क्या है बुखार
जब हमारे शरीर पर कोई बैक्टिरिया या वायरस हमला करता है तो हमारा शरीर अपने आप ही उसे मारने की कोशिश करता है। इसी मकसद से शरीर जब अपना टेम्प्रेचर बढ़ाता है तो उसे ही बुखार कहा जाता है। जब भी शरीर का टेम्प्रेचर नॉर्मल (98.3) से बढ़ जाए तो वह बुखार माना जाएगा। आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ - पांव तो ठंडे रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म रहते हैं इसलिए उनके पेट से उनका बुखार चेक किया जाता है।
कब जाएं डॉक्टर के पास
98.3 डिग्री फॉरनहाइट तक हमारी बॉडी का नॉर्मल टेंप्रेचर है। तापमान इससे ज्यादा बढ़ाता है तो उसे बुखार कहा जाता है। कई बार बुखार 104-105 डिग्री फॉरनहाइट तक भी पहुंच जाता है। आमतौर पर100 डिग्री तक बुखार में किसी दवा की जरूरत नहीं होती। हालांकि बुखार इसी रेंज में 3-4 या ज्यादा दिन तक लगातार बना रहे या ज्यादा हो जाए तो इलाज की जरूरत होती है। इसी तरह बुखार अगर 102 डिग्री तक· है और क·ोई खतरनाक· लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं। लेकिन आजकल यानी मॉनसून में एक दिन के बुखार के बाद ही फौरन डॉक्टर के पास चले जाएं चाहे बुखार कैसा भी हो।
घर पर कैसे रखें ख्याल
बुखार अगर 102 डिग्री तक है और कोई और खतरनाक लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं। मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पट्टिiयां रखें। पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए। पट्टी रखने के बाद वह गरम हो जाती है इसलिए उसे सिर्फ 1 मिनट तक ही रखें। अगर माथे के साथ-साथ शरीर भी गरम है तो नॉर्मल पानी में कपड़ा भिगोकर निचोड़ें और उससे पूरे शरीर को पोंछें। बुखार है (खासकर डेंगू के सीजन में) तो एस्प्रिन बिल्कुल न लें। यह मार्केट में डिस्प्रिन, एस्प्रिन, इकोस्प्रिन आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। ब्रूफेन, कॉम्बिफ्लेम आदि एनॉलजेसिक से भी परहेज करें क्योंकि अगर डेंगू है तो इन दवाओं से प्लेटलेट्स कम हो सकती हैं और शरीर से ब्लीडिंग शुरू हो सकती है। किसी भी तरह के बुखार में सबसे सेफ पैरासिटामोल लेना है।
मलेरिया
'प्लाज्मोडियम' नाम के पैरासाइट से होने वाली बीमारी है मलेरिया। यह मादा ' एनोफिलीज ' मच्छर के काटने से होता है जोकि गंदे पानी में पनपते हैं। ये मच्छर आमतौर पर दिन छिपने के बाद काटते हैं।
किस सीजन में फैलता है :
जुलाई से नवंबर के बीच में ज्यादा होता है।
लक्षण :
तेज बुखार, सिर दर्द, शरीर दर्द, उलटी, जी मितलाना, कमजोरी। इसमें आमतौर पर एक दिन छोड़कर बुखार आता है और मरीज को बुखार के साथ कंपकंपी (ठंड) भी लगती है।
इलाज
एलोपैथी : chloroquine, primaquine, mefloquine ( इन दवाइयों के साइड - इफेक्ट्स हो सकते हैं , इसलिए इन्हें बिना की डॉक्टर की सलाह के न लें) । इसमें एंटी - बायोटिक नहीं , एंटी - मलेरियल दवा दी जाती है।
होम्योपैथी : chininum sulph 3x, cinchona 30, malaria officinalis 30
डोज : 30 नंबर की 5-5 गोली दिन में चार बार लें।
आयुर्वेद : महासुदर्शन चूर्ण और मृत्युजंय रस (गोली)
डोज : आधा चम्मच चूर्ण और 1 गोली , सुबह - शाम गरम पानी के साथ , 5 दिन तक लें।
घरेलू नुस्खा :
गिलोय की डंडी ( चार इंच की ), 20 ग्राम गुड़, एक बड़ी इलायची और एक लौंग को उबालकर उसका काढ़ा बनाकर 5 दिन तक पीएं।
वायरल
किसी भी वायरस की वजह से होने वाला बुखार वायरल होता है।
कैसे फैलता है
वायरल होने के कई कारण हो सकते हैं जिनमें से मुख्य कारण सीवर के पानी का , पीने के पानी में मिलना ( जोकि अक्सर बारिश के दिनों में हो जाता है ) और इंफेक्शन वाले आदमी और उसके सपंर्क में आई चीजों को छूना।
लक्षण
बुखार, सिर दर्द, नाक बहना, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द।
एलोपैथी
दवाई लक्षण देखकर ही दी जाती हैं , जोकि डॉक्टर की जांच के बाद लें। इसमें एंटीबायोटिक नहीं दी जाती।
इलाज
होम्योपैथी
gelsemium 30, arsenicum album 30, डोज : 30 नंबर की 5-5 गोली दिन में 4 बार लें।
आयुर्वेद:
त्रिभुवन कीर्ति और आनंद भैरव की 1-1 गोली सुबह-शाम गरम पानी के साथ।
टायफाइड
इसे एंट्री फीवर और मियादी बुखार भी कहते हैं। यह सेल्मोनिया नाम के बैक्टीरिया से होता है, जिससे आंत में जख्म ( अल्सर ) हो जाता है , जो बुखार की वजह बनता है।
कैसे फैलता है
पीने के पानी में सीवर का पानी मिलना या किसी दूसरी वजहों से पानी का दूषित होना इसके होने का सबसे बड़ा कारण है।
कब होता है वैसे तो यह कभी भी हो सकता है लेकिन बरसात के मौसम में यह सबसे अधिक होता है क्योंकि ज्यादातर इसी समय सीवेज सिस्टम खराब होता है। तेज बुखार , सिर दर्द , शरीर दर्द , उलटी , जी मितलाना। यह बुखार ज्यादातर बिना कंपकंपी के आता है।
इलाज
एलोपैथी
olfoxacin, levofloxacin, azithromycin । इसमें एंटीबायोटिक दवा दी जाती है।
होम्योपैथी
baptisia 30, bryonia pyrogenium 30
डोज : 30 नंबर की 5-5 गोली दिन में चार बार ले। (सभी दवाएं टेस्ट कंफर्म होने के बाद ही लें)
आयुर्वेद
प्रवाल पिष्टी 250 mg, मोती पिष्टी 250 mg और सिद्घ मकरध्वज 125 mg तीनों की एक - एक गोली को पीसकर मिला लें , फिर शहद के साथ दिन में दो बार , सुबह - शाम 15 दिन तक लें।
डेंगू
डेंगू मादा एडीज इजिप्टी मच्छर के काटने से होता है। इन मच्छरों के शरीर पर चीते जैसी धारियां होती हैं। ये मच्छर दिन में, खासकर सुबह काटते हैं।
किस सीजन में फैलता है
डेंगू बरसात के मौसम और उसके फौरन बाद के महीनों यानी , जुलाई से अक्टूबर में सबसे अधिक फैलता है क्योंकि इस मौसम में मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां होती है।
डेंगू बुखार से पीड़ित मरीज के खून में डेंगू वायरस बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। जब कोई एडीज मच्छर डेंगू के किसी मरीज को काटता है तो वह उस मरीज का खून चूसता है। खून के साथ डेंगू वायरस भी मच्छर के शरीर में चला जाता है। जब डेंगू वायरस वाला वह मच्छर किसी और इंसान को काटता है तो उससे वह वायरस उस इंसान के शरीर में पहुंच जाता है , जिससे वह डेंगू वायरस से इन्फेटेड हो जाता है।
कब दिखती है बीमारी
काटे जाने के लगभग 3-5 दिनों के बाद उस इंसान में डेंगू बुखार के लक्षण दिखने लगते हैं। यह संक्रमण काल 3 से 10 दिनों का भी हो सकता है। कितने तरह का होता है डेंगू
यह तीन तरह का होता है
1. क्लासिकल (साधारण) डेंगू बुखार
2. डेंगू हैमरेजिक बुखार (DHF)
3. डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS)
इन तीनों में से दूसरे और तीसरे तरह का डेंगू सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। साधारण डेंगू बुखार अपने आप ठीक हो जाता है और इससे मृत्यु भी नहीं होती लेकिन अगर किसी को DHF या DSS है और उसका फौरन इलाज शुरू नहीं किया जाता तो जान को खतरा हो सकता है। इसलिए यह पहचानना सबसे जरूरी है कि बुखार साधारण डेंगू है या DHF और DSS है।
कैसे पहचानें
इन लक्षणों से आप इसकी पहचान कर सकते हैं :
साधारण डेंगू बुखार
1. ठंड लगने के बाद अचानक तेज बुखार चढ़ना।
2. सिर, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होना।
3. आंखों के पिछले हिस्से में दर्द होना , जो आंखों को दबाने या हिलाने से और भी बढ़ जाता है।
4. बहुत अधिक कमजोरी लगना , भूख न लगना और जी मितलाना और मुंह का स्वाद खराब होना।
5. गले में हल्का - सा दर्द होना।
6. शरीर खासकर चेहरे , गर्दन और छाती पर , लाल - गुलाबी रंग के रैशेज होना।
7. क्लासिकल साधारण डेंगू बुखार लगभग 5 से 7 दिन तक रहता है और मरीज ठीक हो जाता है। ज्यादातर मामलों में यही डेंगू बुखार होता है।
डेंगू हैमरेजिक बुखार (DHF)
1. नाक व मसूढ़ों से खून आना।
2. शौच या उलटी में खून आना।
3. त्वचा पर गहरे नीले - काले रंग के छोटे या बड़े चिकत्ते पड़ जाना।
4. अगर क्लासिकल साधारण डेंगू बुखार के लक्षणों के साथ - साथ ये लक्षण भी दिखाई दें तो वह DHF हो सकता है। ब्लड टेस्ट से इसका पता लग सकता है।
डेंगू शॉक सिन्ड्रोम (DSS)
1. इस बुखार में DHF के लक्षणों के साथ - साथ ' शॉक ' की अवस्था के भी कुछ लक्षण दिखाई देते हैं। जैसे :
2. मरीज बहुत बैचेन हो जाता है और तेज बुखार के बावजूद उसकी त्चचा ठंडी महसूस हो जाती है।
3. मरीज धीरे - धीरे होश खोने लगता है।
4. मरीज की नाड़ी कभी तेज और कभी धीरे चलने लगती है। उसका ब्लडप्रेशर एकदम लो हो जाता है और बेहोशी सी छाने लगती है।
इलाज
1. अगर मरीज को साधारण डेंगू बुखार है तो उसका इलाज व देखभाल घर पर की जा सकती है।
2. डॉक्टर की सलाह लेकर पैरासिटामोल (क्रोसिन आदि) ले सकते हैं।
3. एस्प्रिन (डिस्प्रिन आदि) बिल्कुल न लें। इनसे प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं।
4. अगर बुखार 102 डि. फा. से ज्यादा है तो मरीज के शरीर पर पानी की पट्टियां रखें।
5. सामान्य रूप से खाना देना जारी रखें। बुखार में शरीर को और ज्यादा भोजन की जरूरत होती है।
6. मरीज में DSS या DHF का एक भी लक्षण दिखाई दे तो उसे जल्दी - से - जल्दी डॉक्टर के पास ले जाएं।
7. DSS और DHF बुखार में प्लेटलेट्स कम हो जाती हैं , जिससे शरीर के जरूरी हिस्से प्रभावित हो सकते हैं।
8. डेंगू बुखार के हर मरीज को प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं होती , सिर्फ डेंगू हैमरेजिक और डेंगू शॉक सिंड्रोम बुखार में ही जरूरत पड़ने पर प्लेटलेट्स चढ़ाई जाती हैं।
9. सही समय पर इलाज शुरू कर दिया जाए तो DSS और DHF का पूरा इलाज मुमकिन है।
एलोपैथी
इसकी दवाई लक्षण देखकर और प्लेटलेट्स का ब्लड टेस्ट कराने के बाद ही दी जाती है।
होम्योपेथी
eupatorium perf. 30
डोज :
30 नंबर की 5-5 गोली दिन में चार बार , तीन दिन तक लें।
आयुर्वेद
आयुर्वेद में डेंगू के इलाक के लिए कोई पेटेंट दवा नहीं है। लेकिन डेंगू न हो , इसके लिए यह नुस्खा अपना सकते हैं।
एक कप पानी में एक चम्मच गिलोय का रस (अगर इसकी डंडी मिलती है तो चार इंच की डंडी लें। उस बेल से लें जो नीम के पेड़ पर चढ़ी हो तो बेहतर है ), दो काली मिर्च , तुलसी के पांच पत्ते और अदरक को मिलाकर पानी में उबालकर काढ़ा बनाए और 5 दिन तक लें। अगर चाहे तो इसमें थोड़ा-सा नमक और चीनी भी मिला सकते हैं। इससे स्वाद थोड़ा बेहतर हो जाएगा।
डोज :
दिन में दो बार। सुबह नाश्ते के बाद और रात में डिनर से पहले लें।
मच्छर रोकने के चंद उपाय
1. घर या ऑफिस के आसपास पानी जमा न होने दें ,
2. गड्ढों को मिट्टी से भर दें ,
3. रुकी हुई नालियों को साफ करें।
4. अगर पानी जमा होने से रोकना संभव नहीं है तो उसमें पेट्रोल या केरोसिन ऑयल डालें।
5. रूम कूलरों , फूलदानों का सारा पानी हफ्ते में एक बार और पक्षियों को दाना - पानी देने के बर्तन को रोज पूरी तरह से खाली करें , उन्हें सुखाए और फिर भरें।
6. घर में टूटे - फूटे डिब्बे , टायर , बर्तन , बोतलें आदि न रखें। अगर रखें तो उल्टा करके रखें।
7. डेंगू के मच्छर साफ पानी में पनपते हैं , इसलिए पानी की टंकी को अच्छी तरह बंद करके रखें।
8. अगर मुमकिन हो तो खिड़कियों और दरवाजों पर महीन जाली लगवाकर मच्छरों को घर में आने से रोकें।
9. मच्छरों को भगाने और मारने के लिए मच्छरनाशक क्रीम , स्प्रे , मैट्स , कॉइल्स आदि का प्रयोग करें। गुग्गुल के धुएं से मच्छर भगाना अच्छा देसी उपाय है।
10. घर के अंदर सभी जगहों में हफ्ते में एक बार मच्छर - नाशक दवाई का छिड़काव जरूर करें। यह दवाई फोटो - फ्रेम्स , पर्दों , कैलंडरों आदि के पीछे और घर के स्टोर रूम और सभी कोनों में जरूर छिड़कें। दवाई छिड़कते समय अपने मुंह और नाक पर कोई कपड़ा जरूर बांधें। साथ ही , खाने - पीने की सभी चीजों को ढककर रखें।
11. एक नीबू को बीच से आधा काट लें और उसमें खूब सारे लौंग घुसा दें। इसे कमरे में रखें। यह मच्छर भगाने का अच्छा और नैचरल तरीका है।
12. लेवेंडर ऑयल की 15-20 बूंदें, 3-4 चम्मच वनीला एसेंस और चौधाई कप नीबू रस को मिलाकर एक बॉटल में रखें। पहले अच्छी मिलाएं और बॉडी पर लगाएं। इससे मच्छर दूर रहते हैं।
13. मच्छरों के आतंक से बचने के लिए अगरबत्ती को देशी घी में डिप करें। फिर अगरबत्ती को सिट्रेनेला ऑयल में डालकर निकाल लें। फिर इसे जलाएं। घर से मच्छर भाग जाएंगे।
14. विक्स का इस्तेमाल भी आप मच्छर दूर भगाने के लिए भी कर सकते हैं। सोने से पहले हाथ-पैर और शरीर के खुले हिस्से पर विक्स लगाएं जिससे मच्छर पास नहीं आएंगे। विक्स में यूकोलिप्टस के तेल, कपूर और पुदीने के तत्व होते हैं, जो मच्छर दूर भगाने में मदद करते हैं।
इसके अलावा तुलसी का तेल, पुदीने की पत्तियों का रस, लहसुन का रस यागेंदे के फूलों का रस शरीर पर लगाने से भी मच्छर दूर भागते हैं।
बच्चों का रखें खास ख्याल
बच्चे नाजुक होते हैं और उनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए बीमारी उन्हें जल्दी जकड़ लेती है। ऐसे में उनकी बीमारी को नजरअंदाज न करें।
1. खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए इन्फेक्शन होने और मच्छरों से काटे जाने का खतरा उनमें ज्यादा होता है।
2. बच्चों घर से बाहर पूरे कपड़े पहनाकर भेजें। मच्छरों के मौसम में बच्चों को निकर व टी-शर्ट न पहनाएं।
3. रात में मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं।
4. अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो, लगातार सोए जा रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
5. आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ-पांव तो ठंडे रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म रहते हैं इसलिए उनके पेट को छूकर और रेक्टल टेम्प्रेचर लेकर उनका बुखार चेक किया जाता है। अगर बगल से तापमान लेना ही है तो जो रीडिंग आए, उसमें 1 डिग्री जोड़ दें। उसे ही सही रीडिंग माना जाएगा।
6. बच्चे को डेंगू हो तो उसे अस्पताल में रखकर ही इलाज कराना चाहिए क्योंकि बच्चों में प्लेटलेट्स जल्दी गिरते हैं और उनमें डीहाइड्रेशन (पानी की कमी) भी जल्दी होता है।
7. अगर बच्चे की उम्र 6 महीने से कम है, या उसमें बुखार के दूसरे लक्षण दिखाई दे रहे हैं, या उसे दो दिन से ज्यादा बुखार है, या फिर उसका वैक्सीनेशन नहीं हुआ है तो ही डॉक्टर को बुलाएं।
8. बच्चे को बुखार में आइबुप्रोफेन या फिर एसिटामिनोफेन दी जा सकती है। बाल रोग विशेषज्ञ बच्चों को एस्पीरिन न देने की सलाह देते हैं। उनके अनुसार इससे बच्चों के शरीर में रेज़ सिड्रोम होने की संभावना होती है। यह एक तरह की गंभीर बीमारी है जो बच्चे को लीवर और दिमाग पर असर डालती है। इस बीमारी को इग्नोर करना खतरनाक हो सकता है।
बुखार में कॉमन गलतियां
1. कई बार लोग खुद और कभी - कभी डॉक्टर भी बुखार में फौरन ऐंटी -बायोटिक देने लगते हैं। सच यह है कि टायफायड के अलावा आमतौर पर किसी और बुखार में एंटी - बायोटिक की जरूरत नहीं होती।
2. ज्यादा ऐंटी - बायोटिक लेने से शरीर इसके प्रति इम्यून हो जाता है। ऐसे में जब टायफायड आदि होने पर वाकई ऐंटी - बायोटिक की जरूरत होगी तो वह शरीर पर काम नहीं करेगी। ऐंटी - बायोटिक के साइड इफेक्ट भी होते हैं। इससे शरीर के गुड बैक्टीरिया मारे जाते हैं।
3. डेंगू में अक्सर तीमारदार या डॉक्टर प्लेटलेट्स चढ़ाने की जल्दी करने लगते हैं। यह सही नहीं है। इससे उलटे रिकवरी में वक्त लग जाता है। जब तक प्लेटलेट्स 20 हजार या उससे कम न हों , प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं होती।
4. कई बार परिजन मरीज से खुद को चादर से ढक कर रखने को कहते हैं , ताकि पसीना आकर बुखार उतर जाए। इससे बुखार फौरी तौर पर उतर भी जाता है लेकिन सही तापमान का अंदाजा नहीं हो पाता। इसकी बजाय उसे खुली और ताजा हवा लगने दें। उसके शरीर पर सादा पानी की पट्टियां रखें। जरूरत है तो कूलर / एसी चलाएं ताकि उसके शरीर का तापमान कम हो सके।
5. बुखार में मरीज या उसके परिजन पैनिक करने लगते हैं और आनन - फानन में तमाम टेस्ट ( मलेरिया , डेंगू , टायफायड आदि के लिए ) कराने लगते हैं। दो दिन इंतजार करने के बाद डॉक्टर के कहे मुताबिक टेस्ट कराना बेहतर है।
6. मरीज बुखार में कॉम्बिफ्लेम , ब्रूफेन आदि ले लेते हैं। अगर डेंगू बुखार है तो इन दवाओं से प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं , इसलिए ऐसा बिल्कुल न करें। सिर्फ पैरासिटामोल ( क्रोसिन आदि ) किसी भी बुखार में सेफ है।
7. मरीज आराम नहीं करता और पानी कम पीता है। तेज बुखार में आराम बहुत जरूरी है। आधी बीमारी तो आराम से दूर हो जाती है। साथ ही , शरीर में पानी की कमी न हो तो उसे बीमारी से लड़ने में मदद मिलती है।
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