एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. पी. के. दवे, चेयरमैन ऑर्थोपीडिक्स डिपार्टमेंट, रॉकलैंड हॉस्पिटल डॉ. अनिल अरोड़ा, हेड, डिपार्टमेंट ऑफ ऑर्थोपीडिक्स, मैक्स हॉस्पिटल डॉ. राजीव अग्रवाल, हेड, न्यूरो-फिजियो डिपार्टमेंट, एम्स डॉ. रमणीक महाजन, डायरेक्टर, ऑर्थोपिडिक्स, साकेत सिटी हॉस्पिटल डॉ. शिखा शर्मा, न्यूट्री-हेल्थ एक्सपर्ट समृद्धि सक्सेना, मैनुअल थेरपी एक्सपर्ट, एक्टिवऑर्थो
आर्थराइटिस जोड़ों की बीमारी है। इससे जोड़ों में सूजन, दर्द और चलने-फिरने से लेकर घुटने मोड़ने तक में दिक्कत की शिकायत रहती है। यह आमतौर पर बढ़ती उम्र की बीमारी है, लेकिन कुछ दूसरी वजहों से होने वाला आर्थराइटिस कम उम्र में भी होता है।
कितनी तरह का
आर्थराइटिस यूं तो कई तरह का होता है, लेकिन सबसे कॉमन हैं ऑस्टियो-आर्थराइटिस और रूमैटॉयड आर्थराइटिस (गठिया)। इसके अलावा इन्फेक्शन और मेटाबॉलिक आर्थराइिटस के केस भी ठीक-ठाक तादाद में पाए जाते हैं।
- ऑस्टियो-आर्थराइटिस : यह बढ़ती उम्र के साथ आमतौर पर 50 साल के बाद परेशान करता है। हालांकि खराब लाइफस्टाइल से अब यह जल्दी भी लोगों को पकड़ रहा है। इसमें असर आमतौर पर घुटनों पर होता है। इसके अलावा, उंगलियों और कूल्हों में भी परेशानी होती, लेकिन इंडिया में सबसे कॉमन घुटनों की दिक्कत ही है।
- रूमैटॉयड आर्थराइटिस (गठिया): यह एक ऑटोइम्यूनिटी (शरीर अपने ही खिलाफ काम करने लगता है) वाली बीमारी है। फैमिली हिस्ट्री है, तो इसके होने के चांस काफी ज्यादा होते हैं। इसमें कहनी, कलाई, उंगलियां, कंधे, टखने, पैर के छोटे जोड़ आदि कहीं भी दर्द और अकड़न हो सकती है। अक्सर दर्द शरीर के दोनों तरफ यानी दोनों पैर, टखने, कलाई आदि में होता है। इसमें सर्दियों में दिक्कत बढ़ जाती है।
- दूसरी तरह का आर्थराइटिस: इसमें टीबी से होने वाला आर्थराइटिस सबसे कॉमन है। यह आमतौर पर किसी एक जोड़ में होता है। इसके अलावा छोटे बच्चों में पस वाला आर्थराइटिस भी होता है। इनके अलावा यूरिक एसिड, चोट या थायरॉयड से होनेवाला आर्थराइटिस भी होता है।
लक्षण जोड़ों में अकड़न और सूजन, तेज दर्द, जोड़ों से तेज आवाज आना, उंगलियों और दूसरे हिस्सों का मुड़ने लगना
वजहें
उम्र: ऑस्टियो-आर्थराइटिस उम्र के साथ जोड़ों में होनेवाली टूट-फूट की वजह से होता है।
मोटापा:
अपनी उम्र के मुताबिक बीएमआई से 5 किलो से ज्यादा वजन हो तो घुटनों पर कई गुना बुरा असर पड़ता है। फैमिली का रोल: पैरंट्स को यह है, तो बच्चों को होने के चांस काफी ज्यादा होते हैं, खासकर महिलाओं में। विटामिन डी की कमी: विटामिन डी की कमी सीधे ऑस्टियो-आर्थराइटिस के लिए जिम्मेदार नहीं है, पर अगर बचपन में रिकेट्स हुआ है तो खतरा बढ़ जाता है। चोट या इन्फेक्शन: किसी हिस्से में बार-बार चोट लगने, टीबी आदि का इन्फेक्शन होने या हॉर्मोनल गड़बड़ से भी होता है।
किसको खतरा ज्यादा
- महिलाओं में आर्थराइटिस का खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि महिलाओं को शरीर और जॉइंट्स ज्यादा लचीले होते हैं इसलिए चोट का डर भी ज्यादा होता है। फीमेल हॉर्मोन भी हड्डियों और जोड़ों पर कुशन का काम करने वाले कार्टिलेज पर बुरा असर डालता है। - जो लोग बहुत ज्यादा वाइब्रेटरी मूवमेंट करते हैं मसलन ड्रिलिंग आदि का काम करने वालों और भारी वजन उठाने वालों में खतरा ज्यादा होता है। - मोटे लोग और स्मोकिंग करनेवालों में भी खतरा ज्यादा होता है। बहुत ज्यादा शराब पीना भी हड्डियों के लिए नुकसानदेह है।
टेस्ट कौन-कौन से
ब्लड टेस्ट और एक्स-रे से इसका पता लगाया जाता है। ब्लड टेस्ट में हीमोग्राम, Rh फैक्टर, CPR, ANA, ESR, एंटी CCP आदि टेस्ट होते हैं। इन सभी टेस्टों की कीमत 1500 से 2000 रुपये तक होती है।
कैसे करें बचाव
1. रेग्युलर एक्सरसाइज करें रेग्युलर कार्डियो, स्ट्रेंथनिंग और स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करें। हफ्ते में कम-से-कम 5 दिन 45-50 मिनट एक्सरसाइज जरूर करें। कार्डियो के लिए जॉगिंग, ब्रिस्क वॉक, स्वीमिंग और साइक्लिंग कर सकते हैं। ब्रिस्क वॉक हर उम्र और हर किसी के लिए सबसे आसान और फायदेमंद है। ब्रिस्क वॉक का मतलब है 30 मिनट में 3 किमी चलना। अगर एक बार में 30 मिनट का टाइम नहीं निकाल पाते हैं तो दो बार में इसे निपटाएं। कॉर्डियो के तौर पर जरूर इसका असर कम होगा लेकिन जॉइंट्स के लिए यह बराबर ही फायदेमंद साबित होगी। 10-15 मिनट योग और स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज के अलावा लाइट वेट लिफ्टिंग भी जरूर करें। इनसे मांसपेशियां लचीली और मजबूत, दोनों बनती हैं। मांसपेशियां जोड़ों पर पड़ने वाले दबाव का कुछ हिस्सा खुद झेल जाती हैं। स्ट्रेचिंग उम्र बढ़ने के साथ आपके जोड़ों में लचीलापन बनाए रखने में मदद करती है। जॉइंट्स लचीले रहेंगे तो उनमें चोट लगने का खतरा कम होगा। कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि ट्रेडमिल के बजाय पार्क में जॉगिंग करना बेहतर है, क्योंकि ट्रेडमिल पर समतल सतह मिलती है, जबकि रियल लाइफ में हम उतनी स्मूद जगहों के बजाय ऊंची-नीची जगहों पर भी चलते हैं। फिर ट्रेडमिल पर अक्सर लोग काफी फास्ट भी चलने लगते हैं। ट्रेडमिल अगर यूज करना ही है तो अच्छी क्वॉलिटी (जिसमें शॉकर्स हों, रबड़ काफी मोटी हो आदि) की ही यूज करें।
2. एक्टिव रहें फिजिकली आप जितना एक्टिव रहेंगे, आर्थराइटिस से पीड़ित होने के चांस उतने कम होंगे। छोटे-मोटे काम खुद करें। लंबे समय तक एक ही पोजिशन में बैठने से बचें। साथ ही, किसी एक जॉइंट या हिस्से पर जोर डालने से बचें। मसलन एक पैर पर वजन डालकर खड़े होना आदि। डेस्क जॉब में हों तो भी हर 30 मिनट के बाद 5 मिनट का ब्रेक लें। कुर्सी पर बैठे-बैठे भी बीच-बीच में मूवमेंट करते रहें।
3. बैलेंस्ड डाइट जरूरी प्रोटीन और कैल्शियम से भरपूर खाना खाएं, जैसे कि पनीर, दूध, दही, ब्रोकली, पालक, राजमा, मूंगफली, बादाम, टोफू, तिल के बीज, टूना मछली आदि। हरी सब्जियां और फल भी खाएं। साथ ही, दिन भर में 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं। यह शरीर में नमी बनाए रखता है और जोड़ों के लिए शॉक एब्जॉर्वर की तरह काम करता है।
4. विटामिन डी की खुराक लें विटामिन सी और डी जोड़ों के लिए बहुत जरूरी हैं। रोजाना करीब 40 मिनट धूप में बैठें। उस वक्त शरीर का ज्यादातर हिस्सा खुला हो। अक्सर ऐसा मुमकिन नहीं हो पाता इसलिए विटामिन डी के सैशे लेने चाहिए। हर किसी को रोजाना 400 यूनिट विटामिन डी चाहिए होता है। एक सैशे में 60 हजार यूनिट विटामिन डी होता है, जोकि एक महीने के लिए काफी है।
5. वजन काबू में रखें वजन ज्यादा होने से जोड़ों जैसे, घुटनों, टखनों और कूल्हों आदि पर बहुत जोर पड़ता है। बेहतर होगा कि आप बीएमआई 18-23 के बीच रखें।
6. चोटों का खयाल रखें अगर आपको एक ही स्थान पर बार-बार चोट लगती है, तो आपको खयाल रखने की जरूरत है। घुटने या टखने की मांसपेशियों में परेशानी आगे जाकर आर्थराइटिस की वजह बन सकती है। जोड़ों की चोट को पूरी तरह ठीक होने दें। इसके लिए फिजियोथेरेपिस्ट की मदद भी ले सकते हैं।
7. स्मोकिंग को करें ना धूम्रपान दिल, फेफड़े के अलावा हड्डियों के लिए भी नुकसानदेह है। स्मोकिंग छोड़ने से आर्थराइटिस के मरीजों के दर्द में कमी और सेहत में सुधार देखा गया है। ज्यादा शराब से भी हड्डियों को नुकसान होता है। इससे बचें।
होने के बाद सावधानी
1. फिजियोथेरपी है फायदेमंद
जोड़ों की समस्या में फिजियोथेरपी काफी असरदार है। यहां तक कि हल्की दिक्कत होने पर ही फिजियोथेरपी करा लेंगे तो बीमारी बढ़ेगी नहीं। बेहतर रहेगा कि जब तक दर्द है, तब तक फिजियोथेरपी कराएं। फिर खुद ही एक्सरसाइज करें। फिजियोथेरपिस्ट एनर्जी कनजर्वेशन तकनीक यानी किसी भी काम को सही तरीके से करने का तरीका बताते हैं, जैसे कि बैग कैसे उठाना है, चलना कैसे है आदि। दरअसल वजन को हमेशा सेंटर ऑफ ग्रैविटी के पास होना चाहिए। हम लोग अक्सर भारी बैग हाथ में उठाते हैं, जबकि विदेशी पिट्ठू बैग यूज करते हैं। पिट्ठू बैग से वजन का लोड पूरे शरीर पर रहता है, ना कि सिर्फ हाथों पर।
2. जॉइंट पर जोर न डालें
आर्थराइटिस होने के बाद शरीर के किसी एक हिस्से या जॉइंट पर जोर डालने वाली एक्टिविटी से बचें, जैसे कि एक हाथ से सूटकेस उठाना या कलाई पर पूरा वजन डालकर उठना। इसी तरह किसी भी जॉइंट को एंड रेंज तक न मोड़ें जैसे कि उंगलियों के सहारे बाल्टी उठना या जोर से कपड़े निचोड़ना या टैप को पूरा जोर लगाकर बंद करना आदि। सीढ़ियां चढ़ते हुए ध्यान रखें कि जिस पैर में दर्द कम है, उसे पहले रखें, जबकि सीढ़ियां उतरते हुए ज्यादा दर्द वाले पैर को पहले रखें।
3. इंडियन टॉइलेट से बचें
इंडियन स्टाइल टॉइलेट यूज न करें। इससे घुटनों पर जोर पड़ता है। साथ ही चौकड़ी मारकर न बैठें। सीढ़ियों का इस्तेमाल भी न करें।
4. मूवमेंट करते रहें
एक ही पोजिशन में लगातार न बैठें। बीच-बीच में मूवमेंट करते रहें। घुटने को मोड़ना बिल्कुल ही बंद न कर दें। थोड़ा-बहुत मोड़ना भी जरूरी है। अगर हमेशा कुर्सी पर ही बैठेंगे तो आगे जाकर घुटना मुड़ ही नहीं पाएगा। लेकिन किसी भी हिस्से पर ज्यादा प्रेशर न डालें। मसलन डांस, रस्सी कूदने जैसी एक्टिविटी से परहेज करें।
5. पेनकिलर से परहेज करें
अगर शरीर में दर्द है तो शरीर बता रहा है कि कुछ दिक्कत है। हम अक्सर पेनकिलर लेकर उसे चुप कराने की कोशिश करते हैं। इससे अंदर ही अंदर तकलीफ बढ़ती रहती है। ऐसे में जहां तकलीफ है, उसे दूर करने की कोशिश करें। मसलन मसल्स वीक हैं या बहुत ज्यादा स्ट्रेन है या वजन कम करना है। पेनकिलर लिवर को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाता है। इसलिए बहुत जरूरी हो तो कभी-कभार पैरासिटामॉल ले सकते हैं।
6. ठंड से बचें
सर्दियों में आर्थराइटिस के मरीज का ज्यादा ख्याल रखें, खासकर गठिया वाले मरीजों का। ठंडे पानी की बजाय हल्के गुनगुने पानी से नहाएं। घुटने और दूसरे जोड़ों को ढककर रखें। एसी यूज न करें या कमरा ठंडा होने पर बंद कर दें।
7. मालिश है फायदेमंद
जोड़ों की मालिश किसी भी तेल से कर सकते हैं। मालिश हल्के हाथ से करें। साथ ही, स्टीम बाथ या गर्म पानी से सिकाई भी फायदेमंद है। दिन में दो बार 15-15 मिनट के लिए मालिश और सिकाई कर सकते हैं। अगर घुटना बहुत सूज गया है या लाल हो गया है तो शुरुआती 24 घंटे में बर्फ से सिकाई कर सकते हैं। दरअसल मालिश और सिकाई से उस एरिया में खून का दौरा बढ़ जाता है, जिससे फौरी राहत मिलती है।
8. एक्सरसाइज करते रहें एक्सरसाइज जरूर करें। ब्रिस्क वॉक, साइक्लिंग और स्वीमिंग करें। योग और स्ट्रेचिंग जरूर करें। लेकिन जमीन पर बैठने वाले योगासन न करें जैसे कि वज्रासन आदि।
9. लोकल सपोर्ट यूज करें दर्द है तो नी-कैप या एल्बो-कैप यूज कर सकते हैं, लेकिन साथ में एक्सरसाइज जरूर करें। इन्हें भी लगातार यूज न करें वरना मसल्स को इनकी आदत पड़ जाएगी।
10. खाने का रखें ख्याल लहसुन, अदरक, हल्दी, एलोवेरा, ग्रीन टी, फ्लैक्ससीड्स, बादाम, अखरोट, लौंग, सौंठ आदि लें। विटामिन सी घुटनों के लिए अच्छा है। इसके अलावा 40 साल की उम्र के बाद मल्टिविटामिन भी लें, जबकि ठंडी चीजें (दही, आइसक्रीम आदि), ठंडा पानी और ठंडा खाना न खाएं। इसी तरह अगर यूरिक एसिड वाला आर्थराइिटस है तो प्रोटीन बेहद कम खाएं। साथ ही, गैस बनाने वाली चीजें, जैसे कि कच्चा सलाद, ब्रेड आदि कम खाएं। चीनी, सॉफ्ट ड्रिंक, टमाटर आदि भी यूरिक एसिड बढ़ा सकते हैं। इनसे परहेज करें।
इलाज
आर्थराइिटस के 4 स्टेज होते हैं। हर स्टेज के मुताबिक इलाज होता है। मोटे तौर पर एक्सरसाइज के साथ-साथ नीचे दिए गए तरीकों से इलाज किया जाता है:
सप्लिमेंट: घुटनों में घिसावट है तो कुछ महीने ग्लूकोसामाइन(glucosamine) ले सकते हैं। यह डाइट सप्लिमेंट है। यह केमिस्ट के यहां आसानी से मिल जाता है और कोई साइड इफेक्ट नहीं है, फिर भी डॉक्टर से पूछकर ही खाना चाहिए।
इंजेक्शन थेरपी: दो तरह के इंजेक्शन घुटने में दिए जाते हैं, 1. विस्कोसप्लिमेंटेशन (viscosupplementation) और 2. लोकल स्टेरॉयड (local steroid) विस्कोसप्लिमेंटेशन चिकनाई बढ़ानेवाले होते हैं। घुटना 50 फीसदी से कम घिसा है तो यह दिया जाता है। एक इंजेक्शन करीब 15 हजार रुपये का होता है, जिसका असर कुछ महीने से लेकर कुछ साल तक रह सकता है। इसके रिजल्ट मरीजों पर अलग-अलग होते हैं। लोकल स्टेरॉयड दर्द कम करता है और इसका कोई नुकसान भी नहीं है। 300-400 रुपये का एक इंजेक्शन होता है और असर कुछ महीने से लेकर साल भर तक हो सकता है।
PRP तकनीक:
प्लेटलेट रिच प्लाज्मा तकनीक में मरीज के ब्लड से प्लेटलेट निकालकर तकलीफ वाले हिस्से में डाली जाती हैं।
सर्जरी: दो तरह की सर्जरी होती हैं - माइनर (आर्थोस्कोपी) और मेजर (नी रिप्लेसमेंट)
माइनर सर्जरी लेप्रोस्कोपिक होती है और परमानेंट नहीं होती। इसमें जोड़ों की सफाई की जाती है या मांस फटने जैसी समस्या हल की जाती है। मरीज 24 घंटे या एक ही दिन में घर जा सकता है। सरकारी अस्पतालों में फ्री और प्राइवेट में इसकी कीमत 60-80 हजार हो सकती है। मेजर सर्जरी में रिप्लेसमेंट या अलाइनमेंट सर्जरी आती हैं। ये सर्जरी तभी की जाती हैं, जब बाकी सारे तरीके फेल हो जाएं और दर्द लंबे समय से लगातार बना हुआ हो। टेढ़े हो गए जोड़ को सीधा करने के लिए भी इसे किया जाता है। मरीज 5-7 दिन के बाद घर जा सकता है और कुछ हफ्तों में वापस काम भी शुरू कर सकता है। सरकारी अस्पताल में ज्यादातर सर्जरी फ्री होती है और सिर्फ इम्प्लांट का खर्च लिया जाता है, जबकि प्राइवेट में दोनों घुटने की सर्जरी आमतौर पर 2-2.5 लाख रुपये तक में हो जाती है। इम्प्लांट के लिए अलग से 55 हजार से 2.20 लाख रुपये तक क्वॉलिटी के मुताबिक खर्च होते हैं। राउंड नी को अच्छी क्वॉलिटी का इम्प्लांट माना जाता है और यह 30-35 साल तक बिल्कुल सही रहता है। घुटने की तरह ही कूल्हे, कंधे आदि का भी रिप्लेसमेंट किया जाता है।
आयुर्वेद आयुर्वेद में इलाज n आयुर्वेद में आर्थराइटिस के लिए पंचकर्म थेरपी की जाती है। इसमें भी जानुबस्ती खासतौर पर असरदार है। इसमें घुटने पर एक घेरा बनाकर प्रकृति के मुताबिक तेल डालते हैं। इससे घुटने को चिकनाई मिलती है। n इसके अलावा रासनादि गुग्गुल, योगराज गुग्गुल आदि भी फायदेमंद हैं। n यूरिक एसिड से होनेवाले आर्थराइिटस के लिए मंजिष्थादि क्वाथ और केशोर गुग्गुल फायदेमंद हैं तो गठिया में वासुका श्वेत असरदार है। n पोटली थेरपी में अलग-अलग जड़ी-बूटियों की पोटली बनाकर उसे तेल में डालकर सिकाई की जाती है। n महानारायण, महामाष या तिल के तेल से मालिश भी खासी असरदार होती है। सुबह-शाम 15-15 मिनट करें। n सोने से पहले रोजाना 1 चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लेने से शरीर के दोष बैलेंस रहते हैं। n गर्म पानी से सिकाई करना काफी असरदार है।
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