानकारियां दे रहे हैं गुलशन राय खत्री

रेल रिजर्वेशन के तीन तरीके हैं:
1. वेबसाइट
2. मोबाइल ऐप
3. रेलवे रिजर्वेशन काउंटर

1. ऑनलाइन टिकट रिजर्वेशन irctc.co.in पर जाकर करा सकते हैं। ऑनलाइन टिकट बुक करने के लिए सबसे पहले आपको अपना लॉगइन क्रिएट करना होगा। इसके लिए आप www.irctc.co.in पर क्लिक करें। पेज खुलते ही लेफ्ट साइट में User ID के बगल में Sign up का ऑप्शन मिलेगा। Sign up पर क्लिक करते ही एक पेज खुलेगा, जिसमें मांगी गई जानकारी भरने के बाद आईआरसीटीसी की इस साइट पर आप रजिस्टर्ड हो जाएंगे। एक बार रजिस्टर्ड होने और लॉगइन आईडी और पासवर्ड मिल जाने के बाद आप कभी भी टिकट कटा सकते हैं। इसी लॉगइन और पासवर्ड की मदद से मोबाइल ऐप से भी टिकट कटाना मुमकिन है। इस लॉगइन से आप डेबिट, क्रेडिट कार्ड या इंटरनेट बैंकिंग की मदद से टिकट बुक कर सकते हैं। यहां से बुकिंग कराने पर रेलवे सर्विस चार्ज लेता है। सेकंड क्लास सीटिंग और स्लीपर क्लास के टिकट पर यह 10 रुपए और अपर क्लास के लिए 20 रुपए है। ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा 24 घंटे है, बस रात 11:30 से 12:30 के बीच यह सेवा उपलब्ध नहीं रहती।

2. मोबाइल से रिजर्वेशन के लिए दो चीजें जरूरी हैं:
1. मोबाइल में इंटरनेट कनेक्शन
2. IRCTC Rail Connect ऐप: एंड्रॉयड, विंडोज़

कितने दिन पहले हो सकता है रिजर्वेशन?

लंबी दूरी की ज्यादातर ट्रेनों के लिए 120 दिन पहले से बुकिंग शुरू हो जाती है। यात्रा के दिन को 120 दिनों में शामिल नहीं किया जाता। 120 दिन की गणना करने के लिए आईआरसीटीसी की टिकट बुकिंग वेबसाइट पर दिए कैलकुलेटर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। www.irctcticketdate.blogspot.com पर भी जाकर दिनों की गिनती कर सकते हैं। यह भी याद रखें कि 120 दिन की गणना अपने स्टेशन से शुरू होने वाली यात्रा की बजाय उस दिन को आधार मानकर शुरू करें, जिस दिन ट्रेन अपने पहले स्टेशन से रवाना होती है। सुबह 8 बजे टिकट बुकिंग शुरू होती है। दिन में चलने वाली और कम दूरी की कुछ ट्रेनों की बुकिंग अवधि 30 दिन और 15 दिन भी है। विदेशी नागरिक यात्रा से 360 दिन पहले टिकट बुक करा सकते हैं।

ट्रेन चलने से कितनी देर पहले तक करा सकते हैं बुकिंग?

ट्रेन चलने से पहले दो बार चार्ट तैयार होते हैं। पहली बार ट्रेन चलने से चार घंटे पहले चार्ट तैयार होता है। ऐसे में चार घंटे पहले तक टिकट रिजर्वेशन कराया जा सकता है। पहला चार्ट तैयार होने के बाद अगर कोई टिकट कैंसल होने से सीट खाली होती है तो उस स्थिति में भी ट्रेन चलने से आधा घंटे पहले तक रिजर्वेशन मुमकिन है। यह ऑनलाइन भी हो सकता है और काउंटर से भी।

एक महीने में कितने टिकट करा सकते हैं बुक?

ऐसा नहीं है कि कोई जितने चाहे टिकट बुक करा सकता हो। रेलवे के नियम के मुताबिक, एक लॉगइन आईडी पर एक महीने में छह टिकट बुक हो सकते हैं, लेकिन अगर पहचान के तौर पर आधार दिखाते हैं तो 12 टिकट बुक कराए जा सकते हैं।

टिकट बुकिंग के लिए भुगतान कैसे करें?

ऑनलाइन टिकट बुकिंग के लिए क्रेडिट, डेबिट कार्ड और नेट बैंकिंग के साथ-साथ ई-वॉलेट सुविधा का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

ई-वॉलेट क्या है?

ई-वॉलेट एक तरह से आईआरसीटीसी में आपका ऑनलाइन अकाउंट है। इसमें आप रकम जमा रख सकते हैं और जब भी ऑनलाइन टिकट बुक कराना हो तो इसी अकाउंट से टिकट की रकम का भुगतान हो सकता है। इसका फायदा यह है कि इससे टिकट बुक कराने में समय की बचत होती है। ई-वॉलेट बनाने के लिए आपको irctc.co.in पर लॉगइन करना होगा। यहां होमपेज पर आपको More का ऑप्शन दिखेगा। इसे क्लिक करेंगे तो ड्रॉप डाउन में IRCTC eWallet का ऑप्शन दिखेगा।

ट्रेन रिजर्वेशन पर क्या-क्या चार्ज लगते हैं?

ट्रेन रिजर्वेशन के लिए बेस किराए के साथ रिजर्वेशन चार्ज भी देना होता है। एसी क्लास के लिए 40 रुपए और नॉन-एसी के लिए यह चार्ज 20 रुपए है। इसके अलावा जीएसटी और जिन ट्रेनों में कैटरिंग है, उनमें कैटरिंग चार्ज भी लिया जाता है। इसके अलावा सुपरफास्ट ट्रेनों में सुपरफास्ट चार्ज लगता है। शताब्दी, राजधानी और दुरंतो में डाइनैमिक चार्ज भी लगाया जाता है, यानी आपको टिकट के लिए तय रकम से ज्यादा पैसा देना पड़ सकता है।

क्या है RAC?

आरएसी (RAC) का मतलब है रिजर्वेशन अगेंस्ट कैंसिलेशन। अगर आपको कन्फर्म बर्थ की जगह आरएसी का टिकट मिला है तो इसका मतलब है कि आप ट्रेन में यात्रा तो कर सकते हैं, लेकिन रेलवे आपको आधी बर्थ देगा। अगर सफर के दौरान कोई सीट खाली होती है तो उस स्थिति में टीटीई आपको पूरी बर्थ भी दे सकता है।

क्या कन्फर्म रेल टिकट का ट्रांसफर मुमकिन है?

- अगर यात्री अपना टिकट परिवार के सदस्य यानी माता, पिता, भाई, बहन, बेटा, पति या पत्नी के नाम पर ट्रांसफर कराना चाहे तो कर सकता है। इसके लिए यात्री को 24 घंटे पहले रेलवे के चीफ रिजर्वेशन सुपरवाइजर को लिखित अनुरोध करना होगा।

- डयूटी पर तैनात सरकारी कर्मचारी ड्यूटी पर तैनात किसी दूसरे सरकारी कर्मचारी को अपना टिकट ट्रांसफर कर सकते हैं। इसके लिए भी 24 घंटे पहले अनुरोध करना होगा।

- मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं के स्टूडेंट भी दूसरे स्टूडेंट को टिकट ट्रांसफर कर सकते हैं, लेकिन सफर शुरू होने से 48 घंटे पहले उन्हें अनुरोध देना होगा।

- बरात के लिए बुकिंग कराने पर भी टिकट ट्रांसफर किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए भी बुकिंग कराने वाले को 48 घंटे पहले अनुरोध करना होगा।

नोट: इसमें शर्त यह भी है कि जो टिकट ट्रांसफर किया जा रहा है, वह रियायती किराए पर न लिया गया हो, यानी ऐसा न हो कि बुजुर्ग यात्री के नाम पर 50 फीसदी छूट के साथ लिया गया टिकट परिवार के किसी युवा सदस्य के नाम ट्रांसफर करने का अनुरोध किया जाए। अगर कोई ऐसा चाहता है तो उसे बाकी का पैसा चुकाना होगा।

क्या रिजर्वेशन के बाद टिकट अपग्रेड हो सकता है?

रेलवे यह सुविधा देता है। पिछले साल लगभग 23 हजार यात्रियों के टिकट अपग्रेड किए गए थे। इसके लिए टिकट बुकिंग कराने से पहले यात्री को फॉर्म पर अपग्रेडेशन का एक ऑप्शन क्लिक करना होता है। अगर यात्री ने थर्ड एसी का टिकट लिया है और उस ट्रेन में सेकंड एसी की कोई बर्थ खाली रह गई है तो ऐसे में बिना अडिशनल पैसा लिए यात्री को सेकंड एसी की बर्थ दी जा सकती है।

क्या ऑनलाइन या ऐप से टिकट लेने के बाद उसका प्रिंटआउट लेना जरूरी है?

नहीं, रेलवे (IRCTC) की तरफ से आया एसएमएस दिखाना ही काफी है।

जानें, तत्काल का फंडा

तत्काल ऐसे यात्रियों के लिए है, जिन्हें इमरजेंसी में यात्रा का फैसला लेना पड़ता है। आमतौर पर ट्रेनों की हर कैटिगरी की लगभग 30 फीसदी टिकटें तत्काल के लिए होता है। तत्काल के तहत सिर्फ चार लोगों का रिजर्वेशन एक पीएनआर नंबर पर हो सकता है। अगर आप रेलवे काउंटर से तत्काल टिकट ले रहे हैं तो आपको आठ वैलिड आइडेंटिटी प्रूफ में से कोई एक दिखाना होगा। ये हैं - आधार, पैन कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आई कार्ड, फोटो वाला क्रेडिट कार्ड, सरकारी निकायों का फोटो आई-कार्ड, मान्यता प्राप्त स्कूल-कॉलेजों का आई-कार्ड। रिजर्वेशन स्लिप के साथ आपको एक सेल्फ अटेस्टेड आई-कार्ड की फोटोकॉपी भी विंडो पर देनी होगी। तत्काल टिकट खो जाने पर आमतौर पर ड्यूप्लिकेट टिकट नहीं दिया जाता। कुछ खास स्थितियों में तत्काल चार्ज समेत टोटल फेयर पे करने पर ड्यूप्लिकेट टिकट मिल सकता है।

कब करा सकते हैं तत्काल टिकट बुक?

यात्रा शुरू होने से एक दिन पहले तत्काल का टिकट लिया जा सकता है। अगर आपकी ट्रेन 10 मई की है तो उस ट्रेन के लिए तत्काल की सीटें 9 मई को बुक करा सकते हैं। एसी क्लास के टिकट सुबह 10 से 11 बजे और नॉन-एसी क्लास के टिकट 11 से 12 बजे के बीच टिकट बुक कराए जा सकते हैं।

एक आदमी कितने टिकट?

एक लॉगइन पर एक दिन में ज्यादा-से-ज्यादा 4 लोगों का टिकट बुक किया जा सकता है।

वेटिंग का टिकट

तत्काल में आरएसी सीट नहीं दी जाती, लेकिन वेटिंग का टिकट मिलता है।

तत्काल के टिकट के लिए अतिरिक्त चार्ज

तत्काल के टिकट पर अतिरिक्त चार्ज लिया जाता है। इसमें हर क्लास के लिए अलग चार्ज है:

रिजर्व्ड सेकंड सिटिंग: 10 से 15 रुपए
स्लीपर: 100 से 200 रुपए
एसी चेयरकार: 125 से 225 रुपए
एसी 3 टीयर: 300 से 400 रुपए
एसी 2 टीयर : 400 से 500 रुपए
एग्जिक्युटिव: 400 से 500 रुपए

क्या तत्काल टिकट सभी ट्रेनों के लिए उपलब्ध हैं?

नहीं, सिर्फ उन्हीं चुनिंदा ट्रेनों में तत्काल की सुविधा है, जिनकी काफी डिमांड है।

क्या तत्काल का वेटिंग पहले कन्फर्म होता है?

तत्काल में टिकट पहले कन्फर्म होने की संभावना होती है। आमतौर पर टिकट कन्फर्म करते वक्त एक अनुपात दो का रेश्यो होता है। अगर वेटिंग का आम टिकट एक कन्फर्म होता है, तो तत्काल के दो।

तत्काल का कन्फर्म टिकट रद्द होने पर कितना रिफंड मिलता है?

तत्काल का अगर टिकट कन्फर्म है तो उसमें कोई रिफंड नहीं मिलता। अगर वेटिंग का टिकट है तो सामान्य रिफंड के सामान्य नियम लागू होते हैं, फिर चाहे खिड़की से लिया गया हो या वेबसाइट से या फिर ऐप से।

क्या है 'विकल्प' सुविधा?

विकल्प का अर्थ यह है कि किसी ट्रेन में सीट उपलब्ध न रहने पर रेलवे आपको उसी रूट की दूसरी ट्रेन में सीट का विकल्प प्रदान कर रहा है। इस स्कीम के तहत बुकिंग के वक्त जिन यात्रियों को कन्फर्म बर्थ उपलब्ध नहीं होती, वे विकल्प स्कीम का फायदा ले सकते हैं। वेटिंग के टिकट के समय ही यह ऑप्शन अगर चुन लिया जाता है तो उस स्थिति में यात्री अपने रूट पर पांच ट्रेनों का विकल्प ले सकता है। अगर इन पांच ट्रेनों में से किसी एक में सीट उपलब्ध होती है तो यात्री का टिकट रेलवे उस ट्रेन में ट्रांसफर करके यात्री को एसएमएस के जरिए सूचित करेगा। विकल्प की सुविधा 2015 में ट्रायल के तौर पर चुनिंदा रूटों पर शुरू की गई थी, लेकिन अब इसका दायरा बढ़ा दिया गया है। रेलवे को इसका फायदा यह होता है कि एक ही रूट की कम पॉप्युलर ट्रेनों में अगर बर्थ खाली होती हैं तो दूसरी ट्रेन की वेटिंग के यात्रियों को इन ट्रेनों में बर्थ मुहैया करा दी जाती है। इससे यात्री और रेलवे दोनों को ही फायदा मिलता है।

टिकट रिफंड के नियम भी जरूर जानें

अगर किसी वजह से यात्रा रद्द करते हैं तो जरूरी है कि जितना जल्द हो सके, अपना टिकट कैंसल करा लें, वरना जितनी देर करेंगे, आपकी उतनी ही जेब कटेगी।

कैसे कराएं टिकट कैंसल?

अगर ऑनलाइन रेल रिजर्वेशन कराया गया है और चार्ट बनने के बाद भी टिकट वेटिंग में है तो टिकट खुद ही कैंसल हो जाएगा और रिफंड दो-तीन दिनों में उसी अकाउंट में पहुंच जाएगा, जिससे टिकट का भुगतान किया गया था। अगर टिकट पैसेंजर रिजर्वेशन सिस्टम के काउंटर से लिया गया है तो इसके लिए खुद यात्री या यात्री की ओर से किसी और को काउंटर पर जाकर टिकट कैंसल कराना होगा।

48 घंटे पहले कन्फर्म टिकट कैंसल कराने पर कैंसिलेशन चार्ज:

एसी फर्स्ट और एग्जिक्युटिव क्लास: 240 रुपए

एसी सेकंड और फर्स्ट क्लास: 200 रुपए

थर्ड एसी, इकॉनमी और चेयरकार: 180 रुपए

स्लीपर: 120 रुपए

सेकंड क्लास सीटिंग: 60 रुपए

ट्रेन रवाना होने से 48 घंटे से लेकर 12 घंटे पहले तक: किराए की 25 फीसदी रकम कटेगी

ट्रेन रवाना होने से 12 घंटे से लेकर 4 घंटे पहले तक: किराए की 50 फीसदी रकम कटेगी

चार्ट बनने के बाद और ट्रेन रवाना होने के बीच: कोई रिफंड नहीं

वेटिंग और RAC टिकट कैंसल में रिफंड का फंडा

अगर वेटिंग या आरएसी का काउंटर से खरीदा हुआ टिकट है तो भी ट्रेन रवाना होने से आधा घंटा पहले टिकट रद्द कराना होगा, वरना उसके बाद कोई रिफंड नहीं होगा। अगर ऑनलाइन टिकट लिया था तो पैसा खुद ब खुद अकाउंट में वापस हो जाएगा।

रात की ट्रेन का टिकट का रिफंड कैसे लें?

रात 9 बजे से सुबह 6 बजे के बीच रेलवे टिकट काउंटर बंद रहता है। ऐसी स्थिति में अगर रात की ट्रेन में टिकट कन्फर्म नहीं होता तो उस स्थिति में सुबह काउंटर खुलने के दो घंटे के भीतर तक रिफंड लिया जा सकता है। इसके अलावा दूसरा ऑप्शन यह भी है कि यात्री चाहे तो 139 पर टिकट कैंसल कराने का अनुरोध कर सकता है। उस स्थिति में उसे एक तय अवधि के भीतर किसी भी काउंटर पर जाकर टिकट सरेंडर करना होगा। ऑनलाइन टिकट लिया है तो फिर कोई दिक्कत ही नहीं क्योंकि आप ऑनलाइन ही कैंसल करा सकते हैं।

अगर वेटिंग वाले कुछ यात्री सफर न करें तो?

अगर आपने चार लोगों का ऑनलाइन रेल टिकट लिया है और उनमें से दो का टिकट कन्फर्म हो गया है और बाकी दो का वेटिंग लिस्ट में है और वेटिंग लिस्ट वाले सफर नहीं कर रहे तो ट्रेन में ही चेकिंग स्टाफ से सर्टिफिकेट ले सकते हैं कि वेटिंग लिस्ट वाले यात्री ट्रेन में नहीं हैं। यात्रा पूरी होने के बाद उसी सर्टिफिकेट के आधार पर ऑनलाइन टीडीआर भरकर दो यात्रियों का किराया क्लेम कर सकते हैं।

क्या तत्काल टिकटों की वापसी पर रिफंड मिलता है?

नहीं, तत्काल टिकट को कैंसल कराने पर रिफंड नहीं मिलता। लेकिन कुछ स्थितियों में फुल रिफंड की व्यवस्था भी है। ये हैं :

1. अगर ट्रेन जहां से खुलती है, अगर वहां से तीन घंटे से ज्यादा लेट हो तो। इसके लिए यात्री को टीडीआर यानी टिकट डिपॉजिट करके उसकी रसीद लेनी होगी। क्लेम की गई रकम 16 से 90 दिन के भीतर अकांउट में आती है। रकम वापस करते वक्त रेलवे सिर्फ क्लेरिकल चार्जेज काटता है।

2. अगर ट्रेन रूट बदलकर चल रही हो और पैसेंजर उसमें यात्रा करना नहीं चाहता।

3. अगर ट्रेन रूट बदलकर चल रही हो और बोर्डिंग और पैसेंजर के डेस्टिनेशन स्टेशन उस रूट पर नहीं आ रहे हों।

4. अगर रेलवे पैसेंजर को उसके रिजर्वेशन वाली क्लास में यात्रा करा पाने में असमर्थ हो।

5. अगर रिजर्व ग्रेड से लोअर कैटिगरी में सीटें रेलवे उपलब्ध करा रहा हो, लेकिन पैसेंजर उस क्लास में यात्रा करना नहीं चाहता। अगर पैसेंजर लोअर क्लास में सफर कर भी लेता है तो रेलवे को उस पैसेंजर को किराए और तत्काल चार्ज के अंतर के बराबर रकम लौटानी होगी।

RAC टिकट

अगर किसी यात्री के पास ऑनलाइन आरएसी का टिकट है और वह आरएसी पर यात्रा नहीं करना चाहता तो उसे ट्रेन रवाना होने से आधा घंटे पहले ऑनलाइन टिकट कैंसल कराना होगा, नहीं तो रिफंड नहीं मिलेगा।

चंद अहम सवाल और जवाब

क्या राजधानी, शताब्दी जैसी ट्रेनों में ट्रेन की कैटरिंग का खाना लेना अनिवार्य है?

नहीं। अब यह अनिवार्य नहीं है। टिकट बुक कराते वक्त अगर यात्री चाहे तो ऑप्शन के तौर पर बता सकता है कि वह ट्रेन में रेलवे की कैटरिंग का खाना नहीं लेना चाहता। ऐसी स्थिति में यात्री से टिकट के साथ कैटरिंग चार्ज नहीं लिया जाएगा।

क्या यात्री किसी भी रेस्तरां या ऐप के जरिए ट्रेन में अपने लिए खाना मंगा सकता है?

आईआरसीटीसी का सुझाव है कि यात्री उन सप्लायर से ही खाना मंगवाएं, जिन्हें आईआरसीटीसी ने ऑथराइज किया हुआ है। ऐसे में यात्री आईआरसीटीसी की वेबसाइट से अलग-अलग शहरों में ऑथराइज्ड ई-कैटरिंग सप्लायर के नाम देखकर अपनी मनचाही जगह पर उनमें से किसी से भी अपने लिए खाना मंगा सकते हैं।

क्या इमरजेंसी में कोई यात्री वेटिंग वाले टिकट के साथ ट्रेन में सफर कर सकता है?

पूरी तरह से रिजर्व्ड कोच में अगर कोई सीट खाली नहीं है तो उस स्थिति में यात्री के लिए वेटिंग लिस्ट के साथ यात्रा करना मुमकिन नहीं है। लेकिन जिन ट्रेनों में जनरल कोच हैं, उनमें जरूर यात्री वेटिंग टिकट के साथ सफर कर सकता है। लेकिन ऐसी स्थिति में वेटिंग टिकट रेलवे काउंटर से खरीदा हुआ होना चाहिए। ऑनलाइन खरीदा गया टिकट कन्फर्म न होने पर अपने आप कैंसल हो जाता है, इसलिए उस पर यात्रा नहीं की जा सकती। ट्रेन में बिना टिकट पकड़े जाने पर 250 रुपए फाइन और जहां पकड़े गए हों, ट्रेन के डिपार्चर पॉइंट से वहां तक का किराया देना होगा। अगर आप वहां से आगे की यात्रा करना चाहते हैं तो फाइन और आपकी मंजिल का किराया लेकर आपका टिकट बना दिया जाएगा। इसके बावजूद आपको रिजर्वेशन वाली बोगी में यात्रा करने का हक नहीं मिलता।

अगर रेल टिकट खो जाए तो?


अगर आपने ई टिकट लिया है और ट्रेन में जाने के बाद आपको पता लगा कि टिकट खो गया है और आपके पास उसे लैपटॉप या आईपैड या मोबाइल पर दिखाने का ऑप्शन भी नहीं है तो आप टीटीई को 50 रुपए पेनल्टी देकर टिकट हासिल कर सकते हैं।

अगर यात्री के पास प्लैटफॉर्म टिकट है तो वह उससे ट्रेन में यात्रा कर सकता है?


अगर इमरजेंसी में यात्री ट्रेन में सवार होता है तो उसे फौरन पहले टीटीई से संपर्क करके टिकट का अनुरोध करना चाहिए। उस स्थिति में यात्री से 250 रुपए पेनल्टी और यात्रा का किराया वसूला जाएगा। प्लैटफॉर्म टिकट का फायदा इतना ही होगा कि यात्री से किराया वसूलते वक्त डिपार्चर स्टेशन उसे ही माना जाएगा जहां से प्लैटफॉर्म टिकट खरीदा गया होगा और किराया भी उसी कैटिगरी का वसूला जाएगा, जिसमें यात्री सफर कर रहा होगा।

कैप्चा कैंसिलेशन का तोड़

ऑनलाइन टिकट बुक कराते वक्त कैप्चा बेहद अहम किरदार निभाता है। अक्सर देखने में आता है कि सबकुछ सही रहता है, लेकिन सिर्फ गलत कैप्चा की वजह से बुकिंग में देरी हो जाती है। आपके साथ कई बार ऐसा हो चुका हो तो इस तकनीक को अपनाएं। आईआरसीटीसी के पैसेंजर डिटेल पेज पर ज्यादा समय न बिताएं। दरअसल इस पेज पर जब आप पहली बार जाते हैं तो आसान कैप्चा कोड मिलता है, लेकिन ज्यादा समय बिताने पर कोड कठिन होता जाता है। कठिन कैप्चा कंफर्म टिकट की संभावना कम कर देता है।

कंफर्म टिकट पाने का ट्रिक

देखा गया है कि व्यस्त ट्रेनों में टिकट आसानी से नहीं मिलता। बुकिंग ओपन होने के बाद ऑनलाइन टिकट कटाते वक्त आपके पास बमुश्किल 40 सेकंड से एक मिनट का टाइम होता है। ऐसे में अगर आप कुछ ट्रिक्स आजमाएं तो कंफर्म टिकट मिल सकता है। जानते हैं, ऐसी ही ट्रिक्स:

1. सुनिश्चित करें कि आपके पास तेज स्पीड वाला इंटरनेट हो।
2. इंटरनेट बैंकिंग का इस्तेमाल करने पर टिकट जल्दी कटता है। इससे भी ज्यादा जल्दी टिकट आईआरसीटीसी वॉलेट इस्तेमाल करने से कटता है। तो बेहतर है कि वॉलेट में पहले से पर्याप्त रकम जमा कर दें।
3. IRCTC की साइट पर जाकर लॉगइन करें और My Profile पर क्लिक करें। यहां आपको Master List दिखेगा। यहां पैसेंजर की पूरी जानकारी भरकर पहले से सेव कर लें।
4 यहीं आपको Favourite Journey List का ऑप्शन दिखेगा। उस पर क्लिक करें और ट्रेन की जानकारी भरें।
5. अब फिर से आईआरसीटीसी की साइट पर लॉगइन तब करें, जब बुकिंग शुरू होने में 5 मिनट हो। लॉगइन करने के बाद आप वहां पहुंच जाएंगे, जहां आपसे पूछा जाएगा कि कहां का और किस डेट का चाहिए। यहीं आपको Favourite Journey List दिखेगी। उस पर क्लिक करने पर फौरन आपका काम निपट जाएगा। इसके बाद आपको डेट चुननी होगी और कैप्चा भरना होगा।
6. इसके बाद ट्रेन की लिस्ट आपके सामने होगी। जैसे ही आप Book Now बटन पर क्लिक करेंगे, आपके सामने पैसेंजर से जुड़ी जानकारी वाला फॉर्म खुल जाएगा। यहीं ऊपर में आपको Master List का ऑप्शन दिखेगा। उस पर क्लिक कर आप पैसेंजर की जानकारी सेकंडों में भर लेंगे। इसके फौरन बाद आपसे पेमेंट मोड पूछा जाएगा। यहां आप वॉलेट का ऑप्शन चुनें। ये दोनों चीजें आपका मिनटों का काम सेकंडों में निपटा देंगी और कंफर्म टिकट आपके पास होगा।

रेलवे के शॉर्टकट शब्दों का मतलब

रेलवे टिकट बुक करते वक्त हमें कुछ शॉर्टकट शब्द दिखाई देते हैं, लेकिन हम उनको जानें बिना ही क्लिक कर देते हैं। बेहतर है कि इन्हें जान लें ताकि टिकट आसानी से कन्फर्म हो सके। ये शब्द हैं:

GNWL: जनरल वेटिंग लिस्ट, यानी आपने जिस ट्रेन का टिकट लिया है, वह ट्रेन वहीं स्टेशन या आसपास के स्टेशन से बनकर चलती है। इसमें टिकट कंफर्म होने के चांस ज्यादा होते हैं।

RLWL: रिमोट लोकेशन वेटिंग लिस्ट, यानी दो बड़े स्टेशनों के बीच, जहां पर ज्यादा ट्रेनें नहीं आतीं। ऐसे टिकट कंफर्म होने के चांस ज्यादा होते हैं।

PQWL: पूल्ड कोटा वेटिंग लिस्ट, यानी छोटे स्टेशनों पर कोटे में दी गई सीट के आधार पर टिकट दिया जाता है। इसमें टिकट कंफर्म होने के चांस कम होते हैं।

PQWL/REGRET: इसका मतलब है कि ट्रेन में सीट नहीं है और आपको टिकट नहीं मिलेगा।

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ऐसे पहचानें, बच्चा बदमाश नहीं बीमार है!

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नई दिल्ली
बच्चा इधर-उधर दौड़ता रहता है, किसी की नहीं सुनता, पढ़ाई में मन नहीं लगता, इस तरह की शिकायतें अक्सर पैरंट्स करते रहते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि इस तरह का बर्ताव बच्चे की 'बदमाशी' भर हो। हो सकता है कि आपका बच्चा किसी मानसिक समस्या से जूझ रहा हो। बच्चों से जुड़ी कुछ समस्याओं और उनके समाधान के बारे में बता रहे हैं डॉक्टर समीर पारिख:

लवलीन (14) पिछले दो-तीन हफ्ते से चिड़चिड़ी हो गई थी। ममी कुछ कहती तो वह उलटा जवाब दे देती। इसी तरह, पापा या भाई से भी अच्छी तरह बात नहीं करती थी। यहां तक कि दोस्तों से भी बातचीत कम कर दी है। ज्यादातर अपने कमरे में रहने लगी। यहां तक कि कई बार बेचैन-सी भी लगी। पैरंट्स को लगा कि कुछ गड़बड़ है। उन्होंने मेडिकल हेल्प देने से पहले खुद बेटी के मन को टटोलने की सोची।

लवलीन की ममी ने कहीं पढ़ रखा था कि इस तरह की स्थिति में बच्चे के कैसे बात की जाए? उन्होंने लवलीन से यह नहीं कहा कि तुम परेशान क्यों हो या फिर मुंह क्यों फुला रखा है? बल्कि उन्होंने पहले उससे उसके स्कूल के बारे में पूछा, फिर दोस्तों के बारे में। फिर कुछ इधर-उधर की बातें कीं। इस बीच उन्होंने लवलीन को किसी भी बात पर रोका या टोका नहीं। बातें भी सीधे आंख में आंख डालकर कीं। एक-दो दिन की कोशिशों के बाद लवलीन ने बताया कि वह नई क्लास में गई थी। बस में पहले ही दिन उसकी सीनियर के साथ बहस हो गई। इसके बाद सीनियर ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर उसे परेशान करना शुरू कर दिया। वह चाहकर भी यह बात किसी को नहीं बता पाई। ममी ने उसे प्यार से समझाया कि उसे परेशान होने की जरूरत नहीं है। वह अगले दिन टीचर से मिलीं और उन्हें सारी बात बताई। टीचर ने सीनियर लड़की को बुलाकर डांटा। इसके बाद उसने या उसके दोस्तों ने लवलीन को कभी परेशान नहीं किया। लवलीन भी नॉर्मल हो गई।

दरअसल, लवलीन ऐंग्जाइटी का शिकार हो गई थी। ममी की समझ से उसकी दिक्कत जल्द दूर हो गई। हालांकि कई बार यह समस्या बढ़ जाती है तो फिर डॉक्टर की मदद लेने की भी जरूरत हो सकती है।

जब टेंशन या प्रेशर में दिखे बच्चा

ये लक्षण डर और ऐंग्जाइटी के हो सकते हैं। इसे मोटे तौर पर चिंता, बेचैनी या उतावलापन कह सकते हैं। यह एक बायॉलॉजिकल मेनिज़म है जिसके जरिए हमारा शरीर तनाव वाली स्थिति का सामना करने के लिए तैयार होता है। इसमें बच्चा किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति को अपने लिए खतरनाक मान लेता है। ऐसी स्थिति में उसका दिमाग नर्वस सिस्टम को इस बारे में संदेश भेजता है। इस संदेश से शरीर में 'फाइट या फ्लाइट रेस्पॉन्स' पैदा होता है यानी या तो वह उस स्थिति से लड़ेगा या भागेगा। यह डर वास्तविक भी हो सकता है और काल्पनिक भी। इससे शरीर, मन और व्यवहार के स्तर पर ऊपर बताए गए लक्षण दिखाई देते हैं। इसका असर उसकी पढ़ाई या रोजमर्रा के दूसरे कामों पर पड़ने लगता है। आजकल प्रेशर के माहौल में 6 साल की उम्र के बच्चों में भी ऐंग्जाइटी के लक्षण देखे जा रहे हैं। हालांकि ऊपर दिए लक्षण किसी और बीमारी के भी हो सकते हैं।

कैसे पहचानें ऐंग्जाइटी

- बच्चे का बेचैन या घबराहट रहना
- गुमसुम रहना
- खेलने न जाना
- दिल की धड़कन बढ़ जाना
- सांस लेने में दिक्कत होना
- मुंह सूखना
- हकलाने लगना
- कांपना
- उलटी होना या आने को होना
- बार-बार शू-शू, पॉटी करना
- थकान, सिरदर्द, पेटदर्द आदि रहना
- टिककर पढ़ाई न कर पाना
- इम्तिहान में नंबर कम लाना
- स्कूल जाने से कतराना
- बिना किसी बात के चिड़चिड़ा रहना
- छोटे-मोटे फैसले भी न ले पाना
- फ्रेंड्स से बचना
- अकेले रहना
- बहुत ज्यादा या बहुत कम सोना
- बहुत ज्यादा या बहुत कम खाना

पैरंट्स क्या करें

- बच्चे से बातचीत करके यह जानने कि कोशिश करें कि उसके मन में क्या चल रहा है।
- बातचीत के लिए बच्चे के साथ ऐसे बैठें कि दोनों की आंखों का लेवल एक हो। इससे वह आपके बड़े होने के डर से बाहर निकलेगा।
- बच्चा अगर आपके साथ शेयर नहीं करना चाहता तो उस पर दबाव न डालें। उसे धीरे-धीरे खोलने की कोशिश करें।
- बच्चे के साथ खेलें। उसे दोस्त बनाएं। उसके साथ जोक्स-कहानियां शेयर करें। इस तरह से आप उसका भरोसा जीत पाएंगे।
- उससे पूछें कि वह क्या महसूस कर रहा है? क्या तुम्हें किसी का कोई डर है? क्या किसी ने तुम्हें कोई धमकी दी है? क्या तुम्हें किसी चीज की टेंशन है? किसी शख्स या बात से तुम नाखुश हो? क्या तुम्हें गुस्सा आ रहा है? क्या तुम उदास हो? क्या तुम टेंशन में हो?
- फिर वह जो कहना चाहता है, वह सुनें बिना उसके बारे में कोई राय बनाए। बच्चा अगर कोई सवाल बार-बार पूछे या कुछ न बोले तो पेशंस बनाए रखें। वह धीरे-धीरे खुलेगा।
- अगर किसी मसले पर आप बच्चे से इत्तफाक नहीं रखते तो भी उसे उलझे नहीं, न ही उसे डांटें। उसे यह न कहें कि तुम गलत हो और तुम्हें यह करना चाहिए था।
- जब वह बोल रहा हो, उसे बोलने दें, बीच में टोकें नहीं।
- जब वह अपनी कमी या गलती बताए तो कह सकते हैं कि यह कमी तो मुझमें भी है या बचपन में मुझसे भी यह गलती हुई थी। इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ जाएगा।
- उसकी फिक्र की वजह जानें। पूछें कि समस्या क्या घर में है, स्कूल में है या कहीं रास्ते में है? उसे बताएं कि हर समस्या का हल है। अगर उसका डर सच्चा है तो उसे हल करने की कोशिश करें और अगर काल्पनिक है तो उससे लगातार बातचीत कर, समझाकर यह डर उसके मन से निकाल दें।

जब वहमी या सनकी लगे बच्चा

अमन (12) को सफाई बहुत पसंद है। वह अपनी हर चीज को बहुत साफ रखता है। किसी चीज को छूने के बाद वह हर बार अपने हाथ धोता है। अमन के मन में रहता है कि उसके हाथ साफ नहीं हैं। वह कई बार साबुन लगाता है। उसे लगता है कि हाथ सही से साफ नहीं हो पा रहे। यही नहीं, हाथ धोने के बाद हैंडल या किसी और चीज को छूने से भी बचता है कि कहीं हाथ गंदे न हो जाएं। ममी- पापा ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ। फिर उन लोगों ने सायकॉलजिस्ट की मदद ली।

किसी काम या आदत की धुन इस कदर सवार हो जाना कि वह सनक बन जाए तो उसे ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसॉर्डर (ओसीडी) कहते हैं। इसमें मरीज को किसी बात की जरूरत-से-ज्यादा चिंता सताने लगती है। एक ही जैसे अनचाहे ख्याल उसे बार-बार आते हैं और एक ही काम को बार-बार दोहराना चाहता है। ऐसे लोगों को सनक वाले ख्याल आते हैं और अपने बिहेवियर पर कोई कंट्रोल नहीं होता। जैसे कि यह कन्फर्म करने के लिए कि गैस बंद है या नहीं, ऐसे लोग 15-20 बार स्टोव की नॉब चेक करते हैं।

OCD के दो हिस्से होते हैं:

ऑब्सेशन: जब किसी खास तरह का विचार बच्चे के दिमाग में बार-बार और लगातार आता है तो उसे ऑब्सेशन कहते हैं। ऐसे कुछ ख्याल हो सकते हैं:
- अपने या अपनी चीजों को कीटाणुओं या गंदगी के संपर्क में आने की चिंता
- किसी और को नुकसान पहुंचाने का डर
- हर चीज को हर वक्त करीने और सलीके से लगाने की कोशिश
- किसी चीज को भाग्यशाली या दुर्भाग्यशाली मानने का अंधविश्वास
- धर्म या नैतिक विचारों पर पागलपन की हद तक ध्यान देना
- खुद और दूसरों पर बहुत ज्यादा शक करना

कंपल्शन: यह ऐसा बर्ताव है, जिसे आप बार-बार दोहराने की जरूरत महसूस करते हैं। आमतौर पर कंपल्शन ऑब्सेशन से छुटकारा पाने की कोशिश के तहत किया जाता है। मसलन, अगर आप गंदगी से डरते हैं तो शायद आप बार-बार सफार्इ करेंगे। बार-बार हाथ धोएंगे यह सोचकर कि बैक्टीरिया खत्म हो जाएंगे लेकिन फिर भी तसल्ली नहीं होती। उसी चीज को बार-बार करते हैं कि शायद अबकी बार करने से उस विचार से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन ऐसा होता नहीं है। वह सिलसिला चलता रहा है।

इस बीमारी का असर बच्चे की जिंदगी की तमाम पहलुओं पर पड़ता है। उसकी रोजमर्रा की जिंदगी पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही उसकी दोस्ती पर और उसके आत्मविश्वास पर भी बेहद बुरा असर होता है। ऐसी स्थिति में माता पिता की भूमिका बेहद अहम हो जाती है। उन्हें अपने बच्चे में आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे को अपने दूसरे बच्चों से अलग बर्ताव न करें। चूंकि बच्चा अपना ज्यादातर वक्त अपने दोस्तों और स्कूल में बिताता है, इसलिए स्कूल टीचर को उसकी इस बीमारी के बारे में बता देना मुनासिब रहता है।

कैसे पहचानें OCD

- बार-बार हाथ धोना या नहाना या अपना सामान साफ करना
- दरवाजों, नल आदि को बार-बार चेक करना कि वे बंद हैं या नहीं
- चीजों को बेवजह बार-बार जांचना, जैसे कि ताले, गैस स्विच आदि
- फालतू की पुरानी चीजों जैसे कि मैगजीन, अखबार, बोतलें आदि संभाल कर रखना
- बार-बार गिनना, कुछ खास शब्दों को बार-बार दोहराना
- बार-बार लिखना, मिटाना, बार-बार पढ़ना आदि
- फर्नीचर जैसी चीजों को बार-बार सिलसिलेवार लगाना
- जरूरत से ज्यादा प्रार्थना करना या ऐसे संस्कारों में बिजी रहना, जिनसे धर्म से डर की भावना झलकती हो

पैरंट्स क्या करें

- बच्चे के साथ अच्छा तालमेल बनाएं। अगर सीधे समस्या पर बात करेंगे तो वह आपको मन की बात नहीं बताएगा। ऐसे में पहले उसके करीब जाएं। उसके मन की बात समझें। बिना उसके मन की बात समझे, उसकी समस्या का समाधान नहीं कर सकते।
- बच्चे को ऐसा माहौल दें कि वह आपसे अपनी बात शेयर करने और मदद मांगने से हिचकिचाए नहीं। इसके लिए पैरंट्स को अपनी ओर से पूरी कोशिश करने की जरूरत होती है। हो सकता है कि आप शुरुआत में असफल हों, लेकिन जल्दी ही आपको सफलता मिल जाएगी।
- फिर उससे बात करें। बच्चे शुरू में इस बात को नहीं मानते कि उनके साथ कोई दिक्कत है। आपको बच्चे के साथ हमदर्दी तो दिखानी ही होगी, साथ ही यह भी जताना होगा कि आप उसकी समस्या समझते हैं।
- बच्चे को डांटे नहीं। अगर किन्हीं बातों पर आप उससे इत्तफाक नहीं रखते तो उससे यह न कहें कि वह गलत है और आप सही।
- यह तय कर लें कि परिवार वालों को भी बच्चे की आदतों का हिस्सा नहीं बनना है। अगर बच्चा किसी काम को बार-बार करे तो आप धीरे-से उसे किसी दूसरे काम की ओर मोड़ दें। ऐसे में उसका ध्यान उस ओर से हट जाएगा और धीरे-धीरे परेशानी भी कम होती चली जाएगी।
- बच्चे को दूसरे नॉर्मल बच्चों की तरह ही ट्रीट करें। उसे यह जताने की कतई जरूरत नहीं है कि उसे कोई दिक्कत है।
- सबसे बड़ी बात यह कि उसे दूसरे बच्चों के साथ घुलने-मिलने और खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे उसका मन समस्या से हटा रहेगा। दूसरे बच्चों के साथ खेलने और ऐक्टिविटीज में हिस्सा लेने से बच्चे के मन में आत्मविश्वास बढ़ता है। और ऐसे मामलों में आत्मविश्वास का बढ़ना बेहद काम की चीज है।
- पैरंट्स को यह समझना होगा कि बच्चा अपनी संकल्प शक्ति से इस समस्या से छुटकारा नहीं पा सकता। इसकी वजह दिमाग के केमिकल्स में बदलाव है जिसके लिए कई बार दवाओं की जरूरत पड़ती है।
- उन्हें यह भी जानना चाहिए कि यह समस्या किसी की पर्सनैलिटी का हिस्सा नहीं होती। अक्सर हम उन्हें वहमी करार देकर ऐसी समस्या को नजरअंदाज कर देते हैं। यह दिमाग से जुड़ी समस्या है, जिसका इलाज किया जाना चाहिए।
- जब भी बच्चे में ऐसी समस्या देखें, फौरन इलाज कराएं। इलाज जितना जल्दी होगा, फायदा उतना ज्यादा होगा। ध्यान रखें कि इलाज लंबा हो सकता है।

जब शैतानी से नाक में दम कर दे बच्चा

माही (8) अक्सर होमवर्क करते वक्त इधर-उधर की बातें करने लगती है। एक जगह टिककर बैठ भी नहीं पाती। हमेशा इधर-उधर दौड़ती रहती है। किसी की नहीं सुनती। घरवालों ने सोचा कि पढ़ने में मन नहीं लगता इसलिए उन्होंने पास की आंटी के पास पढ़ने भेजना शुरू कर दिया। वहां से वही शिकायत मिली कि वह दूसरे बच्चों को परेशान करती रहती है। न खुद पढ़ती है, न दूसरों को पढ़ने देती है। पैरंट्स ने पहले तो खूब डांटा। पर समस्या बनी रही तो माही के चाचा की सलाह पर वे उसे सायकॉलजिस्ट के पास ले गए। उनकी सलाह के कुछ ही वक्त में माही की पर्सनैलिटी में काफी ठहराव आया। दरअसल, माही को अटेंशन डेफिशिट/हाइपरएक्टिविटी डिसॉर्डर (ADHD) की समस्या थी। इससे बच्चे की पढ़ाई के अलावा सोशल लाइफ पर भी बुरा असर होता है।

कैसे पहचानें

- बच्चे का आसानी से ध्यान भटक जाना
- बारी का इंतजार न करना, लाइन तोड़ना आदि
- काम शुरू करना लेकिन पूरा नहीं करना
- लगातार किसी एक जगह पर बैठ नहीं पाना
- बिना सोचे-समझे काम करना
- एक को छोड़कर दूसरे काम में लग जाना
- चीजें भूल जाना, अपने सामान का ध्यान नहीं रखना
- लगातार बातें करना और इधर-उधर दौड़ते रहना
- भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाना

क्या करें

- बच्चे से बातचीत करें। आराम से उसकी बात सुनें।
- उसके काम को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटने में मदद करें, मसलन 1 घंटा लगातार पढ़ने के बजाय 20-20 मिनट के तीन हिस्से में पढ़ने को कहें और बीच में 10-10 मिनट का ब्रेक दें। इससे वह बोरियत का शिकार होने से बच जाएगा।
- अगर पैरंट्स गुस्सा कंट्रोल नहीं कर पा रहे तो उन्हें पहले बच्चे से थोड़ी देर के लिए दूर हो जाना चाहिए। फिर खुद को शांत करके बच्चे से बात करनी चाहिए।
- बच्चे की खासियतों पर फोकस करें। बार-बार उसकी समस्या पर बात न करें।
- उसे किसी हॉबी के लिए सपोर्ट करें ताकि उसका मन पॉजिटिव काम में लगा रहे।
- यह खराब बिहेवियर की समस्या नहीं है। न ही यह सिर्फ लड़कों में होती है। सही इलाज से यह समस्या दूर हो सकती है।

परवरिश के टॉप टिप्स

1. हेलिकॉप्टर पैरंट्स न बनें

कई पैरंट्स अपने बच्चे को जरूरत से ज्यादा हिफाजत देने लगते हैं और उसकी जिंदगी में दखल भी जरूरत से ज्यादा देने लगते हैं। लेकिन ऐसा होने पर बच्चे का आत्मविश्वास खत्म करने लगता है। कई बार इससे बच्चा चिड़चिड़ा या विद्रोही हो जाता है।

2. फैसलों में शामिल करें

बच्चे को अपने फैसले लेने के लिए प्रोत्साहित करें। घर के फैसलों में भी उसे शामिल करें। इससे बच्चों में जिम्मेदारी और खुद को स्वीकारे जाने का अहसास पैदा होता है। वे साथ लिए फैसलों को लागू करने और पूरा करने में आगे रहते हैं।

3. खुद उदाहरण बनें

बच्चे अक्सर अपने आसपास जो देखते या सुनते हैं, उन बातों को दिमाग में बिठा लेते हैं। आपको एक मॉडल बिहेवियर करके दिखाना होता है ताकि आप उसके लिए एक उदाहरण बन जाएं। मसलन जिद्दी या लड़ाकू बनने के बजाय दृढ निश्चयी बनना बेहतर है और वह यह आपसे सीखेगा।

4. अपने सपने न थोपें

बच्चे को अपने सपनों को पूरा करने दें। अपने सपने और चाहतें उस पर न थोपें। आपकी और आपके बच्चे की पसंद, काबिलियत और चाहत में बहुत फर्क हो सकता है। ऐसे में उसे उसकी पसंद का काम करने दें। हर छोटी-बड़ी चीज हाथ पकड़ कर न कराएं।

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मच्छरों की धुन और मत सुन

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आज रॉनल्ड रॉस का जन्मदिन है। मलेरिया के क्षेत्र में उनके अद्भुत शोधकार्यों के लिए 1902 में उन्हें चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था। आज बात करते हैं सिर्फ मच्छरों की, उनके जरिए फैलने वाली बीमारियों की, इनसे बचाव की और इनको अपने से दूर रखने की।

एक छोटा-सा मच्छर हमें कभी भी, कहीं भी काटकर गंभीर रूप से बीमार कर सकता है। तभी तो मच्छर ने काटा नहीं कि दिमाग में बुरी बीमारियों के शिकार होने के ख्याल आने लगते हैं। एक्सपर्ट्स की मदद से इन सबसे जुड़ी जानकारी दे रही हैं अनु जैन रोहतगी।

जानें अपने दुश्मन को
अलग-अलग इलाकों में मच्छरों की अलग-अलग प्रजातियां हैं। ये मच्छर कई तरह के वायरस और पैरासाइट के जरिए कई तरह की बीमारियां तेजी से फैलाते हैं। मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी इन्सेफेलाइटिस, फाइलेरिया और जीका इनमें से कुछ हैं। मच्छर बहुत तेजी से बढ़ते और काटते हैं। मच्छर खतरनाक इसलिए भी है क्योंकि इनकी आबादी बड़ी तेजी से बढ़ती है और एक बार में ये एक-दो को नहीं, बल्कि दर्जनों लोगों को काट कर इंफेक्शन फैला सकते हैं। मादा मच्छर की उम्र नर के मुकाबले ज्यादा होती है। सिर्फ मादा मच्छर ही इंसानों या दूसरे जीवों का खून चूसती हैं। नर मच्छर सिर्फ पेड़-पौधों का रस चूसते हैं। मादा मच्छर दो से तीन बार अलग-अलग जगहों पर अंडे देती हैं। दिन में मच्छर ज्यादातर अंधेरी जगहों, दीवारों के कोने, परदों के पीछे, सोफे, बेड, टेबल आदि के नीचे छुपे रहते हैं। इसलिए रोजाना इन जगहों की अच्छी तरह से सफाई करें। सप्ताह में एक बार इन जगहों पर मच्छर मारने की दवा का छिड़काव करें।


मोटे तौर पर मच्छरों की तीन प्रजातियां हैं:


एडीज एजिप्टी

यह डेंगू, चिकनगुनिया, जीका फैलाती है। मादा ऐडीज एक बार में 50 से 100 अंडे देती है और एक दिन में 70-80 लोगों को काट सकती है। यह दिन में ऐक्टिव रहती है और खून की खुराक एक से पूरी न मिलने पर अलग-अलग लोगों को काटती है।

1- यह मादा मच्छर ज्यादातर घरों के साफ पानी में ही पनपती हैं। एक बार में 500 मीटर से ज्यादा का सफर नहीं कर सकतीं और ज्यादातर जमीन पर ही रहती हैं। इसलिए ये मच्छर ज्यादातर पांव में ही काटती हैं।

2- इनकी ब्रीडिंग मिट्टी के बर्तनों की बजाय प्लास्टिक, रबड़ के सामानों में होती है।

3- ये मादा मच्छर ठंडे वातावरण (एसी-कूलर) में पनपने लगी हैं।

चिकनगुनिया
यह भी डेंगू की तरह फैलने वाली बीमारी है। इसे भी मादा ऐडीज मच्छर ही फैलाते हैं। इसमें बुखार के साथ-साथ जोड़ों में ज्यादा दर्द होता है।

अनॉफ़िलीज़
यह मलेरिया फैलाती है। एक बार में 100 से 150 अंडे देती है। यह रात में ऐक्टिव होती है और 5-10 सोए हुए लोगों को काटने से ही इनकी खुराक पूरी हो जाती है। अनॉफ़िलीज़ मच्छर गंदे और साफ दोनों पानी में पनप सकती है। मादा अनॉफ़िलीज़ एक से दो महीने तक जिंदा रहती है। वह एक से डेढ़ किलोमीटर तक उड़ सकती है। अगर हवा का रुख इनके उड़ने की दिशा में है तो ये कुछ किलीमीटर ज्यादा उड़ लेती है।

क्यूलेक्स
यह फाइलेरिया फैलाती है। मादा 150-200 अंडे देती है और यह भी शाम के समय में लोगों को काटती है। यदि कोई संक्रमित मादा मच्छर अंडे देती है तो उससे पैदा होने वाले सारे मच्छर पहले से ही इन्फेक्शन लिए होंगे और किसी भी हेल्दी आदमी को काटेंगे तो उसे बीमार बना देंगे।


मच्छरों के काटने से कैसे बचें?
ऐसा तरीका ढूंढना होगा जिससे बाहर के मच्छर घर में नहीं आ सकें। इसके लिए जरूरी है घर के दरवाजे और खिड़कियों पर जालियां लगाएं। अगर बहुत जरूरी नहीं हो तो खोलें नहीं। एक सप्ताह के अंतराल पर घर और आसपास की सफाई जरूर करें। ये शाम और रात में रोशनी की ओर आकर्षित होते हैं। इसलिए शाम को जरूरत पड़ने पर ही कमरों में लाइट जला कर रखें।

1- इसके अलावा घर में मस्कीटो रिपेलेंट जला कर रखें। ज्यादातर लोग इसे रात को जलाते हैं। इसे दिन में भी जलाना चाहिए क्योंकि मच्छर दिन में भी काटते हैं।

2- रात को सोते समय मच्छरदानी लगाकर सोएं। यदि यह इन्सेक्टिसाइड से ट्रीट की हुई हो तो और अच्छा होगा। इसे आप ई-कॉमर्स साइटों पर तलाशकर खरीद सकते हैं।

ये खाएं, मच्छरों को दूर भगाएं

1- लहसुन, प्याज का सेवन करें।
2- टमाटर खाएं।
3- सेब से बना विनेगर इस्तेमाल करें।

कुदरती तरीके से भगाएं मच्छर
अगर हम केमिकल रिपलेंट इस्तेमाल नहीं कर सकते या उन्हें खरीद नहीं सकते तो कुछ नेचरल रिपेलेंट यूज कर सकते हैं। केमिकल रिपेलेंट की तरह ये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि महानगरों और बड़े-बड़े शहरों में वैसे ही हवा बहुत प्रदूषित है। ऐसे में नीम, कपूर या किसी दूसरी चीज का धुआं इसे और बढ़ाएगा इसलिए कोशिश करें कि धुआं करने वाले रिपेलेंट चाहे केमिकल हों या नेचरल, उसका इस्तेमाल कम से कम करें। दरअसल, घर में धुआं अस्थमा के मरीजों के लिए ठीक नहीं होता।

1- मच्छर भगाने के लिए नीम की पत्तियों, कपूर, तेजपत्ता, लौंग को घर में जलाएं। इससे मच्छर भाग जाते हैं।
2- तारपीन का तेल भी मच्छर भगाने में मदद करता है।

3- ऑलआउट की खाली रीफिल में नीम का तेल और कपूर डालें और रिफिल को मशीन में लगाकर स्विच ऑन कर दें। मच्छर नहीं आएंगे। एक लीटर नीम के तेल में 100 ग्राम असली कपूर मिलाएं और घोल बना लें। इससे 25 बार रीफिल भर सकते हैं।

4- मशीन नहीं है तो कपूर और नीम के तेल का दीपक जलाएं।

5- एक नीबू को बीच से आधा काट लें और उसमें खूब सारे लौंग घुसा दें। इसे कमरे में रखें।

6- लेवेंडर ऑयल की 15-20 बूंदें, 3-4 चम्मच वनीला एसेंस और चौथाई कप नीबू रस को मिलाकर एक बॉटल में रखें। पहले अच्छी तरह मिलाएं और बॉडी पर लगाएं।

7- इसके अलावा लहसुन और प्याज के रस को शरीर में लगाने से भी मच्छर पास नहीं आते।

8- कई पौधों की खुशबू नैचरल तरीके से मच्छर भगाने का काम करती हैं। मैरीगोल्ड, सिट्रानेल या लेमनग्रास, लैवेंडर, लेमन बाम, तुलसी और नीम। ये पौधे घर और इसके आसपास लगाएं तो मच्छर दूर रहेंगे।


मच्छरों के मन को भाते हैं ये


1- कुछ लोगों को मच्छर कम काटते हैं, कुछ को ज्यादा और किसी-किसी को बिल्कुल नहीं। रिसर्च में पाया गया है कि मच्छर बी ब्लड ग्रुप वाले को सामान्य काटते हैं, ए ग्रुप वालों को ज्यादा और ओ ब्लड ग्रुप वालों को मच्छर सबसे ज्यादा काटते हैं। एबी वालों को सबसे कम काटते हैं। गर्भवती महिलाओं के प्रति मच्छर ज्यादा आकर्षित होते हैं। लाल, काले और नीले रंग के कपड़े पहने लोगों को भी मच्छर ज्यादा काटते हैं। ये गर्मियों में ज्यादा काटते हैं। मादा मच्छरों को प्रजनन के लिए गर्म खून की जरूरत पड़ती है, इसीलिए वे हमें काटती हैं।

2- मच्छर पनपने के लिए नमी वाली जगहों को ढूंढते हैं। ऐसे में उन्हें पसीना अपनी ओर खींचता है। इसलिए कोशिश करें कि अपने पसीने को जल्दी से सुखाएं।

3- पोटैशियम और नमक मच्छर को आकर्षित करते हैं, इसलिए खाने में इसका सेवन कम करें।

4- शराब पीने से शरीर से खास किस्म का केमिकल निकलता है, जो मच्छरों को पसंद होता है।

5- जिनके शरीर का तापमान ज्यादा रहता है, मच्छर दूर से ही उस शरीर को पहचान लेते हैं। ऐसे लोगों को भी सावधान रहना चाहिए।

रिपेलेंट लगाते समय रखें ध्यान

1- स्प्रे या क्रीम लगाएं तो ध्यान रखें कि ये आंखों, मुंह के आसपास ना जाए या किसी चोट पर न लगे।

2- जहां-जहां आपकी स्किन कपड़ों से बाहर है, सिर्फ वहीं इसको लगाएं।

3- सभी प्रकार के रिपेलेंट को बच्चों की पहुंच से दूर रखें।

4- जितना लगाने को कहा जाता है उतना ही इसे लगाएं या स्प्रे करें।

5- ध्यान रखें कि घर में यदि कोई अस्थमा का मरीज है तो मच्छर भगाने के लिए कोई धुआं देने वाली चीज ना जलाएं, चाहे वह मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती हो या नीम की पत्तियां।

6- कई लोगों को रिपेलेंट की गंध या धुएं से एलर्जी होती है, उनका भी ख्याल करें।

किस्म-किस्म के रिपेलेंट और क्या देखें रिपेलेंट में?
बाजार में अलग-अलग तरह के रिपेलेंट अलग-अलग दामों में मौजूद हैं। गुडनाइट, ऑलनाइट, मार्टिन जैसे रिपेलेंट मशीन के साथ 90-100 रुपये के बीच उपलब्ध हैं। पैच, रिस्ट बैंड 10 और 24 के सेट में 50 से 200 रुपये तक में मिल रहे हैं। ओडोमास और इसी तरह की अन्य क्रीम 40 रुपये से लेकर 100 रुपये में मिल रही हैं। अलग-अलग तरह के स्प्रे की कीमत 140 से 200 रुपये तक है। मच्छर मारने के अच्छे इलेक्ट्रिक बैंड, मशीन की कीमत कुछ ज्यादा है। ये 300 से 2500 रुपये तक में मिल रहे हैं। हर्बल स्प्रे, क्रीम या जलाने वाले रिपेलेंट के लिए आपको इनसे दुगनी या तिगुनी कीमत देनी पड़ सकती है। इन्हें खरीदने से पहले ब्रांड और उसमें मौजूद तमाम तत्वों के बारे में पढ़ें। सस्ते चाइनीज सामान से बचें। ये न तो हेल्थ के लिए अच्छे हैं और न ही पर्यावरण के लिए।

रिपेलेंट चाहे जलाने वाला हो, शरीर में लगाने वाला हो या हाथ में बांधने वाला, कोई भी रिपेलेंट खरीदने से पहले आपको उसमें इस्तेमाल होने वाले अलग-अलग केमिकल पदार्थों की मात्रा जरूर देखनी चाहिए। इसी से उसकी क्षमता और असर का पता चलता है।

रिपेलेंट में डाइथीलटोलूअमाइड (DEET), पाइकाराइडिन (Picaridin), लेमन यूकलिप्टस का तेल, कई तरह के केमिकल जैसे आईआर 3535 और 2-अनडीकेनन का प्रयोग होता है। इसके अलावा रिपेलेंट में कई पौधों के तेल भी मिक्स होते हैं जैसे कि सीडर, सिट्रानेल, लेमनग्रास और रोजमैरी।

DEET (डीट)
अब तक का सबसे असरदार रिपेलेंट माना जाता है इसे। यह एक केमिकल बेस रिपेलेंट है। डीट मच्छरों को दो से बारह घंटे तक दूर रखता है। यह इस पर निर्भर करता है कि रिपेलेंट में इसका कितना इस्तेमाल किया गया है। हालांकि इससे बने रिपेलेंट को छोटे बच्चों को न लगाने की सलाह दी जाती है। ये रिपेलेंट रिस्टवॉच, लोशन, स्प्रे में उपलब्ध हैं। इसका इस्तेमाल करने से पहले इस पर लिखी गाइडलाइंस को जरूर पढ़ें।

पाइकाराइडिन
यह एक नया रिपेलेंट है और असरदार भी माना जाता है। यह मच्छरों को अपने शिकार को पहचानने से भ्रमित करता है। इसकी गंध ज्यादा तेज नहीं होती। 20% क्षमता के साथ इससे बने रिपेलेंट मच्छरों को 8 से 14 घंटे तक दूर रखते हैं।

लेमन यूकलिप्टस ऑइल
यह नेचरल रिपेलेंट है और छोटे बच्चों के लिए ठीक रहता है। इसके अलावा नेचरल प्लांट ऑयल (सीडर, सिट्रानेल, लेमनग्रास और रोजमैरी) से बने रिपेलेंट भी बाजारों में उपलब्ध हैं। हालांकि ये रिपेलेंट एनवॉयरमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी से, जो रिपेलेंट की क्षमता और पर्यावरण पर उसके असर को तय करती है, मान्यता प्राप्त नहीं हैं। फिर भी विशेषज्ञ इन्हें असरदार मानते हैं और काफी लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।

रिपेलेंट में कितना हो केमिकल?

सबसे असरदार रिपेलेंट में डीट की मात्रा 20 से 30 फीसदी और पाइकाराइडिन 20 फीसदी या 30 फीसदी लेमन यूकलिप्टस का तेल होना चाहिए। इसलिए किसी भी प्रकार का रिपेलेंट लें तो ये चीजें जरूर चेक करें। इसके अलावा हर्बल रिपेलेंट में भी हर्बल तेल की मात्रा जरूर देखें।

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इन छुट्टियों में कहां जाएं? उत्तराखंड और हिमाचल

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बच्चों की लंबी छुट्टियां हैं तो गर्मियों से परेशान लोगों के लिए यह हिल स्टेशन की ओर रुख करने का समय है। लेकिन अगर आपने अडवांस में प्लानिंग नहीं की थी तो अब होटेल तलाशना और ट्रेनों में कंफर्म सीट पाना मुश्किल है। तो क्यों ने ऐसे जगह की प्लानिंग की जाए, जो खूबसूरत और ठंडी तो हो ही, जहां जाना और होटेल तलाशना भी आसान हो। ऐसी ही जगहों के बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं संजय शेफर्ड:

गर्मियों के मौसम में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के हिल स्टेशनों पर लोगों की भीड़ बढ़ जाती है। ये दो राज्य ऐसे हैं जिनका ख्याल आते ही हमारे जेहन में पहाड़ की ऊंची चोटियां, झीलें, घने जंगल, खूबसूरत घाटियां और प्रसिद्ध मंदिरों की तस्वीरें घूमने लगती हैं। इन राज्यों में कई बड़े टूरिस्ट प्लेस हैं। नैनीताल, अल्मोड़ा, हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, जिम कॉर्बेट नैशनल पार्क, राजाजी नैशनल पार्क, शिमला, मनाली, कांगड़ा वैली जैसी जगहों पर गर्मी में लोगों को जाना बहुत ही अच्छा लगता है। इसलिए इन जगहों पर काफी भीड़ होती है। इस लिहाज से यह काफी महंगा, भीड़भरा साबित होता है। अगर आपने पहले से कोई टूर पैकेज नहीं लिया है तो पीक सीजन में यहां होटेल मिलना मुश्किल हो जाता है।

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में तमाम ऐसी भी जगह हैं जो बेहद खूबसूरत हैं, लेकिन अभी वहां पर्यटकों की भीड़ ज्यादा नहीं पहुंचती। ये आपके मन को खूब भा सकती हैं। लोगों में इन जगहों के बारे में आमतौर पर जानकारी का अभाव है। अगर आप कम पैसे में फैमिली ट्रिप की सोच रहे हैं तो इन जगहों की सैर पर जा सकते हैं। उत्तराखंड और हिमाचल के ऐसे ही कई पर्यटक स्थलों की जानकारी हम यहां दे रहे हैं:


चकराता: प्रकृति प्रेमियों की सैरगाह

यह छोटा और सुंदर पहाड़ी नगर है, जहां आप प्रकृति की खूबसूरती का जमकर लुत्फ उठा सकते हैं। चकराता को शांतिपसंद लोगों के लिए उनके 'सपनों का नगर' कहा जाता है।

क्या है खास: कैम्पिंग, राफ्टिंग, ट्रेकिंग, सनसेट पॉइंट, वॉटरफॉल, रैपलिंग, रॉक क्लाइम्बिंग, हॉर्स राइडिंग आदि के अच्छे विकल्प मौजूद हैं।

क्या देखें: टाइगर फॉल, लाखमंडल, मोइगड झरना, कानासर, रामताल गार्डन, देव वन।

कब जाएं: मार्च से जून और अक्टूबर से दिसंबर यहां जाने के लिए उपयुक्त है। सर्दियों में यहां बहुत ठंड पड़ती है।

कैसे जाएं: नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून और एयरपोर्ट जौलीग्रांट है। चकराता जाने के लिए यहां से बस या टैक्सी ली जा सकती हैं। दिल्ली से यह तकरीबन 320 किलोमीटर की दूर है और पहुंचने में 7 घंटे लगते हैं।

कहां ठहरें: ठहरने के लिए अच्छे होटलों की यहां कोई कमी नहीं है। कुछ टूरिस्ट होम भी आपको मिल जाएंगे।


टिहरी:
जलसमाधि ले चुका एक शहर

चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा यह जगह बेहद सुंदर और आकर्षक है। प्राकृतिक खूबसूरती के अलावा यह जगह धार्मिक स्थलों के लिए भी दुनिया भर में प्रसिद्ध है। गर्मी की छुट्टियां बिताने के लिए यह अच्छी जगह है।

क्या है खास: जेट स्कीइंग, वॉटर जॉर्बिंग, राफ्टिंग, बोटिंग, ट्रेकिंग के लिए यह फेवरिट जगह है।

क्या देखें: टिहरी डैम, सेम मुखेम मंदिर, चंद्रबदनी मंदिर, चंबा, बूढ़ा केदार मंदिर, कैम्पटी फॉल, देवप्रयाग आदि।

कब जाएं: मार्च से जून और अक्टूबर से दिसंबर का समय यहां जाना सही रहता है।

कैसे जाएं: सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट है, नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। नई टिहरी कई अहम जगहों जैसे देहरादून, मसूरी, हरिद्वार, पौड़ी, ऋषिकेश और उत्तरकाशी आदि से सीधा जुड़ा हुआ है।

दूरी: दिल्ली से 350 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 9 घंटे लगते हैं।

कहां ठहरें: ठहरने के लिए अच्छे होटलों की यहां कोई कमी नहीं है।


लैंसडाउन:
हसीन वादियों से घिरा स्वर्ग

यह उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों में से एक है। दूसरे हिल स्टेशनों के मुकाबले यहां पर प्रकृति को उसके अनछुए रूप में देखा जा सकता है। यहां की प्राकृतिक छटा सम्मोहित करने वाली है। मौसम पूरे साल सुहावना बना रहता है। हर तरफ फैली हरियाली आपको एक अलग दुनिया का अहसास कराती है।

क्या है खास: कैंपिंग, बोट राइड, स्नो व्यूपॉइंट, सनसेट पॉइंट, नेचर वॉक, जंगल सफारी के लिए अच्छी जगह है।

क्या देखें: गढ़वाल राइफल्स वॉर मेमोरियल, रेजिमेंट म्यूजियम, गढवाली मैस, कन्वाश्रम, तारकेश्वर महादेव मंदिर, भुल्ला झील, सेंट मैरी चर्च घूमने लायक जगहें हैं।

कब जाएं: मार्च से लेकर नवंबर तक यहां का मौसम सुहावना रहता है।

कैसे जाएं:
सड़क, रेल और हवाई मार्ग से पहुंच सकते हैं। जौलीग्रांट हवाई अड्डा सबसे नजदीक है। कोटद्वार रेलवे स्टेशन लैंसडाउन का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।

दूरी: दिल्ली से 300 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में लगभग 9 घंटा लगते हैं।

कहां ठहरें: लैंसडाउन में सीमित संख्या में होटल हैं, चूंकि यहां कम लोग घूमने पहुंचते हैं इसलिए अमूमन उपलब्धता रहती है। सैलानी कोटद्वार में भी ठहर जाते हैं।




उत्तरकाशी:
देवाधिदेव महादेव का निवास

धार्मिक पर्यटन के लिहाज से उत्तरकाशी काफी अहम है। यहीं से भारत की जीवनदायिनी गंगा और यमुना नदियां निकलती हैं। यह पवित्र स्थल फैमिली ट्रिप के लिए बेहतरीन है, खासकर जब बड़े-बुजुर्ग साथ में हों।

क्या है खास: ट्रेकिंग, फिशिंग, कैंपिंग, नेचर वॉक, माउंट बाइकिंग जैसी गतिविधियों के लिए परफेक्ट।

क्या देखें: विश्वनाथ मंदिर, शक्ति मंदिर, मनेरी, गंगनानी, दोदीताल, दायरा बुग्याल, सात ताल, केदार ताल, नचिकेता ताल, गोमुख आदि।

टूरिस्ट सीजन: मार्च से अप्रैल और जुलाई से अक्टूबर का समय यहां जाने के लिए सबसे अच्छा है।

कैसे जाएं: सबसे नजदीकी हवाई अड्डा और नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है। दिल्ली के कश्मीरी गेट से, देहरादून से, ऋषिकेश से उत्तरकाशी के लिए सीधी बस सेवा है।

दूरी: दिल्ली से 414 किलोमीटर दूर है और यहां पहुंचने में 11 घंटे लगते हैं।

कहां ठहरें: ठहरने के लिए आपको कई रिजॉर्ट और होटल मिल जाएंगे। यहां पर गढ़वाल मंडल विकास निगम का पर्यटक आवास गृह भी है।


श्रीनगर (उत्तराखंड):
सुरम्य, शांत और आध्यात्मिक टूरिजम के लिए खास

उत्तराखंड का श्रीनगर परंपरा और आधुनिकता के मिश्रण की एक खूबसूरत मिसाल है। यह शहर चारों ओर घाटियों से घिरा हुआ है। इसमें अलकनंदा चार चांद लगा देती है। यहां पूरे साल सैलानी घूमने के लिए आते रहते हैं।

क्या है खास: ट्रेकिंग, जंगल सफारी, विलेज टूरिजम आदि।

क्या देखें: कमलेश्वर/सिद्धेश्वर मंदिर, शंकर मठ, केशोराय मठ, जैन मंदिर, श्री गुरुद्वारा हेमकुंट साहिब, मलेथा, गोला बाज़ार, कीर्तिनगर, विष्णु मोहिनी मंदिर आदि जगहों को देख सकते हैं।

टूरिस्ट सीजन: वैसे तो लोग सालभर यहां जाते हैं, लेकिन मार्च से अक्टूबर तक यहां जाने का सबसे अच्छा समय है।

कैसे जाएं: सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून में जौलीग्रांट है। कोटद्वार सबसे नजदीकी रेल स्टेशन है। दिल्ली के कश्मीरी गेट, देहरादून, ऋषिकेश और कोटद्वार से श्रीनगर के लिए सीधी बस सेवा है।

दूरी: दिल्ली से यह 353 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 9 घंटे लगते हैं।

कहां ठहरें: रहने के लिए जगहों की कोई कमी नहीं है। हर बजट के होटल से लेकर धर्मशाला तक उपलब्ध हैं।


पौड़ी:
कंडोलिया की पहाड़िया से घिरा

देवदार के जंगलों से ढंका हुआ और कंडोलिया पहाड़ी के उत्तरी ढलान पर स्थित पौड़ी बेहद खूबसूरत जगह है।

क्या है खास: ट्रेकिंग, फिशिंग, जंगल सफारी के लिए यह जगह काफी उपयुक्त मानी जाती है।

क्या देखें: कंडोलिया, बिनसर महादेव, ताराकुंड, कण्वाश्रम, दूधातोली, ज्वाल्पा देवी मंदिर आदि।

टूरिस्ट सीजन:
पौड़ी घूमने का सबसे सही समय मार्च से नवंबर तक है। इस दौरान मौसम खुशनुमा रहता है।

दूरी: दिल्ली से यह 353 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 9 घंटे लगते हैं।

कैसे जाएं: नजदीक हवाई अड्डा जौलीग्रांट जो पौड़ी से लगभग 150 किलोमीटर की दुरी पर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वार है और सड़क मार्ग से यह ऋषिकेश, कोटद्वार और देहरादून से सीधे जुड़ा है।

कहां ठहरें: ठहरने के लिए पौड़ी में कुछ औसत दर्जे के होटल हैं। यहां गढ़वाल मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस भी बेहतर विकल्प है। इसे ऑनलाइन भी बुक कर सकते हैं।


चोपता: मिनी स्विट्जरलैंड


उत्तराखंड में हिमालय की गोद में बसा चोपता हरी-भरी घासों और सदाबहार जंगलों से ढका हुआ है। इसे 'मिनी स्विट्जरलैंड' भी कहा जाता है। कम भीड़-भाड़ पसंद करने वाले लोगों के लिए चोपता किसी जन्नत से कम नहीं। यह ट्रेकर्स और सामान्य पर्यटक, दोनों को एक अलग और सुखद अनुभव का अहसास करता है।

क्या है खास: कैंपिंग, ट्रेकिंग, स्कीइंग, राफ्टिंग, माउंटेन बाइकिंग, पैराग्लाइडिंग, क्लाइंबिंग जैसी गतिविधियों के लिए यह खास है।

क्या देखें: देवरी ताल, चन्द्रशिला, तुंगनाथ मंदिर, ऊखीमठ, केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य, चंद्रशिला चोटी, देवरिया ताल आदि।

टूरिस्ट सीजन: मई से जुलाई और सितंबर से नवंबर के महीनों के दौरान यहां का मौसम बड़ा ही शानदार, शांत और सुहावना रहता है।

दूरी: दिल्ली से 412 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 11 घंटे लगते हैं।

कैसे जाएं: यहां पहुंचने के लिए आपको देहरादून और ऋषिकेश से होकर जाना होगा। ऋषिकेश से गोपेश्वर होकर या ऋषिकेश से ऊखीमठ होकर भी आप जा सकते हैं।

कहां ठहरें: गोपेश्वर और ऊखीमठ, दोनों जगह गढ़वाल मंडल विकास निगम के विश्रामगृह हैं। इनके अलावा प्राइवेट होटल, लॉज, धर्मशालाएं भी हैं, जो आसानी से मिल जाते हैं।



पालमपुर: शांत सैरगाह


हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में स्थित पालमपुर एक शांत सैरगाह है। ऊंची पहाड़ियों पर चीड़ और देवदार के जंगलों की हरियाली इस स्थान को एक अलग भव्यता प्रदान करती है। इसके आसपास फैले चाय के बड़े-बड़े बागान इसकी खासियत हैं। हरियाली भरे इन बागानों में घूमना और पत्तियां चुनते हुए फोटो खिंचवाना हर सैलानी को पसंद आता है।

क्या है खास: पैराग्लाइडिंग, घुमक्कड़ी, कांगड़ा घाटी रेलवे की ट्रेन का मनमोहक सफर इस यात्रा को यादगार बना देता है।

क्या देखें:
न्यूगल पार्क, विंध्यवासिनी मंदिर, घुघुर, लांघा, गोपालपुर, आर्ट गैलरी घूमने की अच्छी जगहें हैं।

टूरिस्ट सीजन: वैसे तो पालमपुर कभी भी जाया जा सकता है, लेकिन मार्च से जून तक और सितंबर से नवंबर तक का मौसम घूमने के लिए अच्छा है।

दूरी:
दिल्ली से 500 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 10 घंटे लगते हैं।

कैसे जाएं: पालमपुर का नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल और नजदीकी रेलवे स्टेशन मारंडा है। पालमपुर दिल्ली, अंबाला, लुधियाना, चंडीगढ़, अमृतसर, पठानकोट आदि शहरों से सड़क मार्ग से सीधे जुड़ा है।

कहां ठहरें: कांगड़ा में रुकने के लिए बजट होटलों के अलावा कई किफायती होमस्टे के विकल्प भी उपलब्ध हैं। कुछ महंगे रिजॉर्ट भी हैं। बैजनाथ, पालमपुर आदि स्थानों पर भी रुका जा सकता है।



नारकंडा: भीड़ से दूर


शिमला से तकरीबन 70 किमी की दूरी पर स्थित है नारकंडा। यह एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है। नारकंडा में बर्फ से ढंके हिमालय के पर्वत और तलहटी पर हरे-भरे जंगल पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। इस खूबसूरत हिल स्टेशन पर आपको अन्य जगहों के मुकाबले कम भीड़ देखने को मिलेगी।

क्या है खास:
ट्रेकिंग, कैंपिंग, स्कीइंग आदि के लिए यह बहुत प्यारी जगह है।

क्या देखें: हाटु मंदिर, हाटु पीक, महामाया मंदिर, थानेदार, अमेरिकी सेवों का बागान, मंदोदरी का मंदिर आदि।

टूरिस्ट सीजन: गर्मी का मौसम नारकंडा घूमने के लिए सबसे अच्छा मौसम है।

दूरी:
दिल्ली से यह 406 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 9 घंटे लगते हैं।

कैसे जाएं: नई दिल्ली और शिमला के अलावा, नारकंडा के लिए नियमित रूप से बसें रामपुर और किन्नौर जैसे अन्य शहरों से भी उपलब्ध हैं।

कहां ठहरें: रुकने के लिए कुछ बजट होटल और पर्यटन विभाग के गेस्ट हाउस के विकल्प हैं।

सोलन: घने जंगलों से झांकता शहर

हर कोई शिमला जाना चाहता है, लेकिन वहां भीड़ बहुत है। ऐसे में सोलन बेहतर विकल्प हो सकता है। सोलन घने जंगलों से घिरा होने के कारण पर्यटकों को खूब लुभाता है।

क्या कर सकते हैं:
समय है तो मशरूम की खेती, समय नहीं है तो ट्रेकिंग आदि

घूमने की जगहें: मतिउल, कारोल चोटी, कंडाघाट, कसौली, चैल और दगशाई, कारोल पर्वत के ऊपर की गुफा, युंगडरुंग तिब्बती मठ, गोरखा फोर्ट और जाटोली शिव मंदिर।

दूरी: दिल्ली से 300 किलोमीटर, समय- 6 घंटे

कैसे जाएं: चंडीगढ़ करीबी हवाईअड्डा है। यह सोलन से 67 किलोमीटर दूर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन कालका है, जो सोलन से 44 किलोमीटर दूर है।

कहां ठहरें: यहां पर आपको होटल, रिजॉर्ट, गेस्ट हाउस, होम स्टे मिल जाएंगे। सरकारी गेस्ट हाउस भी है।

चिलियानौला

रानीखेत से महज छह किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा-सा शांत कस्बा है यह। यहां का हेड़ाखान मंदिर प्रसिद्ध है। यहां से नंदा देवी पर्वत खूबसूरत दिखाई देता है जो कि पर्यटकों के लिए एक बड़ा आकर्षण है।

कैसे पहुंचें: काठगोदाम स्टेशन तक ट्रेन से और वहां से रानीखेत और फिर चिलियानौला तक सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं।

कहां ठहरें:
केएमवीएन के हिमाद्री गेस्टहाउस चिलियानौला के अलावा कुछ निजी होटल भी उपलब्ध हैं।

कुंजापुरी


इस जगह ने पैराग्लाइडिंग जैसे रोमांचक खेल से पर्यटकों को एक नया विकल्प मुहैया करा दिया है। ट्रेकिंग, रिवर राफ्टिंग और बंजी जंपिंग के भी यहां काफी विकल्प हैं। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त के खूबसूरत नजारे के अलावा स्वर्गारोहिणी, चौखंबा, गंगोत्री और बंडेरपंच की ऊंची-ऊंची चोटियां साफ नजर आती हैं। यहां मां कुंजादेवी का प्रसिद्ध मंदिर है जो देवी के पूरे देश में फैले 52 शक्तिपीठों में से एक है।

कैसे जाएं: हरिद्वार तक ट्रेन से और उसके बाद ऋषिकेश और उससे ऊपर हिन्डोलाखाल या नरेन्द्र नगर और मंदिर तक सड़क मार्ग से

कहां ठहरें:
कुंजापुरी में ठहरने के लिए बेहतर विकल्प नहीं है। नजदीकी नरेन्द्र नगर में कुछ होटल हैं। बेहतर है कि आप ऋषिकेश के ऊपरी हिस्से में ही किसी होटल में ठहरें।

कुछ खास बातों का रखें ध्यान

घूमने लायक जगह का चुनाव:
जिन-जिन जगहों पर आपको जाना है, उनका चयन पहले से कर लेना बेहतर रहेगा। इससे समय और पैसे की बचत होती है और आप अनावश्यक भटकाव से बचते हैं।

लिस्टिंग: उन चीजों की एक लिस्ट बना लें सफर के दौरान जिनकी आवश्यकता हो सकती है। हां, अनावश्यक बोझ बढ़ाने से बचें।

टूरिस्ट स्पॉट की सही जानकारी: जहां आपको घूमने जाना है, वह कहां है और आप वहां तक कैसे पहुंचेंगे, इनसे संबंधित जानकारियां आपके पास पहले से ही रहनी चाहिए। इससे आपका समय बचाती है, दूसरा पैसा। और तो और सही जानकारी होने से यात्रा का रोमांच बढ़ जाता है।

रिजर्वेशन:
आपकी यात्रा सुखद और आरामदेह हो, इसके लिए रिजर्वेशन का होना जरूरी होता है। अगर किसी कारणवश नहीं हो पाता है तो विकल्पों के बारे में पहले से सोचकर चलें।

होटल बुकिंग:
होटल बुकिंग पहले से करा लें तो बेहतर रहता है। हालांकि उत्तराखंड की जिन जगहों का जिक्र यहां किया गया है, वहां आसानी से होटल मिल जाते हैं। अगर नहीं मिलते हैं तो होम स्टे, पीजी जैसे विकल्प भी है।

सेफ्टी की फिक्र

- दुर्गम इलाकों में सुरक्षित यात्रा के लिए ध्यान से गाड़ी चलाना जरूरी है।

- ट्रेकिंग या अन्य किसी कारणों से बाहर निकलें तो अपने साथ एक नक्शा रखें।

- यह पहाड़ी क्षेत्र है। आमतौर पर शाम के बाद बहुत ठंडक हो जाती है। गर्म कपड़े हमेशा साथ रखें।

- बारिश में यात्रा करते समय सावधानी बरतें, भूस्खलन का खतरा रहता है।


उत्तराखंड यात्रा पर खर्च


आप अपनी सुविधा और पसंद के मुताबिक विकल्प चुन सकते हैं। अगर आप तीन दिन की ट्रिप प्लान करते हैं तो 10000 रुपये और पांच दिन का प्लान करते हैं तो 15000 रुपये में घूम सकते हैं। उत्तराखंड टूरिज्म डिवेलपमेंट बोर्ड और निजी ऑपरेटर भी टूर पैकेज देते हैं। आप उन्हें भी देख सकते हैं। चार धाम पैकेज पर प्रति व्यक्ति करीब 15,000 रुपये का खर्च आ सकता है तो दो धाम का खर्च करीब 10000 रुपये।

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इन खूबसूरत गांवों में लें छुट्टियों का मजा

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गर्मी अपने शबाब पर है और छुट्टियां शुरू हो चुकी हैं। अगर आप सैर-सपाटे के शौकीन हैं और घिसे-पिटे, भीड़-भाड़ वाले हॉलिडे डेस्टिनेशन से बोर हो चुके हैं तो बढ़ाइए अपने कदम उन मंजिलों की ओर जो न केवल अनदेखे और अनछुए हैं, बल्कि सुकून और आनंद से भरे हैं। टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों और प्रदूषण से मुक्त ग्रामीण वातावरण में छुट्टियों का आनंद वाकई बढ़ जाता है। शहरी आपाधापी और शोरगुल से दूर अनजान और अनदेखे जगहों की तलाश में जहां कुदरत का जादू चारों ओर बिखरा पड़ा है, छुट्टियों का आनंद ही कुछ और है। दर्शनी प्रिय बता रही हैं रूरल टूरिजम के ऑप्शंस के बारे में...

गांव अपनी खूबसूरती और भरपूर हरियाली से बरबस ही आपका मन मोह लेते हैं। यहां की फिजाओं में नयापन और ताजगी है तो गंवईपन की मनमोहक झलकियां भी। बजट में फिट आने वाले ये डेस्टिनेशंस न केवल सस्ते हैं, बल्कि लग्जरी टूर से कहीं ज्यादा आनंददायक और सुकून भरे भी हैं। प्रकृति की गोद में बसे इन गांवों की नैसर्गिक खूबसूरती तब और बढ़ जाती है, जब आपका सामना सीधे-सादे ग्रामीणों से होता है और जब वे जिंदादिली और खुशमिजाजी से आपका इस्तकबाल करते हैं। अगर इन गर्मियों में आप आउटिंग के मूड में हैं तो विलेज होमस्टे से बढ़िया कुछ भी नहीं। इसी बहाने आप भारत की असल तस्वीर देख पाएंगे और उसकी समृद्ध विरासत से रूबरू हो पाएंगे।

1. विश्नोई विलेज सफारी (जोधपुर, राजस्थान)
अगर आप ट्राइबल सफारी के शौकीन हैं और विश्नोई समाज को नजदीक से देखना चाहते हैं तो दक्षिण जोधपुर से मात्र 40 मिनट की दूरी पर बसे जनजातीय गांव विश्नोई विलेज में आपका स्वागत है। आदिम जीवन शैली और उनकी सांस्कृतिक विरासत को समझने का यह बढ़िया अवसर हो सकता है। खेजड़ी के पेड़ों से घिरे इस गांव में हिरन और चिंकारा बहुतायत में देखे जा सकते है। गुडा झील यहां का प्रमुख आकर्षण है, कई तरह के पक्षियों का डेरा है।

विशेष आकर्षण: कनकनी (ब्लॉक प्रिंटरों का गांव), सलतास (बुनकरों का गांव), गुढ़ा (वन्यप्राणी और विश्नोई समाज), ओसियन मंदिर, डेजर्ट वाइल्ड लाइफ, 65 किलोमीटर की जीप सफारी

कहां ठहरे:
छोटाराम प्रजापत होमस्टे, विश्नोई गांव

ऐसे करें टूर प्लान

एक दिन का प्लान बनाएं। चाहें तो अपनी कार ले जा सकते हैं या दिल्ली से जोधपुर के लिए टैक्सी बुक की जा सकती है। गांव में होम स्टे करें और स्थानीय व्यंजन का लुफ्त उठाएं। खुली जीप में आसपास के गांव में भ्रमण के साथ ऊंट की सवारी का मजा ले सकते हैं। गांववालों के साथ रात में लोकल फूड का आनंद लें।
बजट: 1000 रुपये प्रति दिन प्रति व्यक्ति
कैसे पहुचें: दिल्ली से सीधी बसें और रेल सेवा उपलब्ध।
संपर्क करें: bishnoivillagesafari.org

2. गुनेह विलेज (कांगड़ा वैली, हिमाचल प्रदेश)
हिमालय के कुछ अनदेखे हिस्सों का दीदार करना हो तो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा वैली में बसे पहाड़ी गांव गुनेह का रुख कीजिए। कायनात की बेहिसाब खूबसूरती समेटे जनजातीय बहुल इस गांव में आपको वह सब मिलेगा जिसकी तलाश हरेक नेचर लवर्स को होती है। चरवाहों का यह छोटा-सा गांव, ग्रामीण परिवेश को एंजॉय करने वालो के लिए मुफीद जगह है। सैलानियों की भीड़ से दूर यह गांव बेहद सुंदर है। पहाड़ियों से घिरे इस गांव को प्रकृति ने अपनी नायाब कलाकारी से सजाया है। कलाप्रेमियों को यह किसी जादुई कैनवस जैसा प्रतीत होता है।

भीड़ भरे टूरिस्ट डेस्टिनेशंस से अगर आप बोर हो चुके हों तो चले आइए इस सपनों के गांव में जहां न गैजट की आभासी दुनिया है और न ढाबा संस्कृति की गहमागहमी। है तो बस सुकून और इत्मीनान से भरा समय। रंगबिरंगे फूलों से घिरे सैलानियों के लिए बने मड हाउस में यहां जीवन के कुछ सुखद और अमूल्य पल बिताए जा सकते है। जर्मन-इंडियन कला संवर्धन केंद्र के सौजन्य से यहां एक बड़ी आर्ट गैलरी बनाई गई है, आप इसका भी आनंद ले सकते हैं।

विशेष आकर्षण: मंदिर, पैराग्लाइडिंग, मॉनेस्ट्री, चाइना पास, बारोट वैली, स्थानीय चित्रकारी और कला का दर्शन, विलेज वॉक
कहां ठहरें: आधुनिक सुविधाओं से लैस गांव के बीचों बीच बने मड हाउस में। इसे गांववालों ने सैलानियों के लिए होमस्टे के तौर पर दिया हुआ है।

टूर प्लान

3-5 दिनों का टूर प्लान कर सकते है। आधुनिक संसाधनों से दूर यह एक छोटा-सा रिमोट विलेज है इसलिए ज्यादा सुविधाओं की उम्मीद न करें। इसे ध्यान में रखते हुए टूर प्लान करें।
बजट: 3000 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति दिन

कैसे पहुंचें

धर्मशाला और कांगड़ा के बीच NH-20 से 6 किलोमीटर आगे। दिल्ली या चंडीगढ़ से यहां के लिए टैक्सी या बस ले सकते हैं। 6 किलोमीटर की ट्रेकिंग के बाद इस गांव में आसानी से पहुंचा जा सकता है।
संपर्क करें : Info@theroomshotel.com

3. कल्प गांव (गढ़वाल, उत्तराखंड)
उत्तराखंड में समुद्र तल से 7500 फीट की ऊंचाई पर पहाड़ों की गोद में बसा एक छोटा-सा गांव कल्प निहायत ही खूबसूरत और आकर्षक है। वाकई सुकून की तलाश यहां आकर खत्म होती है। खानाबदोश चरवाहों का यह गांव प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है और सैलानियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र भी। 500 की आबादी वाले इस गांव में ट्रेकिंग के ढेरों ऑप्शन उपलब्ध हैं। शहरी जीवन से दूर जिंदगी जीना चाहते हैं तो कल्प बांहे खोले आपका इंतजार कर रहा है। पहाड़ की चोटी से गांव की अद्भुत छटा देखते ही बनती है। हरे-भरे देवदार इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते है।

क्या है विशेष
फॉरेस्ट ट्रेकिंग, पहाड़ी नदियां, झड़ने, स्थानीय स्वर्ण मंदिर और विलेज वॉक।

कहां ठहरे:
लकड़ी के बने मकानों में। गांव में होम स्टे और सेल्फ कुकिंग की सुविधा भी उपलब्ध है।

कैसे पहुंचें
देहरादून तक रेल से भी जा सकते हैं। बस से 10 घंटे में नजदीकी कस्बे तक पहुंच सकते हैं और वहां से 8 घंटे की लंबी ट्रेकिंग के बाद गांव तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से देहरादून के लिए जॉली ग्रांट एयरपोर्ट तक सीधी उड़ानें।

संपर्क करें
getintouch@kulaptrust.org

4 खाती विलेज (बागेश्वर, उत्तराखंड)
सफेद संगमरमरी बर्फ से ढंका ऊंचे देवदार के पेड़ों से घिरा खाती गांव पिंडारी ग्लेशियर के रास्ते में स्थित है। यह सरहद का सबसे अंतिम गांव माना जाता है। बर्फ से ढंका पहाड़ों पर बसा यह गांव परियों के देश जैसा आभास कराता है। कल-कल बहती पिंडार नदी के तट पर बसा यह गांव आपको ताजगी से भर देगा। यहां से हिमालय की बर्फीली चोटियों को आसानी से देखा जा सकता है।

चाय की चुस्कियों के साथ सूर्योदय और सूर्यास्त को देखना अलौकिक एहसास कराता है। प्रकृति ने यहां अपने तमाम रंग बिखेरे हैं और उन रंगों के साथ अठखेलियां करते हुए ऐसा लगता है, जैसे आप किसी मायावी लोक में पहुंच गए हों। यह एहसास आपको भीतर तक गुदगुदाता है। यह भागती-दौड़ती जिंदगी की रफ्तार को कम करता है। प्रकृति के साथ कदम ताल करने की चाहत रखने वालों के लिए यह बेहतरीन जगह है। शुद्ध देसी गांव का मजा लेना हो तो खाती गांव जरूर जाएं और कुदरत का आनंद लें।

क्या है विशेष

नंदा देवी मंदिर, भगवती मंदिर, हिमालय की बर्फीली चोटियां, देवदार के घने जंगल, कलकल बहती नदियां, सूर्योदय और सूर्यास्त का अद्भुत दृश्य

कहां ठहरें:
खाती गांव होमस्टे

कैसे पहुंचें: नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। गांव से 10 किलोमीटर पहले तक बस सेवा उपलब्ध है। नजदीकी जिला मुख्यालय कपकोट से बस ले सकते हैं। नजदीकी एयरपोर्ट पंतनगर है।

जानकारी लें: http://uttarakhandtourism.gov.in/
बजट: प्रति व्यक्ति 2000 रुपये प्रति दिन

5. पीओरा विलेज (अल्मोड़ा, उत्तराखंड)

फ्रूट बॉल ऑफ उत्तराखंड के नाम से प्रसिद्ध पीओरा गांव हिल स्टेशन अल्मोड़ा से मात्र 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे प्रकृति की भरपूर नेमत मिली है। कुमाऊं हिल्स के प्रिंसटन टाइगर वैली के बीचो-बीच बसा यह गांव सेब और आलूबुखारे के बगीचों के लिए खासा मशहूर है। अगर कंक्रीट के जंगल और शहरी आपाधापी से ऊब चुके हों तो कुदरत की गोद में फुर्सत के कुछ सुकून भरे लम्हे यहां बिताए जा सकते हैं।

यहां दिन में नदियां गीत गाती नजर आती हैं तो रात में खुले आसमान में हजारों सितारे आपका स्वागत करते प्रतीत होते हैं। पहाड़ की चोटियों को छूते रुई के फाहों जैसे बादल और घाटियों में उतरते टेढ़े-मेढ़े संकरे रास्ते किसी और ही दुनिया में आपको ले जाते हैं। कहते हैं कि इसी गांव से होकर पांडवों ने स्वर्गारोहण किया था। इस पहाड़ी गांव की खूबसूरती आपको कायल कर देती है। ट्रेकिंग, नेचर, हिल्स, बर्ड्स, वाइल्डलाइफ सबकुछ है यहां। प्रकृति का जादू यहां सम्मोहन पैदा करती है और आप बस यहीं के होकर रह जाते हैं। अगर आप पक्षी प्रेमी हैं तो आपके लिए यह बेहतर ठिकाना हो सकता है।

विशेष आकर्षण: त्रिशूल पीक, सेब और आलूबुखारे के बगीचे, हिमालय व्यू, प्राचीन मंदिर, विलेज वॉक।

कहां ठहरे:
विलेज होम स्टे और गांव में बने डाक बंगले में।

कैसे पहुंचें:
नैनीताल के मुक्तेश्वर से 10 किलोमीटर दूर और अल्मोड़ा से 23 किलोमीटर दूर। दिल्ली से रेल और सड़क मार्ग से काठगोदाम पहुंचें। वहां से टैक्सी से 1 घंटा 20 मिनट में गांव पहुंचा जा सकता है।

बजट:
प्रति व्यक्ति 1200 रुपये प्रति दिन

संपर्क करें: untravel@indiauntravelled.com

सफर के कुछ और बेहतरीन पड़ाव

पुदुर (आंध्रप्रदेश)
मैन्ग्रोव ट्री और सिल्क उत्पादन के लिए प्रसिद्ध पुदुर आंध्र प्रदेश का एक छोटा-सा गांव है। छोटे-बड़े अनेक मंदिर इस गांव की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। पारंपरिक घरों के बीच होमस्टे का अपना एक अलग ही रोमांच है। यहां ज्यादातर लोग सिल्क साड़ी बनाने के काम में लगे हैं । गांव के आसपास पिकनिक और ट्रेकिंग का भी मजा लिया जा सकता है।
कहां ठहरें: गांव में बने घर होमस्टे के लिए उपलब्ध हैं।
कब जाएं: जनवरी से मार्च के बीच का समय यहां के लिए सबसे अच्छा है।

श्याम गांव (जोरहाट, असम)
जोरहाट जिले में बौद्ध विरासत को समेटे यह छोटा-सा गांव बारहों मास सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है। यहां कई प्राचीन बौद्ध मंदिर हैं। ध्यान और अध्यात्म की आपकी तलाश यहां आकर पूरी हो सकती है। गांव से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर छारा फॉरेस्ट एरिया और सिंगफन वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी का मजा उठाया जा सकता है। अपनी स्थापत्य कला के लिए मशहूर और आहोम शासन के समय निर्मित शिव डोल और विष्णु डोल मंदिरो का दर्शन भी किया जा सकता है। शिव सागर, गुड़ी सागर और जोया सागर लेक यहां के प्रमुख आकर्षण हैं। थाइलैंड, ताइवान, म्यांमार और जापान के बौद्ध विद्वान यहां शोध करने आते हैं।

कब जाएं: अक्टूबर से मार्च के बीच। दुर्गा पूजा के दौरान मनाए जाने वाले उत्सव का हिस्सा बने ।

कहां ठहरें:
गांव में होम स्टे की सुविधा आसानी से उपलब्ध है।

मलाना (हिमाचल प्रदेश)
कुल्लू घाटी के पूर्वोत्तर में बसा मलाना गांव कुदरत के किसी करिश्मे से कम नहीं। प्रकृति के अनुपम सौंदर्य का यह जीता-जागता उदाहरण है। कहते हैं कि सिकंदर की सेना के एक विद्रोही सिपाही ने भागकर इस खूबसूरत घाटी में अपना पहला आशियाना बनाया था। नग्गर से 2 दिनों की ट्रेकिंग के बाद यहां पहुंचा जा सकता है या राशोल दर्रे से 17 किलोमीटर की ट्रेकिंग करते हुए। अगर आप बाहर से हैं तो अपना पासपोर्ट ले जाना ना भूलें।

कहां ठहरे: बहुत से गेस्ट हाउस और बैकपैकर्स स्टाइल के रूम यहां उपलब्ध हैं।

कब जाएं
: मार्च-जून और सितंबर-अक्टूबर

खोनोमा (नगालैंड)
अगर नगा आदिवासियों को नजदीक से देखना और समझना चाहते है तो नगालैंड की राजधानी कोहिमा से 20 किलोमीटर की दूरी पर एक प्यारा-सा गांव खानोमा आपका इंतजार कर रहा है। इसे भारत का पहला ग्रीन विलेज भी कहा जाता है। घाटियों के बीच घने जंगलों से होते हुए जब आप इस गांव में पहुंचेंगे तो इसकी खूबसूरती देखकर दंग रह जाएंगे। टेरस फार्मिंग की अपनी अनूठी शैली के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध इस गांव में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे देखे जा सकते हैं। डोमेस्टिक टूरिस्ट यहां के डिस्ट्रिक्ट कमिश्नर द्वारा जारी इनर लाइन परमिट के जरिए पहुंच सकते हैं।

कहां ठहरें: विलेज होमस्टे के साथ स्थानीय व्यंजन का भी लुफ्त उठाएं।

कब जाएं:
कभी भी जा सकते हैं, लेकिन सितंबर में इस गांव का जन्मदिन मनाया जाता है, तब का आनंद ही कुछ अलग होता है।

नाको (लाहौल-स्पीति)
भारत-तिब्बत सीमा पर बसा नाको गांव की बात ही कुछ और है। प्राचीन मोनस्ट्री और खूबसूरत लैंडस्केप इसकी सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। शहर के आपाधापी से दूर फुर्सत के लम्हों के बीच कुदरत की कलाकारी को बारीकी से देखने के लिए यह मुफीद जगह है। धानी चुनर ओढ़े खेत और खूबसूरत घाटियां लोगों को सहज ही आकर्षित करते हैं। नौंवी शताब्दी में यह गांव बसा था, जिसे अब सबसे ऊंचाई पर बसे गांव का दर्जा हासिल है।

कब जाएं: जुलाई से अगस्त के बीच

याना (कर्नाटक)
सह्याद्रि पर्वत के आगोश में बसा याना गांव गोकर्णा से मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गांव का विभूति वाटरफॉल सैलानियों को यहां बरबस ही खींच लाती है। कुछ डिफरेंट और वाइल्ड करने की चाह रखनेवालों के लिए यह बेस्ट डेस्टिनेशन है। नजदीकी हवाई अड्डा बेंगलुरू है। यहां पहाड़ों के बीच से होते हुए संकरे रास्तों से निकलकर शिवलिंगम मूर्ति तक पहुंचना थ्रिल पैदा करता है ।
कब जाएं: जनवरी या सितंबर-अक्टूबर के महीने में।

स्पाइस विलेज (थेक्कड़ी, केरल)
पारंपरिक टूरिस्ट स्पॉट से अलग एक अलग किस्म का ठिकाना आजकल घूमने वालों की लिस्ट में ट्रेंड कर रहा है। घने जंगल के बीच शोर से दूर एकदम कुदरती कॉटेज का मजा उठाना चाह रहे हैं तो केरल के स्पाइस विलेज से बढ़िया कुछ भी नही। पेरियार नैशनल पार्क के बीचों बीच 14 एकड़ में बने इस कॉटेजनुमा स्टे में वह सब सब कुछ मिलेगा जिसकी एक प्रकृति प्रेमी को तलाश होती है। यहां आप बोट सफारी, जंगल ट्रेकिंग, बर्डवॉचिंग और विलेज वॉक का मजा ले सकते हैं। चारों ओर घने मसालों के पेड़ों से घिरे होने के कारण इसे स्पाइस विलेज का नाम दिया गया है। कॉटेज के पास एक अरोमा सेंटर बनाया गया है, जहां विभिन्न प्रकार के अरोमा थेरपी, मसाज और स्पाइस ट्रीटमेंट की सुविधा उपलब्ध है। आप चाहें तो हफ्ते भर की छुट्टी लेकर यहां रिलैक्स कर सकते हैं। असल केरल को समझना हो तो एक बार यहां जा सकते हैं।

बजट:
6500 रुपये प्रतिरात दो लोगों के लिए

चितवन जंगल लॉज (कान्हा नैशनल पार्क, मध्य प्रदेश)
अगर आप वाइल्ड लाइफ के शौकीन हैं और नेचर वॉक को लेकर क्रेजी तो चितवन जंगल लॉज में आपका स्वागत है। कान्हा नैशनल पार्क के एकदम करीब 20 एकड़ में फैला यह लॉज लगभग 100 से भी ज्यादा पक्षियों और रंगबिरंगी तितलियों का बसेरा है। एक स्थानीय किसान ने अपनी खेली लायक जमीन को जंगल में तब्दील कर इसे प्रकृतिप्रेमियों के लिए विकसित किया है। यहां आधुनिक सुविधाओं के साथ झोपड़ी स्टाइल के कॉटेज बनाए गए हैं ताकि सैलानी सुकून से कुदरत को महसूस कर सके। इस इको-फ्रेंडली कॉटेज की छत से जंगल का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।

बजट:
5500-7000 प्रति रात दो लोगों के लिए


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खाओ-पियो और कूुल रहो इस गर्मी में

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जब 40 डिग्री तापमान नॉर्मल बात हो जाए तो आपको सतर्क हो जाना चाहिए। ऐसे मौसम में सेहत की चिंता तो करनी पड़ती है। दरअसल, इंसानी शरीर की भी अपनी सीमा है। अगर आप शरीर की चिंता नहीं करेंगे तो यह आपकी चिंता नहीं करेगा। इसलिए गर्मी में खान और पान दोनों का ध्यान रखना जरूरी है। गर्मियों में शरीर के लिए सुपाच्य, संतुलित और सुरक्षित खान-पान सही रहता है। गर्मियों में आपको किन बातों का खास ख्याल रखना चाहिए बता रहा है हमारे एक्सपर्ट्स का पैनल- डॉ. शिखा शर्मा (सीनियर न्यूट्री डायट एक्सपर्ट), अंजली भोला (डायटिशन, एम्स), सुरक्षित गोस्वामी (योग गुरु), डॉ भगवान सहाय शर्मा (असोसिएट प्रफेसर, आयुर्वेद और यूनानी तिब्बिया कॉलेज, करोलबाग)

बाली उमर में:
मौसम से कोई फर्क नहीं पड़ता, बच्चे हमेशा ऐक्टिव रहते हैं। दौड़-भाग ज्यादा होती है तो गर्मियों में पसीना भी खूब निकलता है। कई बार तो पता ही नहीं चलता कि वह नहा कर आया है या फिर पसीना बहाकर। ऐसे में बच्चों के लिए फ्रूट और जूस काफी फायदेमंद होते हैं। उन्हें पानी भी खूब पीने के लिए देना चाहिए। खाना नॉर्मल ही खाना सही रहता है। अगर मुमकिन हो तो मसाले वाली सब्जी अपनी नॉर्मल डाइट से कम खाएं।
  • कौन-कौन से फ्रूट: मौसमी, केला, चीकू, तरबूज, खरबूज, आम और लीची जैसे फल और इनके शेक या जूस गर्मियों में सेहत के लिहाज से काफी लाभकारी हैं।
  • स्मूदी है बेहतर: आम को अगर दही के साथ मिलाकर खाएं तो यह काफी अच्छा रहेगा। आम में मिलने वाले फ्रूक्टोज से एनर्जी मिलती है तो दही पेट के लिए काफी अच्छा है। दही की तासीर ठंडी होती है, इसलिए यह गर्मियों में फायदेमंद है।
  • पानी तो जान है: आमतौर पर बच्चे पानी पीने को लेकर सचेत नहीं होते। अगर प्यास लगी तभी वे पानी पीते हैं। ऐसे में पैरंट्स को सुनिश्चित करना चाहिए बच्चे इस मौसम में पानी खूब पिएं। गर्मियों में 3 से 5 लीटर पानी तक की जरूरत बॉडी को होती है। अमूमन यह फिजिकल एक्टिविटी पर निर्भर करता है। अगर शाम में कोई बच्चा 2 से 3 घंटे तक कोई शाम में 4 से 7 बजे तक खेलता है तो उसका वॉटर इनटेक 5 से 6 लीटर तक हो सकता है।
  • क्या रखें ध्यान: अगर बच्चा आउटडोर गेम्स खेलने जा रहा है तो उसके हाथ में कम से कम एक लीटर वाली पानी की बोतल जरूर होनी चाहिए।
  • इन्हें कम खाएं: इस मौसम में बच्चों को नॉनवेज कम देना चाहिए। दरअसल, ज्यादा तेल-मसाला से पेट में ज्यादा गर्मी पैदा होती है, जिससे शरीर में निकलने वाली डाइजेस्टिव जूस सही तरीके से काम नहीं कर पाती। इससे पाचन सही नहीं रहता। आजकल स्कूलों में समर वेकेशंस हैं। ऐसे में घूमने-फिरने के साथ बच्चे जंक फूड ज्यादा खा लेते हैं। इससे परहेज जरूरी है। हफ्ते में एक बार से ज्यादा जंक फूड न दें।
दो टकिया दी नौकरी वाले:
जो लोग घर की एसी से गाड़ी की एसी में और फिर ऑफिस की एसी में बैठकर काम करते हैं, उनके लिए ज्यादा दिक्कत नहीं है। लेकिन ऐसे लोग धूप में निकलना जिनकी मजबूरी है, उन्हें खासतौर इस मौसम में अपना ध्यान रखना जरूरी है। उन्हें घर से निकलने के पहले से लेकर लौटने तक कुछ खास बातों का खयाल रखना चाहिए।
  • क्या खाएं: खाली पेट धूप में घर से बाहर नहीं निकलें। ऐसे में लू लगने की आशंका ज्यादा रहती है। कई लोगों को सुबह-सुबह भूख नहीं लगती। ऐसे में वे खाली पेट ही काम पर निकल लेते हैं कि बाद में खा लेंगे। यह सही नहीं है। कोशिश करें कि लंच समय पर ही लें। इसमें देरी न करें। अगर देर हो तो दही या केला खा लें। वहीं जो कामकाजी महिलाएं डाइटिंग करती हैं, उन्हें भी अपना ज्यादा ध्यान रखना चाहिए। अक्सर डायटिंग में चक्कर में शरीर में एनर्जी कम हो जाती है। ऐसे में उन्हें चक्कर की शिकायत हो सकती है। ऐसे में एनर्जी देने वाले कम कैलरी फूड लेते रहना सही रहता है।
  • क्या पिएं: सुबह में छाछ या लस्सी पी सकते हैं। आम पना पेट और पूरे शरीर के लिए बेहतर है। इसके अलावा गुलाब का शरबत, रूह अफजा भी विकल्प हैं। बेल का शर्बत भी अच्छा माना जाता है।
  • परहेज करें इनसेः नॉनवेज और जंक फूड कम खाएं। चाइनीज फूड, पिज्जा, बर्गर जैसी चीजों को पचाने में आपके पेट की हवा टाइट हो जाती है।
उम्र 55 का और दिल बचपन का:
ज्यादा उम्र के लोगों के लिए गर्मियां कई सारी परेशानी लेकर आता है। ऐसे में उन्हें अपना ज्यादा ख्याल रखने की जरूरत होती है।
  • पानी बहुत जरूरी : बड़ी उम्र के लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि शरीर में पानी की कमी ना हो। गर्मियों में पसीना के जरिए काफी पानी शरीर से बाहर निकल जाता है, जिससे डिहाइड्रेशन की परेशानी हो सकती है। इससे बचने के लिए समय-समय पर पानी या फिर दूसरे पेय पदार्थ लेते रहें।
  • पिएं कुछ और भी: पानी के अलावा आप नारियल पानी, नींबू पानी, फ्रेश जूस, छाछ आदि भी जरूर पिएं। ये पसीना के जरिए शरीर से निकलने वाले नमक और दूसरे तत्वों की कमी को पूरा करते हैं। गर्मियों में इन तत्वों की कमी से ही बुजुर्गों में कमजोरी और सुस्ती आ जाती है।
  • फल और सब्जियां खूब खाएं: गर्मियों में मिलने वाले फल और सब्जियों में पानी की काफी मात्रा होती है। इनमें भरपूर मात्रा में विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो इम्युनिटी बढ़ाने और फ्लू से बचाव करने में सक्षम हैं। फ्रूट्स में आम कम ही खाएं।
  • खाएं हेल्दी स्नैक्स: तले-भुने स्नैक्स से दूर रहें। स्नैक्स के रूप में कुछ बादाम ले सकते हैं। बादाम हार्ट और डायबीटीज के मरीजों के लिए भी फायदेमंद है। बादाम में 15 पोषक तत्व होते हैं जो हेल्दी शरीर के लिए जरूरी हैं। बादाम एनर्जी लेवल बढ़ाने का काम करते हैं।
  • हल्का भोजन लें: गर्मियों के मौसम में हमारी पाचन क्षमता कम हो जाती है इसलिए कम और हल्का खाना खाएं। खासतौर पर रात में तले-भुने खाने से परहेज करें। अपने साथ एक डिब्बे में कुछ बादाम रखें ताकि भू्ख लगने पर आप उसे शांत कर सकें। कोशिश करें कि छोटी मील लें, लेकिन नियमित अंतराल पर लें।
  • बाहर का खाना ना खाएं: बाहर के खाने से परहेज करें, खासतौर पर सड़क किनारे मिलने वाले खाने से, क्योंकि इतने गर्म मौसम में खाना के जल्दी खराब होने की आशंका बढ़ जाती है।
  • घर में रहें: जब धूप ज्यादा हो तो घर से बाहर ना निकलें क्योंकि धूप में जाने से पानी की कमी हो सकती है।
  • सुबह सैर करें: अर्ली मॉर्निंग वॉक पर जाएं क्योंकि उस समय तापमान कम होता है। साथ में एक्सरसाइज भी करें। ज्यादा टफ एक्सरसाइज के बजाय योग को ज्यादा समय दें। एसी में लगातार बैठने से ब्लड सर्कुलेशन सही ढंग से नहीं होता, इससे समस्या हो सकती है। ऐसे में बाहर घूमना-फिरना जरूरी है।
यह है खान-पान संहिता:
  • ब्रेक फस्ट या स्नैक्स: भेलपुरी, ढोकला, चिवड़ा, खांडवी, ब्राउन राइस का पोहा जैसे भाप में पकी चीजें खाएं। इनके अलावा सूजी से बनी चीजें भी ले सकते हैं। ये लाइट होती हैं और टेस्टी भी।
  • नॉनवेज: गर्मियों में हफ्ते में दो बार से ज्यादा नॉनवेज या अंडा न खाएं। इन्हें भी उबालकर या भाप में पकाकर खाएं। नॉनवेज में मछली या चिकन ले सकते हैं। मटन काफी हेवी होता है। उससे बचें। नॉनवेज को देसी घी में बनाने की बजाय दही में मेरिनेट कर बनाएं।
  • घी और तेल: गर्मियों में घी और तेल का इस्तेमाल कम करें। देसी घी, वनस्पति घी के अलावा सरसों का तेल और ऑलिव ऑयल भी कम खाएं। ये गर्म होते हैं। राइस ब्रैन, नारियल, सोयाबिन, कनोला आदि का तेल खा सकते हैं।
  • पानी: यह बहुत जरूरी है। गर्मियों में पसीने से सबसे ज्यादा नुकसान शरीर को पानी और नमक का होता है। ऐसे में डिहाइड्रेशन से बचने के लिए रोजाना 10-15 गिलास पानी पीना चाहिए। कम पानी पीने से यूटीआई (यूरीन ट्रैक इन्फेक्शन) भी हो सकता है। गुनगुना, नॉर्मल या हल्का ठंडा पानी पिएं। मटके का पानी पीना बेहतर है। फ्रीज का बहुत ठंडा पानी नहीं पीना चाहिए। इससे पाचन खराब होता है। पानी में बर्फ डालकर भी नहीं पीना चाहिए। यह शरीर में गर्मी पैदा करती है। ध्यान रखें कि एक्सरसाइज या मेहनत भरा काम करने के बाद तो बिल्कुल भी ठंडा पानी न पिएं। खाने से पहले जितना चाहें पानी पी सकते हैं, लेकिन खाने के बाद आधे घंटे तक पानी नहीं पीना चाहिए।
  • गर्मियों में जितना मुमकिन हो, नीबू पानी पीना चाहिए। नीबू पानी में थोड़ा नमक या थोड़ी चीनी और थोड़ा नमक मिलाना बेहतर है। इससे शरीर से निकले सॉल्ट्स की भरपाई होती है। वजन कम करना चाहते हैं तो चीनी न मिलाएं।
  • ध्यान रखें कि जिन्हें किडनी संबंधी समस्या है, उन्हें पानी कम पीना चाहिए। वे डॉक्टर के बताए अनुसार पानी पिएं तो बेहतर रहेगा।
  • नारियल पानी: नारियल पानी को मां के दूध के बाद सबसे बेहतर और साफ पेय माना जाता है। नारियल पानी प्रोटीन और पोटैशियम (गुड सॉल्ट) का अच्छा सोर्स है। इसका कूलिंग इफेक्ट काफी अच्छा है, इसलिए एसिडिटी और अल्सर में भी कारगर है। शुगर के मरीज भी नारियल पानी पी सकते हैं।
  • छाछ: छाछ में प्रोटीन खूब होता है। यह शरीर के टिश्यूज को हुए नुकसान की भरपाई करता है। छाछ जितनी चाहें, पी सकते हैं। छाछ को आयुर्वेद में अच्छा अनुपान माना जाता है। अनुपान उन तरल चीजों को कहते हैं, जिन्हें खाने के साथ लिया जाता है, ताकि खाना अच्छी तरह पच जाए। छाछ में काला नमक, काली मिर्च, भुना जीरा डालकर पीना चाहिए। आजकल मार्केट में पैक्ड छाछ/लस्सी भी मिलती है। इसे खरीदते वक्त एक्सपायरी डेट जरूर चेक करें और देखें कि पैकेट अच्छी तरह से बंद हो।
  • ठंडाई: ठंडाई में बादाम, सौंफ, गुलाब की पत्तियां, मगज और खस के बीज आदि होते हैं। इसे दूध में मिलाकर लिया जाता है। अगर शुगर लेवल ठीक है तो यह एक अच्छा पेय है। लेकिन इसमें ड्राइफ्रूट्स और शुगर काफी ज्यादा होने से यह मोटापा बढ़ाती है। हार्ट, हाइपर टेंशन और शुगर के मरीज ठंडाई से परहेज करें। बच्चों के लिए यह खासतौर पर अच्छी होती है।
  • वेजिटेबल जूस: जूस पीने से बेहतर है सब्जियां खाना। फिर भी जो लोग सब्जियों का जूस पीना चाहते हैं, वे घिया, खीरा, आंवला, टमाटर आदि का जूस मिलाकर पी सकते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक, दो कड़वी चीजों के जूस मिलाकर कभी न पिएं क्योंकि कड़वे फल या सब्जियों में कुकुरबिट होते हैं। कुकरबिट एसिडिक होते हैं और कई बार जहरीले हो जाते हैं। वैसे, करेला शुगर के मरीजों के लिए अच्छा माना जाता है।
  • फ्रूट जूस: जूस में सिर्फ फ्रकटोज होते हैं जबकि साबुत फल में फाइबर होता है, इसलिए जूस के मुकाबले साबुत फल खाना हमेशा बेहतर है। जूस जब भी पिएं, ताजा ही पिएं। रखा हुआ जूस पीना सेहत के लिए अच्छा नहीं है। गर्मियों में मौसमी या माल्टा का जूस काफी फायदेमंद है। इसी तरह, तरबूज का जूस गर्मियों का बेहतरीन पेय है, लेकिन जितना मुमकिन हो, तरबूज जूस घर का ही पिएं। बाहर के जूस से इन्फेक्शन होने की आशंका होती है। हां, इसमें ऊपर से चीनी न मिलाएं और ध्यान रखें कि इसे ज्यादा पीने से लूज मोशंस हो सकते हैं। तरबूज जूस के फौरन बाद पानी न पिएं।
  • जब तक जरूरी न हो, पैक्ड जूस न पिएं। इनमें शुगर काफी ज्यादा होती है और प्रिजर्वेटिव भी खूब होते हैं। पैक्ड जूस पीना ही चाहते हैं तो अच्छी कंपनी का खरीदें।
  • रेडीमेड शरबत: मार्केट में बने-बनाए तमाम शरबत आते हैं। ये फायदेमंद नहीं हैं। चीनी ज्यादा होने की वजह से ये मोटापा बढ़ाते हैं। हालांकि सॉफ्ट ड्रिंक से ये बेहतर होते हैं, खासकर हर्बल शरबत। शुगर के मरीजों को रेडीमेड शरबत से परहेज करना चाहिए।
  • मिल्क शेक: मिल्क शेक डबल टोंड दूध का बनाएं। शेक में फल और चीनी कम डालें, ताकि कैलरी कंट्रोल में रहें। शेक के साथ डाई-फ्रूट और आइसक्रीम न लें। खासकर मार्केट में जो शेक में ड्राइफ्रूट डालकर दिए जाते हैं, उनकी क्वॉलिटी अच्छी नहीं होती। शेक को बनाकर नहीं रखना चाहिए। केला और सेब का शेक बनाकर रखने से ऑक्सिडाइज्ड हो जाता है।
  • आम पना: आम पना गर्मियों का खास ड्रिंक है। कच्चे आम की तासीर ठंडी होती है। टेस्ट से भरपूर आम पना विटामिन-सी का अच्छा सोर्स है। यह स्किन और पाचन, दोनों के लिए अच्छा है। इसे लंबे समय तक रखा जा सकता है।
  • बेल का शरबत: बेल का शरबत एसिडिटी और कब्ज, दोनों में असरदार है। कच्चे बेल का शरबत लूज मोशंस को रोकता है तो पके बेल का शरबत कब्ज को ठीक करता है। इसका कूलिंग इफेक्ट भी काफी अच्छा होता है। यह अल्सर को भी ठीक करता है।
  • फल: मौसमी फल खाना सेहत के लिहाज से हमेशा बढ़िया होता है। जिन फलों के छिलके खा सकते हैं, उन्हें छिलके समेत ही खाएं। फलों को ब्रेकफस्ट से पहले, शाम में 4 बजे के आसपास खाना अच्छा है। असली फंडा है कि खाना पचने के बाद खाएं। खाना और फल खाने के बीच 2-3 घंटे का गैप रखें। खाने से एक घंटा पहले भी फ्रूट खा सकते हैं, लेकिन भरे पेट में फल न खाएं और न ही खाना के साथ खाएं।
  • केला: केला की तासीर ठंडी है। इसमें इलेक्ट्रोलाइट्स होते हैं, जो शरीर के सॉल्ट्स को बैलेंस करते हैं। मोटे लोगों और शुगर के मरीजों को केला नहीं खाना चाहिए।
  • आम: आम ज्यादा नहीं खाना चाहिए। कच्चे आम को घर में पकाकर खाना बेहतर रहता है। घर पर पकाने के लिए आम को अखबार में लपेटकर तीन-चार दिन के लिए छोड़ दें। बाजार से आम खरीदते हैं तो ज्यादा मुमकिन है कि वह हाइड्रोजन सल्फाइड से पकाया गया हो। ऐसे आम की तासीर काफी गरम हो जाती है। ऐसे में आम का छिलका अच्छी तरह धोएं। डंठल निकालकर आम को पानी में तीन-चार घंटे के लिए छोड़ दें। आम में विटामिन और मिनरल्स के अलावा कैलरी और शुगर काफी होती हैं। जिन्हें वजन या शुगर की प्रॉब्लम है, उन्हें आम बहुत कम खाना चाहिए।
इनकी दोस्ती से दुश्मनी भली:
  • चाय-कॉफी: चाय-कॉफी कम पिएं। इनसे बॉडी डिहाइड्रेट होती है। ग्रीन-टी पीना बेहतर है।
  • ड्राइफ्रूट्स: गर्मियों में 5-10 बादाम रोजाना खा सकते हैं। इन्हें रात भर भिगोकर खाना चाहिए। बाकी ड्राइ-फ्रूट्स को गर्मियों में खाने की सलाह नहीं दी जाती। खाना ही चाहते हैं तो बिल्कुल लिमिट में खाएं।
  • फ्रोजन फूड: फ्रोजन फूड इमरजेंसी में ही खाना चाहिए। फ्रोजन फूड हाइजीन और टेंपरेचर के हिसाब से सही नहीं होता।
  • बासी खाना: बासी खाने से बचें। इनमें बैक्टीरिया पनपने की आशंका काफी ज्यादा होती है। कोई भी खाना 7-8 घंटे तक ही ठीक रहता है।
योग:
योग हर मौसम के लिए जरूरी है। गर्मियों में योग का लक्ष्य होता है शरीर में ठंडक की अनुभूति करना।
  • गर्मियों में नहीं करें:
  • 1. सूर्य विधि प्राणायाम
  • 2. भस्त्रिका प्राणायाम
  • र्मियों में तीन तरह के प्राणायाम आप कर सकते हैं। इनसे शरीर ठंडा रहता है। ये प्राणायाम पित्त कम करने में सहायक होते हैं। इसके अलावा इनसे गुस्सा कम होता है और हाई बीपी में भी फायदा होता है। इन आसनों को सुबह 5 से 6 बजे के बीच करना ज्यादा बेहतर रहेगा।
  • 1. चंद्रविधि प्राणायाम
  • 2. शीतली प्राणायाम
  • 3. शीतकारी प्राणायाम
  • कितनी देर करेंः हर एक प्राणायाम को 15 से 20 बार जरूर करें। यह भी ध्यान रखें कि एक प्राणायाम विधि को पूरा करने के बाद ही दूसरा शुरू करें।
  • जिम या एक्सरसाइजः अगर किसी को जिम जाने या एक्सरसाइज में दिलचस्पी है तो गर्मियों में भी इसे जारी रखना चाहिए। ध्यान यह रखना है कि साथ में पानी जरूर हो और कोई भी एक्सरसाइज कड़ी धूप में नहीं करें।
बहुत कंफ्यूजन है इन चीजों में:
  • कोल्ड ड्रिंक्स पीने से शरीर ठंडाः इसका नाम ही गलत है। छूने में या पीने में भले ही यह कोल्ड महसूस होता हो, लेकिन शरीर पर इसका प्रभाव हमेशा ही गर्म पड़ता है। इससे शरीर को नुकसान होता है। कई कोल्ड ड्रिंक्स में कैफीन होता है जो पल्स रेट बढ़ा देता है। इसी की वजह से लोग जब इसे पीते हैं तो फ्रेश महसूस करते हैं। इसलिए इस बात पर जरूर ध्यान दें कि कोल्ड ड्रिंक पीने से शरीर गर्म होता है ना कि ठंडा।
  • लिक्विड ज्यादा, अन्न कमः गर्मियों में भूख कम लगती है। लोग लिक्विड ज्यादा लेते हैं और अन्न कम खाते हैं। यह गलत है। बैलेंस्ड डायट की अपनी अहमियत है, इसे इग्नोर न करें।
  • गर्मी में घी की मनाहीः गर्मियों में घी खा सकते हैं, लेकिन लिमिट का ध्यान रखें। 5 से 10 ग्राम (दो छोटी चम्मच) घी लेने में कोई परेशानी नहीं है।
  • आम से परेशानी नहींः एक पूरा आम (100 से 150 ग्राम वजन) खा सकते हैं। इससे ज्यादा खाने पर शरीर में शुगर का लेवल बढ़ता है।
  • बियर ठंडी हैः तमाम लोग मानते हैं कि बियर की तासीर ठंडी होती है। यह पूरी तरह गलत है। बियर शरीर से पानी बाहर निकालता है और बॉडी डिहाइड्रेटेड होती है।
  • बर्फ से शरीर ठंडाः आप अगर सोचते हैं कि पानी ज्यादा ठंडा नहीं है, इसलिए इसमें बर्फ मिला लें या बर्फ ही खा लें तो शरीर का तापमान कम होगा तो आप गलत हैं। बर्फ आपके शरीर को गर्मी देता है।
  • आइसक्रीम से समस्या नहींः आइसक्रीम के बिना इस मौसम की कल्पना अधूरी है। हफ्ते में दो बार से ज्यादा आइसक्रीम बिल्कुल न खाएं। आइसक्रीम में फ्रूट डालकर भी खा सकते हैं। इससे आइसक्रीम की मात्रा कम हो जाएगी।
बाकी समर फूड के बेहतर ऑप्शन के लिए कुछ लिंक दिए जा रहे हैं।
  • https://tinyurl.com/y9quej6b
  • https://tinyurl.com/y8yqdrcs
  • https://tinyurl.com/ybsohreq
(नोट: एक बैलेंस्ड डाइट के लिए अच्छे डायटिशन का सुझाव जरूरी है।)

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...ताकि पापा रहेंगे सेहतमंद

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पापा हमारे घर का पिलर होते हैं। लेकिन अगर आपके पिता उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुके हैं, जहां सेहत से जुड़ी कुछ समस्याएं उनके लिए दिक्कत बन सकती हैं तो यह आपकी जिम्मेदारी है कि वक्त रहते आप उनका चेकअप और इलाज कराएं। साथ ही, जिंदगी की सेकंड इनिंग को उनके लिए बेहतर बनाएं। आप पापा की सेहत के लिए क्या कर सकते हैं, एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह

एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. पुरुषोत्तम लाल, चेयरमैन, मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स
डॉ. के. के. अग्रवाल, सीनियर कार्डियॉलजिस्ट
डॉ. रीतेश गुप्ता, अडिशनल डायरेक्टर, फोर्टिस सी-डॉक
डॉ. सी. एस. यादव, सीनियर ऑर्थोपीडिक सर्जन, एम्स
डॉ. जी. बी. शर्मा, सीनियर ऑन्कॉलजिस्ट, बालाजी ऐक्शन कैंसर हॉस्पिटल
डॉ. मनु तिवारी, सीनियर सायकायट्रिस्ट

पुरुषों को होनेवाली कॉमन समस्याएं

1. दिल की बीमारी

अगर आपके पापा की उम्र 50 साल या ज्यादा है और दिल की बीमारी के रिस्क फैक्टर (फैमिली हिस्ट्री, स्मोकिंग करना, ज्यादा शराब पीना, ज्यादा वजन, डायबीटीज, एक्सरसाइज न करना आदि) नहीं हैं तो भी इस उम्र में आकर साल में एक बार उनके ब्लड प्रेशर, कॉलेस्ट्रॉल और हार्ट की जांच कराएं। अगर कोई बीमारी निकलती है तो डॉक्टर की सलाह के अनुसार आगे टेस्ट कराएं। अमूमन अगर रिस्क फैक्टर होते हैं तो 30 साल की उम्र से ही चेकअप कराना जरूरी होता है। ब्लड प्रेशर की जांच आमतौर पर 80-100 रुपए, लिपिड प्रोफाइल 500-800 रुपए और ईसीजी 200-400 रुपए में हो जाता है। आप यह भी देखें कि पापा का बीपी 120/80 या इससे कुछ कम हो। ब्लड प्रेशर ज्यादा हो तो दिल के लिए काफी खतरा है। इसी तरह, कॉलेस्ट्रॉल 200 या इससे कम रहना चाहिए। इसमें भी LDL यानी बैड कॉलेस्ट्रॉल 130 से कम रहना चाहिए। वैसे, दिल सेहतमंद है या नहीं, इसका मोटा-मोटा अनुमान खुद भी लगाया जा सकता है। अगर रोजाना 3 से 4 किलोमीटर तेज कदमों से चलने पर सांस नहीं उखड़ती या सीने में दर्द नहीं होता तो मान सकते हैं कि दिल की सेहत दुरुस्त है।

2. डायबीटीज़

आजकल की लाइफस्टाइल में डायबीटीज तेजी से फैल रही है। ध्यान रखें कि किसी भी सेहतमंद शख्स का ब्लड शुगर लेवल खाली पेट 100 से कम होना चाहिए। आपके पापा को डायबीटीज़ के लक्षण नहीं हैं तो भी उनका एचबीए1सी टेस्ट कराएं। इसे ऐवरेज ब्लड शुगर टेस्ट भी कहते हैं। यह एक ब्लड टेस्ट होता है और इसमें कभी भी, किसी भी लैब में जाकर ब्लड सैंपल दे सकते हैं। इस टेस्ट से पिछले तीन महीने के ऐवरेज ब्लड शुगर लेवल का पता लग जाता है। इसकी नॉर्मल रेंज 4 से 6 पर्सेंट तक मानी जाती है। अगर टेस्ट नॉर्मल है तो भी हर दो साल पर टेस्ट कराएं, वरना डॉक्टर के कहे मुताबिक कराएं। इस टेस्ट की कीमत औसतन 500-600 रुपए होती है।

3. सांस संबंधी समस्याएं

अक्सर स्मोकिंग करनेवालों को 'स्मोकर्स कफ' से शुरू होने वाली समस्याएं आगे जाकर CODP यानी क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज, अस्थमा से लेकर लंग्स कैंसर तक की समस्याएं हो सकती हैं। अगर आपके पापा स्मोकिंग नहीं करते हैं तो भी उम्र के इस पड़ाव पर एक बार चेस्ट का एक्स-रे करा लें, जोकि करीब 200-250 रुपए में हो जाता है। और अगर वह लंबे समय (करीब 20 साल या ज्यादा) से स्मोकिंग करते रहे हैं तो उनका पल्मनरी फंक्शन टेस्ट (PFT) कराएं। इसमें कई तरह के टेस्ट होते हैं और कीमत करीब 1500-1600 रुपए होती है। सिगरेट पीना शुरू करने के 20 साल बाद सीने का सीटी स्कैन कराना भी जरूरी होता है। इसकी कीमत करीब 2000-2500 रुपए होती है।

4. कैंसर

उम्र बढ़ने के साथ कैंसर की आशंका भी बढ़ जाती है। अगर मुंह में कोई छाला हो, जो भर न रहा हो, मुंह खोलने, चबाने में दिक्कत हो रही हो, आवाज बदल रही हो, शरीर के किसी हिस्से में गांठ महसूस हो, लंबे समय से एसिडिटी हो और वह ठीक न हो रही हो, तिल या मस्से में बदलाव आ रहा हो तो कैंसर की आशंका हो सकती है। मुंह से जुड़े यहां बताए लक्षण देखकर मुंह के कैंसर का अनुमान तो खुद भी लगाया जा सकता है, लेकिन बाकी तरह के कैंसर की जांच के लिए टेस्ट जरूरी हैं। पुरुषों में दूसरे कैंसर के मुकाबले लंग्स कैंसर, इंटेस्टाइन कैंसर, टेस्टिकुलर कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर होने के चांस ज्यादा होते हैं। प्रोस्टेट कैंसर की जांच के लिए प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन (PSA) टेस्ट और इंटेस्टाइन के कैंसर के लिए पेट का अल्ट्रासाउंड कराएं। पेट के अल्ट्रासाउंड में गॉल ब्लैडर, पैनक्रियाज़, किडनी आदि की स्थिति का भी पता लग जाता है। पीएसए की कीमत करीब 500-600 रुपए और अल्ट्रासाउंड की कीमत 800-1000 रुपए होती है। जरा भी आशंका होने पर एहतियात के तौर पर कैंसर की जांच शुरू में ही करा लेनी चाहिए, इससे बीमारी को शुरुआती स्टेज में ही खत्म किया जा सकता है।

5. जोड़ों की समस्याएं

बढ़ती उम्र के साथ हड्डियों और जोड़ों की समस्याएं आम हो जाती हैं। अगर आपके पापा को जोड़ों की समस्या का कोई लक्षण (सूजन, दर्द आदि) न हो तो किसी तरह के टेस्ट की जरूरत नहीं है। अगर उनमें ये लक्षण हैं तो उनका विटामिन डी डिफिसिएंशी टेस्ट (25-हाइड्रॉक्सी विटामिन डी ब्लड टेस्ट) कराएं। इसकी कीमत है करीब 1200 रुपए। इससे विटामिन डी के लेवल का पता चलता है। किसी भी सेहतमंद शख्स में विटामिन डी का लेवल 50 ng/mL या इससे ज्यादा होना चाहिए। वैसे, हफ्ते में 1-2 दिन और साल भर में औसतन 45-50 दिन रोजाना 45 मिनट के लिए धूप में बैठने से भी विटामिन डी की भरपाई हो जाती है, लेकिन इस दौरान शरीर का 80-85 फीसदी हिस्सा खुला होना चाहिए। अगर धूप में निकलना ज्यादा नहीं हो पाता तो बिना टेस्ट कराए भी पापा को हर महीने 60 हजार यूनिट का एक सैशे लेने की सलाह दे सकते हैं। अगर लगता है कि दर्द की वजह आर्थराइटिस है तो उन्हें ऑर्थोपीडिक डॉक्टर को दिखाएं। अगर उनके घुटनों में दर्द रहने लगा है तो उन्हें बताएं कि स्क्वैटिंग (उठक-बैठक), चौकड़ी मारकर बैठने, वज्रासन करने, इंडियन टॉयलेट इस्तेमाल करने से बचें।

6. प्रोस्टेट की समस्या

आमतौर पर 45 साल की उम्र के बाद पुरुषों में प्रोस्टेट बढ़ने लगता है। इससे पेशाब से जुड़ी समस्या होने लगती है। मसलन पेशाब रुक-रुक कर आना, धीरे-धीरे आना या बार-बार आना आदि। अगर पापा ऐसी कोई समस्या बताते हैं तो उनके पेट का अल्ट्रासाउंड कराएं। इसके लिए 500 से 1500 रुपए खर्च आता है। प्रोस्टेट बढ़ा होता है तो यूरोलॉजिस्ट को दिखाएं। वह इसके लिए दवा देगा। अगर प्रोस्टेट बहुत ज्यादा बढ़ा है तो सर्जरी की जरूरत भी हो सकती है। सर्जरी की पूरी प्रक्रिया में आमतौर पर 3 दिन लगते हैं और 60 हजार से लेकर 2 लाख रुपये तक का खर्च आता है। इन दिनों पेशाब की नली में सिकुड़न की समस्या भी खूब देखी जा रही है। इससे भी पेशाब से जुड़ी परेशानियां हो सकती हैं। बेहतर है कि समस्या की शुरुआत में ही किसी अच्छे डॉक्टर से उन्हें दिखाएं।

7. सेक्स समस्याएं

बढ़ती उम्र में मेल हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन कम होने लगता है। सेक्स की इच्छा कम होने लगती है और कई बार प्राइवेट पार्ट में इरेक्शन (तनाव) कम होने लगता है। वैसे, इरेक्शन प्रॉब्लम कई बार दिल की बीमारी का भी संकेत होती है। मरीज को थकान और कमजोरी भी लगने लगती है। ऐसी कोई समस्या होगी तो पापा आपसे शेयर करने से बचेंगे, लेकिन आप स्वीकार करें कि यह समस्या आम है और उन्हें टेस्टोस्टेरॉन टेस्ट कराने के लिए तैयार कराएं। यह एक ब्लड टेस्ट होता है और इसकी कीमत 500 से 1000 रुपए होती है। अगर टेस्टोस्टेरॉन लेवल कम आता है तो बढ़ाने के लिए दवा दी जाती है।

8. डिमेंशिया

बढ़ती उम्र में डिमेंशिया की समस्या भी हो सकती है। यह बीमारी आमतौर पर 65 साल के बाद होती है। इसमें मरीज की मेमरी खत्म हो जाती है, जिसका असर उसके रोजाना के काम पर पड़ता है। मसलन पीड़ित भूल जाता है कि कौन-सा महीना चल रहा है, वह किस शहर में रह रहा है, उसने खाना खाया है या नहीं आदि। अल्टशाइमर्स भी डिमेंशिया का ही एक रूप है। इसमें मेमरी लॉस के साथ-साथ मरीज का ओरिएंटेशन गड़बड़ा जाता है, मसलन वह भूल जाता है कि घर में बाथरूम किधर है या फिर मार्केट में कौन-सी शॉप कहां है या कई बार तो वह अपने घर का रास्ता ही भूल जाता है। डिमेंशिया या अल्टशाइमर्स में मरीज को गुस्सा बहुत आता है। वह चिड़चिड़ा हो जाता है। ऐसा कोई भी लक्षण नजर आने पर पापा को किसी अच्छे न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाएं। डॉक्टर जरूरी लगने पर विटामिन बी12, अमोनिया, थायरॉइड (हर टेस्ट की कीमत करीब 600-800 रुपए), सिर का CT स्कैन (कीमत करीब 2000 रुपए) आदि करा सकता है। रिपोर्ट के आधार पर फिर वह दवाएं देता है, जिन्हें वक्त पर खिलाना बहुत जरूरी है। ऐसे में आपको और आपकी फैमिली को उनका ज्यादा खयाल रखना होगा।

9. पार्किंसंस

पार्किंसंस सेंट्रल नर्वस सिस्टम की बीमारी है, जिसमें मरीज के शरीर के अंगों में बेहद कंपन होता है। वह अपने शरीर से कंट्रोल खोने लगता है। वह कई बार गिर भी जाता है। मरीज अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो जाता है और गुमसुम रहने लगता है। इसके लिए न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाएं। वैसे तो लक्षणों से ही इस बीमारी का पता लग जाता है, लेकिन जरूरत पड़ने पर F-Dopa PET टेस्ट भी करा सकते हैं। यह टेस्ट काफी महंगा होता है। एम्स में इसकी कीमत करीब 2000 रुपए है। इस बीमारी की दवा जिंदगीभर खानी होती है। मरीज को वक्त पर दवा खिलाना बहुत जरूरी है। अगर मरीज गुस्सा करता है, तो आप अपना संयम बनाए रखें। आपको यह मानने की जरूरत है कि वह जान-बूझकर गुस्सा नहीं कर रहे बल्कि बीमारी के असर से ऐसा हो रहा है।

10. डिप्रेशन

बढ़ती उम्र इंसान अक्सर खुद को अकेला और असहाय पाने लगता है। यह कई बार डिप्रेशन की वजह बन जाती है। अगर आपके पापा चिड़चिड़े, गुमसुम या बेचैन रहते हैं या फिर भूख न लगने, गला सूखने, मेमरी लॉस, बहुत ज्यादा थकान होने आदि की शिकायत करते हैं तो हो सकता है कि वह डिप्रेशन का शिकार हों। डिप्रेशन की जांच के लिए खुद डब्ल्यूएचओ का PSQ टेस्ट या BDI-II टेस्ट कर सकते हैं। ये टेस्ट आप फ्री में ऑनलाइन कर सकते हैं। जरूरत लगने पर सायकायट्रिस्ट को दिखाएं। उनकी बातों या व्यवहार से नाराज न हों। स्वीकार करें कि वह जान-बूझ कर कुछ नहीं कर रहे। यह आदत नहीं, बीमारी है।

- डिप्रेशन से निपटने के लिए आप पापा के साथ वक्त बिताएं। रोजाना उनके साथ कुछ देर बैठें। उनका हाल-चाल पूछें। वीकेंड पर उन्हें अकेला छोड़कर घूमने न जाएं। अगर वे साथ जाना चाहें तो उन्हें भी अपने साथ जरूर ले जाएं। नहीं जाना चाहें तो कभी-कभार अपना प्रोग्राम कैंसल करके उनके साथ छुट्टी बिताएं। उनकी पसंद की जगहों पर उन्हें घुमाएं। उनके दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलवाने ले जाएं और उन्हें भी अपने घर बुलाएं।
- घर के छोटे-मोटे फैसलों में उनकी सलाह लें। अगर उनकी कोई बात पसंद नहीं आए तो भी फौरन काटे नहीं। उनकी बात को आराम से सुनें और अपनी बात भी प्यार से उनके सामने रखें। अगर वह दूसरे शहर में रहते हैं तो भी रोजाना कम-से-कम एक बार फोन पर उनसे बात जरूर करें।
- वैसे इस उम्र में सडन डेथ यानी अचानक होनेवाली मौत का डर भी कई लोगों के दिमाग में घर करने लगता है। आपको पापा को भरोसा दिलाना होगा कि अगर वह स्मोकिंग नहीं करते, हेवी ड्रिंकर नहीं हैं, कॉलेस्ट्रॉल-ब्लड प्रेशर नहीं है, ईसीजी नॉर्मल है, दो मंजिल सीढ़ियां बिना दिक्कत चढ़ लेते हैं, 6 मिनट में आधा किमी चल लेते हैं तो उन्हें इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए।

नोट: 50 साल की उम्र के बाद हर दो साल में पापा की आंखों की जांच करा लें। आमतौर पर कंप्यूटराइज्ड जांच काफी है। जरूरत पड़ने पर दवा डालकर रेटिना की जांच की जाती है। अगर कोई समस्या है तो डॉक्टर के बताए अनुसार टेस्ट कराएं। हर छह महीने या सालभर में उन्हें डेंटिस्ट के पास ले जाएं। अगर कैविटी या कोई और समस्या है तो रेग्युलर चेकअप से समय रहते उस समस्या का इलाज मुमकिन हो पाता है।


वैक्सीनेशन है जरूरी


अगर आपके पापा की उम्र 50 साल या इससे ज्यादा है तो उन्हें कुछ वैक्सीन यानी टीके लगवाने चाहिए। ये टीके उन्हें कई तरह की बीमारियों से बचाएंगे। इन टीकों में खास हैं:

निमोनिया: हर 5 साल में एक बार लगता है।
फ्लू: हर साल लगता है। अस्थमा, डायबीटीज़ या दिल के मरीजों को जरूर लगवाना चाहिए।
टायफाइड: तीन साल में एक बार लगता है।
टिटनस: 10 साल में एक बार लगता है।
हेपटाइटिस बी: इसकी तीन डोज़ होती हैं और जिंदगी में एक बार लगता है।

डैड की डाइट पर दें ध्यान

- पापा की बढ़ती उम्र में उनके खाने का ख्याल रखें। उनकी डाइट में फल और सब्जियां बढ़ा दें। घी, चीनी, चावल, मैदा और नमक मोटापे की भी बड़ी वजह हैं। इन्हें कम कर दें।
- कोशिश करें कि वह पोषण से भरपूर खाना खाएं, जिसमें कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ प्रोटीन और मिनरल भी भरपूर हों, जैसे कि ओट्स, गेहूं आदि अनाज, अंडे, दूध-दही, पनीर, हरी सब्जियां (बीन्स, पालक, मटर, मेथी आदि) और मौसमी फल।
- एंटी-ऑक्सिडेंट और विटामिन-सी वाली चीजों को खाने में शामिल करें। ऐसी कुछ चीजें हैं: ब्रोकली, पालक, अखरोट, किशमिश, सीताफल, शकरकंद, जामुन, ब्लूबेरी, कीवी, संतरा आदि।
- ओमेगा-थ्री वाली चीजें जैसे कि फ्लैक्स सीड्स (अलसी के बीज), नट्स, सोयाबीन आदि को डाइट में शामिल करें।
- दूध और दूध से बनी चीजें या अंडा खाना भी अच्छा है। इनमें विटामिन बी12 अच्छी मात्रा में होता है।

एक्सरसाइज भी जरूरी

- पापा को एक्सरसाइज के लिए मनाएं। कोशिश करें कि उनका वजन न बढ़े। वजन पर कंट्रोल रखने का आसान तरीका है कि कमर का घेरा 36 इंच से ज्यादा न हो। हो सके तो खुद उनके साथ एक्सरसाइज करें। आप उनके साथ वॉक या स्वीमिंग करना अच्छा आइडिया है। फिक्स साइक्लिंग और योग करना भी अच्छा है।
- आप इस बात का ध्यान रखें कि वह हफ्ते में कम-से-कम 5 दिन 45-60 मिनट एक्सरसाइज जरूर करें। किसी एक तरह की एक्सरसाइज के बजाय कार्डियो, स्ट्रेंथनिंग और स्ट्रेचिंग को मिलाना बेहतर रहता है। कार्डियो के लिए वह ब्रिस्क वॉक (30 मिनट में 3 किमी), स्वीमिंग या साइक्लिंग कर सकते हैं। स्ट्रेचिंग उम्र बढ़ने के साथ जोड़ों में लचीलापन बनाए रखने में मदद करती है। जॉइंट्स लचीले रहेंगे तो उनमें चोट लगने का खतरा कम होगा। हां, अगर पापा के जोड़ों में दर्द शुरू है तो कोई भी एक्सरसाइज डॉक्टर की सलाह लेकर ही करने को कहें, वरना हड्डियां आपस में घिस कर उनका दर्द बढ़ा सकती हैं।
- रोजाना 15 मिनट प्राणायाम और मेडिटेशन भी उन्हें करना चाहिए। इनसे मन शांत रहता है और तनाव कम होता है।

इनका रखें ख्याल

- घर में पलूशन कम करें। उम्रदराज लोगों को इम्यून सिस्टम कमजोर होता है। ऐसे में घर का पलूशन उन्हें बीमार कर सकता है। बेहतर होगा कि घर में कारपेट आदि न रखें और परदे, बेडशीट आदि साफ रखें।
- बेहतर होगा कि डैड की सेहत की चिंता करते हुए उनका हेल्थ इंश्योरेंस भी कराएं। ज्यादा रकम देनी पड़े तो भी वही इंश्योरेंस कराएं, जिसमें ज्यादातर बीमारियों और ओपीडी को भी कवर किया गया हो।
- अगर आप देर रात सोते हैं तो कोशिश करें कि इसकी वजह से पापा परेशान न हों। अपनी वजह से उनके रुटीन को बदलने की कोशिश न करें।
- बाहर से खाना कम मंगाएं। आपको बाहर का खाना आसानी से पच सकता है, लेकिन ज्यादा उम्र के लोगों के लिए उसे पचाना मुश्किल है।

लें तकनीक की मदद

- स्मार्ट फोन की सुविधाओं का इस्तेमाल कर आप उनकी लाइफ को आसान बना सकते हैं। जैसे कि एंड्रॉयड फोन में Additional Settings में या फिर बाहर ही Accessibility होगा। जहां TalkBack, Select to Speak से लेकर फॉन्ट साइज बड़ा करने तक की सुविधा पा सकते हैं। अगर उन्हें सुनने, देखने या बोलने में दिक्कत होती है तो ये सेटिंग्स बड़े काम के साबित हो सकते हैं।
- अगर पापा को उम्र के साथ सुनाई कम देने लगा हो तो हियरिंग एड (कान की मशीन) लगवा सकते हैं। यह दो तरह की होती है: ऐनालॉग और डिजिटल। डिजिटल एड बेहतर होते हैं, क्योंकि इनमें आवाज ज्यादा साफ सुनाई देती है। ये ऑटो एडजस्टेबल भी होते हैं। हालांकि ये ऐनालॉग के मुकाबले महंगे भी होते हैं। अच्छे एड कस्टमाइज्ड होते हैं। मसलन अगर किसी फ्रीक्वेंसी में किसी का हेयरिंग लॉस कम है और किसी में ज्यादा, तो उसी के अनुसार एड काम करता है। इनकी कीमत 3000 से लेकर 5 लाख रुपए तक हो सकती है।

ये ऐप हैं काम के

MediSafe
आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ मेमरी कम होने लगती है। ऐसे में यह ऐप काफी काम का हो सकता है। अगर आप उनसे दूर रहते हैं तो यह आपके पापा के लिए पर्सनल असिस्टेंट का काम करेगा। बस एक बार दवाओं की लिस्ट ऐप में अपलोड कर दें और जब दवा लेनी है तो उसका रिमाइंडर लगा दें। यहां पर स्टेटस रिपोर्ट भी बना सकते हैं, जिससे इस बात की जानकारी आपको रहेगी कि दवाएं टाइम पर ली जा रही हैं या नहीं। अच्छी बात यह है कि इससे पर्सनल मेडिकल जानकारी किसी और के साथ शेयर नहीं की जाती।
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड, iOS

Lumosity

यह ऐप दो तरह से काम करता है। पहला यह डिमेंशिया और अल्टशाइमर्स जैसी बीमारियों की आशंका कम करता है क्योंकि इसमें बहुत सारी पहेलियां और दूसरे गेम्स हैं जो मेमरी तेज रखने और ब्रेन को ऐक्टिव रखने में मदद करते हैं। किसी सवाल का सही जवाब देने पर मन में उत्साह भी पैदा होता है। दूसरे, यह मजेदार तरीके से टाइम पास करने में भी मदद करता है।
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड, iOS

Audible
बढ़ती उम्र के साथ आंखें कमजोर होने लगती हैं। ऐसे में डैड को अखबार या ऑनलाइन पेपर पढ़ने में दिक्कत हो सकती है। यह ऐप ऐसे मामलों में कारगर है। जिन लोगों को पढ़ने का शौक है, उनके लिए यह ऐप काफी मददगार साबित हो सकता है। इसमें 1.80 लाख किताबें स्टोर हैं, जिन्हें यूजर सुन सकता है। इसमें पढ़ने के मुकाबले वक्त भी कम लगता है और आंखों पर प्रेशर भी नहीं पड़ता।
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड, iOS

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फायर सेफ्टी टिप्स

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दिल्ली के पीतमपुरा इलाके में शुक्रवार को एक घर में शॉर्ट सर्किट से लगी आग ने एक हंसते-खेलते परिवार की जान ले ली। गर्मियों में तापमान बढ़ने की वजह से आग लगने की घटनाएं काफी होती हैं। ऐसे में कुछ बातों का ध्यान रखकर आग लगने की आशंका को काफी हद तक कम किया जा सकता है। जानते हैं, ऐसी ही अहम बातें:

वायरिंग में सावधानी
घर में वायरिंग कराते समय हम पैसे बचाने के चक्कर में अक्सर सस्ती वायर डलवा देते हैं। इसके अलावा, एक बार वायरिंग कराकर हम निश्चिंत हो जाते हैं और उसे अपग्रेड नहीं कराते, जबकि वक्त के साथ घर में इलेक्ट्रिक गैजेट्स बढ़ाते जाते हैं। बड़ा टीवी, बड़ा फ्रिज, ज्यादा टन का एसी, माइक्रोवेव आदि। घर में लगी पुरानी वायर इतना लोड सहन नहीं कर पाती और शॉर्ट सर्किट हो जाता है। घरों में आग लगने का सबसे बड़ा कारण यही होता है।

क्या करें
- घर में हमेशा ब्रैंडेड वायर इस्तेमाल करें। वायर हमेशा ISI मार्क वाली खरीदें और जितने एमएम की वायर की इलेक्ट्रिशन ने सलाह दी है, उतने की ही खरीदें।
- घर के लिए वायर 1, 1.5, 2.5, 4, 6 और 10 एमएम की होती हैं। मीटर और सर्किट के बीच 10 एमएम की वायर, घर में पावर प्लग के लिए 4 एमएम और बाकी के लिए 2.5 एमएम की वायर लगती है। घर में पीवीसी वायर लगानी चाहिए जो 1 लेयर की होती है। यह आसानी से गरम नहीं होती। घरों में कॉपर की तार यूज करनी चाहिए, जिनमें शॉर्ट सर्किट होने की आशंका सबसे कम होती है।
- वायर में टॉप ब्रैंड हैं: फिनॉलेक्स, प्लाजा, आरआर, हैवल्स, पॉलिकेब आदि। अगर आप किराये पर किसी घर में आएं हैं और घर का लोड जानना चाहते हैं तो बिजली बिल से जान सकते हैं। उस पर घर का लोड दर्ज होता है। हर 5 साल में इलेक्ट्रिशन बुलाकर वायर चेक जरूर करानी चाहिए। साथ ही मेन सर्किट बोर्ड पर पूरा लोड डालने से अच्छा है कि दो बोर्ड बनाकर लोड को बांट दें। मीटर-बॉक्स भी लकड़ी के बजाय मेटल का लगवाएं। इससे आग लगने का खतरा कम हो जाता है।

बिजली मीटर में रखें ध्यान
वायरिंग और लोड पर ध्यान न देना शॉर्ट सर्किट की सबसे बड़ी वजह है। गर्मियों में मीटर के गर्म होने से चिंगारी निकलती है। पुराने मीटरों में यह समस्या ज्यादा है। मीटर के पास अक्सर पानी की मोटर लगा दी जाती हैं, बिजली के स्विच लगा दिए जाते हैं या फिर गाड़ियां खड़ी कर दी जाती हैं। इनकी वजह से शॉर्ट सर्किट की आशंका ज्यादा होती है।
क्या करें
- बिजली के मीटर के आसपास कोई इलेक्ट्रिकल या मिकैनिकल सामान न रखें। मीटर में बाहर से कोई तार न जोड़ें। इससे स्पार्किंग होने और आग लगने का खतरा बढ़ता है।
- मीटर बॉक्स के पास का कूड़ा साफ हो और वहां कूड़ा या कोई ज्वलनशील चीज न हो। मीटर या किसी भी दूसरे बिजली उपकरण के पास गाड़ी पार्क न करें।
- मीटर बॉक्स तक पहुंचने का रास्ता आसान हो और रास्ते में कोई रुकावट न हो।
- मीटर के लोड के हिसाब से अपने घर-दफ्तर की इंटरनल वायरिंग में बदलाव करें ताकिकेबल गर्म न हो, तारों में जोड़ न लगाएं
- शॉर्ट सर्किट से लगी आग को बुझाने के लिए पानी का इस्तेमाल न करें।

AC में ऐहतियात
आजकल लेटस्ट टेक्नॉलजी वाले एसी आते हैं जो ऑटो कट होते रहते हैं, इसलिए अगर इन्हें 24 घंटे भी चलाएं तो ये खराब नहीं होते। लेकिन ठीक से देखभाल न की जाए तो एसी हमारे लिए खतरनाक भी साबित हो सकता है। एसी आमतौर पर 15 एंपियर तक करंट झेल सकता है। अच्छी तरह रखरखाव वाला एसी 12 एंपियर का करंट लेता है, जबकि अगर एसी को बिना सालाना सर्विसिंग किए चलाया जाए तो वह 18 एंपियर तक करंट लेता है। इससे न सिर्फ वायर पर लोड बढ़ता है, बल्कि एसी जल भी सकता है। शॉर्ट सर्किट से घर में आग भी लग सकती है। जब न्यूट्रल, फेज और अर्थ, तीनों वायर या कोई दो वायर आपस में टच हो जाती हैं तो शार्ट सर्किट होता है।

क्या करें
एसी के लिए हमेशा एमसीबी (MCB) यानी मिनिएचर सर्किट ब्रेकर स्विच लगवाएं। नॉर्मल या पावर स्विच में एसी का प्लग न लगाएं। एमसीबी के बेस्ट ब्रैंड एंकर, हैवल्स, बैनटेक्स-लिंगर हैं। सीजन शुरू होने से पहले एसी की सर्विस जरूर कराएं। हो सके तो सीजन के बीच में भी एक बार सर्विस कराएं। जब भी सर्विस कराएं, ट्रांसफॉर्मर आदि का प्लग खुलवा कर चेक कराएं कि कहीं कोई तार ढीली तो नहीं। एसी से आग की एक बड़ी वजह तारों के ढीला होने से स्पार्क होना है। एसी या इलेक्ट्रॉनिक सॉकेट के पास पर्दा न रखें क्योंकि स्पार्क होने पर पर्दा आग पकड़ सकता है। एसी को रिमोट से बंद करने के बाद उसकी MCB को भी बंद करना चाहिए। एसी को लगातार 12 घंटे से ज्यादा न चलाएं। खिड़की-दरवाजे खोलकर एसी न चलाएं।

कार को ऐसे बचाएं आग से
- गर्मियों में कार को छांव में खड़ा करें और अगर मजबूरन धूप में खड़ा कर रहे हैं तो कार को ऐसे खड़ा करें कि धूप सीधा कार के अगले हिस्से पर न पड़े। कार के शीशे को हल्का से खोल दें। इससे कार में गर्म हवा नहीं भरती। अगर धूल-मिट्टी की वजह से शीशा हल्का-सा नहीं खोल सकते तो शीशों को किसी कपड़े से ढक देना चाहिए ताकि धूप सीधा कार के अंदर न आ सके।
- कहा जाता है कि जिस कार में सेंट्रल लॉक लगा होता है, आग लगने पर उस कार के दरवाजे नहीं खुलते, लेकिन ऐसा नहीं है। आग लगने पर भी दरवाजे खुल जाते हैं। अगर दरवाजे नहीं खुलें तो अगली सीट के हेड रेस्ट को निकालकर शीशे को तोड़ सकते हैं। कुछ कारों में गियर लॉक लगा होता है। उस गियर लॉक से भी शीशा तोड़ा जा सकता है।
- साथ ही कार में हमेशा छोटी हथौड़ी, हॉकी स्टिक या फिर रॉड रखनी चाहिए ताकि आग लगने पर शीशा तोड़ा जा सके। इसके अलावा, कार में फायर एक्सटिंगविशर जरूर रखें।

कुछ और सावधानियां
- ओवरलोडिंग से बचें। अक्सर हम एक ही इलेक्ट्रॉनिक सॉकेट में टू-पिन या थ्री-पिन वाला मल्टिप्लग लगा देते हैं। इससे लोड बढ़ जाता है और स्पार्किंग होने लगती है।
- हर इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक आइटम को एक दिन में लगातार चलाने की तय सीमा होती है। फिर चाहे वह एसी हो, पंखा हो, टीवी या फिर मिक्सी ही क्यों न हो। हर प्रॉडक्ट की पैकिंग पर यह जानकारी होती है। जरूरत से ज्यादा चलाने पर इलेक्ट्रॉनिक आइटम गर्म हो जाते हैं और आग लगने का कारण बन जाते हैं।
- इनवर्टर में पानी सही रखें। कम पानी होने, इनवर्टर के तार को अच्छी तरह कवर नहीं करने या फिर तार को ढीला छोड़ देने से स्पार्किंग हो सकती है।
- जब भी घर से बाहर जाएं तो सभी स्विच और इनवर्टर जरूर बंद करें।
- हर रात गैस सिलिंडर की नॉब को बंद करके ही सोना चाहिए। साथ ही गैस पाइप को हर 6 महीने में बदलते रहना चाहिए।
- रसोई में चूल्हे पर दूध का पतीला या तेल की कड़ाही चढ़ाकर न छोड़ें। ऐसा कर हम अक्सर दूसरे कामों में बिजी हो जाते हैं और तेल बेहद गर्म होकर आग पकड़ लेता है या फिर दूध उबल कर चूल्हे पर गिर जाता है। इससे चूल्हे की आग बुझ जाती है और गैस लीक होती रहती है, जो आग पकड़ लेती है।
- खराब रबड़ या खराब सीटी वाला प्रेशर कुकर यूज करना भी खतरनाक है। ऐसा होने पर कुकर ब्लास्ट कर सकता है।
- किचन में खाना बनाते समय ढीले-ढाले और सिंथेटिक कपड़े न पहनें। ये आग जल्दी पकड़ते हैं।
- फ्रिज के दरवाजे पर लगी रबड़ को अच्छी तरह साफ करें, वरना दरवाजा सही से बंद नहीं होगा। इससे कम्प्रेशर गर्म होकर आग लगने की वजह बन सकता है।
- गर्म आयरन को किसी कपड़े, पर्दे या इलेक्ट्रॉनिक प्लग के पास न रखें। ये चीजें आग पकड़ सकती हैं।
- बाथरूम के अंदर स्विच न लगवाएं, वरना नहाते समय या कपड़े धोते समय पानी उस पर गिर सकता है, जिससे स्पार्क हो सकता है। अंदर लगाना ही है तो ऊंचाई ज्यादा रखवाएं, जहां तक पानी की छीटें न जा सकें या फिर स्विच बोर्ड पर प्लास्टिक शीट चिपका दें।
- बच्चे के हाथ में माचिस न दें। यह आग लगने की वजह बन सकता है।
- दीया, अगरबत्ती, मोमबत्ती जलती छोड़कर सब लोग घर से बाहर न जाएं।

इमरजेंसी के लिए पहले से रहें तैयार

करके रखें तैयारी
आग शुरू में हमेशा हल्की होती है। उसे उसी समय रोक देना बेहतर है, लेकिन अक्सर उस वक्त हम घबरा जाते हैं और कोई कदम नहीं उठा पाते। यह भी कह सकते हैं कि हम इसलिए कदम उठा नहीं पाते क्योंकि हमने पहले से तैयारी नहीं की होती। मसलन घर में फायर एक्स्टिंगग्विशर रखा है, लेकिन हमें उसे चलाना नहीं आता। ऐसे में जरूरी है कि हम आग से निपटने के लिए पहले से तैयार रहें। एक्सपर्ट मानते हैं कि आग कैसे बुझानी है, एक-दूसरे को कैसे बचाना है, इन सबके लिए सभी को हर दो-तीन महीने में प्रैक्टिस जरूर करनी चाहिए। मेन गेट के अलावा, आग लगने पर और कहां से सुरक्षित निकल सकते हैं, यह भी पहले से सोच कर रखें और इसकी प्रैक्टिस भी करते रहें।

ये उपकरण हैं कारगर
आग कैसे और कहां लगी है, इसके आधार पर फायर एक्स्टिंगग्विशर को 5 कैटिगरी में बांटा गया है। हर फायर एक्स्टिंगग्विशर पर कैटिगरी लिखी होती है। आग लगने की वजह के मुताबिक उन्हें यूज करें:
Class A: सॉलिड यानी कागज, लकड़ी, कपड़ा, प्लास्टिक आदि से लगने वाली आग
Class B: लिक्विड यानी पेट्रोल, पेंट, स्प्रिट या तेल से लगने वाली आग
Class C: एलपीजी यानी रसोई गैस, वेल्डिंग गैस और बिजली के उपकरण से लगने वाली आग
Class D: मेटल यानी मैग्नीशियम, सोडियम या पोटैशियम से लगने वाली आग
Class K: कुकिंग ऑयल से लगने वाली आग

आग के क्लासिफिकेशन के अनुसार ही फायर एक्स्टिंगग्विशर का भी क्लासिफिकेशन किया गया है:
वॉटर एंड फोम: क्लास A की आग के लिए
कार्बन डाईऑक्साइड: क्लास B और C की आग के लिए
ड्राई केमिकल: क्लास A, B और C की आग के लिए
वेट केमिकल: क्लास K की आग के लिए
क्लीन एजेंट: क्लास B और C की आग के लिए
ड्राई पाउडर: क्लास B की आग के लिए
वॉटर मिस्ट: क्लास A और C की आग के लिए

आमतौर पर घर में ड्राई केमिकल वाला फायर एक्स्टिंगग्विशर ही रखा जाता है। इस तरह के एक्स्टिंगग्विशर के सिलिंडर पर ABC लिखा होता है। मार्केट में इसके रेट वजन के हिसाब से हैं:
1 किलो: 740 रुपये
2 किलो: 900 रुपये
4 किलो: 1400 रुपये
6 किलो: 1740 रुपये
टॉप फायर एक्स्टिंगग्विशर ब्रैंड हैं: सीजफायर (Ceasefire), फायरफॉक्स (Firefox), अतासी (Atasi), अग्नि (Agni) आदि। इन कंपनियों के कार के भी फायर एक्स्टिंगग्विशर आते हैं। सिलिंडरों के अलावा मॉड्यूलर एक्स्टिंगग्विशर भी बहुत काम की चीज है। अभी तक यह ऑफिस या इंडस्ट्रियल एरिया में ही लगाया जाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल रेजिडेंशल एरिया में भी होने लगा है। इसे घर में कहीं भी लगा सकते हैं, लेकिन किचन में लगाना सबसे बेहतर है। यह सीलिंग में फिट होता है। इसके अंदर एक छोटा-सा बल्ब लगा होता है, जो 65 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान पहुंचते ही फट जाता है और उसमें से पाउडर निकलने लगता है, जो आग बुझा देता है। छोटा 1800 रुपये में और बड़ा 2400 रुपये में आता है। आपने घर में जो भी फायर एक्स्टिंगग्विशर रखा है, उसे साल में एक बार चेक जरूर करें। उसकी नोब ग्रीन एरिया में होनी चाहिए।
फायर एक्स्टिंगग्विशर चलाना सीखें: nbt.in/eyOxEZ

नए, स्मार्ट फायर उपकरण
स्मोक/फायर कर्टन: इसे एक तय एरिया में लगाया जाता है और लोकल फायर अलार्म पैनल या फिर स्मोक डिटेक्टर से कनेक्ट कर देते हैं। आग लगते ही या धुआं फैलते ही ये कर्टन ऐक्टिव हो जाते हैं। ये आग और धुएं को फैलने से रोकते हैं। जिस जगह ये लगे होते हैं, वहां से आग या धुएं को फैलने के लिए कुछ देर के लिए रोक देते हैं। इससे इमारत में फंसे लोगों को बचाने में आसानी होती है और पर्याप्त समय भी मिल जाता है। अमूमन इस तरह के कर्टन आग या धुएं को ज्यादा-से-ज्यादा दो घंटे तक रोके रखने में सक्षम होते हैं और इतना समय रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने के लिए काफी होता है। इसे एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, बस टर्मिनल, फैक्ट्री, कमर्शल बिल्डिंग, ऑफिस या फिर रेजिडेंशल सोसायटी में लगाया जा सकता है।

स्मोक डिटेक्टर: इसमें एक तरह का सेंसर लगा होता है, जिसे आग से फैलने वाले धुएं की मौजूदगी का पता लगाने के लिए लगाया जाता है। यह इस तरह डिजाइन किया जाता है कि जहां इसे लगाया गया है, उसके आसपास धुआं फैलते ही यह ऐक्टिव हो जाता है और फायर अलार्म सिस्टम को सिग्नल भेजता है। इसके बाद फायर अलार्म सिस्टम के जरिए पूरी बिल्डिंग में लगे हॉर्न या हूटर बजने लगते हैं। यह धुआं होने पर बिल्कुल सटीक तरीके से काम करता है। यह सिर्फ लोगों को अलर्ट करने के काम आता है, न कि आग बुझाने के। सुरक्षा के नजरिये से इसे फैक्ट्री, कमर्शल बिल्डिंग, ऑफिस या फिर घर में लगाना बेहद जरूरी है। स्मोक डिटेक्टर को फायर अलार्म सिस्टम से वायर के जरिए कनेक्ट किया जाता है, लेकिन अब मार्केट में वायरलेस डिटेक्टर भी आ रहे हैं। स्मोक डिटेक्टर दो तरह के होते हैं। एक कंवेंशनल जो 1200 रुपये का आता है और दूसरा अड्रेसेबल जो 3500 रुपये का आता है।

फायर अलार्म सिस्टम: यह भी आग या धुएं की मौजूदगी का पता लगाने में मदद करता है। यह बिल्डिंग के फायर कंट्रोल रूम में लगा होता है। यह सिस्टम ऑटोमेटिक तरीके से काम करता है। आग लगते ही या धुआं फैलते ही यह अपने आप चालू हो जाता है। इससे पता चल जाता है कि बिल्डिंग में आग कहां लगी है। साथ ही यह एक स्पीकर से जुड़ा होता है जो हॉर्न बजाकर पूरी बिल्डिंग में मौजूद लोगों को सूचित करता है। आधुनिक फायर अलार्म सिस्टम में तो रेकॉर्डड मेसेज होता है, जो आग लगने या धुआं फैलने पर लोगों को जगह खाली करने की सूचना देता है। इससे बिल्डिंग को खाली कराने और आग को बुझाने की तैयारी करने में मदद मिलती है।

फायर स्प्रिंकलर सिस्टम: सिर्फ ये स्प्रिंकलर ही होते हैं जो आग लगने पर सबसे पहले आग को बुझाने का काम करते हैं। कमरे का तापमान 67 डिग्री से ज्यादा होते ही इनमें लगे रबड़ पिघल जाते हैं और पानी की बौछार करने लगते हैं। आमतौर पर स्प्रिंकलर के पाइप जिस वॉटर टैंक से जुड़े होते हैं उनमें 10 से 25 गैलन पानी होना जरूरी है। इनमें पाइप मेटल के होते हैं जो आग नहीं पकड़ते। यह आग से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम कर देते हैं और लोगों की जिंदगी भी बचाते हैं। अब तो इनका इस्तेमाल कमर्शल व रेजिडेंशल सोसायटी के साथ-साथ घरों में भी होने लगा है।

गैस फ्लडिंग सिस्टम: इनका इस्तेमाल सिर्फ सर्वर रूम में ही किया जा सकता है। ये फायर एक्स्टिंगग्विशर की तरह सिलेंडर होते हैं जो सर्वर रूम में जरूरत के हिसाब से रखे जाते हैं। ये आग लगते ही ऐक्टिव हो जाते हैं और पाउडर रिलीज़ करते हैं। जहां मॉड्युलर ऑटोमैटिक एक्स्टिंगग्विशर सिर्फ थोड़ी-सी जगह में काम करते हैं वहीं ये सिलिंडर पूरे कमरे को पाउडर से भर देते हैं। आम एक्स्टिंगग्विशर के मुकाबले इसमें भरा जाने वाला पाउडर महंगा होता है। एक सिलिंडर को भरने में करीब एक लाख रुपये तक का खर्चा आता है। इनमें दो सेंसर लगे होते हैं। दूसरे सेंसर के ऐक्टिव होने के बाद ही सिलेंडर से पाउडर निकलता है।

फायर बॉल: अगर आग ज्यादा फैल जाए और वहां तक जाना मुश्किल हो तो वहां फायर बॉल को फेंका जाता है, जिससे आग कुछ कम हो जाती है। इसके बाद फायर फाइटर वहां तक जाकर आग बुझाने का काम कर सकता है।

फायर रेजिस्टेंट पेंट: यह एक तरह की कोटिंग होती है, जिसे फर्नीचर, दरवाजों और खिड़कियों पर किया जाता है। हालांकि यह पेंट किसी भी चीज को फायरप्रूफ तो नहीं बनाता, लेकिन उसमें आग लगने के टाइम को जरूर कम देता है। इससे आग को फैलने में समय लगता है और लोगों को आसानी से बचाया जा सकता है। फायर रेजिस्टेंट पेंट की कीमत करीब 480 रुपये किलो है।

फायर रेजिस्टेंट डोर: इस तरह के दरवाजों में जल्दी आग नहीं लगती। यह कुछ देर के लिए आग को कंट्रोल करके रखते हैं, जिससे बिल्डिंग में फंस लोगों को बाहर निकलने का समय मिल जाता है। फायर रेजिस्टेंट डोर की कीमत 15 से 20 हजार रुपये से शुरू होती है।

फायर इंश्योरेंस भी जरूरी
घर का फायर इंश्योरेंस जरूर कराना चाहिए। जिस किसी ने भी लीगल तरीके से प्रॉपर्टी या घर खरीदा है, वह फायर इंश्योरेंस ले सकता है। यह घर में आग लगने और उससे नुकसान होने पर उसे कवर करने का गारंटी देता है। प्रॉपर्टी की मौजूदा मार्केट वैल्यू के मुताबिक इंश्योरेंस का अमाउंट तय होता है। रेंट पर ली गई रेजिडेंशल प्रॉपर्टी का भी फायर इंश्योरेंस करवा सकते हैं। टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, फर्नीचर, सभी तरह के गैजेट्स यानी घर में इस्तेमाल होने वाला एक-एक सामान इस इंश्योरेंस में कवर होता है। किसी भी तरह की आगजनी, एयरक्राफ्ट क्रैश, प्राकृतिक आपदा (बाढ़, आंधी, भूकंप, लैंडस्लाइड आदि) जैसी स्थिति में घर को होने वाला नुकसान फायर इंश्योरेंस में कवर होता है।
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आग लग जाए तो...
- घबराएं नहीं और जिस चीज में आग लगी है, उसके आसपास रखी सभी चीजों को हटाने की कोशिश करें, ताकि आग को फैलने का मौका न मिले।
- अगर शॉर्ट सर्किट से आग लगती है तो मेन सर्किट को बंद कर दें और फायर एक्सटिंगविशर का प्रयोग करें। अगर यह नहीं है तो आग पर मिट्टी या रेत डालें। पानी न डालें। इलेक्ट्रिकल फायर में पानी का इस्तेमाल इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे करंट लग सकता है।
- आग ज्यादा है तो घर के सभी सदस्यों को इकट्ठे कर सुरक्षित जगह पर जाने की कोशिश करें। अगर बिल्डिंग में रहते हैं तो लिफ्ट की जगह सीढ़ियों के जरिए नीचे उतरें।
- आग लग जाने पर धुआं फैलता है इसलिए मुंह को ढककर निकलें।
- खाना बनाते समय अगर कढ़ाही में आग लग जाए तो उसे किसी बड़े बर्तन से ढक देना चाहिए। इससे आग बुझ जाएगी।
- अगर सिलिंडर में आग लग जाती है तो सबसे पहले उसकी नॉब को बंद करने की कोशिश करें। फिर गीला कपड़ा या बोरी डालकर उसे ठंडा करने की कोशिश करें। साथ ही सिलिंडर को खींचकर खुली जगह पर ले जाएं।
- कपड़ों में आग लग जाए तो भागने या खड़े रहने की जगह लेट जाएं, इससे आग फैलेगी नहीं। साथ ही कंबल से या फिर फायर एक्स्टिंगग्विशर से उसे बुझाने की कोशिश करें।

...गर कोई जल जाए तो उठाएं ये कदम
- कपड़ों या शरीर में आग लग जाए तो खड़े न रहें और न ही भागें। मुंह को ढककर जमीन पर लेट जाएं और रेंगकर चलें। इससे आग बुझ जाएगी। किसी और शख्स में आग लगी हो तो कंबल या मोटा कपड़ा डालकर आग बुझाएं। आग बुझाने के बाद उस शख्स पर पानी डालें।
- खिड़कियां खोल दें ताकि धुएं से दम न घुटे। धुएं में दम घुटने से अगर कोई बेहोश हो गया है तो सबसे पहले उसे खुली हवा में ले जाएं ताकि ऑक्सिजन मिल सके। आमतौर पर घर में ऑक्सिजन नहीं होती इसलिए मरीज को तुरंत हॉस्पिटल ले जाएं। मुंह से हवा देने की कोशिश न करें क्योंकि इससे मरीज को कोई फायदा नहीं होगा।
- जख्म पर टूथपेस्ट या किसी तरह का तेल लगाने की गलती न करें। इससे जख्म की स्थिति गंभीर हो सकती है और डॉक्टर को जख्म साफ करने में भी दिक्कत होगी।
- जख्म मामूली है तो उस पर सिल्वर सल्फाडाइजीन (Silver Sulfadiazine) क्रीम लगाएं। यह मार्केट में एलोरेक्स (Alorex), बर्निल (Burnil), बर्नएड (Burn Aid), हील (Heal) आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। अगर जख्म ज्यादा हो तो हॉस्पिटल ले जाने तक उस पर नॉर्मल पानी डालते रहें ताकि जख्म गहरा न हो जाए।

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रेल टिकट बुकिंग गाइड

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ट्रेन सफर का बेहतर और किफायती जरिया है। हाल में ट्रेन रिजर्वेशन नियमों में कई तरह के बदलाव हुए हैं। रेलवे टिकट बुकिंग और कैंसिलेशन से जुड़ीं तमाम तरह की जानकारियां दे रहे हैं गुलशन राय खत्री

रेल रिजर्वेशन के तीन तरीके हैं:
1. वेबसाइट
2. मोबाइल ऐप
3. रेलवे रिजर्वेशन काउंटर

1. ऑनलाइन टिकट रिजर्वेशन irctc.co.in पर जाकर करा सकते हैं। ऑनलाइन टिकट बुक करने के लिए सबसे पहले आपको अपना लॉगइन क्रिएट करना होगा। इसके लिए आप www.irctc.co.in पर क्लिक करें। पेज खुलते ही लेफ्ट साइट में User ID के बगल में Sign up का ऑप्शन मिलेगा। Sign up पर क्लिक करते ही एक पेज खुलेगा, जिसमें मांगी गई जानकारी भरने के बाद आईआरसीटीसी की इस साइट पर आप रजिस्टर्ड हो जाएंगे। एक बार रजिस्टर्ड होने और लॉगइन आईडी और पासवर्ड मिल जाने के बाद आप कभी भी टिकट कटा सकते हैं। इसी लॉगइन और पासवर्ड की मदद से मोबाइल ऐप से भी टिकट कटाना मुमकिन है। इस लॉगइन से आप डेबिट, क्रेडिट कार्ड या इंटरनेट बैंकिंग की मदद से टिकट बुक कर सकते हैं। यहां से बुकिंग कराने पर रेलवे सर्विस चार्ज लेता है। सेकंड क्लास सीटिंग और स्लीपर क्लास के टिकट पर यह 10 रुपए और अपर क्लास के लिए 20 रुपए है। ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा 24 घंटे है, बस रात 11:30 से 12:30 के बीच यह सेवा उपलब्ध नहीं रहती।

2. मोबाइल से रिजर्वेशन के लिए दो चीजें जरूरी हैं:
1. मोबाइल में इंटरनेट कनेक्शन
2. IRCTC Rail Connect ऐप: एंड्रॉयड, विंडोज़

कितने दिन पहले हो सकता है रिजर्वेशन?

लंबी दूरी की ज्यादातर ट्रेनों के लिए 120 दिन पहले से बुकिंग शुरू हो जाती है। यात्रा के दिन को 120 दिनों में शामिल नहीं किया जाता। 120 दिन की गणना करने के लिए आईआरसीटीसी की टिकट बुकिंग वेबसाइट पर दिए कैलकुलेटर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। www.irctcticketdate.blogspot.com पर भी जाकर दिनों की गिनती कर सकते हैं। यह भी याद रखें कि 120 दिन की गणना अपने स्टेशन से शुरू होने वाली यात्रा की बजाय उस दिन को आधार मानकर शुरू करें, जिस दिन ट्रेन अपने पहले स्टेशन से रवाना होती है। सुबह 8 बजे टिकट बुकिंग शुरू होती है। दिन में चलने वाली और कम दूरी की कुछ ट्रेनों की बुकिंग अवधि 30 दिन और 15 दिन भी है। विदेशी नागरिक यात्रा से 360 दिन पहले टिकट बुक करा सकते हैं।

ट्रेन चलने से कितनी देर पहले तक करा सकते हैं बुकिंग?

ट्रेन चलने से पहले दो बार चार्ट तैयार होते हैं। पहली बार ट्रेन चलने से चार घंटे पहले चार्ट तैयार होता है। ऐसे में चार घंटे पहले तक टिकट रिजर्वेशन कराया जा सकता है। पहला चार्ट तैयार होने के बाद अगर कोई टिकट कैंसल होने से सीट खाली होती है तो उस स्थिति में भी ट्रेन चलने से आधा घंटे पहले तक रिजर्वेशन मुमकिन है। यह ऑनलाइन भी हो सकता है और काउंटर से भी।

एक महीने में कितने टिकट करा सकते हैं बुक?

ऐसा नहीं है कि कोई जितने चाहे टिकट बुक करा सकता हो। रेलवे के नियम के मुताबिक, एक लॉगइन आईडी पर एक महीने में छह टिकट बुक हो सकते हैं, लेकिन अगर पहचान के तौर पर आधार दिखाते हैं तो 12 टिकट बुक कराए जा सकते हैं।

टिकट बुकिंग के लिए भुगतान कैसे करें?

ऑनलाइन टिकट बुकिंग के लिए क्रेडिट, डेबिट कार्ड और नेट बैंकिंग के साथ-साथ ई-वॉलेट सुविधा का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

ई-वॉलेट क्या है?

ई-वॉलेट एक तरह से आईआरसीटीसी में आपका ऑनलाइन अकाउंट है। इसमें आप रकम जमा रख सकते हैं और जब भी ऑनलाइन टिकट बुक कराना हो तो इसी अकाउंट से टिकट की रकम का भुगतान हो सकता है। इसका फायदा यह है कि इससे टिकट बुक कराने में समय की बचत होती है। ई-वॉलेट बनाने के लिए आपको irctc.co.in पर लॉगइन करना होगा। यहां होमपेज पर आपको More का ऑप्शन दिखेगा। इसे क्लिक करेंगे तो ड्रॉप डाउन में IRCTC eWallet का ऑप्शन दिखेगा।

ट्रेन रिजर्वेशन पर क्या-क्या चार्ज लगते हैं?

ट्रेन रिजर्वेशन के लिए बेस किराए के साथ रिजर्वेशन चार्ज भी देना होता है। एसी क्लास के लिए 40 रुपए और नॉन-एसी के लिए यह चार्ज 20 रुपए है। इसके अलावा जीएसटी और जिन ट्रेनों में कैटरिंग है, उनमें कैटरिंग चार्ज भी लिया जाता है। इसके अलावा सुपरफास्ट ट्रेनों में सुपरफास्ट चार्ज लगता है। शताब्दी, राजधानी और दुरंतो में डाइनैमिक चार्ज भी लगाया जाता है, यानी आपको टिकट के लिए तय रकम से ज्यादा पैसा देना पड़ सकता है।

क्या है RAC?

आरएसी (RAC) का मतलब है रिजर्वेशन अगेंस्ट कैंसिलेशन। अगर आपको कन्फर्म बर्थ की जगह आरएसी का टिकट मिला है तो इसका मतलब है कि आप ट्रेन में यात्रा तो कर सकते हैं, लेकिन रेलवे आपको आधी बर्थ देगा। अगर सफर के दौरान कोई सीट खाली होती है तो उस स्थिति में टीटीई आपको पूरी बर्थ भी दे सकता है।

क्या कन्फर्म रेल टिकट का ट्रांसफर मुमकिन है?

- अगर यात्री अपना टिकट परिवार के सदस्य यानी माता, पिता, भाई, बहन, बेटा, पति या पत्नी के नाम पर ट्रांसफर कराना चाहे तो कर सकता है। इसके लिए यात्री को 24 घंटे पहले रेलवे के चीफ रिजर्वेशन सुपरवाइजर को लिखित अनुरोध करना होगा।

- डयूटी पर तैनात सरकारी कर्मचारी ड्यूटी पर तैनात किसी दूसरे सरकारी कर्मचारी को अपना टिकट ट्रांसफर कर सकते हैं। इसके लिए भी 24 घंटे पहले अनुरोध करना होगा।

- मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं के स्टूडेंट भी दूसरे स्टूडेंट को टिकट ट्रांसफर कर सकते हैं, लेकिन सफर शुरू होने से 48 घंटे पहले उन्हें अनुरोध देना होगा।

- बरात के लिए बुकिंग कराने पर भी टिकट ट्रांसफर किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए भी बुकिंग कराने वाले को 48 घंटे पहले अनुरोध करना होगा।

नोट: इसमें शर्त यह भी है कि जो टिकट ट्रांसफर किया जा रहा है, वह रियायती किराए पर न लिया गया हो, यानी ऐसा न हो कि बुजुर्ग यात्री के नाम पर 50 फीसदी छूट के साथ लिया गया टिकट परिवार के किसी युवा सदस्य के नाम ट्रांसफर करने का अनुरोध किया जाए। अगर कोई ऐसा चाहता है तो उसे बाकी का पैसा चुकाना होगा।

क्या रिजर्वेशन के बाद टिकट अपग्रेड हो सकता है?

रेलवे यह सुविधा देता है। पिछले साल लगभग 23 हजार यात्रियों के टिकट अपग्रेड किए गए थे। इसके लिए टिकट बुकिंग कराने से पहले यात्री को फॉर्म पर अपग्रेडेशन का एक ऑप्शन क्लिक करना होता है। अगर यात्री ने थर्ड एसी का टिकट लिया है और उस ट्रेन में सेकंड एसी की कोई बर्थ खाली रह गई है तो ऐसे में बिना अडिशनल पैसा लिए यात्री को सेकंड एसी की बर्थ दी जा सकती है।

क्या ऑनलाइन या ऐप से टिकट लेने के बाद उसका प्रिंटआउट लेना जरूरी है?

नहीं, रेलवे (IRCTC) की तरफ से आया एसएमएस दिखाना ही काफी है।

जानें, तत्काल का फंडा

तत्काल ऐसे यात्रियों के लिए है, जिन्हें इमरजेंसी में यात्रा का फैसला लेना पड़ता है। आमतौर पर ट्रेनों की हर कैटिगरी की लगभग 30 फीसदी टिकटें तत्काल के लिए होता है। तत्काल के तहत सिर्फ चार लोगों का रिजर्वेशन एक पीएनआर नंबर पर हो सकता है। अगर आप रेलवे काउंटर से तत्काल टिकट ले रहे हैं तो आपको आठ वैलिड आइडेंटिटी प्रूफ में से कोई एक दिखाना होगा। ये हैं - आधार, पैन कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आई कार्ड, फोटो वाला क्रेडिट कार्ड, सरकारी निकायों का फोटो आई-कार्ड, मान्यता प्राप्त स्कूल-कॉलेजों का आई-कार्ड। रिजर्वेशन स्लिप के साथ आपको एक सेल्फ अटेस्टेड आई-कार्ड की फोटोकॉपी भी विंडो पर देनी होगी। तत्काल टिकट खो जाने पर आमतौर पर ड्यूप्लिकेट टिकट नहीं दिया जाता। कुछ खास स्थितियों में तत्काल चार्ज समेत टोटल फेयर पे करने पर ड्यूप्लिकेट टिकट मिल सकता है।

कब करा सकते हैं तत्काल टिकट बुक?

यात्रा शुरू होने से एक दिन पहले तत्काल का टिकट लिया जा सकता है। अगर आपकी ट्रेन 10 मई की है तो उस ट्रेन के लिए तत्काल की सीटें 9 मई को बुक करा सकते हैं। एसी क्लास के टिकट सुबह 10 से 11 बजे और नॉन-एसी क्लास के टिकट 11 से 12 बजे के बीच टिकट बुक कराए जा सकते हैं।

एक आदमी कितने टिकट?

एक लॉगइन पर एक दिन में ज्यादा-से-ज्यादा 4 लोगों का टिकट बुक किया जा सकता है।

वेटिंग का टिकट

तत्काल में आरएसी सीट नहीं दी जाती, लेकिन वेटिंग का टिकट मिलता है।

तत्काल के टिकट के लिए अतिरिक्त चार्ज

तत्काल के टिकट पर अतिरिक्त चार्ज लिया जाता है। इसमें हर क्लास के लिए अलग चार्ज है:

रिजर्व्ड सेकंड सिटिंग: 10 से 15 रुपए
स्लीपर: 100 से 200 रुपए
एसी चेयरकार: 125 से 225 रुपए
एसी 3 टीयर: 300 से 400 रुपए
एसी 2 टीयर : 400 से 500 रुपए
एग्जिक्युटिव: 400 से 500 रुपए

क्या तत्काल टिकट सभी ट्रेनों के लिए उपलब्ध हैं?

नहीं, सिर्फ उन्हीं चुनिंदा ट्रेनों में तत्काल की सुविधा है, जिनकी काफी डिमांड है।

क्या तत्काल का वेटिंग पहले कन्फर्म होता है?

तत्काल में टिकट पहले कन्फर्म होने की संभावना होती है। आमतौर पर टिकट कन्फर्म करते वक्त एक अनुपात दो का रेश्यो होता है। अगर वेटिंग का आम टिकट एक कन्फर्म होता है, तो तत्काल के दो।

तत्काल का कन्फर्म टिकट रद्द होने पर कितना रिफंड मिलता है?

तत्काल का अगर टिकट कन्फर्म है तो उसमें कोई रिफंड नहीं मिलता। अगर वेटिंग का टिकट है तो सामान्य रिफंड के सामान्य नियम लागू होते हैं, फिर चाहे खिड़की से लिया गया हो या वेबसाइट से या फिर ऐप से।

क्या है 'विकल्प' सुविधा?

विकल्प का अर्थ यह है कि किसी ट्रेन में सीट उपलब्ध न रहने पर रेलवे आपको उसी रूट की दूसरी ट्रेन में सीट का विकल्प प्रदान कर रहा है। इस स्कीम के तहत बुकिंग के वक्त जिन यात्रियों को कन्फर्म बर्थ उपलब्ध नहीं होती, वे विकल्प स्कीम का फायदा ले सकते हैं। वेटिंग के टिकट के समय ही यह ऑप्शन अगर चुन लिया जाता है तो उस स्थिति में यात्री अपने रूट पर पांच ट्रेनों का विकल्प ले सकता है। अगर इन पांच ट्रेनों में से किसी एक में सीट उपलब्ध होती है तो यात्री का टिकट रेलवे उस ट्रेन में ट्रांसफर करके यात्री को एसएमएस के जरिए सूचित करेगा। विकल्प की सुविधा 2015 में ट्रायल के तौर पर चुनिंदा रूटों पर शुरू की गई थी, लेकिन अब इसका दायरा बढ़ा दिया गया है। रेलवे को इसका फायदा यह होता है कि एक ही रूट की कम पॉप्युलर ट्रेनों में अगर बर्थ खाली होती हैं तो दूसरी ट्रेन की वेटिंग के यात्रियों को इन ट्रेनों में बर्थ मुहैया करा दी जाती है। इससे यात्री और रेलवे दोनों को ही फायदा मिलता है।

टिकट रिफंड के नियम भी जरूर जानें

अगर किसी वजह से यात्रा रद्द करते हैं तो जरूरी है कि जितना जल्द हो सके, अपना टिकट कैंसल करा लें, वरना जितनी देर करेंगे, आपकी उतनी ही जेब कटेगी।

कैसे कराएं टिकट कैंसल?

अगर ऑनलाइन रेल रिजर्वेशन कराया गया है और चार्ट बनने के बाद भी टिकट वेटिंग में है तो टिकट खुद ही कैंसल हो जाएगा और रिफंड दो-तीन दिनों में उसी अकाउंट में पहुंच जाएगा, जिससे टिकट का भुगतान किया गया था। अगर टिकट पैसेंजर रिजर्वेशन सिस्टम के काउंटर से लिया गया है तो इसके लिए खुद यात्री या यात्री की ओर से किसी और को काउंटर पर जाकर टिकट कैंसल कराना होगा।

48 घंटे पहले कन्फर्म टिकट कैंसल कराने पर कैंसिलेशन चार्ज:

एसी फर्स्ट और एग्जिक्युटिव क्लास: 240 रुपए

एसी सेकंड और फर्स्ट क्लास: 200 रुपए

थर्ड एसी, इकॉनमी और चेयरकार: 180 रुपए

स्लीपर: 120 रुपए

सेकंड क्लास सीटिंग: 60 रुपए

ट्रेन रवाना होने से 48 घंटे से लेकर 12 घंटे पहले तक: किराए की 25 फीसदी रकम कटेगी

ट्रेन रवाना होने से 12 घंटे से लेकर 4 घंटे पहले तक: किराए की 50 फीसदी रकम कटेगी

चार्ट बनने के बाद और ट्रेन रवाना होने के बीच: कोई रिफंड नहीं

वेटिंग और RAC टिकट कैंसल में रिफंड का फंडा

अगर वेटिंग या आरएसी का काउंटर से खरीदा हुआ टिकट है तो भी ट्रेन रवाना होने से आधा घंटा पहले टिकट रद्द कराना होगा, वरना उसके बाद कोई रिफंड नहीं होगा। अगर ऑनलाइन टिकट लिया था तो पैसा खुद ब खुद अकाउंट में वापस हो जाएगा।

रात की ट्रेन का टिकट का रिफंड कैसे लें?

रात 9 बजे से सुबह 6 बजे के बीच रेलवे टिकट काउंटर बंद रहता है। ऐसी स्थिति में अगर रात की ट्रेन में टिकट कन्फर्म नहीं होता तो उस स्थिति में सुबह काउंटर खुलने के दो घंटे के भीतर तक रिफंड लिया जा सकता है। इसके अलावा दूसरा ऑप्शन यह भी है कि यात्री चाहे तो 139 पर टिकट कैंसल कराने का अनुरोध कर सकता है। उस स्थिति में उसे एक तय अवधि के भीतर किसी भी काउंटर पर जाकर टिकट सरेंडर करना होगा। ऑनलाइन टिकट लिया है तो फिर कोई दिक्कत ही नहीं क्योंकि आप ऑनलाइन ही कैंसल करा सकते हैं।

अगर वेटिंग वाले कुछ यात्री सफर न करें तो?

अगर आपने चार लोगों का ऑनलाइन रेल टिकट लिया है और उनमें से दो का टिकट कन्फर्म हो गया है और बाकी दो का वेटिंग लिस्ट में है और वेटिंग लिस्ट वाले सफर नहीं कर रहे तो ट्रेन में ही चेकिंग स्टाफ से सर्टिफिकेट ले सकते हैं कि वेटिंग लिस्ट वाले यात्री ट्रेन में नहीं हैं। यात्रा पूरी होने के बाद उसी सर्टिफिकेट के आधार पर ऑनलाइन टीडीआर भरकर दो यात्रियों का किराया क्लेम कर सकते हैं।

क्या तत्काल टिकटों की वापसी पर रिफंड मिलता है?

नहीं, तत्काल टिकट को कैंसल कराने पर रिफंड नहीं मिलता। लेकिन कुछ स्थितियों में फुल रिफंड की व्यवस्था भी है। ये हैं :

1. अगर ट्रेन जहां से खुलती है, अगर वहां से तीन घंटे से ज्यादा लेट हो तो। इसके लिए यात्री को टीडीआर यानी टिकट डिपॉजिट करके उसकी रसीद लेनी होगी। क्लेम की गई रकम 16 से 90 दिन के भीतर अकांउट में आती है। रकम वापस करते वक्त रेलवे सिर्फ क्लेरिकल चार्जेज काटता है।

2. अगर ट्रेन रूट बदलकर चल रही हो और पैसेंजर उसमें यात्रा करना नहीं चाहता।

3. अगर ट्रेन रूट बदलकर चल रही हो और बोर्डिंग और पैसेंजर के डेस्टिनेशन स्टेशन उस रूट पर नहीं आ रहे हों।

4. अगर रेलवे पैसेंजर को उसके रिजर्वेशन वाली क्लास में यात्रा करा पाने में असमर्थ हो।

5. अगर रिजर्व ग्रेड से लोअर कैटिगरी में सीटें रेलवे उपलब्ध करा रहा हो, लेकिन पैसेंजर उस क्लास में यात्रा करना नहीं चाहता। अगर पैसेंजर लोअर क्लास में सफर कर भी लेता है तो रेलवे को उस पैसेंजर को किराए और तत्काल चार्ज के अंतर के बराबर रकम लौटानी होगी।

RAC टिकट

अगर किसी यात्री के पास ऑनलाइन आरएसी का टिकट है और वह आरएसी पर यात्रा नहीं करना चाहता तो उसे ट्रेन रवाना होने से आधा घंटे पहले ऑनलाइन टिकट कैंसल कराना होगा, नहीं तो रिफंड नहीं मिलेगा।

चंद अहम सवाल और जवाब

क्या राजधानी, शताब्दी जैसी ट्रेनों में ट्रेन की कैटरिंग का खाना लेना अनिवार्य है?

नहीं। अब यह अनिवार्य नहीं है। टिकट बुक कराते वक्त अगर यात्री चाहे तो ऑप्शन के तौर पर बता सकता है कि वह ट्रेन में रेलवे की कैटरिंग का खाना नहीं लेना चाहता। ऐसी स्थिति में यात्री से टिकट के साथ कैटरिंग चार्ज नहीं लिया जाएगा।

क्या यात्री किसी भी रेस्तरां या ऐप के जरिए ट्रेन में अपने लिए खाना मंगा सकता है?

आईआरसीटीसी का सुझाव है कि यात्री उन सप्लायर से ही खाना मंगवाएं, जिन्हें आईआरसीटीसी ने ऑथराइज किया हुआ है। ऐसे में यात्री आईआरसीटीसी की वेबसाइट से अलग-अलग शहरों में ऑथराइज्ड ई-कैटरिंग सप्लायर के नाम देखकर अपनी मनचाही जगह पर उनमें से किसी से भी अपने लिए खाना मंगा सकते हैं।

क्या इमरजेंसी में कोई यात्री वेटिंग वाले टिकट के साथ ट्रेन में सफर कर सकता है?

पूरी तरह से रिजर्व्ड कोच में अगर कोई सीट खाली नहीं है तो उस स्थिति में यात्री के लिए वेटिंग लिस्ट के साथ यात्रा करना मुमकिन नहीं है। लेकिन जिन ट्रेनों में जनरल कोच हैं, उनमें जरूर यात्री वेटिंग टिकट के साथ सफर कर सकता है। लेकिन ऐसी स्थिति में वेटिंग टिकट रेलवे काउंटर से खरीदा हुआ होना चाहिए। ऑनलाइन खरीदा गया टिकट कन्फर्म न होने पर अपने आप कैंसल हो जाता है, इसलिए उस पर यात्रा नहीं की जा सकती। ट्रेन में बिना टिकट पकड़े जाने पर 250 रुपए फाइन और जहां पकड़े गए हों, ट्रेन के डिपार्चर पॉइंट से वहां तक का किराया देना होगा। अगर आप वहां से आगे की यात्रा करना चाहते हैं तो फाइन और आपकी मंजिल का किराया लेकर आपका टिकट बना दिया जाएगा। इसके बावजूद आपको रिजर्वेशन वाली बोगी में यात्रा करने का हक नहीं मिलता।

अगर रेल टिकट खो जाए तो?


अगर आपने ई टिकट लिया है और ट्रेन में जाने के बाद आपको पता लगा कि टिकट खो गया है और आपके पास उसे लैपटॉप या आईपैड या मोबाइल पर दिखाने का ऑप्शन भी नहीं है तो आप टीटीई को 50 रुपए पेनल्टी देकर टिकट हासिल कर सकते हैं।

अगर यात्री के पास प्लैटफॉर्म टिकट है तो वह उससे ट्रेन में यात्रा कर सकता है?


अगर इमरजेंसी में यात्री ट्रेन में सवार होता है तो उसे फौरन पहले टीटीई से संपर्क करके टिकट का अनुरोध करना चाहिए। उस स्थिति में यात्री से 250 रुपए पेनल्टी और यात्रा का किराया वसूला जाएगा। प्लैटफॉर्म टिकट का फायदा इतना ही होगा कि यात्री से किराया वसूलते वक्त डिपार्चर स्टेशन उसे ही माना जाएगा जहां से प्लैटफॉर्म टिकट खरीदा गया होगा और किराया भी उसी कैटिगरी का वसूला जाएगा, जिसमें यात्री सफर कर रहा होगा।

कैप्चा कैंसिलेशन का तोड़

ऑनलाइन टिकट बुक कराते वक्त कैप्चा बेहद अहम किरदार निभाता है। अक्सर देखने में आता है कि सबकुछ सही रहता है, लेकिन सिर्फ गलत कैप्चा की वजह से बुकिंग में देरी हो जाती है। आपके साथ कई बार ऐसा हो चुका हो तो इस तकनीक को अपनाएं। आईआरसीटीसी के पैसेंजर डिटेल पेज पर ज्यादा समय न बिताएं। दरअसल इस पेज पर जब आप पहली बार जाते हैं तो आसान कैप्चा कोड मिलता है, लेकिन ज्यादा समय बिताने पर कोड कठिन होता जाता है। कठिन कैप्चा कंफर्म टिकट की संभावना कम कर देता है।

कंफर्म टिकट पाने का ट्रिक

देखा गया है कि व्यस्त ट्रेनों में टिकट आसानी से नहीं मिलता। बुकिंग ओपन होने के बाद ऑनलाइन टिकट कटाते वक्त आपके पास बमुश्किल 40 सेकंड से एक मिनट का टाइम होता है। ऐसे में अगर आप कुछ ट्रिक्स आजमाएं तो कंफर्म टिकट मिल सकता है। जानते हैं, ऐसी ही ट्रिक्स:

1. सुनिश्चित करें कि आपके पास तेज स्पीड वाला इंटरनेट हो।
2. इंटरनेट बैंकिंग का इस्तेमाल करने पर टिकट जल्दी कटता है। इससे भी ज्यादा जल्दी टिकट आईआरसीटीसी वॉलेट इस्तेमाल करने से कटता है। तो बेहतर है कि वॉलेट में पहले से पर्याप्त रकम जमा कर दें।
3. IRCTC की साइट पर जाकर लॉगइन करें और My Profile पर क्लिक करें। यहां आपको Master List दिखेगा। यहां पैसेंजर की पूरी जानकारी भरकर पहले से सेव कर लें।
4 यहीं आपको Favourite Journey List का ऑप्शन दिखेगा। उस पर क्लिक करें और ट्रेन की जानकारी भरें।
5. अब फिर से आईआरसीटीसी की साइट पर लॉगइन तब करें, जब बुकिंग शुरू होने में 5 मिनट हो। लॉगइन करने के बाद आप वहां पहुंच जाएंगे, जहां आपसे पूछा जाएगा कि कहां का और किस डेट का चाहिए। यहीं आपको Favourite Journey List दिखेगी। उस पर क्लिक करने पर फौरन आपका काम निपट जाएगा। इसके बाद आपको डेट चुननी होगी और कैप्चा भरना होगा।
6. इसके बाद ट्रेन की लिस्ट आपके सामने होगी। जैसे ही आप Book Now बटन पर क्लिक करेंगे, आपके सामने पैसेंजर से जुड़ी जानकारी वाला फॉर्म खुल जाएगा। यहीं ऊपर में आपको Master List का ऑप्शन दिखेगा। उस पर क्लिक कर आप पैसेंजर की जानकारी सेकंडों में भर लेंगे। इसके फौरन बाद आपसे पेमेंट मोड पूछा जाएगा। यहां आप वॉलेट का ऑप्शन चुनें। ये दोनों चीजें आपका मिनटों का काम सेकंडों में निपटा देंगी और कंफर्म टिकट आपके पास होगा।

रेलवे के शॉर्टकट शब्दों का मतलब

रेलवे टिकट बुक करते वक्त हमें कुछ शॉर्टकट शब्द दिखाई देते हैं, लेकिन हम उनको जानें बिना ही क्लिक कर देते हैं। बेहतर है कि इन्हें जान लें ताकि टिकट आसानी से कन्फर्म हो सके। ये शब्द हैं:

GNWL: जनरल वेटिंग लिस्ट, यानी आपने जिस ट्रेन का टिकट लिया है, वह ट्रेन वहीं स्टेशन या आसपास के स्टेशन से बनकर चलती है। इसमें टिकट कंफर्म होने के चांस ज्यादा होते हैं।

RLWL: रिमोट लोकेशन वेटिंग लिस्ट, यानी दो बड़े स्टेशनों के बीच, जहां पर ज्यादा ट्रेनें नहीं आतीं। ऐसे टिकट कंफर्म होने के चांस ज्यादा होते हैं।

PQWL: पूल्ड कोटा वेटिंग लिस्ट, यानी छोटे स्टेशनों पर कोटे में दी गई सीट के आधार पर टिकट दिया जाता है। इसमें टिकट कंफर्म होने के चांस कम होते हैं।

PQWL/REGRET: इसका मतलब है कि ट्रेन में सीट नहीं है और आपको टिकट नहीं मिलेगा।

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ऐसे पहचानें, बच्चा बदमाश नहीं बीमार है!

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नई दिल्ली
बच्चा इधर-उधर दौड़ता रहता है, किसी की नहीं सुनता, पढ़ाई में मन नहीं लगता, इस तरह की शिकायतें अक्सर पैरंट्स करते रहते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि इस तरह का बर्ताव बच्चे की 'बदमाशी' भर हो। हो सकता है कि आपका बच्चा किसी मानसिक समस्या से जूझ रहा हो। बच्चों से जुड़ी कुछ समस्याओं और उनके समाधान के बारे में बता रहे हैं डॉक्टर समीर पारिख:

लवलीन (14) पिछले दो-तीन हफ्ते से चिड़चिड़ी हो गई थी। ममी कुछ कहती तो वह उलटा जवाब दे देती। इसी तरह, पापा या भाई से भी अच्छी तरह बात नहीं करती थी। यहां तक कि दोस्तों से भी बातचीत कम कर दी है। ज्यादातर अपने कमरे में रहने लगी। यहां तक कि कई बार बेचैन-सी भी लगी। पैरंट्स को लगा कि कुछ गड़बड़ है। उन्होंने मेडिकल हेल्प देने से पहले खुद बेटी के मन को टटोलने की सोची।

लवलीन की ममी ने कहीं पढ़ रखा था कि इस तरह की स्थिति में बच्चे के कैसे बात की जाए? उन्होंने लवलीन से यह नहीं कहा कि तुम परेशान क्यों हो या फिर मुंह क्यों फुला रखा है? बल्कि उन्होंने पहले उससे उसके स्कूल के बारे में पूछा, फिर दोस्तों के बारे में। फिर कुछ इधर-उधर की बातें कीं। इस बीच उन्होंने लवलीन को किसी भी बात पर रोका या टोका नहीं। बातें भी सीधे आंख में आंख डालकर कीं। एक-दो दिन की कोशिशों के बाद लवलीन ने बताया कि वह नई क्लास में गई थी। बस में पहले ही दिन उसकी सीनियर के साथ बहस हो गई। इसके बाद सीनियर ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर उसे परेशान करना शुरू कर दिया। वह चाहकर भी यह बात किसी को नहीं बता पाई। ममी ने उसे प्यार से समझाया कि उसे परेशान होने की जरूरत नहीं है। वह अगले दिन टीचर से मिलीं और उन्हें सारी बात बताई। टीचर ने सीनियर लड़की को बुलाकर डांटा। इसके बाद उसने या उसके दोस्तों ने लवलीन को कभी परेशान नहीं किया। लवलीन भी नॉर्मल हो गई।

दरअसल, लवलीन ऐंग्जाइटी का शिकार हो गई थी। ममी की समझ से उसकी दिक्कत जल्द दूर हो गई। हालांकि कई बार यह समस्या बढ़ जाती है तो फिर डॉक्टर की मदद लेने की भी जरूरत हो सकती है।

जब टेंशन या प्रेशर में दिखे बच्चा

ये लक्षण डर और ऐंग्जाइटी के हो सकते हैं। इसे मोटे तौर पर चिंता, बेचैनी या उतावलापन कह सकते हैं। यह एक बायॉलॉजिकल मेनिज़म है जिसके जरिए हमारा शरीर तनाव वाली स्थिति का सामना करने के लिए तैयार होता है। इसमें बच्चा किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति को अपने लिए खतरनाक मान लेता है। ऐसी स्थिति में उसका दिमाग नर्वस सिस्टम को इस बारे में संदेश भेजता है। इस संदेश से शरीर में 'फाइट या फ्लाइट रेस्पॉन्स' पैदा होता है यानी या तो वह उस स्थिति से लड़ेगा या भागेगा। यह डर वास्तविक भी हो सकता है और काल्पनिक भी। इससे शरीर, मन और व्यवहार के स्तर पर ऊपर बताए गए लक्षण दिखाई देते हैं। इसका असर उसकी पढ़ाई या रोजमर्रा के दूसरे कामों पर पड़ने लगता है। आजकल प्रेशर के माहौल में 6 साल की उम्र के बच्चों में भी ऐंग्जाइटी के लक्षण देखे जा रहे हैं। हालांकि ऊपर दिए लक्षण किसी और बीमारी के भी हो सकते हैं।

कैसे पहचानें ऐंग्जाइटी

- बच्चे का बेचैन या घबराहट रहना
- गुमसुम रहना
- खेलने न जाना
- दिल की धड़कन बढ़ जाना
- सांस लेने में दिक्कत होना
- मुंह सूखना
- हकलाने लगना
- कांपना
- उलटी होना या आने को होना
- बार-बार शू-शू, पॉटी करना
- थकान, सिरदर्द, पेटदर्द आदि रहना
- टिककर पढ़ाई न कर पाना
- इम्तिहान में नंबर कम लाना
- स्कूल जाने से कतराना
- बिना किसी बात के चिड़चिड़ा रहना
- छोटे-मोटे फैसले भी न ले पाना
- फ्रेंड्स से बचना
- अकेले रहना
- बहुत ज्यादा या बहुत कम सोना
- बहुत ज्यादा या बहुत कम खाना

पैरंट्स क्या करें

- बच्चे से बातचीत करके यह जानने कि कोशिश करें कि उसके मन में क्या चल रहा है।
- बातचीत के लिए बच्चे के साथ ऐसे बैठें कि दोनों की आंखों का लेवल एक हो। इससे वह आपके बड़े होने के डर से बाहर निकलेगा।
- बच्चा अगर आपके साथ शेयर नहीं करना चाहता तो उस पर दबाव न डालें। उसे धीरे-धीरे खोलने की कोशिश करें।
- बच्चे के साथ खेलें। उसे दोस्त बनाएं। उसके साथ जोक्स-कहानियां शेयर करें। इस तरह से आप उसका भरोसा जीत पाएंगे।
- उससे पूछें कि वह क्या महसूस कर रहा है? क्या तुम्हें किसी का कोई डर है? क्या किसी ने तुम्हें कोई धमकी दी है? क्या तुम्हें किसी चीज की टेंशन है? किसी शख्स या बात से तुम नाखुश हो? क्या तुम्हें गुस्सा आ रहा है? क्या तुम उदास हो? क्या तुम टेंशन में हो?
- फिर वह जो कहना चाहता है, वह सुनें बिना उसके बारे में कोई राय बनाए। बच्चा अगर कोई सवाल बार-बार पूछे या कुछ न बोले तो पेशंस बनाए रखें। वह धीरे-धीरे खुलेगा।
- अगर किसी मसले पर आप बच्चे से इत्तफाक नहीं रखते तो भी उसे उलझे नहीं, न ही उसे डांटें। उसे यह न कहें कि तुम गलत हो और तुम्हें यह करना चाहिए था।
- जब वह बोल रहा हो, उसे बोलने दें, बीच में टोकें नहीं।
- जब वह अपनी कमी या गलती बताए तो कह सकते हैं कि यह कमी तो मुझमें भी है या बचपन में मुझसे भी यह गलती हुई थी। इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ जाएगा।
- उसकी फिक्र की वजह जानें। पूछें कि समस्या क्या घर में है, स्कूल में है या कहीं रास्ते में है? उसे बताएं कि हर समस्या का हल है। अगर उसका डर सच्चा है तो उसे हल करने की कोशिश करें और अगर काल्पनिक है तो उससे लगातार बातचीत कर, समझाकर यह डर उसके मन से निकाल दें।

जब वहमी या सनकी लगे बच्चा

अमन (12) को सफाई बहुत पसंद है। वह अपनी हर चीज को बहुत साफ रखता है। किसी चीज को छूने के बाद वह हर बार अपने हाथ धोता है। अमन के मन में रहता है कि उसके हाथ साफ नहीं हैं। वह कई बार साबुन लगाता है। उसे लगता है कि हाथ सही से साफ नहीं हो पा रहे। यही नहीं, हाथ धोने के बाद हैंडल या किसी और चीज को छूने से भी बचता है कि कहीं हाथ गंदे न हो जाएं। ममी- पापा ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ। फिर उन लोगों ने सायकॉलजिस्ट की मदद ली।

किसी काम या आदत की धुन इस कदर सवार हो जाना कि वह सनक बन जाए तो उसे ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसॉर्डर (ओसीडी) कहते हैं। इसमें मरीज को किसी बात की जरूरत-से-ज्यादा चिंता सताने लगती है। एक ही जैसे अनचाहे ख्याल उसे बार-बार आते हैं और एक ही काम को बार-बार दोहराना चाहता है। ऐसे लोगों को सनक वाले ख्याल आते हैं और अपने बिहेवियर पर कोई कंट्रोल नहीं होता। जैसे कि यह कन्फर्म करने के लिए कि गैस बंद है या नहीं, ऐसे लोग 15-20 बार स्टोव की नॉब चेक करते हैं।

OCD के दो हिस्से होते हैं:

ऑब्सेशन: जब किसी खास तरह का विचार बच्चे के दिमाग में बार-बार और लगातार आता है तो उसे ऑब्सेशन कहते हैं। ऐसे कुछ ख्याल हो सकते हैं:
- अपने या अपनी चीजों को कीटाणुओं या गंदगी के संपर्क में आने की चिंता
- किसी और को नुकसान पहुंचाने का डर
- हर चीज को हर वक्त करीने और सलीके से लगाने की कोशिश
- किसी चीज को भाग्यशाली या दुर्भाग्यशाली मानने का अंधविश्वास
- धर्म या नैतिक विचारों पर पागलपन की हद तक ध्यान देना
- खुद और दूसरों पर बहुत ज्यादा शक करना

कंपल्शन: यह ऐसा बर्ताव है, जिसे आप बार-बार दोहराने की जरूरत महसूस करते हैं। आमतौर पर कंपल्शन ऑब्सेशन से छुटकारा पाने की कोशिश के तहत किया जाता है। मसलन, अगर आप गंदगी से डरते हैं तो शायद आप बार-बार सफार्इ करेंगे। बार-बार हाथ धोएंगे यह सोचकर कि बैक्टीरिया खत्म हो जाएंगे लेकिन फिर भी तसल्ली नहीं होती। उसी चीज को बार-बार करते हैं कि शायद अबकी बार करने से उस विचार से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन ऐसा होता नहीं है। वह सिलसिला चलता रहा है।

इस बीमारी का असर बच्चे की जिंदगी की तमाम पहलुओं पर पड़ता है। उसकी रोजमर्रा की जिंदगी पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही उसकी दोस्ती पर और उसके आत्मविश्वास पर भी बेहद बुरा असर होता है। ऐसी स्थिति में माता पिता की भूमिका बेहद अहम हो जाती है। उन्हें अपने बच्चे में आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे को अपने दूसरे बच्चों से अलग बर्ताव न करें। चूंकि बच्चा अपना ज्यादातर वक्त अपने दोस्तों और स्कूल में बिताता है, इसलिए स्कूल टीचर को उसकी इस बीमारी के बारे में बता देना मुनासिब रहता है।

कैसे पहचानें OCD

- बार-बार हाथ धोना या नहाना या अपना सामान साफ करना
- दरवाजों, नल आदि को बार-बार चेक करना कि वे बंद हैं या नहीं
- चीजों को बेवजह बार-बार जांचना, जैसे कि ताले, गैस स्विच आदि
- फालतू की पुरानी चीजों जैसे कि मैगजीन, अखबार, बोतलें आदि संभाल कर रखना
- बार-बार गिनना, कुछ खास शब्दों को बार-बार दोहराना
- बार-बार लिखना, मिटाना, बार-बार पढ़ना आदि
- फर्नीचर जैसी चीजों को बार-बार सिलसिलेवार लगाना
- जरूरत से ज्यादा प्रार्थना करना या ऐसे संस्कारों में बिजी रहना, जिनसे धर्म से डर की भावना झलकती हो

पैरंट्स क्या करें

- बच्चे के साथ अच्छा तालमेल बनाएं। अगर सीधे समस्या पर बात करेंगे तो वह आपको मन की बात नहीं बताएगा। ऐसे में पहले उसके करीब जाएं। उसके मन की बात समझें। बिना उसके मन की बात समझे, उसकी समस्या का समाधान नहीं कर सकते।
- बच्चे को ऐसा माहौल दें कि वह आपसे अपनी बात शेयर करने और मदद मांगने से हिचकिचाए नहीं। इसके लिए पैरंट्स को अपनी ओर से पूरी कोशिश करने की जरूरत होती है। हो सकता है कि आप शुरुआत में असफल हों, लेकिन जल्दी ही आपको सफलता मिल जाएगी।
- फिर उससे बात करें। बच्चे शुरू में इस बात को नहीं मानते कि उनके साथ कोई दिक्कत है। आपको बच्चे के साथ हमदर्दी तो दिखानी ही होगी, साथ ही यह भी जताना होगा कि आप उसकी समस्या समझते हैं।
- बच्चे को डांटे नहीं। अगर किन्हीं बातों पर आप उससे इत्तफाक नहीं रखते तो उससे यह न कहें कि वह गलत है और आप सही।
- यह तय कर लें कि परिवार वालों को भी बच्चे की आदतों का हिस्सा नहीं बनना है। अगर बच्चा किसी काम को बार-बार करे तो आप धीरे-से उसे किसी दूसरे काम की ओर मोड़ दें। ऐसे में उसका ध्यान उस ओर से हट जाएगा और धीरे-धीरे परेशानी भी कम होती चली जाएगी।
- बच्चे को दूसरे नॉर्मल बच्चों की तरह ही ट्रीट करें। उसे यह जताने की कतई जरूरत नहीं है कि उसे कोई दिक्कत है।
- सबसे बड़ी बात यह कि उसे दूसरे बच्चों के साथ घुलने-मिलने और खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे उसका मन समस्या से हटा रहेगा। दूसरे बच्चों के साथ खेलने और ऐक्टिविटीज में हिस्सा लेने से बच्चे के मन में आत्मविश्वास बढ़ता है। और ऐसे मामलों में आत्मविश्वास का बढ़ना बेहद काम की चीज है।
- पैरंट्स को यह समझना होगा कि बच्चा अपनी संकल्प शक्ति से इस समस्या से छुटकारा नहीं पा सकता। इसकी वजह दिमाग के केमिकल्स में बदलाव है जिसके लिए कई बार दवाओं की जरूरत पड़ती है।
- उन्हें यह भी जानना चाहिए कि यह समस्या किसी की पर्सनैलिटी का हिस्सा नहीं होती। अक्सर हम उन्हें वहमी करार देकर ऐसी समस्या को नजरअंदाज कर देते हैं। यह दिमाग से जुड़ी समस्या है, जिसका इलाज किया जाना चाहिए।
- जब भी बच्चे में ऐसी समस्या देखें, फौरन इलाज कराएं। इलाज जितना जल्दी होगा, फायदा उतना ज्यादा होगा। ध्यान रखें कि इलाज लंबा हो सकता है।

जब शैतानी से नाक में दम कर दे बच्चा

माही (8) अक्सर होमवर्क करते वक्त इधर-उधर की बातें करने लगती है। एक जगह टिककर बैठ भी नहीं पाती। हमेशा इधर-उधर दौड़ती रहती है। किसी की नहीं सुनती। घरवालों ने सोचा कि पढ़ने में मन नहीं लगता इसलिए उन्होंने पास की आंटी के पास पढ़ने भेजना शुरू कर दिया। वहां से वही शिकायत मिली कि वह दूसरे बच्चों को परेशान करती रहती है। न खुद पढ़ती है, न दूसरों को पढ़ने देती है। पैरंट्स ने पहले तो खूब डांटा। पर समस्या बनी रही तो माही के चाचा की सलाह पर वे उसे सायकॉलजिस्ट के पास ले गए। उनकी सलाह के कुछ ही वक्त में माही की पर्सनैलिटी में काफी ठहराव आया। दरअसल, माही को अटेंशन डेफिशिट/हाइपरएक्टिविटी डिसॉर्डर (ADHD) की समस्या थी। इससे बच्चे की पढ़ाई के अलावा सोशल लाइफ पर भी बुरा असर होता है।

कैसे पहचानें

- बच्चे का आसानी से ध्यान भटक जाना
- बारी का इंतजार न करना, लाइन तोड़ना आदि
- काम शुरू करना लेकिन पूरा नहीं करना
- लगातार किसी एक जगह पर बैठ नहीं पाना
- बिना सोचे-समझे काम करना
- एक को छोड़कर दूसरे काम में लग जाना
- चीजें भूल जाना, अपने सामान का ध्यान नहीं रखना
- लगातार बातें करना और इधर-उधर दौड़ते रहना
- भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाना

क्या करें

- बच्चे से बातचीत करें। आराम से उसकी बात सुनें।
- उसके काम को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटने में मदद करें, मसलन 1 घंटा लगातार पढ़ने के बजाय 20-20 मिनट के तीन हिस्से में पढ़ने को कहें और बीच में 10-10 मिनट का ब्रेक दें। इससे वह बोरियत का शिकार होने से बच जाएगा।
- अगर पैरंट्स गुस्सा कंट्रोल नहीं कर पा रहे तो उन्हें पहले बच्चे से थोड़ी देर के लिए दूर हो जाना चाहिए। फिर खुद को शांत करके बच्चे से बात करनी चाहिए।
- बच्चे की खासियतों पर फोकस करें। बार-बार उसकी समस्या पर बात न करें।
- उसे किसी हॉबी के लिए सपोर्ट करें ताकि उसका मन पॉजिटिव काम में लगा रहे।
- यह खराब बिहेवियर की समस्या नहीं है। न ही यह सिर्फ लड़कों में होती है। सही इलाज से यह समस्या दूर हो सकती है।

परवरिश के टॉप टिप्स

1. हेलिकॉप्टर पैरंट्स न बनें

कई पैरंट्स अपने बच्चे को जरूरत से ज्यादा हिफाजत देने लगते हैं और उसकी जिंदगी में दखल भी जरूरत से ज्यादा देने लगते हैं। लेकिन ऐसा होने पर बच्चे का आत्मविश्वास खत्म करने लगता है। कई बार इससे बच्चा चिड़चिड़ा या विद्रोही हो जाता है।

2. फैसलों में शामिल करें

बच्चे को अपने फैसले लेने के लिए प्रोत्साहित करें। घर के फैसलों में भी उसे शामिल करें। इससे बच्चों में जिम्मेदारी और खुद को स्वीकारे जाने का अहसास पैदा होता है। वे साथ लिए फैसलों को लागू करने और पूरा करने में आगे रहते हैं।

3. खुद उदाहरण बनें

बच्चे अक्सर अपने आसपास जो देखते या सुनते हैं, उन बातों को दिमाग में बिठा लेते हैं। आपको एक मॉडल बिहेवियर करके दिखाना होता है ताकि आप उसके लिए एक उदाहरण बन जाएं। मसलन जिद्दी या लड़ाकू बनने के बजाय दृढ निश्चयी बनना बेहतर है और वह यह आपसे सीखेगा।

4. अपने सपने न थोपें

बच्चे को अपने सपनों को पूरा करने दें। अपने सपने और चाहतें उस पर न थोपें। आपकी और आपके बच्चे की पसंद, काबिलियत और चाहत में बहुत फर्क हो सकता है। ऐसे में उसे उसकी पसंद का काम करने दें। हर छोटी-बड़ी चीज हाथ पकड़ कर न कराएं।

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मच्छरों की धुन और मत सुन

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आज रॉनल्ड रॉस का जन्मदिन है। मलेरिया के क्षेत्र में उनके अद्भुत शोधकार्यों के लिए 1902 में उन्हें चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था। आज बात करते हैं सिर्फ मच्छरों की, उनके जरिए फैलने वाली बीमारियों की, इनसे बचाव की और इनको अपने से दूर रखने की।

एक छोटा-सा मच्छर हमें कभी भी, कहीं भी काटकर गंभीर रूप से बीमार कर सकता है। तभी तो मच्छर ने काटा नहीं कि दिमाग में बुरी बीमारियों के शिकार होने के ख्याल आने लगते हैं। एक्सपर्ट्स की मदद से इन सबसे जुड़ी जानकारी दे रही हैं अनु जैन रोहतगी।

जानें अपने दुश्मन को
अलग-अलग इलाकों में मच्छरों की अलग-अलग प्रजातियां हैं। ये मच्छर कई तरह के वायरस और पैरासाइट के जरिए कई तरह की बीमारियां तेजी से फैलाते हैं। मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी इन्सेफेलाइटिस, फाइलेरिया और जीका इनमें से कुछ हैं। मच्छर बहुत तेजी से बढ़ते और काटते हैं। मच्छर खतरनाक इसलिए भी है क्योंकि इनकी आबादी बड़ी तेजी से बढ़ती है और एक बार में ये एक-दो को नहीं, बल्कि दर्जनों लोगों को काट कर इंफेक्शन फैला सकते हैं। मादा मच्छर की उम्र नर के मुकाबले ज्यादा होती है। सिर्फ मादा मच्छर ही इंसानों या दूसरे जीवों का खून चूसती हैं। नर मच्छर सिर्फ पेड़-पौधों का रस चूसते हैं। मादा मच्छर दो से तीन बार अलग-अलग जगहों पर अंडे देती हैं। दिन में मच्छर ज्यादातर अंधेरी जगहों, दीवारों के कोने, परदों के पीछे, सोफे, बेड, टेबल आदि के नीचे छुपे रहते हैं। इसलिए रोजाना इन जगहों की अच्छी तरह से सफाई करें। सप्ताह में एक बार इन जगहों पर मच्छर मारने की दवा का छिड़काव करें।


मोटे तौर पर मच्छरों की तीन प्रजातियां हैं:


एडीज एजिप्टी

यह डेंगू, चिकनगुनिया, जीका फैलाती है। मादा ऐडीज एक बार में 50 से 100 अंडे देती है और एक दिन में 70-80 लोगों को काट सकती है। यह दिन में ऐक्टिव रहती है और खून की खुराक एक से पूरी न मिलने पर अलग-अलग लोगों को काटती है।

1- यह मादा मच्छर ज्यादातर घरों के साफ पानी में ही पनपती हैं। एक बार में 500 मीटर से ज्यादा का सफर नहीं कर सकतीं और ज्यादातर जमीन पर ही रहती हैं। इसलिए ये मच्छर ज्यादातर पांव में ही काटती हैं।

2- इनकी ब्रीडिंग मिट्टी के बर्तनों की बजाय प्लास्टिक, रबड़ के सामानों में होती है।

3- ये मादा मच्छर ठंडे वातावरण (एसी-कूलर) में पनपने लगी हैं।

चिकनगुनिया
यह भी डेंगू की तरह फैलने वाली बीमारी है। इसे भी मादा ऐडीज मच्छर ही फैलाते हैं। इसमें बुखार के साथ-साथ जोड़ों में ज्यादा दर्द होता है।

अनॉफ़िलीज़
यह मलेरिया फैलाती है। एक बार में 100 से 150 अंडे देती है। यह रात में ऐक्टिव होती है और 5-10 सोए हुए लोगों को काटने से ही इनकी खुराक पूरी हो जाती है। अनॉफ़िलीज़ मच्छर गंदे और साफ दोनों पानी में पनप सकती है। मादा अनॉफ़िलीज़ एक से दो महीने तक जिंदा रहती है। वह एक से डेढ़ किलोमीटर तक उड़ सकती है। अगर हवा का रुख इनके उड़ने की दिशा में है तो ये कुछ किलीमीटर ज्यादा उड़ लेती है।

क्यूलेक्स
यह फाइलेरिया फैलाती है। मादा 150-200 अंडे देती है और यह भी शाम के समय में लोगों को काटती है। यदि कोई संक्रमित मादा मच्छर अंडे देती है तो उससे पैदा होने वाले सारे मच्छर पहले से ही इन्फेक्शन लिए होंगे और किसी भी हेल्दी आदमी को काटेंगे तो उसे बीमार बना देंगे।


मच्छरों के काटने से कैसे बचें?
ऐसा तरीका ढूंढना होगा जिससे बाहर के मच्छर घर में नहीं आ सकें। इसके लिए जरूरी है घर के दरवाजे और खिड़कियों पर जालियां लगाएं। अगर बहुत जरूरी नहीं हो तो खोलें नहीं। एक सप्ताह के अंतराल पर घर और आसपास की सफाई जरूर करें। ये शाम और रात में रोशनी की ओर आकर्षित होते हैं। इसलिए शाम को जरूरत पड़ने पर ही कमरों में लाइट जला कर रखें।

1- इसके अलावा घर में मस्कीटो रिपेलेंट जला कर रखें। ज्यादातर लोग इसे रात को जलाते हैं। इसे दिन में भी जलाना चाहिए क्योंकि मच्छर दिन में भी काटते हैं।

2- रात को सोते समय मच्छरदानी लगाकर सोएं। यदि यह इन्सेक्टिसाइड से ट्रीट की हुई हो तो और अच्छा होगा। इसे आप ई-कॉमर्स साइटों पर तलाशकर खरीद सकते हैं।

ये खाएं, मच्छरों को दूर भगाएं

1- लहसुन, प्याज का सेवन करें।
2- टमाटर खाएं।
3- सेब से बना विनेगर इस्तेमाल करें।

कुदरती तरीके से भगाएं मच्छर
अगर हम केमिकल रिपलेंट इस्तेमाल नहीं कर सकते या उन्हें खरीद नहीं सकते तो कुछ नेचरल रिपेलेंट यूज कर सकते हैं। केमिकल रिपेलेंट की तरह ये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि महानगरों और बड़े-बड़े शहरों में वैसे ही हवा बहुत प्रदूषित है। ऐसे में नीम, कपूर या किसी दूसरी चीज का धुआं इसे और बढ़ाएगा इसलिए कोशिश करें कि धुआं करने वाले रिपेलेंट चाहे केमिकल हों या नेचरल, उसका इस्तेमाल कम से कम करें। दरअसल, घर में धुआं अस्थमा के मरीजों के लिए ठीक नहीं होता।

1- मच्छर भगाने के लिए नीम की पत्तियों, कपूर, तेजपत्ता, लौंग को घर में जलाएं। इससे मच्छर भाग जाते हैं।
2- तारपीन का तेल भी मच्छर भगाने में मदद करता है।

3- ऑलआउट की खाली रीफिल में नीम का तेल और कपूर डालें और रिफिल को मशीन में लगाकर स्विच ऑन कर दें। मच्छर नहीं आएंगे। एक लीटर नीम के तेल में 100 ग्राम असली कपूर मिलाएं और घोल बना लें। इससे 25 बार रीफिल भर सकते हैं।

4- मशीन नहीं है तो कपूर और नीम के तेल का दीपक जलाएं।

5- एक नीबू को बीच से आधा काट लें और उसमें खूब सारे लौंग घुसा दें। इसे कमरे में रखें।

6- लेवेंडर ऑयल की 15-20 बूंदें, 3-4 चम्मच वनीला एसेंस और चौथाई कप नीबू रस को मिलाकर एक बॉटल में रखें। पहले अच्छी तरह मिलाएं और बॉडी पर लगाएं।

7- इसके अलावा लहसुन और प्याज के रस को शरीर में लगाने से भी मच्छर पास नहीं आते।

8- कई पौधों की खुशबू नैचरल तरीके से मच्छर भगाने का काम करती हैं। मैरीगोल्ड, सिट्रानेल या लेमनग्रास, लैवेंडर, लेमन बाम, तुलसी और नीम। ये पौधे घर और इसके आसपास लगाएं तो मच्छर दूर रहेंगे।


मच्छरों के मन को भाते हैं ये


1- कुछ लोगों को मच्छर कम काटते हैं, कुछ को ज्यादा और किसी-किसी को बिल्कुल नहीं। रिसर्च में पाया गया है कि मच्छर बी ब्लड ग्रुप वाले को सामान्य काटते हैं, ए ग्रुप वालों को ज्यादा और ओ ब्लड ग्रुप वालों को मच्छर सबसे ज्यादा काटते हैं। एबी वालों को सबसे कम काटते हैं। गर्भवती महिलाओं के प्रति मच्छर ज्यादा आकर्षित होते हैं। लाल, काले और नीले रंग के कपड़े पहने लोगों को भी मच्छर ज्यादा काटते हैं। ये गर्मियों में ज्यादा काटते हैं। मादा मच्छरों को प्रजनन के लिए गर्म खून की जरूरत पड़ती है, इसीलिए वे हमें काटती हैं।

2- मच्छर पनपने के लिए नमी वाली जगहों को ढूंढते हैं। ऐसे में उन्हें पसीना अपनी ओर खींचता है। इसलिए कोशिश करें कि अपने पसीने को जल्दी से सुखाएं।

3- पोटैशियम और नमक मच्छर को आकर्षित करते हैं, इसलिए खाने में इसका सेवन कम करें।

4- शराब पीने से शरीर से खास किस्म का केमिकल निकलता है, जो मच्छरों को पसंद होता है।

5- जिनके शरीर का तापमान ज्यादा रहता है, मच्छर दूर से ही उस शरीर को पहचान लेते हैं। ऐसे लोगों को भी सावधान रहना चाहिए।

रिपेलेंट लगाते समय रखें ध्यान

1- स्प्रे या क्रीम लगाएं तो ध्यान रखें कि ये आंखों, मुंह के आसपास ना जाए या किसी चोट पर न लगे।

2- जहां-जहां आपकी स्किन कपड़ों से बाहर है, सिर्फ वहीं इसको लगाएं।

3- सभी प्रकार के रिपेलेंट को बच्चों की पहुंच से दूर रखें।

4- जितना लगाने को कहा जाता है उतना ही इसे लगाएं या स्प्रे करें।

5- ध्यान रखें कि घर में यदि कोई अस्थमा का मरीज है तो मच्छर भगाने के लिए कोई धुआं देने वाली चीज ना जलाएं, चाहे वह मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती हो या नीम की पत्तियां।

6- कई लोगों को रिपेलेंट की गंध या धुएं से एलर्जी होती है, उनका भी ख्याल करें।

किस्म-किस्म के रिपेलेंट और क्या देखें रिपेलेंट में?
बाजार में अलग-अलग तरह के रिपेलेंट अलग-अलग दामों में मौजूद हैं। गुडनाइट, ऑलनाइट, मार्टिन जैसे रिपेलेंट मशीन के साथ 90-100 रुपये के बीच उपलब्ध हैं। पैच, रिस्ट बैंड 10 और 24 के सेट में 50 से 200 रुपये तक में मिल रहे हैं। ओडोमास और इसी तरह की अन्य क्रीम 40 रुपये से लेकर 100 रुपये में मिल रही हैं। अलग-अलग तरह के स्प्रे की कीमत 140 से 200 रुपये तक है। मच्छर मारने के अच्छे इलेक्ट्रिक बैंड, मशीन की कीमत कुछ ज्यादा है। ये 300 से 2500 रुपये तक में मिल रहे हैं। हर्बल स्प्रे, क्रीम या जलाने वाले रिपेलेंट के लिए आपको इनसे दुगनी या तिगुनी कीमत देनी पड़ सकती है। इन्हें खरीदने से पहले ब्रांड और उसमें मौजूद तमाम तत्वों के बारे में पढ़ें। सस्ते चाइनीज सामान से बचें। ये न तो हेल्थ के लिए अच्छे हैं और न ही पर्यावरण के लिए।

रिपेलेंट चाहे जलाने वाला हो, शरीर में लगाने वाला हो या हाथ में बांधने वाला, कोई भी रिपेलेंट खरीदने से पहले आपको उसमें इस्तेमाल होने वाले अलग-अलग केमिकल पदार्थों की मात्रा जरूर देखनी चाहिए। इसी से उसकी क्षमता और असर का पता चलता है।

रिपेलेंट में डाइथीलटोलूअमाइड (DEET), पाइकाराइडिन (Picaridin), लेमन यूकलिप्टस का तेल, कई तरह के केमिकल जैसे आईआर 3535 और 2-अनडीकेनन का प्रयोग होता है। इसके अलावा रिपेलेंट में कई पौधों के तेल भी मिक्स होते हैं जैसे कि सीडर, सिट्रानेल, लेमनग्रास और रोजमैरी।

DEET (डीट)
अब तक का सबसे असरदार रिपेलेंट माना जाता है इसे। यह एक केमिकल बेस रिपेलेंट है। डीट मच्छरों को दो से बारह घंटे तक दूर रखता है। यह इस पर निर्भर करता है कि रिपेलेंट में इसका कितना इस्तेमाल किया गया है। हालांकि इससे बने रिपेलेंट को छोटे बच्चों को न लगाने की सलाह दी जाती है। ये रिपेलेंट रिस्टवॉच, लोशन, स्प्रे में उपलब्ध हैं। इसका इस्तेमाल करने से पहले इस पर लिखी गाइडलाइंस को जरूर पढ़ें।

पाइकाराइडिन
यह एक नया रिपेलेंट है और असरदार भी माना जाता है। यह मच्छरों को अपने शिकार को पहचानने से भ्रमित करता है। इसकी गंध ज्यादा तेज नहीं होती। 20% क्षमता के साथ इससे बने रिपेलेंट मच्छरों को 8 से 14 घंटे तक दूर रखते हैं।

लेमन यूकलिप्टस ऑइल
यह नेचरल रिपेलेंट है और छोटे बच्चों के लिए ठीक रहता है। इसके अलावा नेचरल प्लांट ऑयल (सीडर, सिट्रानेल, लेमनग्रास और रोजमैरी) से बने रिपेलेंट भी बाजारों में उपलब्ध हैं। हालांकि ये रिपेलेंट एनवॉयरमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी से, जो रिपेलेंट की क्षमता और पर्यावरण पर उसके असर को तय करती है, मान्यता प्राप्त नहीं हैं। फिर भी विशेषज्ञ इन्हें असरदार मानते हैं और काफी लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।

रिपेलेंट में कितना हो केमिकल?

सबसे असरदार रिपेलेंट में डीट की मात्रा 20 से 30 फीसदी और पाइकाराइडिन 20 फीसदी या 30 फीसदी लेमन यूकलिप्टस का तेल होना चाहिए। इसलिए किसी भी प्रकार का रिपेलेंट लें तो ये चीजें जरूर चेक करें। इसके अलावा हर्बल रिपेलेंट में भी हर्बल तेल की मात्रा जरूर देखें।

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इन छुट्टियों में कहां जाएं? उत्तराखंड और हिमाचल

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बच्चों की लंबी छुट्टियां हैं तो गर्मियों से परेशान लोगों के लिए यह हिल स्टेशन की ओर रुख करने का समय है। लेकिन अगर आपने अडवांस में प्लानिंग नहीं की थी तो अब होटेल तलाशना और ट्रेनों में कंफर्म सीट पाना मुश्किल है। तो क्यों ने ऐसे जगह की प्लानिंग की जाए, जो खूबसूरत और ठंडी तो हो ही, जहां जाना और होटेल तलाशना भी आसान हो। ऐसी ही जगहों के बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं संजय शेफर्ड:

गर्मियों के मौसम में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के हिल स्टेशनों पर लोगों की भीड़ बढ़ जाती है। ये दो राज्य ऐसे हैं जिनका ख्याल आते ही हमारे जेहन में पहाड़ की ऊंची चोटियां, झीलें, घने जंगल, खूबसूरत घाटियां और प्रसिद्ध मंदिरों की तस्वीरें घूमने लगती हैं। इन राज्यों में कई बड़े टूरिस्ट प्लेस हैं। नैनीताल, अल्मोड़ा, हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, जिम कॉर्बेट नैशनल पार्क, राजाजी नैशनल पार्क, शिमला, मनाली, कांगड़ा वैली जैसी जगहों पर गर्मी में लोगों को जाना बहुत ही अच्छा लगता है। इसलिए इन जगहों पर काफी भीड़ होती है। इस लिहाज से यह काफी महंगा, भीड़भरा साबित होता है। अगर आपने पहले से कोई टूर पैकेज नहीं लिया है तो पीक सीजन में यहां होटेल मिलना मुश्किल हो जाता है।

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में तमाम ऐसी भी जगह हैं जो बेहद खूबसूरत हैं, लेकिन अभी वहां पर्यटकों की भीड़ ज्यादा नहीं पहुंचती। ये आपके मन को खूब भा सकती हैं। लोगों में इन जगहों के बारे में आमतौर पर जानकारी का अभाव है। अगर आप कम पैसे में फैमिली ट्रिप की सोच रहे हैं तो इन जगहों की सैर पर जा सकते हैं। उत्तराखंड और हिमाचल के ऐसे ही कई पर्यटक स्थलों की जानकारी हम यहां दे रहे हैं:


चकराता: प्रकृति प्रेमियों की सैरगाह

यह छोटा और सुंदर पहाड़ी नगर है, जहां आप प्रकृति की खूबसूरती का जमकर लुत्फ उठा सकते हैं। चकराता को शांतिपसंद लोगों के लिए उनके 'सपनों का नगर' कहा जाता है।

क्या है खास: कैम्पिंग, राफ्टिंग, ट्रेकिंग, सनसेट पॉइंट, वॉटरफॉल, रैपलिंग, रॉक क्लाइम्बिंग, हॉर्स राइडिंग आदि के अच्छे विकल्प मौजूद हैं।

क्या देखें: टाइगर फॉल, लाखमंडल, मोइगड झरना, कानासर, रामताल गार्डन, देव वन।

कब जाएं: मार्च से जून और अक्टूबर से दिसंबर यहां जाने के लिए उपयुक्त है। सर्दियों में यहां बहुत ठंड पड़ती है।

कैसे जाएं: नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून और एयरपोर्ट जौलीग्रांट है। चकराता जाने के लिए यहां से बस या टैक्सी ली जा सकती हैं। दिल्ली से यह तकरीबन 320 किलोमीटर की दूर है और पहुंचने में 7 घंटे लगते हैं।

कहां ठहरें: ठहरने के लिए अच्छे होटलों की यहां कोई कमी नहीं है। कुछ टूरिस्ट होम भी आपको मिल जाएंगे।


टिहरी:
जलसमाधि ले चुका एक शहर

चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा यह जगह बेहद सुंदर और आकर्षक है। प्राकृतिक खूबसूरती के अलावा यह जगह धार्मिक स्थलों के लिए भी दुनिया भर में प्रसिद्ध है। गर्मी की छुट्टियां बिताने के लिए यह अच्छी जगह है।

क्या है खास: जेट स्कीइंग, वॉटर जॉर्बिंग, राफ्टिंग, बोटिंग, ट्रेकिंग के लिए यह फेवरिट जगह है।

क्या देखें: टिहरी डैम, सेम मुखेम मंदिर, चंद्रबदनी मंदिर, चंबा, बूढ़ा केदार मंदिर, कैम्पटी फॉल, देवप्रयाग आदि।

कब जाएं: मार्च से जून और अक्टूबर से दिसंबर का समय यहां जाना सही रहता है।

कैसे जाएं: सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट है, नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। नई टिहरी कई अहम जगहों जैसे देहरादून, मसूरी, हरिद्वार, पौड़ी, ऋषिकेश और उत्तरकाशी आदि से सीधा जुड़ा हुआ है।

दूरी: दिल्ली से 350 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 9 घंटे लगते हैं।

कहां ठहरें: ठहरने के लिए अच्छे होटलों की यहां कोई कमी नहीं है।


लैंसडाउन:
हसीन वादियों से घिरा स्वर्ग

यह उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों में से एक है। दूसरे हिल स्टेशनों के मुकाबले यहां पर प्रकृति को उसके अनछुए रूप में देखा जा सकता है। यहां की प्राकृतिक छटा सम्मोहित करने वाली है। मौसम पूरे साल सुहावना बना रहता है। हर तरफ फैली हरियाली आपको एक अलग दुनिया का अहसास कराती है।

क्या है खास: कैंपिंग, बोट राइड, स्नो व्यूपॉइंट, सनसेट पॉइंट, नेचर वॉक, जंगल सफारी के लिए अच्छी जगह है।

क्या देखें: गढ़वाल राइफल्स वॉर मेमोरियल, रेजिमेंट म्यूजियम, गढवाली मैस, कन्वाश्रम, तारकेश्वर महादेव मंदिर, भुल्ला झील, सेंट मैरी चर्च घूमने लायक जगहें हैं।

कब जाएं: मार्च से लेकर नवंबर तक यहां का मौसम सुहावना रहता है।

कैसे जाएं:
सड़क, रेल और हवाई मार्ग से पहुंच सकते हैं। जौलीग्रांट हवाई अड्डा सबसे नजदीक है। कोटद्वार रेलवे स्टेशन लैंसडाउन का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।

दूरी: दिल्ली से 300 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में लगभग 9 घंटा लगते हैं।

कहां ठहरें: लैंसडाउन में सीमित संख्या में होटल हैं, चूंकि यहां कम लोग घूमने पहुंचते हैं इसलिए अमूमन उपलब्धता रहती है। सैलानी कोटद्वार में भी ठहर जाते हैं।




उत्तरकाशी:
देवाधिदेव महादेव का निवास

धार्मिक पर्यटन के लिहाज से उत्तरकाशी काफी अहम है। यहीं से भारत की जीवनदायिनी गंगा और यमुना नदियां निकलती हैं। यह पवित्र स्थल फैमिली ट्रिप के लिए बेहतरीन है, खासकर जब बड़े-बुजुर्ग साथ में हों।

क्या है खास: ट्रेकिंग, फिशिंग, कैंपिंग, नेचर वॉक, माउंट बाइकिंग जैसी गतिविधियों के लिए परफेक्ट।

क्या देखें: विश्वनाथ मंदिर, शक्ति मंदिर, मनेरी, गंगनानी, दोदीताल, दायरा बुग्याल, सात ताल, केदार ताल, नचिकेता ताल, गोमुख आदि।

टूरिस्ट सीजन: मार्च से अप्रैल और जुलाई से अक्टूबर का समय यहां जाने के लिए सबसे अच्छा है।

कैसे जाएं: सबसे नजदीकी हवाई अड्डा और नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है। दिल्ली के कश्मीरी गेट से, देहरादून से, ऋषिकेश से उत्तरकाशी के लिए सीधी बस सेवा है।

दूरी: दिल्ली से 414 किलोमीटर दूर है और यहां पहुंचने में 11 घंटे लगते हैं।

कहां ठहरें: ठहरने के लिए आपको कई रिजॉर्ट और होटल मिल जाएंगे। यहां पर गढ़वाल मंडल विकास निगम का पर्यटक आवास गृह भी है।


श्रीनगर (उत्तराखंड):
सुरम्य, शांत और आध्यात्मिक टूरिजम के लिए खास

उत्तराखंड का श्रीनगर परंपरा और आधुनिकता के मिश्रण की एक खूबसूरत मिसाल है। यह शहर चारों ओर घाटियों से घिरा हुआ है। इसमें अलकनंदा चार चांद लगा देती है। यहां पूरे साल सैलानी घूमने के लिए आते रहते हैं।

क्या है खास: ट्रेकिंग, जंगल सफारी, विलेज टूरिजम आदि।

क्या देखें: कमलेश्वर/सिद्धेश्वर मंदिर, शंकर मठ, केशोराय मठ, जैन मंदिर, श्री गुरुद्वारा हेमकुंट साहिब, मलेथा, गोला बाज़ार, कीर्तिनगर, विष्णु मोहिनी मंदिर आदि जगहों को देख सकते हैं।

टूरिस्ट सीजन: वैसे तो लोग सालभर यहां जाते हैं, लेकिन मार्च से अक्टूबर तक यहां जाने का सबसे अच्छा समय है।

कैसे जाएं: सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून में जौलीग्रांट है। कोटद्वार सबसे नजदीकी रेल स्टेशन है। दिल्ली के कश्मीरी गेट, देहरादून, ऋषिकेश और कोटद्वार से श्रीनगर के लिए सीधी बस सेवा है।

दूरी: दिल्ली से यह 353 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 9 घंटे लगते हैं।

कहां ठहरें: रहने के लिए जगहों की कोई कमी नहीं है। हर बजट के होटल से लेकर धर्मशाला तक उपलब्ध हैं।


पौड़ी:
कंडोलिया की पहाड़िया से घिरा

देवदार के जंगलों से ढंका हुआ और कंडोलिया पहाड़ी के उत्तरी ढलान पर स्थित पौड़ी बेहद खूबसूरत जगह है।

क्या है खास: ट्रेकिंग, फिशिंग, जंगल सफारी के लिए यह जगह काफी उपयुक्त मानी जाती है।

क्या देखें: कंडोलिया, बिनसर महादेव, ताराकुंड, कण्वाश्रम, दूधातोली, ज्वाल्पा देवी मंदिर आदि।

टूरिस्ट सीजन:
पौड़ी घूमने का सबसे सही समय मार्च से नवंबर तक है। इस दौरान मौसम खुशनुमा रहता है।

दूरी: दिल्ली से यह 353 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 9 घंटे लगते हैं।

कैसे जाएं: नजदीक हवाई अड्डा जौलीग्रांट जो पौड़ी से लगभग 150 किलोमीटर की दुरी पर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वार है और सड़क मार्ग से यह ऋषिकेश, कोटद्वार और देहरादून से सीधे जुड़ा है।

कहां ठहरें: ठहरने के लिए पौड़ी में कुछ औसत दर्जे के होटल हैं। यहां गढ़वाल मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस भी बेहतर विकल्प है। इसे ऑनलाइन भी बुक कर सकते हैं।


चोपता: मिनी स्विट्जरलैंड


उत्तराखंड में हिमालय की गोद में बसा चोपता हरी-भरी घासों और सदाबहार जंगलों से ढका हुआ है। इसे 'मिनी स्विट्जरलैंड' भी कहा जाता है। कम भीड़-भाड़ पसंद करने वाले लोगों के लिए चोपता किसी जन्नत से कम नहीं। यह ट्रेकर्स और सामान्य पर्यटक, दोनों को एक अलग और सुखद अनुभव का अहसास करता है।

क्या है खास: कैंपिंग, ट्रेकिंग, स्कीइंग, राफ्टिंग, माउंटेन बाइकिंग, पैराग्लाइडिंग, क्लाइंबिंग जैसी गतिविधियों के लिए यह खास है।

क्या देखें: देवरी ताल, चन्द्रशिला, तुंगनाथ मंदिर, ऊखीमठ, केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य, चंद्रशिला चोटी, देवरिया ताल आदि।

टूरिस्ट सीजन: मई से जुलाई और सितंबर से नवंबर के महीनों के दौरान यहां का मौसम बड़ा ही शानदार, शांत और सुहावना रहता है।

दूरी: दिल्ली से 412 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 11 घंटे लगते हैं।

कैसे जाएं: यहां पहुंचने के लिए आपको देहरादून और ऋषिकेश से होकर जाना होगा। ऋषिकेश से गोपेश्वर होकर या ऋषिकेश से ऊखीमठ होकर भी आप जा सकते हैं।

कहां ठहरें: गोपेश्वर और ऊखीमठ, दोनों जगह गढ़वाल मंडल विकास निगम के विश्रामगृह हैं। इनके अलावा प्राइवेट होटल, लॉज, धर्मशालाएं भी हैं, जो आसानी से मिल जाते हैं।



पालमपुर: शांत सैरगाह


हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में स्थित पालमपुर एक शांत सैरगाह है। ऊंची पहाड़ियों पर चीड़ और देवदार के जंगलों की हरियाली इस स्थान को एक अलग भव्यता प्रदान करती है। इसके आसपास फैले चाय के बड़े-बड़े बागान इसकी खासियत हैं। हरियाली भरे इन बागानों में घूमना और पत्तियां चुनते हुए फोटो खिंचवाना हर सैलानी को पसंद आता है।

क्या है खास: पैराग्लाइडिंग, घुमक्कड़ी, कांगड़ा घाटी रेलवे की ट्रेन का मनमोहक सफर इस यात्रा को यादगार बना देता है।

क्या देखें:
न्यूगल पार्क, विंध्यवासिनी मंदिर, घुघुर, लांघा, गोपालपुर, आर्ट गैलरी घूमने की अच्छी जगहें हैं।

टूरिस्ट सीजन: वैसे तो पालमपुर कभी भी जाया जा सकता है, लेकिन मार्च से जून तक और सितंबर से नवंबर तक का मौसम घूमने के लिए अच्छा है।

दूरी:
दिल्ली से 500 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 10 घंटे लगते हैं।

कैसे जाएं: पालमपुर का नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल और नजदीकी रेलवे स्टेशन मारंडा है। पालमपुर दिल्ली, अंबाला, लुधियाना, चंडीगढ़, अमृतसर, पठानकोट आदि शहरों से सड़क मार्ग से सीधे जुड़ा है।

कहां ठहरें: कांगड़ा में रुकने के लिए बजट होटलों के अलावा कई किफायती होमस्टे के विकल्प भी उपलब्ध हैं। कुछ महंगे रिजॉर्ट भी हैं। बैजनाथ, पालमपुर आदि स्थानों पर भी रुका जा सकता है।



नारकंडा: भीड़ से दूर


शिमला से तकरीबन 70 किमी की दूरी पर स्थित है नारकंडा। यह एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है। नारकंडा में बर्फ से ढंके हिमालय के पर्वत और तलहटी पर हरे-भरे जंगल पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। इस खूबसूरत हिल स्टेशन पर आपको अन्य जगहों के मुकाबले कम भीड़ देखने को मिलेगी।

क्या है खास:
ट्रेकिंग, कैंपिंग, स्कीइंग आदि के लिए यह बहुत प्यारी जगह है।

क्या देखें: हाटु मंदिर, हाटु पीक, महामाया मंदिर, थानेदार, अमेरिकी सेवों का बागान, मंदोदरी का मंदिर आदि।

टूरिस्ट सीजन: गर्मी का मौसम नारकंडा घूमने के लिए सबसे अच्छा मौसम है।

दूरी:
दिल्ली से यह 406 किलोमीटर दूर है और पहुंचने में 9 घंटे लगते हैं।

कैसे जाएं: नई दिल्ली और शिमला के अलावा, नारकंडा के लिए नियमित रूप से बसें रामपुर और किन्नौर जैसे अन्य शहरों से भी उपलब्ध हैं।

कहां ठहरें: रुकने के लिए कुछ बजट होटल और पर्यटन विभाग के गेस्ट हाउस के विकल्प हैं।

सोलन: घने जंगलों से झांकता शहर

हर कोई शिमला जाना चाहता है, लेकिन वहां भीड़ बहुत है। ऐसे में सोलन बेहतर विकल्प हो सकता है। सोलन घने जंगलों से घिरा होने के कारण पर्यटकों को खूब लुभाता है।

क्या कर सकते हैं:
समय है तो मशरूम की खेती, समय नहीं है तो ट्रेकिंग आदि

घूमने की जगहें: मतिउल, कारोल चोटी, कंडाघाट, कसौली, चैल और दगशाई, कारोल पर्वत के ऊपर की गुफा, युंगडरुंग तिब्बती मठ, गोरखा फोर्ट और जाटोली शिव मंदिर।

दूरी: दिल्ली से 300 किलोमीटर, समय- 6 घंटे

कैसे जाएं: चंडीगढ़ करीबी हवाईअड्डा है। यह सोलन से 67 किलोमीटर दूर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन कालका है, जो सोलन से 44 किलोमीटर दूर है।

कहां ठहरें: यहां पर आपको होटल, रिजॉर्ट, गेस्ट हाउस, होम स्टे मिल जाएंगे। सरकारी गेस्ट हाउस भी है।

चिलियानौला

रानीखेत से महज छह किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा-सा शांत कस्बा है यह। यहां का हेड़ाखान मंदिर प्रसिद्ध है। यहां से नंदा देवी पर्वत खूबसूरत दिखाई देता है जो कि पर्यटकों के लिए एक बड़ा आकर्षण है।

कैसे पहुंचें: काठगोदाम स्टेशन तक ट्रेन से और वहां से रानीखेत और फिर चिलियानौला तक सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं।

कहां ठहरें:
केएमवीएन के हिमाद्री गेस्टहाउस चिलियानौला के अलावा कुछ निजी होटल भी उपलब्ध हैं।

कुंजापुरी


इस जगह ने पैराग्लाइडिंग जैसे रोमांचक खेल से पर्यटकों को एक नया विकल्प मुहैया करा दिया है। ट्रेकिंग, रिवर राफ्टिंग और बंजी जंपिंग के भी यहां काफी विकल्प हैं। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त के खूबसूरत नजारे के अलावा स्वर्गारोहिणी, चौखंबा, गंगोत्री और बंडेरपंच की ऊंची-ऊंची चोटियां साफ नजर आती हैं। यहां मां कुंजादेवी का प्रसिद्ध मंदिर है जो देवी के पूरे देश में फैले 52 शक्तिपीठों में से एक है।

कैसे जाएं: हरिद्वार तक ट्रेन से और उसके बाद ऋषिकेश और उससे ऊपर हिन्डोलाखाल या नरेन्द्र नगर और मंदिर तक सड़क मार्ग से

कहां ठहरें:
कुंजापुरी में ठहरने के लिए बेहतर विकल्प नहीं है। नजदीकी नरेन्द्र नगर में कुछ होटल हैं। बेहतर है कि आप ऋषिकेश के ऊपरी हिस्से में ही किसी होटल में ठहरें।

कुछ खास बातों का रखें ध्यान

घूमने लायक जगह का चुनाव:
जिन-जिन जगहों पर आपको जाना है, उनका चयन पहले से कर लेना बेहतर रहेगा। इससे समय और पैसे की बचत होती है और आप अनावश्यक भटकाव से बचते हैं।

लिस्टिंग: उन चीजों की एक लिस्ट बना लें सफर के दौरान जिनकी आवश्यकता हो सकती है। हां, अनावश्यक बोझ बढ़ाने से बचें।

टूरिस्ट स्पॉट की सही जानकारी: जहां आपको घूमने जाना है, वह कहां है और आप वहां तक कैसे पहुंचेंगे, इनसे संबंधित जानकारियां आपके पास पहले से ही रहनी चाहिए। इससे आपका समय बचाती है, दूसरा पैसा। और तो और सही जानकारी होने से यात्रा का रोमांच बढ़ जाता है।

रिजर्वेशन:
आपकी यात्रा सुखद और आरामदेह हो, इसके लिए रिजर्वेशन का होना जरूरी होता है। अगर किसी कारणवश नहीं हो पाता है तो विकल्पों के बारे में पहले से सोचकर चलें।

होटल बुकिंग:
होटल बुकिंग पहले से करा लें तो बेहतर रहता है। हालांकि उत्तराखंड की जिन जगहों का जिक्र यहां किया गया है, वहां आसानी से होटल मिल जाते हैं। अगर नहीं मिलते हैं तो होम स्टे, पीजी जैसे विकल्प भी है।

सेफ्टी की फिक्र

- दुर्गम इलाकों में सुरक्षित यात्रा के लिए ध्यान से गाड़ी चलाना जरूरी है।

- ट्रेकिंग या अन्य किसी कारणों से बाहर निकलें तो अपने साथ एक नक्शा रखें।

- यह पहाड़ी क्षेत्र है। आमतौर पर शाम के बाद बहुत ठंडक हो जाती है। गर्म कपड़े हमेशा साथ रखें।

- बारिश में यात्रा करते समय सावधानी बरतें, भूस्खलन का खतरा रहता है।


उत्तराखंड यात्रा पर खर्च


आप अपनी सुविधा और पसंद के मुताबिक विकल्प चुन सकते हैं। अगर आप तीन दिन की ट्रिप प्लान करते हैं तो 10000 रुपये और पांच दिन का प्लान करते हैं तो 15000 रुपये में घूम सकते हैं। उत्तराखंड टूरिज्म डिवेलपमेंट बोर्ड और निजी ऑपरेटर भी टूर पैकेज देते हैं। आप उन्हें भी देख सकते हैं। चार धाम पैकेज पर प्रति व्यक्ति करीब 15,000 रुपये का खर्च आ सकता है तो दो धाम का खर्च करीब 10000 रुपये।

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